48 घंटे में परिणाम,योगी ने कहा था -माफिया को मिट्टी में मिला देंगें
UP Police Encounter: जरूरत पड़ी तो गाड़ी भी पलटेगी और बुलेट भी चलेगी… योगी ने सिर्फ कहा नहीं, दिखा भी दिया
अमित शुक्ला
मुख्यमंत्री योगी के इरादे बिल्कुल साफ है। प्रदेश में किसी तरह की दबंगई और माफियागिरी सहन नहीं होगी। शनिवार को ही उत्तर प्रदेश विधानसभा में योगी की गरजना सुनाई दी थी। उन्होंने कहा था कि माफियाओं को मिट्टी में मिला दिया जाएगा। उमेश पाल हत्याकांड में योगी ने इसे कर भी दिखाया है।
CM Yogi Adityanath
योगी आदित्यनाथ
लखनऊ 27 फरवरी: दिन शनिवार था। उत्तर प्रदेश विधानसभा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रौद्र रूप की गवाह बनी। अखिलेश यादव ने उन्हें बोलने को उकसाया था। पूर्व मुख्यमंत्री ने अचानक सदन में उमेश पाल हत्याकांड का मुद्दा उठा दिया था। जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष को धो डाला था। लेकिन, उनकी एक बात सबके कानों में विशेष रूप से गूंजती रही। गुस्से में तमतमाए योगी बोले थे – माफिया किसी भी पार्टी का हो, मिट्टी में मिला दिया जाएगा। सिर्फ दो दिनों में उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुख्यमंत्री की इस कथनी को करनी में बदल दिया । उमेश पाल की हत्या में शामिल आरोपितों में से एक को योगी की पुलिस ने जहन्नुम पहुंचा दिया । योगी ने इससे फिर साफ मैसेज दे दिया है। दबंगों और माफियाओं के खिलाफ उनकी ‘जीरो टॉलरेंस’ पॉलिसी में रत्तीभर फर्क नहीं पड़ा है। कोर्ट-कचहरी की आड़ में जेल की रोटियां तुड़वाने की जगह योगी सरकार इन्हें बिना टिकट ऊपर पहुंचाएगी। यही योगी स्टाइल है और वो इसे नहीं बदलेंगे।
उत्तर प्रदेश में ‘योगी राज’ शुरू होने के बाद से ही दबंगों और माफियाओं की सिट्टी-पिट्टी गुम है। पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ही मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया था कि दंबगों, माफियाओं और अपराधियों को ‘पाताल लोक’ पहुंचा दिया जाएगा। इनके खिलाफ योगी ने पुलिस के हाथ खोले हुए हैं । उसे जीरो टॉलरेंस नीति के आदेश हैं। ऐसे ऐक्शन की वो समय-समय पर समीक्षा करने लगे। दुर्दांत अपराधी धड़ाधड़ गिराए जाने लगे। उनके बचकर भाग निकलने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए। फैसला फटाफट होने लगा। बदमाशों को चुन चुनकर पुलिस ने निशाना बनाया।
Yogi vs Akhilesh
आंकड़े देते हैं बानगी
आंकड़ों पर नजर डालें तो भी आपको माफियाओं के खिलाफ योगी सरकार के ऐक्शन का कुछ अंदाजा मिल जाएगा। मार्च 2017 से पिछले साल नवंबर तक योगी सरकार में करीब 170 दुर्दांत अपराधियों को मार गिराया गया। 4,500 से ज्यादा अपराधी पुलिस की गोली से अस्पताल पहुंचे। योगी सार्वजनिक मंचों पर भी कहते रहे हैं कि जरूरत पड़ी तो गाड़ी भी पलटेगी और बुलेट भी चलेगी। बिकरू कांड के बाद मुख्य आरोपित विकास दुबे की गाड़ी पलटी थी और उसका एनकाउंटर हुआ था। उसी संदर्भ में योगी ने यह बात कही थी।
जब वाराणसी में उपनिरीक्षक अजय यादव की गोली मारकर हत्या की गई और उनकी सर्विस रिवॉल्वर लूट ली गई तो भी पुलिस ने आक्रामक तेवर दिखाए थे। पिस्टल लूटने वाले इन बदमाशों को ऑपरेशन पाताल लोक में मुठभेड़ में मार गिराया गया था। वाराणसी में ही बिहार के कुख्यात मनीष और रजनीश को मुठभेड़ में मार गिराए जाने पर पुलिस टीम को पांच लाख रुपये इनाम की घोषणा की गई थी।
