10 हजार फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी सुरंग सौंपी देश को
रोहतांग में अटल टनल शुरू:मोदी ने 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी अटल टनल का उद्घाटन किया, लाहौल के 15 वृद्धों ने पहला सफर किया
रोहतांग 03 अक्तूबर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को रोहतांग में अटल टनल का उद्घाटन किया। करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी यह दुनिया की सबसे लंबी टनल है। इसकी लंबाई 9.2 किमी है। इसे बनाने में 10 साल का वक्त लगा।
हिमालय की पीर पंजाल पर्वत रेंज में रोहतांग पास के नीचे लेह-मनाली हाईवे पर इस बनाया गया है। इससे मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी और चार घंटे की बचत होगी। इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है।
उद्घाटन के बाद टनल में पहला सफर बस से लाहौल स्पीति जिले के 15 वृद्ध जनों ने किया। प्रधानमंत्री मोदी ने हरी झंडी दिखाकर एचआरटीसी की बस को रवाना किया।
लाहौल के 15 वृद्ध जन पहले सफर पर निकले।
मोदी के भाषण की महत्त्वपूर्ण बातें
इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘आज सिर्फ अटल जी का ही सपना पूरा नहीं हुआ है। आज हिमाचल प्रदेश के करोड़ों लोगों का भी दशकों पुराना इंतजार खत्म हुआ है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे आज अटल टनल के लोकार्पण का अवसर मिला। राजनाथ जी ने बताया कि मैं यहां संगठन का काम देखता था। पहाड़ों-वादियों में बहुत उत्तम समय बिताता था। जब अटल जी मनाली में आकर रहते थे, तो उनके साथ गप्पें लड़ाता था। मैं और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल जिसे लेकर अटल जी से जो बात करते रहते थे, वो आज सिद्धी बन गया है।’
‘लोकार्पण की चकाचौंध में वे लोग पीछे रह जाते हैं जिनकी मेहनत से ये पूरा होता है। उनकी मेहनत से इस संकल्प को आज पूरा किया गया है। इस महायज्ञ में पसीना बहाने वाले, जान जोखिम में डालने वाले मेहनतकश जवानों, मजदूर भाई-बहनों और इंजीनियरों को मैं प्रणाम करता हूं।’
उन्होंने कहा, ‘ये टनल भारत के बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी नई ताकत देने वाली है। हिमालय का ये हिस्सा हो, पश्चिम भारत में रेगिस्तान का विस्तार हो या फिर दक्षिण और पूर्वी भारत का तटीय इलाका। हमेशा से यहां के इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की मांग उठती रही है। लेकिन लंबे समय से बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट या तो प्लानिंग के लेवल से ही नहीं निकल पाए या फिर अटक गए, लटक गए या भटक गए।’
‘एक्सपर्ट बताते हैं कि जिस रफ्तार से 2014 में अटल टनल का काम हो रहा था, अगर उसी रफ्तार से काम चला होता तो ये सुरंग साल 2040 में जाकर पूरा हो पाती। आपकी आज जो उम्र है, उसमें 20 वर्ष और जोड़ लीजिए, तब जाकर लोगों के जीवन में ये दिन आता।’
इससे क्या फायदा होगा?
