मत:वक्फ संशोधन को कोर्ट में चुनौती? हाथ भी नहीं लगायेगा सुप्रीम कोर्ट

Waqf Amendment Bill To Be Challenged In Supreme Court By Congress Muslims Parliament Explained Rules
वक्फ संशोधन बिल को हाथ भी नहीं लगाएगा सुप्रीम कोर्ट… कांग्रेस संसद के बाद अदालत में भी हारेगी, क्या कहते हैं नियम?
भारी हंगामे के बाद वक्फ संशोधान बिल संसद से पास हो गया है। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही यह कानून बन गया, जिससे वक्फ बोर्ड की शक्तियों पर अंकुश लगेगा। विपक्ष इस विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है। लीगल एक्सपर्ट से जानते हैं-

××××क्या संसद से पारित कानून की समीक्षा कर सकता है सुप्रीम कोर्ट
××××क्या कानून की वैधता को जांच सकती है सर्वोच्च अदालत
××××क्या हैं नियम और क्या कहता है संविधान, यहां जानिए

नई दिल्ली06 अप्रैल2025 : वक्फ संशोधन बिल आखिरकार जोरदार हंगामे के बाद संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा से बहुमत के साथ पारित हो गया है। अब यह राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन जाएगा। इसे लेकर कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने विरोध जताया था, मगर सरकार ने सदनों में चर्चा करने के बाद इस पर वोटिंग करा ली, जिसमें यह कानून पास हो गया। अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएगी और इस बिल की वैधता को चुनौती देगी। कुछ मुस्लिम संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस बिल को चुनौती देने की बात कही है। लीगल एक्सपर्ट से समझते हैं कि क्या संसद के बनाए कानूनों की समीक्षा करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है। क्या न्यायपालिका संसद के बनाए कानून को रद्द कर सकती है?

क्या संसद से पारित कानून को रद्द कर सकता है सुप्रीम कोर्ट?
हां। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान का संरक्षक माना जाता है। ऐसे में वह यह सुनिश्चित करने के लिए संसद के बनाए गए कानूनों की समीक्षा करता है कि वे संविधान के अनुरूप हों। यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि कोई कानून संविधान के खिलाफ है, तो वह उसे रद्द कर सकता है। हालांकि, संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्राप्त है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है। आमतौर पर संसद से किसी भी पारित कानून को सुप्रीम कोर्ट निरस्त नहीं कर सकता है।

क्या संविधान का अनुच्छेद 13 देता है सुप्रीम कोर्ट को शक्ति?
लीगल एक्सपर्ट अनिल सिंह के अनुसार, संविधान के अनुसार, संसद केवल संविधान को बदलने या संविधान में संशोधन करने के लिए उत्तरदायी है। संसद के पास केवल नए कानूनों का पारित करने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 13 के अनुसार यदि कोई कानून संविधान के विरुद्ध होता है तो उसे सुप्रीम कोर्ट निरस्त कर सकता है। ऐसे में संसद के अलावा किसी भी संस्था या व्यक्ति को किसी पारित कानून को रद्द करने का अधिकार नहीं है। संविधान से स्थापित संस्थाओं जैसे कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के पास केवल विशेष विधि और न्याय अधिकार होते हैं जो कि उन्हें किसी कानून को निरस्त करने का अधिकार देते हैं।

क्या संसद के पास असीमित शक्ति होती है?
नहीं। संसद सभी विषयों पर कानून बना सकती है, मगर वह संविधान के मूल प्रारुप नहीं बदल सकती । भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368 (1) संसद को संविधान में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी प्रावधान को जोड़कर, बदलकर या हटाकर संविधान में संशोधन करने की शक्ति देता है। 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में संविधान के मौलिक प्रारुप सिद्धांत पर व्यापक चर्चा हुई। इसमें यह निष्कर्ष निकला कि एक संवैधानिक संशोधन भी भारतीय संविधान के मूल ढांचा संशोधित नहीं कर सकता है। मौलिक संरचना सिद्धांत का मानना है कि भारतीय संसद के पास भारतीय संविधान को संशोधित करने या समाप्त करने का अधिकार नहीं है। कानून में व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा इस सिद्धांत के अभिन्न अंगों में से एक है।

संविधान में सुप्रीम कोर्ट को क्या मिली है पॉवर
भारतीय संविधान का भाग III (अनुच्छेद 12-35) कुछ स्वतंत्रताओं की रक्षा करता है। वहीं, अनुच्छेद 13 किसी भी नए कानून को लागू करने पर रोक लगाता है जो इन स्वतंत्रताओं का उल्लंघन कर सकता है। यह प्रावधान न्यायालयों को संविधान के अनुसमर्थन से पहले और बाद में बनाए गए कानूनों की संवैधानिकता का पता लगाने का अधिकार देता है। मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट हैबियस कॉर्पस, परमादेश, उत्प्रेषण और क्वो वारंटो जैसे रिट जारी कर सकता है। विधायिका और कार्यपालिका पर न्यायपालिका का अधिकार संविधान के शक्तियों के पृथक्करण के प्रावधान को कायम रखता है।

कानून बनाना संसद की संप्रभुता, हम नहीं करेंगें हस्तक्षेप: सुप्रीम कोर्ट
अनिल सिंह बताते हैं कि फरवरी, 2023 में एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-कानून बनाना संसद की संप्रभुता है, हम इसमें दखल नहीं देंगे। इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने एक उम्मीदवार को दो विधानसभा या संसदीय क्षेत्र से एकसाथ चुनाव लड़ने से रोकने की मांग पर विचार करने से इनकार कर दिया था। ऐसे में वक्फ संशोधन विधेयक के मामले में अगर चुनौती दी गई तो सुप्रीम कोर्ट कुछ ऐसा ही कह सकता है।

