उप्र के दो और किसान संगठनों ने किया किसान कानूनों का समर्थन

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Farmers Protest news: कृषि कानूनों के समर्थक किसान समूहों ने तोमर से मुलाकात की, कानून वापस नहीं लेने की अपील
नए कृषि कानूनों के खिलाफ एक तरफ हजारों किसान पिछले करीब एक महीने से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं, दूसरी तरफ कई किसान संगठन कानून का समर्थन भी कर रहे हैं। गुरुवार को ऐसे 2 किसान संगठनों ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात कर उनसे कानूनों को वापस नहीं लेने की मांग की।

हाइलाइट्स:
कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शनों के बीच 2 किसान संगठनों ने कानूनों को वापस न लिए जाने की अपील की
कानून समर्थक 2 किसान संगठनों ने गुरुवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से की मुलाकात
यूपी से ताल्लुक रखने वाले दोनों किसान संगठनों ने कृषि मंत्री से कानूनों को वापस नहीं लेने की अपील की
अबतक करीब 12 किसान समूह इन कानूनों का समर्थन कर चुके हैं

नई दिल्ली 24 दिसंबर। केंद्र के तीन कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए उत्तर प्रदेश के दो किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की और उनसे गुजारिश की कि इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाए। वहीं, कई किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमा पर करीब एक महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं।

किसान मजदूर संघ (केएमएस) और किसान सेना (केएस) ने केंद्रीय मंत्री से मुलाकात की और अनुबंध खेती से जुड़ी विवाद निस्तारण प्रणाली को मजबूत करने सहित कई मांग रखी। इसके साथ ही अबतक करीब 12 किसान समूह इन कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। इससे पहले उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और अन्य स्थानों के संगठनों ने इन कानूनों का समर्थन किया था।
बागपत जिले से आए केएमएस के प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई बैठक के दौरान बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह भी मौजूद थे। बैठक के बाद सिंह ने कहा कि केवल पंजाब के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि बिना कर मंडियों से बाहर कृषि उत्पादों को बेचने की अनुमति देने से कमीशन एजेंट को अपना कारोबार खत्म होने का भय है। उन्होंने दावा किया कि देश में 16 करोड़ किसान है लेकिन पंजाब के केवल 11 लाख किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। सिंह ने कहा कि इसकी वजह कमीशन एजेंटों का कारोबार खत्म होने का भय है।
सत्यपाल सिंह ने कहा कि पंजाब सबसे अधिक 8.5 प्रतिशत मंडी कर लगाता है जबकि उत्तर प्रदेश केवल 1.5 प्रतिशत कर लगाता है। जब उनसे पूछा गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसान नेता भी इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं तो सिंह ने कहा, ‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोई कानून का विरोध नहीं कर रहा है। केवल 100-150 लोग राकेश टिकैत (किसान नेता) के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। जब संसद में कानून पारित हुआ तो वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने तुरंत प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने वर्ष 1993 में इसी तरह की आजादी (किसानों के लिए) मांगी थी।’
केएमएस अध्यक्ष चौधरी प्रकाश तोमर ने मंत्री को सौंपे ज्ञापन में कहा, ‘दीनबंधु छोटू राम ने किसानों और मजदूरों को साहूकारों से मुक्त कराया था, चौधरी चरण सिंह ने हमे जमींदारों से मुक्त कराया और आजादी के 70 साल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमे बिचौलियों और कमीशन एजेंट से मुक्त कराया है। हम इन तीनों कृषि कानूनों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं।’ केएमएस ने नए कानूनों का समर्थन करने के साथ सरकार से मांग की कि उसे गांव के स्तर पर अधिकरण बनाने पर विचार करना चाहिए जिसमें सरकार, न्यायपालिका और किसान संगठन के प्रतिनिधि हो ताकि अनुबंधित खेती को लेकर उपजे विवाद का पारदर्शी तरीके से समाधान हो सके।

केएमएस ने गन्ना किसानों का बकाया देने में कथित तौर पर देरी करने पर उत्तर प्रदेश के किन्नौरी, मोदीनगर और मलकपुर इलाके की चीनी मिलों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। आगरा के संगठन किसान सेना के प्रतिनिधिमंडल ने भी कृषि कानूनों का समर्थन किया है। किसान सेना के अध्यक्ष गौरी शंकर सिंह ने कहा, ‘प्रदर्शनकारी संगठन पहले संशोधन की मांग कर रहे थे लेकिन अब वे कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं। हमने सरकार से मांग की है कि वह सुनिश्चित करे कि कानून लागू हो।’ उन्होंने कहा कि नया कानून किसानों को अपने उत्पाद देश में कहीं भी बेचने की आजादी देता है और यहां तक किसान उत्पादक संगठन सीधे कंपनियों को अपने उत्पाद बेच सकते हैं। किसान सेना ने मंत्री को दिए अपने ज्ञापन में सरकार से केंद्र के स्तर पर ‘किसान आयोग’ गठित करने पर विचार करने का अनुरोध किया है जो अनुबंधित खेती संबंधी विवादों का समाधान कर सके।

