पुण्य स्मरण:राजा शंकर शाह ने सपरिवार दिया आजादी को सर्वोच्च बलिदान

……… चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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🔥 *राजा शंकर शाह केे परिवार का बलिदान* 🔥
बलि-पंथी को प्राणों का मोह न होता,
कर्तव्य मार्ग में मिलन-बिछोह न होता।
अपने प्राणों से राष्ट्र बड़ा होता है,
हम मिटते हैं तब राष्ट्र खड़ा होता है।।
✍️ *श्रीकृष्ण सरल जी*

राष्ट्रभक्त साथियों, निसंदेह जब *स्वतंत्रता* सजीव जगत के लिए सबसे कीमती उपहार है, तो इसे पाने के लिए भी सबसे कीमती मूल्य चुकाना पड़ता है। राष्ट्रभक्त साथियों सदियों से गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी भारतमाता को आज़ादी यूहीं नहीं मिली, इसके लिए असंख्य बलिदान देने पड़े। इसके लिए *राजा शंकर शाह, उनके पुत्र कुँवर रघुनाथ शाह को बलिदान होना पड़ा। इससे भी आगे बढ़कर राजा शंकर शाह की धर्म-पत्नी तथा कुँवर रघुनाथ शाह जी की माँ फूलकुँवर को ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते आत्मोत्सर्ग करना पड़ा था।* राष्ट्रभक्त साथियों आज 163वें बलिदान दिवस पर सन् 1857 की क्रांति में अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह गढ़ा मंडला और जबलपुर के गोंड राजवंश के प्रतापी राजा संग्राम शाह के वंशज की बात करना चाहता हूँ। इस राजवंश की कई पीढ़ियों ने देश और आत्मसम्मान के लिये अपने प्राण न्योछावर किये थे। राजा संग्राम शाह के बड़े पुत्र दलपत शाह थे जिनकी पत्नी रानी दुर्गावती और पुत्र वीरनारायण ने अपनी मात्रभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए अकबर की सेना से युद्ध कर अपना बलिदान दिया। इसके पश्चात गढ़ा मंडला अकबर के अधीन हो गया।

📝अकबर ने अपनी अधीनता में शासन चलाने के लिये रानी दुर्गावती के देवर ( राजा दलपत शाह के छोटे भाई ) चंदा नरेश, चन्द्र शाह को राजा बनाया। इन्ही चन्द्र शाह की 11वीं पीढ़ी में अमर बलिदानी शंकर शाह ने जन्म लिया। देश में जब सन् 1857 की क्रांति-ज्वाला पूरी शक्ति के साथ धधक रही थी, और कमल तथा रोटी का संदेश गाँव -गाँव पहुँच रहा था, तब गढ़ा पुरवा (जबलपुर) के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह के हृदय में भी स्वतंत्रता की अग्नि सुलग रही थी। सन् 1857 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजिमेण्ट का कमाण्डर क्लार्क बहुत क्रूर था। वह छोटे राजाओं, जमीदारों एवं जनता को बहुत परेशान करता था। यह देखकर गोण्डवाना (वर्तमान जबलपुर) के राजा शंकरशाह ने उसके अत्याचारों का विरोध करने का निर्णय लिया। वे जबलपुर की अंग्रेज सैन्य छावनी पर आक्रमण कर वहाँ तैनात भारतीय सैनिकों की मदद से अंग्रेजी राज को उखाड़ फेंकने की योजना बना रहे थे। राजा एवं राजकुमार दोनों अच्छे कवि थे। उन्होंने कविताओं द्वारा विद्रोह की आग पूरे राज्य में सुलगा दी। किसी तरह अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई। राजा ने एक *भ्रष्ट कर्मचारी (गद्दार) गिरधारीलाल दास* को निष्कासित कर दिया था। वह क्लार्क को अंग्रेजी में इन कविताओं का अर्थ समझाता था।

📝बस फिर क्या था, गुप्तचरों ने गढ़ा-पुरवा के अंदर-बाहर घेरा डाल दिया। सही मौके की प्रतीक्षा की जाने लगी। अंतत: *14 सितंबर, 1857 की मध्यरात्रि को डिप्टी कमिश्नर क्लार्क 20 घुड़सवार व 40 पैदल सिपाहियों के साथ राजा शंकर शाह की गढ़ी पर टूट पड़ा। राजा शंकर शाह, उनके पुत्र रघुनाथ शाह और 13 अन्य लोगों को गिरफ्तार कर बंदीगृह में डाल दिया गया।* पूरे घर की तलाशी ली गई। संदिग्ध सामग्री की जब्ती की गई, जिसमें राजा द्वारा अपने सरदारों को लिखा हुआ आज्ञा पत्र और उनके द्वारा लिखी गई यह कविता उनके हाथ लगी। इस कविता को आधार बनाकर मुकदमा चलाया गया। पिता-पुत्र को पीली कोठी में बंदी बनाकर रखा गया था। इमलाई राजवंश के वंशज बताते हैं कि उनके सामने तीन शर्तें रखी गयी थीं। (1) अंग्रेजों से संधि, (2) अपने धर्म का त्याग कर ईसाइयत को अपनाना, और (3) पुरस्कार स्वरूप ब्रिटिश सत्ता से पेंशन प्राप्त करना। स्वाभिमानी राजा शंकर शाह ने इससे साफ इंकार कर दिया। तब अंग्रेज सत्ता ने डिप्टी कमिश्नर क्लार्क व दो अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का सैनिक आयोग बनाया। राजा व उनके अन्य साथियों पर अभियोग चलाने का नाटक कर निर्णय दिया गया कि शंकर शाह और रघुनाथ शाह को ‘बगावत’ के अपराध में तोप के मुँह से बाँधकर मृत्युदण्ड दिया जाए।

