संसद के विशेष सत्र में क्या? रोहिणी आयोग रपट?
विशेष सत्र में फिर चौंकाएगी मोदी सरकार? जातिगत जनगणना की काट के लिए तैयार है ‘ब्रह्मास्त्र’!
2024 के महासमर के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच शह मात का खेल लगातार चल रहा है. संसद के विशेष अधिवेशन को लेकर तमाम तरह की अटकलें चल रही हैं. क्या विपक्ष के जातिगत जनगणना की मिसाइल को रोकने के लिए एनडीए सरकार अपना ब्रह्मास्त्र तैयार कर रही है?
क्या है रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट में
नई दिल्ली,07 सितंबर 2023,जिस दिन से संसद के विशेष सत्र की घोषणा हुई है, कई तरह की राजनीतिक अटकलें लगाई जा रही हैं. राजनीतिक गलियारों में हर उस मुद्दे पर चर्चा हो रही है, जिससे सत्ता पक्ष की एनडीए सरकार अगले चुनावों में इंडिया गठबंधन को चुनौती दे सके. जिन मुद्दों की सबसे अधिक चर्चा है उनमें से एक देश-एक चुनाव, महिला आरक्षण और यूसीसी बिल पेश होना खास है. पर इन सबके बीच चर्चा का सबसे प्रमुख विषय अन्य पिछड़ा वर्ग के सबकैटेगराइजेशन के संबंध में न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग की एक रिपोर्ट हो गई है. कहा जा रहा है कि सरकार इसे संसद के विशेष अधिवेशन में पेश कर सकती है. यह रिपोर्ट जुलाई में ही कमीशन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थीं.
दरअसल ऐसा माना जा रहा है कि जातिगत जनगणना का दबाव सरकार पर बढ़ता जा रहा है. विपक्ष के इस मुद्दे की काट सरकार को नहीं मिल रही है इसलिए जल्द से जल्द रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट पर संसद में बहस कराई जा सकती है. जाहिर है कि इस मुद्दे पर विपक्ष की बोलती बंद हो सकती है. पर इसका एक और पक्ष भी है. विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू जरूर किया पर उन्हें ओबीसी कम्युनिटी का वोट हासिल करने में सफल साबित नहीं हुए थे. दूसरे बीजेपी को अपने कोर वोटर के नाराज होने का भी खतरा है. पार्टी के अंदर भी इसे पेश किए जाने और लागू किए जाने को लेकर मतभेद है.आइये रोहिणी कमीशन का गठन क्यों हुआ , क्या इसकी फाइंडिंग्स हैं, और इसका क्या राजनीतिक इंपैक्ट होने वाला है इस पर चर्चा करते हैं.
कब और क्यों हुआ रोहिणी आयोग का गठन
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राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी देश की आबादी की करीब 41 प्रतिशत है. पर मंडल आयोग के हिसाब से करीब 52 प्रतिशत है. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद से ओबीसी वर्ग को केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है.पर शिकायत रही है कि यह लाभ कुछ मुट्ठी भर लोग हथिया ले रहे हैं.जिनको वास्तव में जरूरत है उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. आयोग का प्राथमिक उद्देश्य ओबीसी के बीच आरक्षण लाभ के उचित वितरण के लिए विधि,आधार और मानदंड तैयार करना था.सरकार ने इसी सोच को आधार में रखकर अक्टूबर 2017 में रोहिणी कमीशन बनाया था. आयोग को यह काम सौंपा गया कि केंद्र की ओबीसी लिस्ट में शामिल करीब ढाई हजार OBC जातियों की सब-कैटेगरी तय करने के बाद 27 फीसदी कोटा को उनके अनुपात में किस तरह दिया जाए कि किसी के साथ अन्याय न हो सके. दक्षिण भारत के राज्यों ने इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. इरादा यह था कि ओबीसी लिस्ट में शामिल प्रभावशाली जातियों के कोटा की एक लिमिट तय की जाए ताकि OBC की कमजोर जातियां भी आरक्षण का लाभ उठा सकें.
क्या है रिपोर्ट में
इंडिया टुडे की एक खबर के अनुसार रोहिणी आयोग ने ओबीसी कोटा में केंद्र सरकार की नौकरियों और प्रवेश के आंकड़ों का विश्लेषण किया .आयोग को पता चला कि सभी नौकरियों और शिक्षा के लिए कॉलेजों की सीटों में से 97 परसेंट हिस्सा ओबीसी उपजातियों की 25 प्रतिशत के पास हैं. करीब 983 ओबीसी समुदायों को सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में सीट के रूप में हिस्सेदारी बिल्कुल भी नहीं मिली.
सूत्रों के मुताबिक, लगभग 1,100 पन्नों की सौंपी गई रिपोर्ट में सिफारिशें दो भागों में विभाजित हैं.रिपोर्ट का पहला भाग ओबीसी आरक्षण कोटा के न्यायसंगत वितरण से संबंधित है. दूसरे भाग देश में वर्तमान में सूचीबद्ध 2,633 पिछड़ी जातियों की पहचान, जनसंख्या में उनके आनुपातिक प्रतिनिधित्व और अब तक आरक्षण नीतियों से उन्हें मिले लाभों से संबंधित डेटा को संकलित किया गया है.