Vikas Dubey
उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद 2017 में पहला एनकाउंटर 27 सितंबर को मंसूर पहलवान का हुआ था। मंसूर सहारनपुर का रहने वाला था। उस पर 50 हजार रुपये का इनाम था। विपक्ष कई बार ऐसे एनकाउंटर पर सवाल उठाता रहा है। लेकिन, सच यह है कि इन तमाम मरने वालों का रेकॉर्ड बताता हैं कि ये दुर्दांत अपराधी थे। इनके कारण लोगों में डर था। इनमें से बड़ी संख्या में इनामी थे।
सदन में जब गरजे मुख्यमंत्री योगी
शनिवार को जब अखिलेश ने उमेश पाल मर्डर केस का मुद्दा उठाया तो योगी तमतमा गए। उन्होंने समाजवादी पार्टी पर बदमाशों को प्रश्रय और बढ़ावा देने की बात कही। फिर गुस्से में बोले कि माफिया किसी भी पार्टी का हो हमारी सरकार मिट्टी में मिला देगी। शनिवार को योगी की इस भविष्यवाणी के दो ही दिनों के भीतर उमेश पाल की हत्या में शामिल आरोपितों में से एक दुर्दांत को वाकई में मिट्टी में मिला दिया गया। शुक्रवार को उमेश पाल और उनके सुरक्षाकर्मी संदीप निषाद की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हमले में घायल दूसरे सुरक्षाकर्मी राघवेंद्र सिंह को गंभीर हालत में एसआरएन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां से रविवार को उन्हें लखनऊ भेज दिया गया था। विधायक राजू पाल हत्याकांड के उमेश पाल मुख्य गवाह थे। हत्या में शामिल आरोपितों में से एक अरबाज को सोमवार को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया । हमलावरों ने जिस कार का इस्तेमाल किया था, अरबाज उस कार का ड्राइवर था। पुलिस के साथ अरबाज की मुठभेड़ दोपहर करीब तीन बजे हुई। अरबाज के साथ और दो-तीन लोग थे जो मौके से भाग गए।
Encounter In Yogi Adityanath Govt What Cm Said Has Done
बम-बंदूक, धुआं… राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश को कर दिया खत्म, अतीक अहमद से था खतरा! पिछले 18 साल की कहानी
Atiq Ahmed Umesh Pal Shootout: बाहुबली अतीक अहमद के रास्ते में आने वाले उमेश पाल को दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया गया। उमेश पाल विधायक राजू पाल हत्याकांड में गवाह थे। साथ ही अतीक अहमद के खिलाफ बंद कई मामलों को खुलवाने का रास्ता थे। इस पूरे मामले से जुड़ी 18 सालों की कहनी जानिए
हाइलाइट्स
1-25 जनवरी 2005 को हुई थी विधायक राजू पाल की दिनदहाड़े हत्या
2-अतीक के खिलाफ बंद पड़े मुकदमों को खुलवाने में थी महत्वपूर्ण भूमिका
3-सबको पता था उमेश को है जान का खतरा, फिर भी नहीं बचा पाए
4-उत्तर प्रदेश पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था और सूचना तंत्र पर भी खड़े हुए सवाल
उमेश पाल दिनदहाड़े हत्याकांड ने एक बार फिर बाहुबली अतीक अहमद के दौर की याद ताजा कर दी है। कुछ इसी तरह करीब से 18 साल पहले विधायक राजू पाल की हत्या कर दी गई थी। उन पर भी एक बार नहीं, बल्कि दो बार घेर कर वार किया गया था। शुक्रवार को घर के पास गाड़ी से उतरते ही उमेश पाल पर गोलियों की बौछार कर दी। घर, गाड़ी पर बम से हमला किया गया। पूरा क्षेत्र दहल उठा। उमेश पाल पर पहले ही अतीक अहमद गिरोह की तरफ से हमले की आशंका थी। इसके बाद भी मात्र दो सुरक्षाकर्मी मिले थे और हमले के वक्त वो भी बड़े हथियारों का सामना नहीं कर सके।
