पवार होंगे यूपीए के अगले चीफ, मोदी को चुनौती
80 साल के पवार आखिर 70 साल के मोदी को चैलेंज क्यों नहीं कर सकते?
शरद पवार (Sharad Pawar) यूपीए के चेयरमैन बनते हैं या नहीं, अलग बात है – लेकिन ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ विपक्षी खेमे में जान फूंकने के लिए शरद पवार से मदद मांग कर कोई गलती नहीं की है.
मृगांक शेखर @mstalkieshindi
NCP नेता शरद पवार (Sharad Pawar)
को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार की एक स्कीम सौगात के रूप में दी है. 12 दिसंबर को शरद पवार के 80वें जन्म दिन से तीन दिन पहले ही महाराष्ट्र विकास आघाड़ी सरकार की कैबिनेट ने ‘शरद पवार ग्राम समृद्धि योजना’ को मंजूरी दी है, जिसे राज्य सरकार के रोजगार गारंटी विभाग की ओर से लागू किया जाएगा.
शरद पवार को यूपीए का चेयरमैन बनाये जाने की भी हाल ही में काफी चर्चा रही, लेकिन एनसीपी की तरफ से उसे खारिज कर दिया गया था – हालांकि, जिस तरीके से एक बार फिर शरद पवार की अहमियत महसूस की जाने लगी है, लगता है एनसीपी के इंकार में भी कोई इकरार छुपा हुआ है.
शरद पवार का महत्व तब और भी ज्यादा समझ में आया जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फोन किया और केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री अमित शाह को काउंटर करने में मदद मांगी – और अब शरद पवार अगले महीने कोलकाता जाने वाले हैं.
शरद पवार की रैली से ममता बनर्जी को कोई मदद मिल पाएगी, इसमें शक शबहे भले हों, लेकिन ममता बनर्जी फिलहाल शरद पवार के राजनीतिक मार्ग को प्रशस्त जरूर कर सकती हैं.
जिस की चर्चाएं हैं और जिस तरीके से शरद पवार महाराष्ट्र में बैठे बैठे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को काउंटर करने लिए ममता बनर्जी को टिप्स दे रहे हैं – ये तो साफ तौर पर लगने लगा है कि शरद पवार विपक्षी खेमे के नेतृत्व का मन बना चुके हैं – और अगर यूपीए का चेयरमैन कोई और भी बनता है तो तय है कि शरद पवार ही भारी पड़ेंगे – क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को चैलेंज कर पाने की स्थिति में कोई और तो नजर नहीं आ रहा?
जो देश में मौजूदा राजनीतिक हालात हैं, सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि 80 साल के शरद पवार आखिर 70 साल के नरेंद्र मोदी को चैलेंज क्यों नहीं कर सकते?
शरद पवार नहीं तो कौन बनेगा यूपीए का अगला चैयरमैन?
शरद पवार और ममता बनर्जी में एक बात कॉमन है वो ये कि दोनों ही मूलतः कांग्रेसी हैं. महत्वाकांक्षा और विरोधी तेवर के चलते अलग अलग समय पर दोनों को कांग्रेस से अलग होना पड़ा और दोनों ही ने अपने अपने इलाके में अपना अपना दमखम दिखाया.दोनों ही कद्दावर और मजबूत जनाधार वाले क्षत्रप हैं – एक महाराष्ट्र में तो दूसरा पश्चिम बंगाल में.
शरद पवार और ममता बनर्जी दोनों ही देश के सबसे बड़े और मजबूत राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी को लगातार छका रहे हैं. महाराष्ट्र में शरद पवार ने सिल्वर लेक में बैठे बैठे ऐसा खेल खेला और ताना बाना तैयार किया कि बीजेपी हाथ मलती रह गयी. वैसा ही करिश्मा दिखाने के लिए ममता बनर्जी ने शरद पवार की मदद मांगी है.