मीडिया में जो जानकारियां सामने आ रही हैं उसके तहत ओबीसी आरक्षण को तीन से चार श्रेणी में बांटने की सिफारिश की गई है. प्राथमिकता में ऐसी जातियों को रखने की सिफारिश की गई है, जिन्हें अब तक आरक्षण का एक बार भी लाभ नहीं मिला है. ओबीसी की जातियों में इनकी संख्या करीब डेढ़ हजार है, यह बात अलग है इनकी आबादी अन्य ओबीसी जातियों के मुकाबले काफी कम है.
दूसरी श्रेणी में एक हजार के करीब ऐसी जातियों को रखा गया है जिन्हें आरक्षण का लाभ एक या दो बार मिला है. इन्हें भी बंटवारे में दस प्रतिशत आरक्षण प्रस्तावित किया गया है, जबकि बाकी के बचे सात प्रतिशत आरक्षण में उन जातियों को रखा है. ये करीब डेढ़ सौ जातियां हैं जिन्होंने अब तक ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ लिया है.
क्या जातिगत जनगणना का दबाव है
रिजर्वेशन की राजनीति करने वाली पार्टियों की लंबे समय से मांग रही है कि देश में जातिगत जनगणना हो. मंडल कमीशन के हिसाब से देश की आबादी में 52 फीसदी ओबीसी है. चूंकि 1931 के बाद जातिगत जनगणना कभी नहीं हुई इसलिए मंडल कमीशन ने इसी के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार की थी.ओबीसी नेताओं अनुमान है उनको आबादी के मुताबिक कम आरक्षण मिल रहा है. ऐसे में निश्चित है कि अगर ओबीसी जातियों की जनसंख्या 1931 की जनगणना के मुकाबले अधिक निकलती है तो मंडल समर्थकों की ओर से 27 प्रतिशत कोटा को बढ़ाए जाने की मांग की जाएगी. जिससे देश में एक बार फिर से आरक्षण के नाम पर माहौल तनावपूर्ण होगा.कोई भी सरकार नहीं चाहेगी कि जिस तरह की घटनाएं मंडल कमीशन को लागू करने के बाद हुईं थीं वैसी घटनाएं फिर दुबारा हो. यही कारण है कि यूपीए गवर्नमेंट हो या एनडीए सरकार कोई भी जातिगत जनगणना की बातें तो करती है पर वास्तव में इससे दूरी बना लेती है।
सबसे पहले सितंबर 2009 में कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र भेजकर OBC जनगणना की मांग उठाई थी. UPA सरकार ने BPL सर्वे में OBC गणना को शामिल किया पर जातिगत जनगणना कराने की जहमत नहीं उठाई.भाजपा ने भी कभी जातिगत जनगणना का खुल कर विरोध नहीं किया. बिहार में तो जातिगत जनगणना की मांग करने वाली सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल रही है.राजनाथ सिंह ने भी एक बार जातिगत जनगणना कराने का वादा किया था.पर बीजेपी सरकार ने जातिगत जनगणना के बजाय OBC जातियों के सब-कैटेगराइजेशन की दिशा में कदम उठाया।
भाजपा के लिए उल्टा भी पड़ सकता है दांव
सत्तारूढ़ दल की निगाहें अपने अतिपिछड़ों वोटों को सहेजने की हैं. समझा जा रहा है कि रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट के माध्यम से OBC के बीच अति पिछड़ों और ‘मजबूत पिछड़ों’ का अंतर दिखाकर राजनीतिक लाभ लिया जा सकता है.
ऐसा माना जाता रहा है कि उत्तर भारत में ओबीसी आरक्षण का लाभ यादव, कुर्मी, मौर्य, जाट, गुर्जर, लोध, माली जैसी जातियों को ही मिला है.पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि भाजपा के साथ दिक्कत यह है कि ओबीसी की सभी दबंग और संपन्न जातियां भाजपा की कोर वोटर बन चुकी हैं. यूपी और बिहार में यादव भाजपा के साथ नहीं हैं पर दूसरे राज्यों में यादव भी भाजपा को वोट दे रहे हैं. रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट में अगर अतिपिछड़ों को फायदा पहुंचाने में इन संपन्न जातियों को नुकसान होता है तो भाजपा के लिए मुश्किल हो जाएगी.
कहा जा रहा है कि रोहिणी आयोग में ओबीसी लिस्ट में उन ओबीसी जातियों को भी शामिल करने की सिफारिश की गई है, जिन्हें राज्यों में ओबीसी का दर्जा था पर वे केंद्र की लिस्ट में शामिल नहीं थीं.अति पिछड़ों के नेता ओम प्रकाश राजभर से लेकर संजय निषाद तक ओबीसी आरक्षण को वर्गीकृत करने के मुद्दे को लेकर आंदोलन तक कर चुके हैं. राजनाथ सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अतिपिछड़ों को बांटने की कोशिश की पर बाद में कोर्ट में रोक लगा दी.जून 2001 में राजनाथ सिंह द्वारा गठित सामाजिक न्याय समिति ने सिफारिश की कि 27 प्रतिशत कोटा में, यादवों का हिस्सा 5 प्रतिशत और नौ प्रतिशत में आठ जातियों को हिस्सा दिया जाए. बाकी 70 अन्य जातियों को दिया जाए. 2002 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा 403 में से 88 सीटों पर सिमट गई, जो 1996 में उसकी लगभग आधी थी. चुनावों में भाजपा को मिली बुरी हार के चलते भाजपा रोहिणी आयोग की रपट?की फिर हिम्मत नहीं हुई कि वो दुबारा इस संबंध में कोशिश नहीं की.