वक्फ संशोधन बिल काAtoZ: मौलिक 4 बिंदु,विरोध करते ध्यान रखें 5 मौलिक बिंदु

A to Z: वक्फ बोर्ड संशोधन बिल क्या और क्यों?

बिल की चार प्रमुख बातें

सभी मौजूदा वक्फ संपत्तियों को नियमित करने का प्रावधान- नया कानून लागू होने के 6 महीने में पोर्टल और डेटाबेस पर मौजूदा वक्फ संपत्तियों की जानकारी देना अनिवार्य होगा. सभी वक्फ संपत्तियों की सीमा, पहचान , उनका उपयोग और उसको इस्तेमाल करने वाले की जानकारी भी होगी. साथ ही वक्फ बनाने वाले का नाम और पता, तरीका और तारीख. वक्फ की देखरेख और प्रबंधन करने वाले मुतवल्ली की जानकारी होगी. वक्फ संपत्ति से होने वाली सालाना आमदनी की जानकारी भी इसमें शामिल है.
कोर्ट में लंबित मामलों की जानकारी- संपत्ति वक्फ की है या नहीं , इसका फैसला राज्य वक्फ बोर्ड नहीं कर सकेंगें. कानून लागू होने के बाद हर नई वक्फ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन और वेरिफिकेशन अनिवार्य होगा. नया वक्फ संपत्ति दस्तावेज़ बिना नहीं बनाया जा सकेगा. नए वक्फ संपत्ति के रजिस्ट्रेशन को वक्फ बोर्ड में आवेदन देना होगा. आवेदन की जांच को वक्फ बोर्ड ज़िला कलेक्टर के पास भेजेगा.ज़िला कलेक्टर के पास ही आवेदन की जांच का अधिकार और कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद ही वक्फ का रजिस्ट्रेशन होगा. अगर कलेक्टर ने रिपोर्ट में संपत्ति को विवादित या सरकारी ज़मीन करार दी तो रजिस्ट्रेशन नहीं होगा. रजिस्ट्रेशन होने पर सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा. कोई भी सरकारी ज़मीन वक्फ की संपत्ति नहीं बनाई जा सकेगी. कानून लागू होने के बाद वक्फ संपत्ति घोषित हो चुकी मौजूदा सरकारी संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी. ज़मीन सरकारी है या नहीं , इसकी जांच और निर्णय लेने का अधिकार कलेक्टर के पास रहेगा.जिन वक्फ संपत्तियों की जांच सर्वे कमिश्नर कर रहे , उनकी जांच कलेक्टर को सौंपी जाएगी.
केंद्रीय वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्डों को ज़्यादा व्यापक और सर्व समावेशी बनाने का प्रावधान- अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री काउंसिल के चेयरमैन होंगे , तीन सांसद भी इसके सदस्य होंगे. केंद्रीय काउंसिल के सदस्यों में 2 महिलाएं अनिवार्यतः होंगीं. दो गैर मुस्लिम सदस्य भी होंगे. मैनेजमेंट , वित्तीय मैनेजमेंट , प्रशासन और इंजीनियरिंग या आर्किटेक्चर जैसे क्षेत्रों से भी सदस्य बनाए जाएंगे. राज्य वक्फ बोर्डों में अधिकतम 11 सदस्यों का प्रावधान होगा. दो महिला और दो गैर मुस्लिम सदस्यों शामिल होने का भी प्रावधान है. बोहरा और आगाखानी समुदाय से भी सदस्य बन सकेंगें. सदस्यों में शिया , सुन्नी और ओबीसी वर्ग का कम से कम एक प्रतिनिधि अनिवार्य.
विवाद की स्थिति में वक्फ ट्रिब्यूनल के फ़ैसले को ऊंची अदालतों में चुनौती देने का प्रावधान- 90 दिनों के भीतर हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी. फिलहाल ट्रिब्यूनल का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा.

