निर्मला की दो-टूक:यूपीए का उतार रहे कर्ज, नहीं कर सकते पैट्रोल-डीजल सस्ता
UPA सरकार के ₹1.44 लाख करोड़ के Oil Bonds के कारण नहीं कम कर पा रहे पेट्रोल-डीजल के दाम: निर्मला सीतारमण ने बताई वजह
ऑयल बॉन्ड्स हैं पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतों का कारण
FM सीतारमण ने बताई पेट्रोल-डीजल के दाम कम न कर पाने की वजह (फोटो : इंडियन एक्सप्रेस/एएनआई)
नई दिल्ली 16अगस्त।देश में बढ़ते पेट्रोल-डीजल के दामों के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ईंधन की कीमतों में कमी न कर पाने की वजह बताई। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती यूपीए (UPA) सरकार के द्वारा 1.44 लाख करोड़ रुपए के ऑयल बॉन्ड्स (Oil Bonds) जारी किए गए थे, यही कारण है कि वर्तमान सरकार चाह कर भी तेलों के दाम नहीं कम कर सकती है।
वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा, “UPA सरकार के द्वारा तेलों के दाम कम करने के लिए 1.44 लाख करोड़ रुपए के ऑयल बॉन्ड्स जारी किए गए थे। हम UPA सरकार के द्वारा इस्तेमाल किए गए गलत तरीके का उपयोग नहीं कर सकते हैं। इन ऑयल बॉन्ड्स के कारण सारा भार हमारी सरकार पर आ चुका है जिसके कारण हम पेट्रोल और डीजल के कीमतों में कटौती कर पाने में असमर्थ हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि ईंधन के दामों को लेकर लोगों की चिंता जायज है लेकिन जब तक राज्य सरकारें और केंद्र एक साथ बैठकर इस मुद्दे पर बातचीत नहीं करते, तब तक इसका कोई समाधान नहीं निकाला जा सकता है।
UPA सरकार के द्वारा जारी किए गए ऑयल बांड्स पर दिए जाने वाले ब्याज की जानकारी देते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि पिछले 5 सालों में मोदी सरकार ने सिर्फ ऑयल बॉन्ड्स के ब्याज पर ही 70,195.72 करोड़ रुपए खर्च किए हैं और साल 2026 तक 37,000 करोड़ रुपए ब्याज का भुगतान किया जाना है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि ब्याज के अतिरिक्त 1.30 लाख करोड़ रुपए से अधिक का मूलधन अभी भी बकाया है, ऐसे में अगर ऑयल बॉन्ड्स का भार नहीं होता तो ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कम की जा सकती थी।
आपको बता दें कि ऑयल बॉन्ड्स एक तरह की सिक्योरिटी बॉन्ड होते हैं। सरकार, तेल कंपनियों को सब्सिडी के तौर पर यह बॉन्ड्स जारी करती हैं। आमतौर पर इन बॉन्ड्स की परिपक्वता अवधि (Maturity Period) लगभग 15-20 साल हुआ करती है। इन बॉन्ड्स पर तेल कंपनियों को ब्याज की अदायगी की जाती है। सरकार अक्सर तेल की कीमतों पर नियंत्रण करने के लिए ऐसे बॉन्ड्स जारी करती हैं लेकिन यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन बॉन्ड्स की सहायता से कुछ समय के लिए राजकोषीय घाटा कम जरूर किया जा सकता है लेकिन अंततः भविष्य में इनका भुगतान करना आवश्यक होता है।