📝18 सितंबर, 1857 को एजेंसी के सामने फाँसी परेड हुई और एक अहाते में आमंत्रित जन-समुदाय के बीच पैदल व घुड़सवार सैनिकों की टुकडि़यों के साथ शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह को लाकर हथकडि़याँ, बेडि़याँ खोलकर तोप के मुँह पर बाँध दिया गया। आजादी के दोनों दीवानों ने अपनी आराध्य देवी से प्रार्थना की, तोपें दाग दी गयीं और भारत के इन बेटों ने स्वाधीनता यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। सवाल यह कि तोप के मुँह से बाँधकर मृत्युदंड क्यों दिया गया, जबकि उन दिनों फाँसी या बंदूक की गोली से मृत्युदंड दिया जाता था ? ऐसा अंग्रेजों ने इसलिए किया था ताकि लोगों में भय व्याप्त हो जाए और पिता-पुत्र के दाह संस्कार हेतु अवशेष न बच सकें। पति और बेटे के प्राणोत्सर्ग के बाद विधवा रानी फूलकुँवर बाई ने दोनों शवों के अवशेष एकत्र कर उनका अन्तिम क्रिया-कर्म करवाया तथा प्रतिज्ञा की कि ‘जब तक मेरी साँसें रहेगी, यह युद्ध जारी रहेगा।’ परिणामस्वरूप स्वतंत्रता समर की अग्नि और भड़क उठी। 52वीं रेजीमेंट ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध उठ खड़ी हुई और हथियार, गोला-बारूद लेकर पाटन की ओर चल पड़ी। पाटन और स्लीमनाबाद स्थित सैनिक दस्ते भी 52वीं रेजीमेंट के विद्रोही सैनिकों के साथ चल पड़े। राजा के बलिदान से महाकौशल क्षेत्र के अन्य राजाओं में अंग्रेजी राज के विरुद्ध रोष भड़क उठा। सागर, दमोह, सिहोर, सिवनी, छिंदवाड़ा, मंडला, बालाघाट, नरसिंहपुर आदि स्थानों पर क्रांति की चिनगारियाँ फूटने लगीं।

📝दूसरी ओर शंकर शाह की विधवा रानी फूलकुँवर भी दुश्मन फिरंगियों से बदला लेने का संकल्प कर मण्डला आ गईं। उन्होंने सेना को संगठित कर फिरंगियों के खिलाफ छापामार युद्ध छेड़ दिया और अंतत: आत्मोत्सर्ग किया। इस महान बलिदान गाथा के 90 वर्ष बाद जब लाल किले में आजाद हिन्द फौज के सेनानियों पर अंग्रेज सरकार मुकदमा चला रही थी और इन सेनानियों के समर्थन में नौसेना के भारतीय सैनिकों ने बगावत कर दी, तब भी जबलपुर की छावनी ने देश के लिए त्याग और बलिदान की परंपरा कायम रखी। 26 फरवरी, 1946 को जबलपुर की ब्रिटिश सैन्य छावनी में सिग्नल ट्रेनिंग सेंटर की ‘जे’ कंपनी के 120 सैनिकों ने अंग्रेज सत्ता के विरुद्ध बगावत की, तब भी उन्होंने बलिदानी शंकर शाह और रघुनाथ शाह को अपना नायक घोषित किया था। अंग्रेज सरकार सकते में आ गई और उसे सन् 1857 की पुनरावृत्ति के दु:स्वप्न आने लगे। इन सबका तत्काल कोर्ट मार्शल हुआ और सेना से निकालकर इस घटना संबंधी दस्तावेज जला दिए गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन्हें पुन: सेना में बहाल किया गया। यह महान गाथा सारे देश को प्रेरणा देने वाली और सामाजिक एकात्मता को दृढ़ करने वाली है। इसे राजनैतिक कारणों से समय के गर्त में दबाने का प्रयास किया गया, लेकिन अब समय आ गया है कि इतिहास की वास्तविक जानकारी नई पीढ़ी तक पहुँचाई जाए ।

✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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