वक्फ बिल के सबसे महत्वपूर्ण बदलाव  यहां जानें
कानून लागू होने के बाद हर नई वक्फ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन और वेरिफिकेशन अनिवार्य होगा.नई वक्फ संपत्ति दस्तावेज के बिना नहीं बनाई जा सकेगी.
केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में मुस्लिम और गैर मुस्लिम का उचित प्रतिनिधित्व होगा. मुस्लिम समुदायों में अन्य पिछड़ा वर्ग; शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी को प्रतिनिधित्व प्रदान करना है.
महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा. केंद्रीय परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में दो महिलाओं को रखना अनिवार्य होगा.
एक केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस के माध्यम से वक्फ के पंजीकरण के तरीके को सुव्यवस्थित करना भी इसमें शामिल है.
दो सदस्यों के साथ ट्रिब्यूनल संरचना में सुधार करना और ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील के लिए नब्बे दिनों की अवधि दी जाएगी.
वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए सर्वे कमिश्नर का अधिकार कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा नामित डिप्टी कलेक्टर को होगा.
वक्फ परिषद में केंद्रीय मंत्री, तीन सांसद, मुस्लिम संगठनों के तीन नुमाइंदे, मुस्लिम कानून के तीन जानकार, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के दो पूर्व जज, एक प्रसिद्ध वकील, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चार लोग, भारत सरकार के अतिरिक्त या संयुक्त सचिव आदि होंगे. इनमें से कम से कम दो महिलाओं का होना आवश्यक है.
राज्यसभा से वक्फ संपत्ति से जुड़ा विधेयक वापस लेगी केंद्र सरकार
सरकार गुरुवार को राज्यसभा से वक्फ संपत्ति से जुड़ा विधेयक वापस लेगी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने 18 फरवरी 2014 को राज्यसभा में वक्फ संपत्ति से जुड़ा यह बिल पेश किया था. अब केंद्र सरकार ने इसे राज्यसभा से वापस लेने का फैसला किया है. अल्पसंख्यक मामलों के किरेन मंत्री रिजिजू इसे वापस लेने का विधेयक राज्यसभा में पेश करेंगे.
वक्फ बिल में संशोधन का क्या उद्देश्य?
सरकार ने बिल लाने का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और संचालन बताया है. इसमें वक्फ कानून 1995 के सेक्शन 40 को हटाया जा रहा है जिसके तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकार था. वक्फ कानून 1995 का नाम बदल कर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 होगा.
वक्फ से जुड़े 2 बिल संसद में लाए जाएंगे
सरकार वक्फ से जुड़े दो बिल संसद में लाएगी. एक बिल के जरिए मुसलमान वक्फ कानून 1923 को खत्म किया जाएगा. दूसरे बिल के जरिए वक्फ कानून 1995 में महत्वपूर्ण संशोधन होंगे. सरकार ने कहा कि बिल लाने का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और संचालन है. इसमें वक्फ कानून 1995 के सेक्शन 40 को हटाया जा रहा है.

वक्फ बिल में होने वाले बदलाव से जुड़ी खास बातें
बिल के जरिए 1995 और 2013 के वक्फ कानूनों में संशोधन किया जा रहा है. बिल में 1995 के वक्फ कानून का नाम बदलकर यूनीफाइड वक्फ मैनेजमेंट, इम्पॉवरमेंट, एफिसिएंशी एंड डेवलपमेंट एक्ट 1995 (Unified Waqf Management , Empowerment, Efficiency and Development Act 1995) रखा गया है. इस बिल के जरिए पुराने कानूनों में करीब 40 बदलाव किए जाएंगे. इसके साथ ही बिल में कहा गया है कि 1995 और 2013 के कानूनों के बावजूद राज्य वक्फ बोर्ड के कामकाज में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और संचालन में पारदर्शिता का अभाव है.
विपक्ष ने संसदीय समिति के पास भेजने की मांग की
विपक्षी दलों ने बुधवार को सरकार से आग्रह किया कि वक्फ (संशोधन) विधेयक को पेश किए जाने के बाद इस पर गौर करने के लिए इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिए. दूसरी तरफ, सरकार ने कार्य मंत्रणा समिति (बीएसी) की बैठक में कहा कि वह सदन की भावना का आकलन करने के बाद इस पर फैसला करेगी. इसके साथ ही सरकार ने यह भी कहा कि वह बृहस्पतिवार को लोकसभा में पेश होने के बाद विधेयक पर चर्चा और इसे पारित कराने पर जोर नहीं देगी.

वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का विरोध करने से पहले इन 5 बातों पर जरूर गौर करिए
वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम को लेकर विपक्ष आंदोलित है. पर वक्फ बोर्ड के भ्रष्टाचार के किस्सों से पूरा देश परिचित है. मुसलमान भी. साढ़े नौ लाख एकड़ जमीन की देखभाल को कोई कानून आया है तो उसका विरोध केवल धार्मिक आधार पर करने के बजाय तार्किक आधार पर होना चाहिए.

संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू और दिल्ली वक्फ बोर्ड का कार्यालय

वक्फ बोर्ड का नाम सुनते ही सामान्य समझ में यही आता है कि मुस्लिम धर्म से संबंधित किसी प्रॉपर्टी की बात हो रही है. शायद इसी के चलते हमारे देश के राजनीतिज्ञ इसे संवेदनशील मुद्दा बनाते रहे हैं. वोट बैंक की राजनीति के चलते मुस्लिम धर्म के कल्याण को बनाई गई एक पवित्र संस्था पर मुट्ठी भर भ्रष्ट और ताकतवर लोग राज करते हैं. एक बार सोचकर देखिए कि देश में जितनी जमीन सेना और रेलवे के पास है, उससे थोड़ी ही कम जमीन एक ऐसी संस्था के पास है जो मुट्ठी भर लोगों के हाथ की कठपुतली है. यही नहीं कांग्रेस के तुष्टीकरण नीतियों के चलते यूपीए सरकार में इस संस्था को ऐसा हथियार मिल गया, जिसका ये बेजा इस्तेमाल करने लगे. वक्फ बोर्ड को अधिकार मिल गया कि वो किसी भी जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित कर सकती है. और अगर आपकी जमीन पर बोर्ड ने दावा कर दिया तो आप रिलीफ को कोर्ट का सहारा भी नहीं ले सकते. यही नहीं, करीब साढ़े नौ लाख एकड़ जमीन होने के बावजूद बोर्ड के पास किसी गरीब मुसलमान की मदद को पैसा नहीं होता है. इसलिए वक्फ बोर्ड संशोधन बिल का विरोध करने के पहले इन पांच बातों के बारे में जरूर सोचिएगा.

1-क्या साढ़े नौ लाख एकड़ प्रॉपर्टी का कोई रुल रेग्युलेशन नहीं होना चाहिए?

एक बार इस बारे में जरूर सोचिएगा कि साढ़े नौ लाख एकड़ जमीन की देखभाल को रूल रेगुलेशन होना चाहिए या नहीं. सरकार ने संसद में बताया कि बिल लाने का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और संचालन है. शायद यही कारण है कि सरकार ने बिल के नाम में परिवर्तन किया है. जैसा संसदीय कार्य व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजीजु ने लोकसभा में बताया कि अब वक्फ कानून 1995 का नाम बदल कर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 हो जाएगा.

संशोधन विधेयक में वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन और मैनेजमेंट, ट्रांसपेरेंसी और एफिशियेंसी का ख्याल रखा गया है. इसको एक सेंट्रल पोर्टल और डेटाबेस का प्रावधान है. अब किसी भी संपत्ति को वक्फ के रूप में दर्ज करने से पहले सभी संबंधितों को उचित नोटिस दिया जाएगा और राजस्व कानूनों के अनुसार एक विस्तृत प्रक्रिया से गुजरना होगा. इसमें विपक्ष को क्यों बुराई नजर आ रही है. केंद्र सरकार में मंत्री किरण रिजीजु ने संसद में बताया कि वक्फ की संपत्तियां सही तरीके से मैनेज नहीं की गई है. वक्फ बोर्ड का कंप्यूटरीकरण करना चाहिए, म्यूटेशन रेवेन्यू रिकॉर्ड में होना चाहिए. रिजीजू ने व्यंग्य किया कि वक्फ बोर्ड कानून को गठित जेपीसी के चेयरमैन आपके वरिष्ठ नेता रह चुके हैं पर आप जो नहीं कर पाए वह हम कर रहे हैं. इस बिल का समर्थन कीजिए, करोड़ों लोगों की दुआ मिलेगी. चंद लोगों ने वक्फ बोर्ड पर कब्जा कर रखा है. गरीबों को न्याय नहीं मिलेगा. इतिहास में अंकित होगा कि कौन-कौन विरोध में था. जो खामियां 2014 से आज तक 1955 के एक्ट में रह गई हैं उनके बारे में कांग्रेस के जमाने में भी कई कमेटियां कह चुकी हैं. 1976 में वक्फ इनक्वायरी रिपोर्ट में बड़ा रिकंमेडेशन आया था. ऑडिट और अकाउंट्स का तरीका प्रॉपर नहीं है, पूरा प्रबंधन होना चाहिए.जाहिर है कि वही सब हो रहा है जो पहले मुस्लिम समाज की डिमांड थी।
2-क्या किसी भी जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावे के खिलाफ कोर्ट में अपील का अधिकार नहीं मिलना चाहिए?