टनल से मनाली और लाहौल-स्पीति घाटी 12 महीने जुड़े रहेंगे। भारी बर्फबारी की वजह से इस घाटी का छह महीने तक संपर्क टूट जाता है।
टनल का साउथ पोर्टल मनाली से 25 किलोमीटर है। वहीं, नॉर्थ पोर्टल लाहौल घाटी में सिसु के तेलिंग गांव के नजदीक है।
टनल से गुजरते वक्त ऐसा लगेगा कि सीधी-सपाट सड़क पर चले जा रहे हैं, लेकिन टनल के एक हिस्से और दूसरे में 60 मीटर ऊंचाई का फर्क है। साउथ पोर्टल समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जबकि नॉर्थ पोर्टल 3060 मीटर ऊंचा है।
इस टनल का निर्माण 2010 में शुरू हुआ था।
10.5 मीटर चौड़ी, 10 मीटर ऊंची टनल की खासियत
2958 करोड़ रुपए खर्च आया।
14508 मीट्रिक स्टील लगा।
2,37,596 मीट्रिक सीमेंट का इस्तेमाल हुआ।
14 लाख घन मीटर चट्टानों की खुदाई हुई।
हर 150 मीटर की दूरी पर 4-जी की सुविधा।
पहले यह रिकॉर्ड चीन के नाम था
अटल टनल से पहले यह रिकॉर्ड चीन के तिब्बत में बनी सुरंग के नाम था। यह ल्हासा और न्यिंग्ची के बीच 400 किमी लंबे हाईवे पर बनी है। इसकी लंबाई 5.7 किमी है। इसे मिला माउंटेन पर बनाया गया है। इसकी ऊंचाई 4750 मीटर यानी 15583 फीट है। इसे बनाने में 38500 करोड़ रुपए खर्च हुए। यह 2019 में शुरू हुई।
24 दिसंबर 2019 को इस टनल का नाम दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर अटल टनल रखने का फैसला किया था।
सुरंग लाहुल के लोगों सहित सेना को भी बल देगी। सेना की लेह लद्दाख में सीमा तक पहुंच आसान होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काेरोना काल के बीच हिमाचल में एक साथ तीन कार्यक्रमों में संबोधन किया। अटल टनल के साउथ पोर्टल में अधिकारियों को संबोधित किया। इसके बाद सिस्सू और सोलंग में दो जनसभाएं की। पीएम मोदी ने कृषि संबंधी सुधारों पर हो रहे विरोध पर भी कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कांग्रेस भी सुधार करना चाहती थी, लेकिन वोट बैंक की राजनीति से डरती थी। यह सुधार किसानों के हित में हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व कांग्रेस सरकारों को सेना की अनदेखी पर भी कोसा। मोदी ने कहा वायुसेना आधुनिक लड़ाकू विमान मांगती रही, लेकिन फाइल पर फाइल खोली गई। आयुध डिपो पर ध्यान नहीं दिया गया। तेजस को डिब्बे में बंद करने के प्रयास किए गए। सीडीएस से बेहतर समन्वय बना है। मोदी ने कहा सेना के लिए देश में हथियार बनेंगे। भारतीय संस्थानों को बढ़ावा दिया गया है व कई विदेशी कंपनियों को वैन किया गया।
प्रधानमंत्री साउथ पोर्टल से नार्थ पोर्टल के लिए खुली जिप्सी में रवाना हुए। नरेंद्र मोदी ने आपातकालीन टनल का जायजा लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने लाहुल स्पीति जिला में टनल के दूसरे छोर नार्थ पोर्टल पर पहुंच कर बस को हरी झंडी दी। इस बस में लाहुल के वृद्ध जनों ने सफर किया। प्रशासन ने 15 वृद्ध जनों का चयन किया था, जिसमें से 14 लोग बस में सवार थे।
मोदी ने बीआरओ को सुझाव दिया 1500 ऐसे लोग चिह्नित करें, जाे अपना अनुभव लिखें। इसमें मजदूरों व इंजीनियरों को शामिल करें। शिक्षा मंत्रालय से आग्रह किया कि तकनीकी शिक्षा से जुड़े विद्यार्थियों से केस स्टडी करवाएं। दुनिया को हमारी इस ताकत का ज्ञान होना चाहिए।
देरी से लागत तीन गुणा बढ़ी
पीएम मोदी ने कहा देरी से लागत तीन गुना बढ़ गई। सीमा क्षेत्र पर कनेक्टिविटी तेजी से होनी चाहिए, लेकिन सेना की जरूरतों को नहीं समझा गया। लदाख में दोलत बेग ओल्डी एयर स्ट्रिप 40 साल बंद रखी, ऐसी क्या मजबूरी थी। असम में पुल का काम अटल के समय शुरू हुआ था। कोसी महासेतु के काम पर ध्यान नहीं दिया गया। हमारी सरकार में पुल पर तेजी से काम किया।
प्रीणी गांव में करते थे अटल से आग्रह, बाद में बन गया उनका ही सपना
