जयंती: सालों जेल यात्रा किये बसंत कुमार दास ने चुनी पाक में अल्पसंख्यक सेवा

*जय मातृभूमि*

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चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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*बसंत कुमार दास*
📝भले ही नाम बसंत था किंतु देश की आजादी की लड़ाई के लिए बसंत रूपी अपनें सुखमयी जीवन का त्याग कर संघर्ष रूपी पथरीली राहों वाला पतझड़ चुना वरना कौन अपनी जमी जमाई वकालत छोड़ कर आजादी की लड़ाई को अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर देता है। *जी हाँ आज हम बात कर रहे हैं असम की धरती पर जन्में आजादी के मतवाले गांधीवादी नेता बसंत कुमार दास की।*
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बसंत कुमार दास का *जन्म 2 नवम्बर,1883 को असम के सिलहट जिले में हुआ।* जन्म एक अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ. अतः प्रारंभिक जीवन काफी संघर्षो के साथ बीता फिर भी शिक्षार्जन की चाह बाल्यकाल से ही मन में बलवती थी अतः *अपने ही दम पर संघर्षरत रहते वकालत की डिग्री प्राप्त कर ली।अपने बुद्धिकौशल एवं मेहनत के दम पर अपनी वकालत भी अच्छी खासी जमा ली एवं अतिशीघ्र असम के जाने- मानें वकीलों में शुमार हो गए।* इतनें संघर्षो के बाद मिली सफलता की क्या कीमत होगी ,आप अनुमान लगा सकते हैं किंतु जब बात अपने देश की आजादी आई तो मूल्यवान से मूल्यवान उपलब्धि को भी त्यागने में क्षणभर नहीं लगाया एवं अपनी वकालत छोड़ दी।
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*1921 में कॉंग्रेस में सम्मिलित हो कर गांधीवादी आंदोलनों में सक्रिय हो गए जिस कारण इन्हें कई बार जेल की यात्राएं भी करनी पड़ी।* इसके बाद ये 1923 में पंडित मोतीलाल नेहरू और सी. आर. दास की ‘स्वराज्य पार्टी’ में सम्मिलित हो गए। स्वराज्य पार्टी के टिकट पर 1926 से 1929 तक असम कौंसिल के सदस्य रहें और फिर कांग्रेस के निश्चय पर त्यागपत्र दे दिया। 1932 में इन्हें गिफ्तार कर लिया गया और दो वर्ष की सजा हुई।
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*बसंत कुमार दास 1937 में असम असेम्बली के सदस्य चुने गए और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उसके स्पीकार बने।* इस पद पर उन्होंने दलीय पक्षपात की बजाय संसदीय लोकतंत्र की परंपरा का निर्वाह किया। इसके लिए कुछ लोंगों ने इनकी आलोचना भी की थी। 1946 में ये असम के गृहमंत्री थे। उसी समय सिलहट में ‘जनमत संग्रह’ हुआ कि यह ज़िला भारत में बना रहेगा या पाकिस्तान में जाएगा। जब जनमत संग्रह का परिणाम पाकिस्तान के पक्ष में गया तो गृहमंत्री के रूप में फिर बसंत कुमार दास की आलोचना हुई। बाद में पता चला कि कांग्रेस का उच्च नेतृत्व पहले ही ‘सिलहट’ को भारत से अलग करने के लिए मन बना चुका था। असम के बहुत से नेता भी, असम में बंगालियों का प्रभाव कम करने के लिए ‘सिलहट’ के अलग होने के पक्ष में थे।

🌹🌹🙏🙏🌹🌹 *विभाजन के बाद, अन्य नेताओं की भाँति, बसंत कुमार दास भारत नहीं आए। ये हिन्दू अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए पूर्वी पाकिस्तान में ही रहे।* वहां की राजनीति में इन्होंने सक्रिय भाग लिया। ये ईस्ट पाकिस्तान नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और वहां की विधान सभा में कुछ समय तक विरोधी दल के नेता रहे। फिर वित्त मंत्री तथा शिक्षा और श्रम मंत्री बने। सन् 1958 में ये अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के अध्यक्ष चुने गए। *सन्1960 में इनका देहांत हो गया।* *मातृभूमि सेवा संस्था* इनके योगदान को नमन करती है

*नोट:-* लेख में कोई त्रुटि हो तो अवश्य मार्गदर्शन करें।

✍️प्रशांत टेहल्यानी
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9351595785* 🇮🇳

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