तत्कालीन CJI चंद्रचूड़ ने तब क्या कहा था
उस वक्त चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यानी CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि कई कारणों से उम्मीदवार अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं। यह संसद की संप्रभुता की परिधि में विधायी नीतिगत प्रश्न है। यह संसद की इच्छा है कि राजनीतिक लोकतंत्र को ऐसे विकल्प देकर आगे बढ़ाया जाए या नहीं। उसे ही तय करने दें।

इन आधारों पर दी जा सकती है अदालत में चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में इन संवैधानिक आधार पर विपक्ष चुनौती दे सकता है।
1-यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 25 भारतीय नागरिकों को अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संपत्ति और संस्थानों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है। ऐसे में अगर वक्फ संपत्तियों का प्रशासन बदलता है या इसमें गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जाता है, तो यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है।
2-संविधान के अनुच्छेद 26 यानी धार्मिक संस्थाओं के प्रशासन का उल्लंघन। यह अनुच्छेद धार्मिक समुदायों को अपनी धार्मिक संस्थाओं को प्रबंधित करने का अधिकार देता है। इस विधेयक से वक्फ बोर्ड के अधिकारों में कमी आ सकती है, जिससे यह प्रावधान प्रभावित हो सकता है।
3-संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 यानी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा का उल्लंघन। मुस्लिम संगठनों का दावा है कि यह विधेयक अल्पसंख्यकों को कमजोर कर सकता है और उनकी संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में ले सकता है।
क्या सुप्रीम कोर्ट वक्फ बिल को परखेगा?
अनिल कुमार सिंह श्रीनेत के अनुसार, कई बार संसदीय कानूनों को कोर्ट में चुनौती दी गई है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को चंदे को चुनावी बॉन्ड योजना निरस्त कर दी थी। 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 हटाने का फैसला बनाये रखा था। अनुच्छेद-370 केंद्र सरकार ने 2019 में निरस्त कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। ऐसे में ज्यादा संभावना है कि सुप्रीम कोर्ट वक्फ विधेयक पर याचिका मंजूर न करे। वह ज्यादा से ज्यादा यह देखेगा है कि वक्फ का मसला धार्मिक मामले से जुड़ा है या नहीं और यह संविधान का उल्लंघन तो नहीं करता ।

Waqf Bill: SC से निरस्त तो नहीं होगा वक्फ संशोधन कानून, बस पास करनी होगी तीन परीक्षायें

Supreme Court On Waqf Amendment Act वक्फ बिल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में डली याचिकाओं में मुसलमानों से भेदभाव का आरोप लगा कानून में समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14 और 15) का उल्लंघन बताया गया है। जबकि सरकार का तर्क है कि कानून में मुस्लिम महिलाओं के हित संरक्षित हुए है और अनुच्छेद 15 में सरकार का महिलाओं के विशेषाधिकार सुरक्षित करने का दायित्व है.

संशोधन विधेयक कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं आ चुकी हैं.

 राष्ट्रपति की स्वीकृति बाद वक्फ संशोधन विधेयक कानून बन चुका । हालांकि संसद के दोनों सदनों से पारित होते ही इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई।  कई याचिकाओं में इसे संविधान के खिलाफ और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते चुनौती दी गई है।

लेकिन अगर किसी कानून को परखने के कोर्ट के दायरे को देखा जाए तो वो थोड़ा सीमित होता है। किसी भी कानून को तीन आधारों, विधायी सक्षमता, संविधान का उल्लंघन और मनमाना होने के आधार पर कोर्ट परखता है। तीनों आधारों को देखा जाए तो शीर्ष अदालत से इसे खारिज कराना बहुत आसान नहीं लगता।

क्या है कानूनी सिद्धांत?

  • यह जरूर है कि मामले पर सुनवाई बाद सुप्रीम कोर्ट से विस्तृत फैसला आता है तो देश में धार्मिक दान के संपत्ति प्रबंधन पर स्पष्ट व्यवस्था आ सकती है।
  • वक्फ संशोधन कानून 2025 के अदालत पहुंचने पर जरूरी  है कि कानून पर विचार के तय कानूनी सिद्धांत देखें जाएं।
  • इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी कानून की वैधानिकता पर मुख्यत: तीन आधारों पर विचार करता है-


इन तीन आधारों पर अगर वक्फ संशोधन कानून को देखें तो विधायी सक्षमता की कसौटी पर संसद से घंटों बहस बाद यह पारित हुआ। दूसरा आधार संवैधानिक प्रविधान उल्लंघन का है।
कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में मुख्य आधार यही है कि कानून मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

याचिका में क्या दलील दी गई?

कानून धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं

माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में होने वाली बहस में धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार ही केंद्र में होगा और सुप्रीम कोर्ट जो व्यवस्था देगा वही लागू भी होगी। लेकिन कानून पर सरकार का तर्क देखा जाए तो उसके अनुसार, यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है बल्कि संपत्ति प्रबंधन संबंधित है।

व्यवस्थित सुधारों की आवश्यकता

सरकार कानून उचित ठहराते हुए तर्क दे रही है कि वक्फ प्रबंधन में चुनौतियों का समाधान करने को व्यवस्थित सुधारों की आवश्यकता थी जिसके लिए वक्फ संशोधन कानून 2025 लाया गया। इससे पारदर्शिता,जवाबदेही और कानूनी निरीक्षण सुनिश्चित करके,वक्फ संपत्तियां गैर-मुसलमानों और अन्य हित धारकों के अधिकारों का उल्लंघन किये बगैर अपने इच्छित धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति कर सकती हैं।

 

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