पतनोन्मुख?वोटर,कैडर,नेता,सपोर्टर….. किसी का संकेत नहीं पढ़ पा रही पार्टी विद डिफरेंस भाजपा

Bjp Getting Sos Message From Its Cadres, Leaders, Voters And Supporters But Not Responding Well Is This A Sign Of The Downfall Of Bjp
कैडर, लीडर, वोटर, सपोर्टर… सभी दे रहे संदेश, क्या ये भाजपा के पतन के संकेत हैं?
भाजपा कभी पार्टी विद डिफरेंस हुआ करती थी, आज इसका कांग्रेसी मिजाज भांपा जा सकता है। पार्टी के अंदर फैसले लेने में देरी, प्रदर्शन के आधार पर निर्णय लेने की क्षमता का अभाव जैसे संकेत बताते हैं कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व केंद्र में 10 साल का शासन पूरा करने के बाद थक सा गया है।
मुख्य बिंदु

1-भाजपा नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों में निराशा गहरा रही
2-लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद से पार्टी ने कोई कड़ा निर्णय नहीं लिया 
3-उप-चुनावों में मिली बुरी हार से भाजपा का भविष्य अच्छा नहीं दिख रहा 

नई दिल्ली 15 जुलाई 2024: क्या भाजपा के पतन के दिन आ गए हैं? इसका कोई ठोस जवाब नहीं हो सकता, लेकिन परिस्थितियों, शीर्ष नेताओं के मिजाज, काम-काज के तौर-तरीके, चुनाव नतीजों पर प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण से फिलहाल तो संकेत पतन के ही दिख रहे हैं। जो भाजपा फटाफट निर्णय लेने को जानी जाती है, उसे क्या हो गया! 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए, लेकिन क्या भाजपा ने उम्मीद से कमतर प्रदर्शन पर कोई बड़ा फैसला लिया? यहां तक कि जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल 30 जून को ही खत्म हो गया, लेकिन 15 दिन बाद भी नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन तो दूर, चर्चा तक नहीं हो रही है!

भाजपा पार्टी विद डिफरेंस कहलाती थी, उस भाजपा में वो सब देखने को मिल रहा है जिसके लिए कांग्रेस बदनाम हुआ करती थी- प्रदर्शन पर चाटुकारिता को तवज्जो। शीर्ष नेताओं की तरफ से पार्टी की हैंडलिंग में इस तरह की मनमर्जी हो रही है कि निराशा का भाव दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। लोकसभा से लेकर उप-चुनावों तक में तमाम नकारात्मक संकेतों के बावजूद दूसरी पार्टियों से नेताओं के बुलाकर अपने वर्षों के कार्यकर्ताओं , नेताओं को ठगा महसूस करवाने का चलन यथावत जारी है। तो पार्टी अब अपने ही नेताओं, कार्यकर्ताओं, समर्थकों की तरफ से भेजे जा रहे अलर्ट मेसेज को भी अनसुना कर रही है? लगता तो ऐसा ही है।

फटाफट फैसले लेने वाली पार्टी को क्या हो गया!
न्यूज वेबसाइट द प्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर डीके सिंह अपने एक लेख में कहते हैं कि नरेंद्र मोदी को 2014 में देश ने प्रधानमंत्री के रूप में इसीलिए चुना था क्योंकि मनमोहन सिंह की छवि फैसले नहीं ले पाने वाले पीएम की हो गई थी। यह मतदाताओं को पसंद नहीं आया। मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने जनापेक्षाओं पर खरे उतरने को धड़ाधड़ फैसले लिए- नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक। फिर मोदी ने पार्टी के वृद्ध नेता मार्गदर्शक मंडल में भेज दिये, भ्रष्टाचार के आरोपित विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की। ये सभी नरेंद्र मोदी के एक मजबूत पीएम होने की छवि मजबूत करने में मददगार साबित हुए। नतीजा हुआ कि जनता ने दूसरी बार 2019 में ज्यादा सीटें देकर सत्ता में वापसी करवा दी। लेकिन अब पार्टी को मतदाता ही नहीं, अपने कार्यकर्ता और नेता भी खुलकर कह रहे हैं- जाग जाओ, वरना देर हो जाएगी।