ये शरद पवार ही हैं जो आधी रात को खिचड़ी पका कर सुबह उठते ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले देवेंद्र फडणवीस को कुर्सी छोड़ कर भाग खड़े होने के लिए मजबूर कर दिये – और घर छोड़ कर जा चुके भतीजे अजीत पवार को बीजेपी के जबड़े से छीन लिया. महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद कहा भी कि अब राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश होगी. लगता है वो वक्त आ गया है और शरद पवार के मिशन में ममता बनर्जी मौका मुहैया करा रही हैं.
लगता तो नहीं कि शरद पवार को यूपीए का चेयरमैन बनाया जाना राहुल गांधी को जरा भी अच्छा लगेगा. शरद पवार राहुल गांधी को लगातार नजरअंदाज कर रहे हैं – और मौका मिलते ही दबोच ले रहे हैं. ऐसा एक से अधिक मौकों पर देखने में आया है. 2019 के आम चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों के दौरान शरद पवार और राहुल गांधी की मुलाकात हुई जरूर थी और ऐसा लगा एनसीपी नेता को कांग्रेस नेता से परहेज जैसी कोई बात नहीं है, लेकिन बाद में ये सिलसिला पूरी तरह थम गया.
कैंसर को मात देने के बाद भी दमखम बनाये रखने वाले शरद पवार की राजनीति में उम्र एक संख्या भर है – और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चुनौती पेश करने वाला और कोई नजर भी नहीं आ रहा है!
महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनाने की परदे के पीछे चल रही रणनीतियों में भी शरद पवार ने राहुल गांधी को शामिल नहीं किया था. ये बात भी शरद पवार ने ही ऐसे बतायी थी कि सरकार बनने के कई महीने से पहले से लेकर बाद तक राहुल गांधी से उनका कोई संपर्क नहीं हुआ था. सरकार बनाने को लेकर जो बी बातें हुईं वो सीधे सोनिया गांधी से हो रही थीं. तब अहमद पटेल भी खासे सक्रिय रहे.
भारत चीन विवाद को लेकर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्व दलीय बैठक बुलायी थी, शरद पवार ने राहुल गांधी के स्टैंड का खुला विरोध किया. मीटिंग के बाद भी शरद पवार अपने स्टैंड पर अड़े रहे. पूर्व रक्षा मंत्री होने के नाते उनकी दलील भी दमदार होती थी.
अभी अभी की बात है, राहुल गांधी को लेकर एक इंटरव्यू में सवाल पूछे जाने पर शरद पवार ने बड़े ही सहज तरीके से, कम शब्दों में जोरदार और तीखी टिप्पणी की – ‘उनमें निरंतरता की कमी है.’
हो सकता है राहुल गांधी भी परिस्थितियों की गंभीरता को समझने लगे हों. शरद पवार की टिप्पणी के कुछ दिन बाद ही वो शरद पवार के साथ किसानों के मुद्दे पर राष्ट्रपति से मिलने भी गये थे. राहुल गांधी में ये बदलाव तब भी महसूस किया गया जब वो कांग्रेस के G-23 नेता गुलामनबी आजाद के साथ राष्ट्रपति भवन गये थे – राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से ये मुलाकात भी किसानों के आंदोलन को लेकर ही रही.
राहुल गांधी अगले साल जनवरी में ही कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये जाने वाले हैं – और खबर है कि सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के साथ साथ यूपीए के चेयरपर्सन की जिम्मेदारी से भी मुक्त होना चाहती हैं.
ये तो सोनिया गांधी भी अच्छी तरह समझ चुकी होंगी कि राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने से तो नहीं, लेकिन यूपीए का चेयरमैन बना दिये जाने के बाद गठबंधन की पहली और आखिरी सदस्य भी कांग्रेस ही रह जाएगी. जिस तरह से बिहार चुनाव के बाद राहुल गांधी को टारगेट किया जा रहा है, लगता नहीं कि तेजस्वी यादव को भी राहुल गांधी का नेतृत्व मंजूर होगा.
2019 के आम चुनाव में नतीजे आने से ठीक पहले राहुल गांधी खुद भी देख चुके हैं कि कैसे टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू की तमाम कोशिशों के बावजूद ममता बनर्जी राहुल गांधी के साथ मीटिंग के लिए तैयार नहीं हुईं. वैसे ममता बनर्जी तो दिल्ली आकर सोनिया गांधी से मिलकर और तब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राहुल गांधी को इग्नोर कर कोलकाता लौट चुकी हैं.