प्रधानमंत्री मोदी बोले, मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है जो अटल टनल के लोकार्पण का अवसर मिला। बतौर भाजपा प्रभारी हिमाचल से गहरा नाता रहा है। अटल जी जब प्रीणी स्थित आवास पर आते थे तो वह तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के साथ उनसे मिलते थे। अटल जी से सुरंग निर्माण को आग्रह करते थे और बाद में यही प्रोजेक्ट उनका सपना बन गया। आज यह सपना पूरा हो गया। अभेद्य पीरपंजाल को भेदकर, आज कठिन स्थिति से पार पाया गया है। जान जोखिम में डालने वाले,जवानों,इंजीनियरों मजदूरों को नमन करता हूं।
अटल सरकार जाते ही भुला दिया, 2014 में लाए तेजी
लाहुल के उत्पाद दिल्ली तक पहुंचेंगे। टनल से देश को नई ताकत मिलेगी। देश की सुरक्षा व समृद्धि का बड़ा जरिया है। लंबे समय से मांग होती रही, मगर प्लानिंग का हिस्सा नहीं बना। अटल सरकार जाते ही टनल को भूला दिया गया। 2013 तक मात्र डेढ़ किलोमीटर काम हुआ था। ऐसे काम चलता रहता तो 2040 तक काम पूरा होता, 2014 से तेजी लाई गई। 300 मीटर की जगह टनल बनाने की रफ्तार 1300 मीटर प्रति वर्ष हुई।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मोदी ने हमेशा अटल टनल की चिंता की। अनुमानित लागत पर काम पूरा किया, बीआरओ बधाई का पात्र है। सामरिक दृष्टि से टनल महत्वपूर्ण है। अब रसद तेजी से सीमा पर पहुंचेगी। राजनाथ सिंह ने कहा कि जब टनल बननी थी तो मोदी हिमाचल के प्रभारी थे और आज प्रधानमंत्री के रूप में शुभारंभ कर रहे हैं, ये संयोग बहुत सुखद है।
डॉक्यूमेंट्री दिखाने के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया। मुख्यमंत्री ने कहा आज ऐतिहासिक दिवस, प्रदेश ही नहीं देश का सपना साकार हुआ। रोहतांग दर्रा लाहुल के विकास में बाधा था, जो अब दूर हुआ। हिमाचल छोटा राज्य है, लेकिन इसका देश के लिए योगदान हमेशा बड़ा रहा है। कारगिल युद्ध में चार में से दो परमवीर चक्र हिमाचल के जांबाजों को मिले।
प्रधानमंत्री मोदी ने टनल के लोकार्पण के बाद अंदर अकेले भ्रमण किया। इसके बाद बीआरओ के डीजी से सुरंग के बारे में जानकारी ली। प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया। इसके बाद खुली जीप में सवार होकर टनल का भ्रमण किया। इसके बाद रोहतांग टनल के बाहर सामूहिक चित्र लिया गया। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी सहित, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर, सीडीएस विपिन रावत और सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे सहित बीआरओ के डीजी हरपाल सिंह मौजूद रहे।
सासे से प्रधानमंत्री का काफिला सवा दस बजे अटल टनल रोहतांग के साउथ पोर्टल पर पहुंचा। प्रधानमंत्री मोदी ने यहां दस हजार फीट की ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग का लोकार्पण किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुबह नौ बजे मनाली पहुंचे। प्रधानमंत्री मोदी के हेलिकॉप्टर सासे हेलीपैड पर लैंड किया। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और हिमाचल सरकार के मंत्रियों व सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया। इस मौके पर केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर भी मौजूद रहे। इसके बाद वह अटल टनल रोहतांग के साउथ पोर्टल पर पहुंचे।
अटल टनल रोहतांग का सामरिक महत्व
1954 से ही चीन भारत के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा था। उसने अपने नक्शों में भारतीय सीमा का काफी भाग अधिकार क्षेत्र में दिखाया था। भारत की सीमा तक चीन ने पक्की सड़कों का निर्माण कर लिया था। अत उसे सैन्य सामान तथा रसद पहुंचाने मे कोई कठिनाई नहीं हुई। भारत की सीमा पर उसके सैनिकों का जबर्दस्त जमाव था। युद्ध की दृष्टि से चीन की स्थिति सुदृढ़ थी। चीन पहाड़ी पर था, वह ऊंचाई से नीचे मौजूद भारतीय सेना पर प्रहार कर सकता था। भारत सरकार द्वारा 1962 में भारत और चीन युद्ध के दौरान मिली हार के कारणों को जानने की कोशिश की गई तो पता लगा कि हार का कारण चीनी सीमा पर भारतीय जवानों को रसद तथा समय पर सहायता हेतु और सैनिकों का न पहुंच पाना था।
