जयंती: फांसी की सजा घटा काला पानी भेजे थे भाई परमानन्द, तुष्टिकरण मानते थे देश विभाजन का कारण
*जय मातृभूमि*
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चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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*…………. भाई परमानंद जी …………..*
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आनंद जब अपनी चरमावस्था प्राप्त करता है तो वह परमानन्द बनता है।परम आनंद कोई वस्तु विशेष नहीं वरन अपनी अंतर्चेतना में एक आभासी सामंजस्य है जिससे आप आनंद की पराकाष्ठा को प्राप्त होते है,यही कारण हैं कि प्रत्येक व्यक्ति में उसके स्वभाव एवं प्रकृति अनुरूप आनंद के अलग अलग मापदंड होते है।चित्रकार चित्र बनाने में तो कवि काव्यलेखन में,साधु सन्यासी ध्यान समाधि में तो खिलाड़ी अपने क्रीड़ा कौशल के प्रदर्शन में आनंद की इस अवस्था को प्राप्त करता है।किन्तु क्रांति की मशाल को अपने हाथ में लेकर निकले मतवालों ने तो परमानंद के तमाम स्थापित प्रतिमानों को ही ध्वस्त करके रख दिया।मातृभूमि की आजादी के लिए वन्दे मातरम कहते हुए अमानवीय यातनाएं सहना एवं उसमें परम आनंद की प्राप्ति करना। *तो लीजिए मित्रों आज उस ही क्रांतिकारी की चर्चा कर ली जाए जिसका तो नाम ही परमानंद था।जिसने कालापानी की अमानवीय यातनाओं को आनंदित होकर इसलिए झेला क्योंकि आंखों में भारत माँ को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त होते हुए देखने का स्वप्न ही उसे परमानंद देता है।इस महान क्रांतिकारी को दुनिया भाई परमानंद के नाम से याद करती है।* महान क्रांतिकारी,आर्य समाजी,वैदिक धर्म के अनन्य प्रचारक,इतिहासकार,शिक्षाविद, साहित्यकार,असंख्य क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत भाई परमानंद।🙏🙏
*भाई परमानंद जी का जन्म 4 नवम्बर 1876 को वर्तमान पाकिस्तान के जिला झेलम के करियाला ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में भाई ताराचंद्र जी के घर हुआ।* एक ऐसा परिवार जिसके पूर्वज पहले ही धर्मरक्षा की एक गौरवपूर्ण गाथा गढ़ कर गए थे क्योंकि इसी कुल में भाई मतिदास ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी के साथ दिल्ली पहुँचकर औरंगजेब की चुनौती स्वीकार की थी। स्थानीय स्तर पर प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर भाई जी ने पंजाब विश्वविद्यालय में दाखिला लिया एवं 1902 में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की तदुपरांत लाहौर के दयानन्द एंग्लो महाविद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। इनके जीवन में एक अहम मोड़ उस समय आया जब 1904 में महात्मा हंसराज ने वैदिक धर्म में इनकी रुचि देखते हुए इस संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने इन्हें अफ्रीका भेज। यहीं डर्बन में इनकी मुलाकात गांधी जी के साथ हुई।साथ ही यहीं पर ये प्रमुख क्रांतिकारियों सरदार अजित सिंह एवं सूफी अम्बाप्रसाद जी के संर्पक में आए।इस प्रकार मन में क्रांति की प्रबल चाह इनके संग रह कर प्रदीप्त हुई।यही कारण था कि ये स्थानीय पुलिस की नजर में आ गए। *अफ्रीका से भाई जी लंदन आ गए जहाँ से देश की आजादी के इतिहास में इस नए विशिष्ठ नाम का प्रादुर्भाव होना था।यहीं उनकी मुलाकात श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा तथा वीर सावरकर से हुई तो क्रांति की चिंगारी ईंधन को पाकर कैसे चुप बैठती।यहीं से क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रियता प्रारम्भ कर दी।*🌹🌹🌹🌹🇮🇳
भाई परमानंद जी सन् 1907 में स्वदेश लौट आये एवं दयानन्द वैदिक महाविद्यालय में पढ़ाने के साथ-साथ वे युवकों को क्रान्ति के लिए प्रेरित करने के कार्य में सक्रिय हो गए।अतः सन् 1910 में इन्हें लाहौर में गिरफ्तार कर लिया गया किन्तु शीघ्र ही उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। इसके बाद वे अमेरिका चले गये एवं पुनःधर्म प्रचार में लग गए।*अमेरिका में लाला हरदयाल के नेतृत्व में भारत में क्रांति कराने के लिए प्रमुख कार्यकर्ताओं के दल को यहाँ संघटित किया जा रहा था।भाई परमानंद भी इस दल का हिस्सा बन गए।यहीं इनकी मुलाकात करतार सिंह सराबा,विष्णु गणेश पिंगले जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों से हुई।यहीं इन्होंने दक्षिण अमेरिका के कई ब्रिटिश उपनिवेशों का दौरा किया एवं वहाँ मुक्तिप्रयासों का बारीकी से अध्ययन किया।उसी दौर में विदेशों से भारतीय आजादी की चाह रखने वाले देशभक्तों को पुनः भारत लाने के प्रयास गदर पार्टी के माध्यम से किये जा रहे थे अतः वे भी पार्टी के संस्थापकों में शामिल हो गए।* भाई जी ने भारतीय नवयुवकों को सशस्त्र क्रांति के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से ‘तवारिखे-हिन्द’ (भारत का इतिहास) नामक ग्रंथ की रचना की।