2009 तक वक्फ बोर्ड के पास 4 लाख एकड़ तक की 3 लाख रजिस्टर्ड वक्फ संपत्तियां थीं. मात्र 13 साल में वक्फ की जमीन दोगुनी हो गई। अब  8 लाख 72 हजार 292 से ज्यादा अचल संपत्तियां रजिस्टर्ड हैं जिनका एरिया करीब 9.4 लाख एकड़ है . दरअसल 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 1995 के बेसिक वक्फ एक्ट में संशोधन लाई और वक्फ बोर्डों को और ज्यादा अधिकार दे दिये. वक्फ बोर्डों को संपत्ति छीनने की असीमित शक्तियां देने को अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसे किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती.

अब नए कानून में वक्फ कानून 1995 के सेक्शन 40 को हटाया जा रहा है. इस कानून में वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकार था. लेकिन अब ऐसा नहीं पायेगा.रिजीजु पूछते हैं कि बोर्ड कुछ करता है तो उसे कोर्ट में रिव्यू करने का प्रावधान गैर संवैधानिक कैसे हो गया. कितने साल तक वक्फ बोर्ड में बैठने वाले लोग तालमेल करके ट्रिब्यूनल में फैसले देते हैं. उस फैसले को आप किसी कोर्ट में चैलेंज नहीं कर सकते. विचारणीय है कि क्या ये तरीका लोकतांत्रिक है? देश में कोई भी कानून सुपर लॉ नहीं हो सकता.

वक्‍फ बोर्ड की मनमानी और घोटालेबाजी के चौंकाने वाले उदाहरण:

इस कानून के दुरुपयोग के देश में कई उदाहरण हैं. गुरुवार को लोकसभा में रिजीजू ने कुछ ऐसे केसों की चर्चा की जो पहले भी मीडिया में जगह पा चुके हैं. रिजीजू ने बोहरा समाज के एक केस की चर्चा की. मुंबई में एक ट्रस्ट है उसने एशिया की लार्जेस्ट स्कीम को लॉन्च किया जिसमें दाऊद इब्राहिम की वो प्रापर्टी भी शामिल थी जिसकी नीलामी में कोई डर के मारे शामिल ही नहीं होता. किसी ने उस प्रॉपर्टी की वक्फ बोर्ड में शिकायत कर दी और वक्फ बोर्ड ने उसे नोटिफाई कर दिया. जो आदमी न उस शहर में है, न उस राज्य में है, वक्फ बोर्ड के माध्यम से एक प्रोजेक्ट को डिस्टर्ब कर दिया गया. तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली जिले में 1500 साल पुराने सुंदरेश्वर टेंपल का भी उदाहरण रिजीजू ने दिया. इस गांव का एक आदमी अपनी 1.2 एकड़ प्रॉपर्टी बेचने गया तो उसे बताया गया कि ये वक्फ की जमीन है. पूरे गांव को वक्फ प्रॉपर्टी डिक्लेयर कर दिया गया है. इस तरह सूरत में म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की जमीन को वक्फ प्रॉपर्टी डिक्लेयर कर दिया गया. कर्नाटक माइनॉरिटी कमीशन की रिपोर्ट में 2012 में कहा था कि वक्फ बोर्ड ने 29 हजार एकड़ जमीन को कमर्शियल प्रॉपर्टी में कन्वर्ट कर दिया गया. जबकि सभी जानते हैं कि वक्फ बोर्ड की जमीन धार्मिक और सामाजिक कार्यों को ही इस्तेमाल हो सकती है.