अतीक अहमद के खिलाफ बंद हो चुके मुकदमे को खुलवाना, गवाहों को ले जाकर कोर्ट में गवाही करवाना उमेश को बड़ा खतरा था। कई बार धमकियों के बावजूद राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अपना इरादा नहीं बदला। यही उन पर हमले की मुख्य वजह रही।
सूत्रों के मुताबिक अतीक से जुड़े दो मामलों में उमेश की पैरवी के चलते मुकदमे सजा की दहलीज तक पहुंच गए हैं। कोर्ट ने इन मामलों में जल्द सजा के निर्देश भी दे रखे थे। शुरुआती पड़ताल के बाद हत्याकांड में अतीक गैंग के शामिल होने की बात सामने आ रही है। उमेश पाल पिछले कुछ सालों से प्लॉटिंग के धंधे से जुड़ा था। इस धंधे में अतीक के गैंग से जुड़े कई लोग एक-एक करके उसके साथ आ गए थे। उमेश के करीबी लोगों ने उसे इस बात को सावधान किया और उन लोगों से सतर्क रहने को कहा। लेकिन उमेश ने इन बातों पर कान नहीं दिया। माना जा रहा है कि इन लोगों ने उमेश के मूवमेंट, वह पैरवी को किससे और कहां मिल रहा है, किस-किस का हाथ उसके पीठ पर है, जैसी जानकारियां जुटाने के बाद इस हत्याकांड की जमीन तैयार की।
अलकमा मर्डर केस को फिर से खुलवाने में थी महत्वपूर्ण भूमिका
25 सितंबर 2015 को धूमनगंज थाना क्षेत्र के मरियाडीह में अतीक अहमद के करीबी फरहान और अमित की चचेरी बहन अलकमा और उसके ड्राइवर सुजीत की हत्या हुई थी। फाइनल रिपोर्ट लग चुके इस मामले को उमेश ने भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद फिर से खुलवाने और उसमें अतीक और उसके भाई अशरफ को आरोपित बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक अन्य मामला रेलवे ठेकेदार जितेंद्र की हत्या से जुड़ा था। इसमें जितेंद्र कुमार की मां सूरजकली और भतीजे हंसराज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आरोप लगाया था कि जितेंद्र हत्याकांड का मुख्य आरोपित उमेश पाल और उसका भाई है। अतीक और उसके भाई अशरफ को फंसाया जा रहा है। हालांकि पुलिस की विवेचना के बाद अतीक अहमद को षड्यंत्र रचने और छोटे भाई मोहम्मद अशरफ को अपराध का आरोपित बनाया गया था। अतीक और उसके गैंग के लोगों के खिलाफ गैंगस्टर की कार्रवाई की पैरवी भी उमेश ने ही की थी। बाद में 14 (1) की कार्रवाई में अतीक की संपत्तियां सीज की गईं और अवैध कब्जे से मुक्त कराई गईं।
सुरक्षा और सूचना तंत्र दोनों हो गए फेल
प्रयागराज पुलिस का सूचना और सुरक्षा तंत्र दोनों फेल हो गए। खुफिया एजेंसियों से लेकर जिले में तैनात पुलिस और प्रशासन के हर अधिकारी को जानकारी थी कि उमेश की जान को लगातार अतीक गैंग से खतरा है। पुलिस-प्रशासन उमेश को दो गनर दिला आश्वस्त हो गए कि अब कुछ नहीं होगा। पुलिस और खुफिया एजेंसियों के गुप्तचरों को इस हत्याकांड की कहीं से भी भनक नहीं लगी। जबकि कमिश्ररेट सिस्टम लागू होने के बाद जिले में अफसरों और फोर्स की संख्या काफी बढ़ गई है।
दो वरिष्ठ अफसरों में तालमेल नहीं
डीजीपी मुख्यालय ने कमिश्ररेट में अफसरों की तैनाती के दौरान इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि वहां दो ऐसे वरिष्ठ अफसर एक साथ तैनात हो गए हैं, जिनकी एक दूसरे से खास बनती नहीं है। दरअसल ये दोनों वरिष्ठ अफसर पहले भी प्रयागराज में ही दो महत्वपूर्ण तैनातियों पर एक साथ रह चुके हैं। तब इनके आपसी मन मुटाव की खबरें चर्चित थीं।
राजनीतिक वर्चस्व को लेकर हुई थी विधायक राजू पाल की हत्या