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अब उनका आगामी उद्देश्य भारतभूमि में सक्रिय रह जर आजादी की लड़ाई लड़ना था।अतः वे 5 हजार गदरी साथियों के साथ(जैसा कि उनका दावा था)भारत लौट आये।उनको अब पेशावर में क्रान्ति का नेतृत्व करने का दायित्व दिया गया।25 फ़रवरी1914 को लाहौर में गदर पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ भाई जी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। *उनके विरुद्ध अमरीका तथा इंग्लैंड में अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने, करतार सिंह सराबा तथा अन्य अनेक युवकों को सशस्त्र क्रान्ति के लिए प्रेरित करने, आपत्तिजनक साहित्य की रचना करने जैसे आरोप लगाकर फ़ाँसी की सजा सुना दी गयी।किन्तु बाद में यह सजा निरस्त कर उन्हें 1915 में अंडमान कालापानी भेज दिया गया।* जहाँ इन्होनें कई अमानवीय यातनाएं सहते हुए भी भागवत गीता पर अध्ययन जारी रखा एवं जेल में श्रीमद्भगवद्गीता सम्बन्धी लिखे गये अंशों के आधार पर उन्होंने बाद में *”मेरे अन्त समय का आश्रय”* नामक ग्रन्थ की रचना की। राजनैतिक बंदियों को कठोर कारावास के विरुद्ध भाई जी ने दो महीने का भूख हड़ताल किया।साथ ही कालकोठरी में पाँच वर्षों में भाई जी ने जो अमानवीय यातनाएँ सहन की उनका वर्णन उन्होनें *”मेरी आपबीती”* पुस्तक में किया।20अप्रैल1920 को भाई जी को कालापानी जेल से मुक्त कर दिया गया।प्रो. धर्मवीर द्वारा भी अपनी पुस्तक “क्रान्तिकारी भाई परमानन्द”में इन यातनाओं का वर्णन किया गया है।
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जेल से मुक्त होकर भाई जी ने पुन: लाहौर लौट आए।यहाँ लाला लाजपतराय इनके प्रमुख साथी थे। *यहाँ लालाजी ने राष्ट्रीय विद्यापीठ की स्थापना कर उसका कार्यभार भाई जी को सौंप दिया।ये वही कॉलेज है जहाँ से भगतसिंह एवं सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारी क्रान्तिमार्ग पर निकले। जिसमें भाईजी ने प्रमुख प्रेरणास्रोत का कार्य किया।जो आजादी की लड़ाई में इनका प्रमुख योगदान साबित हुआ।* अब भाई परमानंद को एक नई भूमिका का निर्वाह करना था।उनके अनुसार कांग्रेस एवं गान्धी जी द्वारा जब मुस्लिम तुष्टिकरण की घातक नीति अपनाई गई तो उसका विरोध आवश्यक हो गया।यही कारण है कि वे कांग्रेस के आन्दोलनों से दूर रहे। वे जगह-जगह हिन्दू संगठन के महत्व पर बल देते थे। भाई जी ने “हिन्दू” पत्र का प्रकाशन कर देश को खण्डित करने के षड्यन्त्रों को उजागर किया।क्योंकि उनका मानना था कि यह तुस्टीकरण ही आगे चल कर धार्मिक आधार पर देश के विभाजन का मुख्य कारण बनेगा और भाई जी की यह भविष्यवाणी आगे चल कर सही भी साबित हुई। अतः ये पंडित मदन मोहन मालवीय के प्रभाव में आकर हिन्दू महासभा में सम्मिलित हो गए।एवं सन् 1933 ई. में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अजमेर अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए।एवं इन्ही प्रयासों के साथ विभाजन का दंश न झेल पाने की वजह से 8दिसम्बर1947 को उन्होंने इस संसार से विदा ले ली।🌹🌹🙏🙏🌹🌹
*🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था ऐसे महान क्रांतिकारी एवं असंख्य क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत भाई परमानंद को आजादी की लड़ाई में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उनकी 144वीं जयंती पर उन्हें शत शत नमन करती है।🌹🌹🙏🙏🌹🌹*
*नोट:-* लेख में कोई त्रुटि हो तो अवश्य मार्गदर्शन करें।
✍️प्रशांत टेहल्यानी
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9351595785* 🇮🇳