3-क्या महिलाओं को वक्फ बोर्ड में शामिल नहीं करना चाहिए?

आज मुस्लिम देशों में महिलाएं प्रधानमंत्री बन रही हैं. भारत में भी मुस्लिम महिलाएं सांसद, विधायक, मंत्री और उपराष्ट्रपति तक बन चुकी. पर वो वक्फ बोर्ड की मेंबर नहीं बन सकतीं हैं. क्या ये भारतीय संविधान का उल्लंघन नहीं हैं? क्या आप नहीं चाहेंगे कि मुस्लिम महिलाओं को भी बराबर दर्जा मिले? नए बिल में केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों की भूमिका में भी बदलाव किया गया है. इन निकायों में मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुसलमानों का प्रतिनिधित्व भी होगा. केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में मुस्लिम और गैर मुस्लिम का उचित प्रतिनिधित्व होगा. केंद्रीय परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में दो महिलाओं को रखना अनिवार्य होगा. एक केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस से वक्फ के रजिस्ट्रेशन के तरीके को सुव्यवस्थित किया जाएगा.

नए बिल में आगाखानी और बोहरा वक्फ परिभाषित किये गये है. इस विधेयक में बोहरा और आगाखानियों को एक अलग औकाफ बोर्ड बनाए जाने का प्रस्ताव है. मसौदे में मुस्लिम समुदायों में अन्य पिछड़ा वर्ग, शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी को प्रतिनिधित्व का प्रावधान है.

4-क्या वक्फ बोर्ड प्रॉपर्टी कब्जाए हुए भ्रष्ट मुस्लिम नेताओं से बचाने की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए?

मुसलमानों ने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान कर इस्लामी कानून में वक्फ बनाया. इस्लामी धर्मगुरुओं का मानना है कि संपत्ति का उपयोग सिर्फ उन धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए, जिनके लिए इसे हमारे पूर्वजों ने दान किया था.पर यहां तो गरीब मुसलमानों के कल्याण को इतने भारी भरकम बोर्ड के पास पैसे ही नहीं हैं. क्योंकि ताकतवर मुसलमानों ने न केवल बोर्ड पर कब्जा जमाया हुआ है बल्कि वक्फ की जमीनों पर उन्हीं का कब्जा है.वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद कहते हैं कि नया बिल अगर ढंग से लागू हो सका तो माइनोरिटी को काफी फायदा होगा. जावेद कहते हैं कि तेलंगाना में 3 हजार करोड़ या इससे कुछ ज्यादा की प्रॉपर्टी पर ओवैसी का कब्जा है. ये प्रॉपर्टी वक्फ की है. एक्ट कहता है कि 30 सालों से ज्यादा वक्फ की दौलत लीज पर नहीं ली जा सकती. लेकिन इसे फॉलो नहीं किया जा रहा. साथ ही बदले में वक्फ को बहुत नॉमिनल किराया मिलता है, जबकि नियम से ये रेंट बाजार के हिसाब का होना चाहिए.

ओवैसी ही नहीं कई और  ताकतवर मुस्लिम वक्फ प्रॉपर्टी सालों से लीज पर लिए हैं. दिल्ली में जमात ए उलेमा हिंद के पास वक्फ की काफी संपत्ति है. लेकिन इसका कोई फायदा न बोर्ड को हो रहा है, न ही वंचित मुसलमानों को. इसी तरह से महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड अध्यक्ष काजी समीर ने वक्फ की 275 एकड़ पर अतिक्रमण कर रखा है. ऐसे दो सौ नेता और संस्थान होंगे. जावेद कहते हैं कि अगर बिल आ गया तो पारदर्शिता आएगी.