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बागपत के किसानों ने कृषि कानूनों से बिचौलियों व आढ़तियों से मुक्ति दिलाने का दिया धन्यवाद। कृषि कानूनों में सुधार करने को दिए सुझाव दि कृषि कानूनों को लेकर एक तरफ यूपी गेट व स‍िंधु बार्डर पर किसान आंदोलन कर रहे हैं। वहीं किसानों का एक बड़ा तबका कृषि कानूनों का समर्थन भी कर रहा है। अब कृषि कानूनों के समर्थन में बागपत के किसान आगे आए हैं। किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल कृषि मंत्री से मिला और कृषि कानूनों के जरिए बिचौलियों और आढ़तियों से मुक्ति दिलाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया। स‍िंिंिंििंिंिंिंिंिंििं
इस मौके पर ठाकुर राजेन्द्र स‍िंह, बाबूराम त्यागी, कृष्णपाल स‍िंह, राजीव, धर्मवीर स‍िंह व सुधीर आदि मौजूद रहे।

इन सुधारों का सुझाव दिया

चौधरी प्रकाश तोमर ने बताया कि कृषि कानून में विवाद निपटाने के लिए एसडीएम कोर्ट के बजाए किसान ट्रिब्यूनल का गठन हो। इसमें सरकारी अधिकारी, न्यायिक अधिकारी व किसान संगठन के प्रतिनिधि शामिल हों। गन्ना भुगतान में देरी करने वाली शुगर मिलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान करने व देरी के कारण किसानों के ऋण पर ब्याज को मुक्त करने का प्रावधान किया जाए। गन्ना भुगतान की व्यवस्था, गन्ना पर्ची व तौल की व्यवस्था के बेहतर निगरानी के लिए कंप्यूटरीकृत करने, किसानों के बच्चों को दस करोड़ रुपये का व्यापार कर मुक्त करने व ऋण की व्यवस्था करने, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को स्मार्ट कृषि क्षेत्र घोषित करते हुए इस क्षेत्र को केवल कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने, किसानों को अपना माल कहीं पर बेचने की आजादी के साथ ही वाहनों को टोल प्लाजा पर कर मुक्ति देने, दिल्ली पुलिस के अनावश्यक चालान काटने की प्रथा पर अंकुश लगाने, किसान श्रम व उसके कार्यों को मनरेगा में शामिल कर कम से कम 50 प्रतिशत श्रम की भरपाई मनरेगा फंड से करने, पशुपालन में लगे किसानों के हित के लिए पशु स्वास्थ के लिए कोई योजना आयुष्मान भारत की तरह चलाने, पशु बीमा तथा फसल बीमा व किसान परिवार बीमा के लिए सरकार किसान प्रतिनिधित्व के द्वारा चलाई जाने के लिए एक विशेष बीमा कंपनी अलग से बनाई जाए, जो पूर्णतय: अलाभकारी उद्देश्य के साथ कार्य करें। कृषि उत्पाद की सुगम आवाजाही के लिए स्पेशल किसान रेल चलाने का प्रावधान करने की मांग की।

सांसद ने किया ट्वीट

सांसद डाक्टर सत्यपाल सिंह ने बताया कि उनसे किसानों ने कृषि मंत्री से मिलाने का अनुरोध किया था। इस पर उन्होंने कृषि मंत्री से समय लेकर किसानों को उनसे मिलाया। वह भी किसानों के साथ कृषि मंत्री से मिले। वहीं सांसद ने ट्वीट में कहा कि लोकतंत्र की आत्मा हैं संवाद। बड़े से बड़े विवाद संवाद से सुलझते है। युद्धों का अंत भी अंतत: संवाद से ही होता है। किसानों का मुद्दा इतना बड़ा नहीं जितना बनाया गया है। इसे आसानी से सुलझाया जा सकता है। बशर्ते सुनने, सुनाने और सुलझाने की ईमानदार नीयत हो। अड़ंगा नहीं, अजेंडा चाहिए।

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