माता-पुत्र दोनों जेल में , अंग्रेजों के जुल्मों से चक्रवर्ती ने तोड़ा दम
……चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹 ………………………………………………………………………………………………………………………..
🇮🇳🇮🇳 *माँ-बेटा जेल में – साथ साथ !!* 🇮🇳🇮🇳
*पंचैव पूजयन् लोके यश: प्राप्नोति केवलं ।*
*देवान् पितॄन् मनुष्यांश्च भिक्षून् अतिथि पंचमान् ॥*
*भावार्थ :* देवता, पितर, मनुष्य, भिक्षुक व अतिथि, इन पाँचों की सदैव सच्चे मन से पूजा-स्तुति करनी चाहिए । इससे यश और सम्मान प्राप्त होता है।
राष्ट्रभक्त साथियो मैं भारतीय शास्त्रों 📚 का ज्ञाता तो नहीं, किंतु इतना अवश्य ज्ञात है कि हमारे पवित्र, प्राचीन शास्त्रों में अतिथि को पूजनीय माना गया है। भारतीयों के दिलों ❤️ में समाहित ऐसे ही उदारवादी, पवित्र व पुण्य भावों को आधार बना विदेशी शक्तियों ने भारत को कई वर्षों तक लूटा। 🇬🇧 ब्रिटिश, पुर्तगाली, फ्रांसीसी आदि व्यापारी के छद्मभेष में आए और हम पर शासन करने लगे। राष्ट्रभक्त साथियों अविभाजित भारत के बंगाल में चटगाँव के उलघाट में नबीन चक्रबर्ती जी के यहाँ जन्में रामकृष्ण चक्रबर्ती एक सामान्य किंतु राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे,जो अपनी माँ सावित्री देवी के साथ रहते थे।
सन् 1932 कि बात है एक दिन क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति के महान क्रांतिकारी व *चटगाँव शस्त्रागार लूट* के नायक ‘मास्टर दा’ सूर्य सेन और उनके क्रांतिकारी साथी निर्मल सेन, अपूर्व सेन तथा एक अन्य को विषम परिस्थिति में रामकृष्ण चक्रबर्ती के यहाँ शरण लेनी पड़ी, जिसे रामकृष्ण व उनकी माँ ने सहर्ष स्वीकार किया। ठीक तभी ब्रिटिश फौज व क्रांतिकारियों के बीच🔫 गोलीबारी 💣 हुई, जिसमें ब्रिटिश फौज का 💂♀️ *कैप्टन के. मारीन* मारा गया। सूर्य सेन बच निकले, किंतु उनके साथी अपूर्व सेन व निर्मल सेन बलिदान हुए। ब्रिटिश पुलिस ने रामकृष्ण जी व उनकी माँ सावित्री देवी जी को घर में क्रांतिकारियों को शरण देने के अपराध में गिरफ्तार कर लिया।
*24.10.1932* को दोनों को 04-04 साल की सख्त सजा दी गई। माँ-बेटे, दोनों को मिदनापुर जेल की साथ साथ वाली कोठरियों में डाल दिया गया। *जेल में यातनाओं के कारण रामकृष्ण चक्रबर्ती का स्वास्थ बहुत ज्यादा खराब हो जाने पर भी माँ को बेटे से मिलने नहीं दिया गया। बगल की कोठरी में रामकृष्ण चक्रबर्ती पर ज़ुल्म होता रहा, किंतु मजबूर माँ केवल ज़ुल्म सुनने व महसूस करने तक ही सीमित रह गई। उन्हें जीते जी बेटे से मिलने नहीं दिया गया। जुल्म व यातनाओं से सन् 1936 में बेटे के बलिदान हो जाने पर ही सावित्री देवी को रामकृष्ण चक्रवर्ती का मृत चेहरा कुछ क्षण के लिए दिखाया गया।*
*🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477 🇮🇳*
अनुशीलन समिति का प्रतीक : अखण्ड भारत (United India)
अनुशीलन समिति भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बंगाल में बनी अंग्रेज-विरोधी, गुप्त, क्रान्तिकारी, सशस्त्र संस्था थी। इसका उद्देश्य वन्दे मातरम् के प्रणेता व प्रख्यात बांग्ला उपन्यासकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के बताये गये मार्ग का ‘अनुशीलन’ करना था। अनुशीलन का शाब्दिक अर्थ यह होता है :