इसके बाद ऐसे मार्ग की कल्पना की गई थी जो समय पर रसद और सेना की पहुंच मनाली से लेह तक करवा सके। इसके बाद 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी कारगिल की पहाडिय़ों पर पाकिस्तान के जवानों द्वारा श्रीनगर-लेह मार्ग पर गुजर रही सेना के वाहनों और जवानों को भारी नुकसान पहुंचाया गया। उस समय मनाली-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग-तीन से सेना और रसद को कारगिल पहुंचाया गया। उस समय मनाली से लेह तक पहुंचने के लिए करीब 450 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी। जिससे न केवल अतिरिक्त समय गंवाना पड़ता था बल्कि शून्य से नीचे तापमान होने के चलते सेना को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इन सभी कठिनाईयों को देखते हुए मनाली और लाहुल के बीच रोहतांग में सुरंग बनाने का प्रारूप तैयार हुआ।
सुरंग को ऐसे मिला स्वरूप
रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक महत्व की सुरंग बनाए जाने का ऐतिहासिक फैसला तीन जून, 2000 को लिया गया। जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। सुरंग के दक्षिणी हिस्से को जोडऩे वाली सड़क की आधारशिला 26 मई, 2002 को रखी गई थी। मई 1990 में प्रोजेक्ट के लिए अध्ययन शुरू किया गया। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के अधिकारियों के मुताबिक प्रोजेक्ट को 2003 में अंतिम तकनीकी स्वीकृति मिली। जून 2004 में परियोजना को लेकर भू-वैज्ञानिक रिपोर्ट पेश की गई। 2005 में सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी की स्वीकृति मिलने के बाद 2007 में निविदा आमंत्रित की गई। दिसंबर 2006 में परियोजना के डिजाइन और विशेष विवरण की रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया। जून 2010 में यह सुरंग बनाने का काम शुरू कर दिया गया। इस परियोजना को फरवरी 2015 में ही पूरा होना था, लेकिन विभिन्न कारणों से इसमें देरी होती रही। मौसम की जटिलता और पानी के कारण कई बार निर्माण कार्य बीच में ही रोकना पड़ा। टनल को बनाने के लिए खुदाई का काम 2011 में ही शुरू हो गया बीआरओ को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पहले 2015 में इस प्रोजेक्ट की समय सीमा थी। बाधाओं और चुनौतियों के कारण यह समय सीमा आगे खिसकती रही, लेकिन बीआरओ ने इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया। इन चुनौतियों में निर्माण के दौरान सेरी नाला फॉल्ट जोन, जो तकरीबन 600 मीटर क्षेत्र का सबसे कठिन स्ट्रेच शामिल था। यहां एक सैकेंड में 140 लीटर पानी निकलता था। ऐसे में निर्माण बहुत मुश्किल और चुनौतीपूर्ण था। सुरंग के दोनों सिरों का मिलान 15 अक्टूबर, 2017 में हुआ। शुरुआत में टनल की लंबाई 8.8 किलोमीटर नापी गई थी, लेकिन निर्माण कार्य पूरा होने के बाद अब इसकी पूरी लंबाई 9.02 किलोमीटर है। इसे बनाने में लगभग 3,000 संविदा कर्मचारियों और 650 नियमित कर्मचारियों ने 24 घंटे कई पारियों में काम किया।
लेह के लिए चार प्रस्तावित सुरंगें
रोहतांग के बाद अब बारालाचा दर्रा के नीचे 11.25, ला चुगला में 14.77 व तंगलंगला में 7.32 किलोमीटर लंबी सुरंगे बन रही हैं। इससे रोहतांग सुरंग से करीब 45 किलोमीटर, बारालाचा से 19, लाचुंगला से 31 और तंगलंगला से 24 किलोमीटर दूरी कम होगी। सभी सुरंगे बनने के बाद मनाली-लेह मार्ग की दूरी करीब 120 किलोमीटर कम हो जाएगी। इस समय मनाली से लेह पहुंचने के लिए 14 घंटे का समय लगता है। रोहतांग टनल दो घंटे का सफर कम करेगी। जबकि प्रस्तावित टनलों के बन जाने से लेह का सफर 10 घंटे का ही रह जाएगा। पूर्वी लद्दाख पहुंचने के लिए अब दो रास्ते होंगे। पहला रास्ता कुल्लू मनाली से लेह-लद्दाख के लिए होगा, जो इस सुरंग से जुड़ेगा। दूसरा श्रीनगर होकर जो जिला पास से जाने वाली सड़क के लिए होगा। जोजिला पास से जाने वाली सड़क नवंबर से मई तक पूरी तरह बंद हो जाती है।