रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी के पीछे छल भी है तो किसी को क्या?

वसीम रिज़वी अर्थात जितेंद्र त्यागी की ‘घर-वापसी’ अस्थायी तो नहीं?
कभी वसीम के करीबी और आज उसके घोर विरोधी रहे लोगो का कहना है कि आने वाले वक्त में सत्ता के ऊंट ने करवट बदली तो सियासी और सामाजिक घर वापसी के लिए वसीम कुछ इस तरह का पैंतरा बदल सकते हैं

कल के वसीम रिजवी आज से जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी हैं. क़रीब दो दशक पहले पुराने लखनऊ की तंग गलियों तक सीमित वसीम रिजवी पिछले कुछ वर्षों से भारत में ही नहीं बल्कि विश्व पटल में लगातार चर्चाओं में हैं. कभी वसीम रिजवी के करीबी और आज उसके घोर विरोधी लोगों का कहना है कि आने वाले वक्त में सत्ता के ऊंट ने करवट बदली तो सियासी और सामाजिक घर वापसी के लिए वसीम फिर पाला बदल सकते हैं:

मैं इस्लाम पर अटूट विश्वास/अक़ीदा रखने वाला मुत्तक़ी और परहेज़गार (अल्ला से डरने वाला, पाप से बचने वाला) मुसलमान हूं. बीते दिनों मेरी ज़िन्दगी ख़तरे में थी. ज़ोर-ज़बरदस्ती करके इस्लाम विरोधी ताकतों ने मुझसे कुफ्र बकवाया. इस्लाम धर्म छोड़ सनातन धर्म अपनाने पर जबरन मजबूर किया गया. ये सब नहीं करता तो बच नहीं पाता. ऐसे मुकदमों में फंसा दिया जाता कि ज़िन्दगी भर जेल में सड़ता. शिया फिक़ा के मुताबिक़ मैंने खुद को बचाने के लिए तक़य्या ( विशेष अथवा विपरीत स्थितियों में अपनी जान बचाने के लिए इस्लाम के खिलाफ दुश्मन से सहमत होने को तकय्या करना कहा जाता है.) कर ली थी और अपनी जान बचाने के लिए ऐसा कुफ्र बकने पर मजबूर होना पड़ा. मुझसे जोर-जबरदस्ती इस्लाम विरोधी बाते़ कहलायी गईं. मैं खुद को बचाने के लिए इस्लाम के विरुद्ध बयान देता रहा.

मुसलमान से हिंदू बने वसीम रिजवी ने एक नयी डिबेट का शुभारंभ कर दिया है

वसीम रिजवी चर्चाओं में आने, खुद को बचाने और आगे बढ़ाने के हुनर में माहिर हैं. नकात्मक चर्चा के पंखों से भी उड़ान भर कर अपने लक्ष्य तक पहुंचना उनकी फितरत है. किसकी हुकुमत में किस धारा में बहे इस बात को वसीम बख़ूबी जानते हैं.

पुराने लखनऊ के एक वार्ड में पार्षद से सियासी सफर शुरु करने वाले वसीम रिजवी ने अब इस्लाम धर्म छोड़ सनातन धर्म अपना लिया है. वसीम रिजवी का नया नाम जितेंद्र नरायण सिंह त्यागी हो गया है. पिछले दो दशक से नकारात्मक या सकारात्मक किसी भी तरह की पहचान बनाने के लिए इसने तमाम तरह के रंग बदले हैं.

पार्षद बनने के बाद एक बड़े शिया धार्मिक गुरु के करीब आकर बसपा सरकार में वो शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बने. बसपा की कार्यसंस्कृति के मुताबिक वो उन दिनों खामोश रहते थे. विवाद या बयानबाजी से दूर रहकर उन्होंने बतौर चैयरमेन अपना कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद यूपी में सपा सरकार आई तो तत्कालीन कैबिनेट मंत्री आज़म खान के करीबी बन गए. और फिर दोबारा इस पद पर बरकरार रहे.

बसपा सरकार में इन्हें चेयरमैन बनाने वाले मौलाना जब इसके खिलाफ हो गए तो मौलानाओं से दूरी रखने वाले आज़म खान से इन्होंने करीबी रिश्ता बनाकर अपना पद और रुतबा बरकरार रखा. सपा सरकार गई और भाजपा सरकार आई तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की बड़ी हस्तियों से नज़दीकी बना ली.

इस दौरान मौलानाओं ने रिजवी के खिलाफ मुहिम छेड़ दी. आरोप लगे कि शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन पद पर रहकर वसीम ने तमाम घपले-घोटाले किए. शिकायतें दर्ज हुईं और अनियमितता की एफआईआर की झड़ी लगने लगी. इन खतरों से बचने के लिए भाजपा सरकार का चहीता बनने की मंशा में पहले तो सुन्नी समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देना शुरू कर दिए. अयोध्या विवाद पर फैसला आने से पहले एक विवादित फिल्म भी बनाई.

फिर इस्लाम, मदरसों, मस्जिदों, क़ुरआन और यहां तक कि मुसलमानों के रसूल पर सवाल उठाना और आपत्तिजनक बयान देने की झड़ी लगा दी. इसके बाद भी ये दोबारा शिया वक्फ बोर्ड का चेयरमैन नहींं बन सके. इसके बाद भी सुर्खियों में रहने और गिरफ्तारी से बचने के लिए इन्होंने एक और शगूफा छोड़ा है. धर्म परिवर्तन का.

अब देखना ये है कि वसीम रिजवी से जितेंद्र नरायण सिंह त्यागी बने शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन के खिलाफ गंभीर शिकायतों के बावजूद भी कोई कार्रवाई होती है या नहीं?

लेखक
नवेद  शिकोह @naved.shikoh
लेखक पत्रकार हैं

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