हाल फिलहाल जिस तरह के राजनीतिक समीकरण बने हुए हैं, कई नेता गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस गठबंधन की कोशिश में हैं. आम चुनाव के वक्त तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने ऐसी कोशिश भी की थी, लेकिन ममता बनर्जी ने उसमें भी पेंच फंसा दिया और वो पीछे हट गये.
शरद पवार की राह में उम्र तो आड़े नहीं आ रही!
शरद पवार को राजनीति में 50 साल पहले ही पूरे हो चुके हैं और जिस तरह से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक्टिव रहे और अब भी उनकी पूछ बनी हुई है, लगता है शरद पवार अभी कुछ और राजनीतिक उथल पुथल के आर्किटेक्ट बनने वाले हैं.
प्रधानमंत्री बनने के साल भर बाद 2015 में नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र के बारामती में एक कार्यक्रम में गये थे. बारामती शरद पवार की राजनीति का गढ़ माना जाता है. प्रधानमंत्री मोदी ने शरद पवार के साथ उनके घर पर लंच भी किया था.
तब शरद पवार के बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने शरद पवार की दिल खोल कर तारीफ की और कहा था कि देश को उनके राजनीतिक अनुभव की जरूरत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ऐसे लोगों को राजनीति में बने रहने की सलाह देते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने भी बताया था कि मोदी ने ही उनको राजनीति में अपना योगदान देते रहने की सलाह दी थी.
शरद पवार की तारीफ एक बार और प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से सुनने को मिली जब वो उनको अपना राजनीतिक गुरु और मार्गदर्शक बताये. वैसे बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में बैठे लालकृष्ण आडवाणी भी मोदी के मेंटोर ही माने जाते हैं.
2016 में वसंतदादा संस्थान के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि है कि गुजरात में शुरुआती दिनों में शरद पवार ने मुझे हाथ पकड़ कर राह दिखायी.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से शरद पवार के अलावा गैर बीजेपी नेताओं की ऐसी तारीफ सिर्फ पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बारे में ही सुनने को मिली है. और महत्वपूर्ण बात ये भी है कि प्रणब मुखर्जी की तरह ही शरद पवार ने भी मोदी की कार्यक्षमता, समझ और उर्जा की पूरे मन से तारीफ की है.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान मूसलाधार बारिश में शरद पवार की रैली तो शायद ही कोई भूल पाये. 19 अक्टूबर तो महाराष्ट्र के सतारा में एनसीपी की रैली थी और सीनियर नेता रैली रद्द करने के बारे में सोच रहे थे, लेकिन शरद पवार मंच के पास गये और भीगते हुए भाषण देने लगे – शरद पवार का ये वीडियो ऐसा वायरल हुआ कि एनसीपी को दोबारा मुकाबले में ला खड़ा किया.
मंच पर खड़े होकर बादलों की गरज के साथ बारिश की बौछारों से बेपरवाह शरद पवार बोले, ‘ये एनसीपी के लिए वरुण राजा का आशीर्वाद है. इससे राज्य में चमत्कार होगा और यह चमत्कार 21 अक्टूबर से शुरू होगा – मुझे इसका विश्वास है.’
शरद पवार का विश्वास कायम रहा. एनसीपी छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन करने वाले छत्रपति शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोसले को मात खानी पड़ी. शरद पवार के उम्मीदवार श्रीनिवास पाटिल ने उदयनराज भोसले को 80 हजार वोटों से शिकस्त दे दी थी, जबकि उपचुनाव उदयनराजे भोसले के इस्तीफे के चलते ही कराना पड़ा था.
शरद पवार का विल पावर बहुत ही मजबूत माना जाता है – वरना कैंसर जैसी बीमारी को मात देकर राजनीतिक रूप से पहले की तरह ही ऊर्जा और जोश के साथ मैदान में डटे रहना संभव नहीं है – और ये शरद पवार के आगे भी यूं ही डटे रहने को लेकर मजबूत इशारा भी कर रहा है.