१. चिंतन। मनन।
२. बार-बार किया जानेवाला अध्ययन या अभ्यास।
३. किसी ग्रन्थ तथ्य विषय के सब अंगो तथा उपांगों पर बहुत ही सूक्ष्म दृष्टि से विचार करना और उनसे परिचित होना। (स्टडी)
इसका आरम्भ १९०२ में अखाड़ों से हुआ तथा इसके दो प्रमुख (तथा लगभग स्वतंत्र) रूप थे- ढाका अनुशीलन समिति तथा युगान्तर। यह बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों में समूचे बंगाल में कार्य कर रही थी। पहले-पहल कलकत्ता और उसके कुछ बाद में ढाका इसके दो ही प्रमुख गढ़ थे। इसका आरम्भ अखाड़ों से हुआ। बाद में इसकी गतिविधियों का प्रचार प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे बंगाल में हो गया। इसके प्रभाव के कारण ही ब्रिटिश भारत की सरकार को बंग-भंग का निर्णय वापस लेना पडा था।
इसकी प्रमुख गतिविधियों में स्थान स्थान पर शाखाओं के माध्यम से नवयुवकों को एकत्र करना, उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाना ताकि वे अंग्रेजों का डटकर मुकाबला कर सकें। उनकी गुप्त योजनाओं में बम बनाना, शस्त्र-प्रशिक्षण देना व दुष्ट अंग्रेज अधिकारियों वध करना आदि सम्मिलित थे। अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य उन भारतीय अधिकारियों का वध करने में भी नहीं चूकते थे जिन्हें वे ‘अंग्रेजों का पिट्ठू’ व हिन्दुस्तान का ‘गद्दार’ समझते थे। इसके प्रतीक-चिन्ह की भाषा से ही स्पष्ठ होता है कि वे इस देश को एक (अविभाजित) रखना चाहते थे।
बंगाल में बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में ही क्रांतिकारी संगठित होकर कार्य करना आरम्भ कर चुके थे। सन् १९०२ में कोलकाता में अनुशीलन समिति के अन्तर्गत तीन समितियाँ कार्य कर रहीं थीं। इस अनुशीलन समिति की स्थापना कोलकाता के बैरिस्टर [[प्रोमोथा मित्रा] ने की थी। इन तीन समितियों में से पहली समिति प्रोमोथा मित्रा की थी, दूसरी समिति का नेतृत्व सरला देवी नामक एक बंगाली महिला के हाथों में था तथा तीसरी के नेता थे अरविन्द घोष जो उस समय उग्र राष्ट्रवाद के सबसे बड़े समर्थक थे।
युगान्तर के प्रमुख सदस्य
यतीन्द्रनाथ मुखर्जी उपाख्य बाघा जतिन (1879–1915)
रास बिहारी बोस (1885–1945)
तारकनाथ दास
नानीगोपाल सेनगुप्त
हेमेन्द्रकिशोर आचार्य चौधुरी (1881–1938)
नरेन्द्र भट्टाचार्य उपाख्य एम एन राय (1887–1954)
अतुलकृष्ण घोष
अमरेन्द्र नाथ चटर्जी (1880–1957)
यदुगोपाल मुखर्जी (1886–1976)
भवभूषण मित्र (1888–1965)
बिपिन बिहारी गांगुली (1887–1954)
पूर्णचन्द्र दास
नलिनीकान्त कर
भूपेन्द्र कुमार दत्त (1894–1979)
भूपति मजुमदार (1890–1970)
शिवदास घोष (1923–1976)
निखिल मुखर्जी (1919–2010)
निहार मुखर्जी
सुरेन्द्र मोहन घोष उपाख्य मधु घोष (1893–1976)
सतीश चन्द्र मुखर्जी उपाख्य स्वामी प्रज्ञानानन्द (1884–1921)
मनोरंजन गुप्त (1890–1976)
अरुण चन्द्र गुहा (जन्म 1892)
नरेन्द्र घोष चौधुरी (1894–1956)
किरण चन्द्र मुखर्जी (1883–1954)
हरिकुमार चक्रवर्ती (1882–1963)
गोपेन राय
जीवनलाल चटर्जी
देवव्रत बोस, जो बाद में स्वामी प्रज्ञानन्द नाम से जाने गये।
उल्लासकर दत्त