5-वक्फ संपत्तियों का सर्वे अगर कलेक्टर करेंगे तो इसमें गलत क्या है

मूल अधिनियम में वक्फ संपत्तियों के सर्वे को सर्वे कमिश्नरों की नियुक्ति का प्रावधान है.लेकिन संशोधन विधेयक में कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर ही सर्वे कमिश्नर होगा. इससे नीचे पद वाले अधिकारी को जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती है.विऱोधी इसे धार्मिक मामलों में सरकार का हस्तक्षेप बता रहे हैं. पर देश के प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों की व्यवस्था भी कई जगहों पर सरकार के अधीन है. दूसरे इतनी बड़ी संपत्ति से कानून और व्यवस्था का सवाल भी खड़ा होता है.यह भी हो सकता है कि जिस जमीन का सर्वे वक्फ बोर्ड कर रही हो वह किसी दूसरे धर्म का व्यक्ति उस पर हक जता रहा हो. इसलिए सही यही है कि सरकार का कोई अधिकारी यह सर्वे करे तो बेहतर . वह अधिकारी किसी भी धर्म का हो सकता है. कोर्ट के आदेश पर जब राम जन्म भूमि की जमीन का ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे हो रहा था केके मुहम्मद ने बड़ी भूमिका निभाई थी. किसी भी हिंदू ने यह मांग नहीं उठाई थी कि राम जन्म भूमि का सर्वे कोई हिंदू ही करे. वैसे भी सरकार मस्जिदों या मुस्लिम धर्म के किसी रीति रिवाज में हस्तक्षेप नहीं कर रही है.

Indian Sufi Foundation President Kashish Warsi Said Waqf Amendment Bill Is Good Initiative
वक्फ संशोधन बिल तीन तलाक जैसा मामला है… अब प्रॉपर्टी सेफ होंगी, सुनिए क्या कह रहे सूफी फाउंडेशन अध्यक्ष
वक्फ संशोधन विधेयक पर हंगामा मचा हुआ है। विपक्ष लगातार भाजपा सरकार पर हमला बोल रहा है। विपक्ष इस विधेयक को संविधान पर एक मौलिक हमला बता रहा है।

इसका शरीयत से कोई लेना-देना नहीं- कशिश वारसी

वक्फ (संशोधन) विधेयक पर बाराबंकी निवासी भारतीय सूफी फाउंडेशन की अध्यक्ष कशिश वारसी ने कहा कि विधेयक जेपीसी को भेजा गया है। यह एक नई पहल है और सुझाव आमंत्रित किए गए हैं और सुझाव पेश किये जाने चाहिए। जहां तक शरीयत का सवाल है, इसका शरीयत से कोई लेना-देना नहीं है। देखें तो यह तीन तलाक जैसा है। जैसे तीन तलाक से हमारी औरतें सेफ हुईं, वैसे ही इस विधेयक से वक्फ की संपत्ति सेफ होगी।

कहा- इस विधेयक पर अच्छी बहस होनी चाहिए
उन्होंने कहा कि मैं यह जिम्मेदारी से कहता हूं कि आज वक्फ संपत्तियों को कट्टरपंथी नियंत्रित कर रहे हैं, वे सूफीवाद के दुश्मन हैं। संपत्तियां उनसे मुक्त कराई जानी चाहिए। सूफियों की एक समिति गठित की जानी चाहिए। दूसरी बात, दरगाह और मजार गरीबों को भोजन कराने को हैं, न कि अपनी जेब भरने को। मजारों पर कट्टरपंथियों का नियंत्रण है, वे अपनी जेबें भर रहे हैं। इस विधेयक पर अच्छी बहस हो और इसे पारित कराया जाये।

गुरुवार को संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पेश हुआ
बता दें कि आज वक्फ (संशोधन) विधेयक संसद में लाया गया। विधेयक को लेकर विपक्ष भाजपा सरकार पर जमकर हमला बोल रहा है। विपक्ष मुस्लिमों को टारगेट करने की बात  कह रहा है। सपा-कांग्रेस इसका लगातार विरोध कर इसको भेदभाव वाला विधेयक बता रही हैं। रामपुर से सपा सांसद ने कहा कि इससे भेदभाव होगा। मेरे मजहब की चीजें कोई दूसरा कैसे तय करेगा। मजहब में दखलंदाजी है ये। संविधान बचाने के लिए कहीं जनता सड़कों पर न आ जाए।

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वक्फ बोर्ड
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भारतीय जनता पार्टी

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