पैराशूट लीडर्स से भाजपा कैडर में निराशा
अभी हुए विभिन्न राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के परिणामों की व्याख्या ही कर लें। सात राज्यों की इन कुल 13 में से भाजपा सिर्फ दो सीटें जीत पाई है। मतलब साफ है कि पार्टी कैडर और वोटरों में निराशा किसी एक इलाके तक सीमित नहीं है। ऐसा लगता है कि दूसरी पार्टियों से नेताओं को लाकर अपने ही कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित करने में भाजपा रिकॉर्ड बनाना चाहती है। अब दिखने लगा है कि दशकों से पार्टी को समर्पित नेताओं, कार्यकर्ताओं पर बाहरी नेताओं को प्राथमिकता दिए जाने से भाजपा बहुत तेजी से गर्त में जा सकती है। लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र तक यही संकेत मिला। अब जब उप-चुनाव हुए तो भाजपा कैडर और इसके समर्थकों ने साफ बता दिया कि पैराशूट कैंडिडेट्स किसी को रास नहीं आ रहे हैं।

साफ संकेत दे रहे चुनाव नतीजे
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस छोड़कर भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ने वाले छह में से चार कैंडिडेट हार गए। यह पिछले महीने हुआ था। ताजा चुनाव में तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने भाजपा टिकट पर उम्मीदवारी हासिल की थी। उनमें दो बुरी तरह हारे और एक किसी तरह जीत सका। 2024 के लोकसभा चुनावों की ही बात करें तो दूसरी पार्टियों से आए उन 26 कैंडिडेट्स में 21 हार गए जिन्हें भाजपा ने टिकट दिए थे। इन 26 ने 2024 में ही भाजपा जॉइन की थी। वैसे 2014 से दूसरी पार्टियों से भाजपा में आए कुल 110 नेताओं को इस बार पार्टी ने टिकट दिया था। इनमें 69 कैंडिडेट हार गए। साफ है कि मोदी को जिताने के लिए जनता आंखें मूंद लेने को अब तैयार नहीं है।

गडकरी, धूमल, मीणा, मिश्रा… सबने दिया संदेश
ऐसा नहीं है कि पार्टी नेता ये समझ नहीं रहे हैं। समझ रहे हैं और शीर्ष नेतृत्व को समझाने की कोशिश भी कर रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गोवा भाजपा कार्यसमिति बैठक में साफ कहा कि हम पार्टी विद डिफरेंस हैं। हम भी अगर कांग्रेस की गलतियां करेंगे तो फिर उसे सत्ता से बाहर करके अपनी सरकार बनाने का क्या फायदा? हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार स्वयं गिरने वाली थी, लेकिन हमारी पार्टी भाजपा ने हड़बड़ी कर दी और सब चौपट हो गया।

राजस्थान के मंत्री किरोड़ लाल मीणा ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को कई पत्र लिखकर भ्रष्टाचार और सरकार के कामों में हीलाहवाली को सचेत किया। उचित सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने मंत्री पद छोड़ दिया। प. बंगाल भाजपा चीफ दिलीप घोष ने नाराजगी जताई कि शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश नेताओं को आसान जीत वाली सीटों से हटाकर चुनौतीपूर्ण सीटों से टिकट दिए। नतीजा यह कि पहले से खराब रिजल्ट आए। उत्तर प्रदेश के बदलापुर विधायक रमेश चंद्र मिश्र ने कहा है कि प्रदेश में भाजपा की हालत काफी गंभीर है और 2027 के विधानसभा चुनावों में जीत की कोई आस नहीं दिख रही है।

क्या भाजपा से कोई उम्मीद की जा सकती है?
सवाल है कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपने ही नेताओं, कार्यकर्ताओं, समर्थकों, मतदाताओं के लगातार भेजे जा रहे संदेश अब सुनेगा? संभव है कि न सुने। ऐसा इसलिए क्योंकि वह वोट प्रतिशत के चश्मे से चुनावी नतीजों का विश्लेषण करना ठीक समझ रहा है। उसे लगता है कि मतदाता अब भी पार्टी के साथ है, वरना वोट प्रतिशत में भारी गिरावट आती। क्या यह सच है? हां, हो सकता है। मतदाता आज भी भाजपा से दूर नहीं गया हो, लेकिन उसकी निराशा कब विरोध में बदल जाए, समझना बहुत कठिन नहीं है।

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