25 जनवरी 2005 की दोपहर बाद तीन बजे। स्थान-शहर पश्चिमी विधान सभा का सुलमसराय एरिया। गोलियों की तड़तड़ाहट ने इलाके के लोगों को सकते में डाल दिया था। आसपास के लोग घरों से बाहर निकले लेकिन बसपा विधायक राजू पाल के काफिले पर हो रही फायरिंग में हिम्मत नहीं जुटा सके कि हमलावरों का विरोध कर सकें। गोलियों की बौछार के बीच प्रतिरोध करते हुए विधायक राजू पाल की क्वालिस दोबारा शहर की ओर मुड़ी लेकिन गोलियों से छलनी हो चुकी क्वालिस की ड्राइविंग सीट पर बैठे विधायक में अब इतनी जान नहीं थी कि वह ड्राइविंग कर पाते। खून से लथपथ विधायक को उसी गाड़ी में लेकर समर्थक अस्पताल भागे, लेकिन स्वरूपरानी अस्पताल से पहले दोबारा उन्हें घेरकर दर्जनों राउंड फायरिंग हुई। सुलेमसराय से लेकर कोतवाली एरिया में एसआरएन अस्पताल के बीच लगभग 5 किलोमीटर तक हमलावर लगातार पीछा और फायरिंग करते रहे। विधायक और उनके दो समर्थकों की मौत की पुष्टि के बाद ही हमलावर भागे।
वर्तमान सपा विधायक राजू पाल की पत्नी ने दर्ज कराया था केस
फिल्मी अंदाज में विधायक की दिनदहाड़े हत्या के काफी देर बाद पुलिस सक्रिय हुई। इस बीच शाम लगभग 6 बजे तक आधा शहर भयभीत रहा। हत्याकांड में राजू पाल के साथ ही उनके दो गनर संदीप यादव और देवीलाल पाल भी मारे गए थे। हत्या की वजह राजनीतिक वर्चस्व था। दरअसल अतीक अहमद के सांसद बनने के बाद खाली हुई सीट पर उप चुनाव में सपा के टिकट से अतीक के भाई अशरफ ने चुनाव लड़ा तो बीएसपी से राजू पाल सामने थे। राजू पाल ने अशरफ को करारी हार दी थी, जिसके बाद राजू पाल माफिया के निशाने पर थे। उनकी हत्या के बाद हुए उपचुनाव में अशरफ फिर सपा के टिकट पर लड़ा और चुनाव जीत गया। राजू पाल की पत्नी और वर्तमान सपा विधायक पूजा पाल की लिखित शिकायत पर धूमनगंज थाने में पूर्व सांसद अतीक अहमद, उनके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ, गुलफुल, रंजीत पाल आबिद, इसरार, आशिक, जावेद, एजाज, अकबर और फरहान को आरोपित बनाया गया था। इनके खिलाफ 6 अप्रैल 2005 को आइपीसी की धारा 147, 148, 149, 302, 506, 120-बी और 7 सीएलए एक्ट में 6 अप्रैल 2005 को आरोप पत्र दाखिल किया गया था। विधायक राजू पाल हत्याकांड में लखनऊ स्थित सीबीआई कोर्ट में माफिया अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ समेत अन्य आरोपितों पर आरोप तय हो चुके हैं।
राजू पाल हत्याकांड में तय हो चुके हैं आरोप
1-12 दिसंबर, 2008 को इस मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गई थी।
2-10 जनवरी, 2009 को सीबीसीआईडी ने पांच अभियुक्तों के खिलाफ अपना पहला पूरक आरोप पत्र दाखिल किया जिसमें मुस्तकिल, मुस्लिम उर्फ गुड्डू, गुलहसन, दिनेश पासी व नफीस कालिया आरोपित बनाये गये थे।
3-4 अप्रैल 2009 को सीबीसीआईडी ने अपनी दूसरा पूरक आरोप पत्र दाखिल किया। इसमें सिर्फ गुफरान को आरोपित बनाया गया था।
4-24 दिसंबर, 2009 को सीबीसीआईडी ने इस मामले में तीसरा पूरक आरोप पत्र दाखिल किया। इसमें अब्दुल कवि के अलावा अशरफ और अतीक, रंजीत पाल, आबिद, फरहान अहमद, इसरार अहमद, जावेद, उर्फ रफीक अहमद, गुलहसन व अब्दुल कवि को आरोपित बनाया गया।
5-22 जनवरी, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी। सीबीआई ने मामला दर्ज कर विवेचना बाद 20 अगस्त 2019 को आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी।