नौसैनिक बचाव को भारत के पास क्या क्या हैं विकल्प?
1 रुपया देकर कुलभूषण जाधव की रुकवाई थी फाँसी, जानिए कतर में पूर्व नौसैनिकों को मिली मौत की सजा में भारत के पास क्या हैं कानूनी विकल्प
भारतीय नौसेना
भारतीय नौसैनिकोें की सांकेतिक तस्वीर (साभार: द स्टेट्समैन)
इस्लामी मुल्क कतर (Qatar) की एक अदालत ने जासूसी के झूठे आरोप में भारत के 8 पूर्व नौसेना अधिकारियों को मौत की सजा सुना दी है। कतर ने भारत से स्पष्ट नहीं बताया है कि इन लोगों पर क्या आरोप हैं। वहीं, कतर की इस हरकत पर भारत के विदेश मंत्रालय ने हैरानी जताई है और इस फैसले को चुनौैती देने की बात कही है।
अब सवाल है कि एक देश की अदालत द्वारा दिए गए फैसले को कोई दूसरा देश कैसे चुनौती दे सकता है। इसको लेकर भारत सरकार के पास क्या विकल्प हैं। इसका एक उदाहरण पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव का है। जाधव को पाकिस्तान ने ईरान से अपहरण कर लिया था और उन पर जासूसी का आरोप लगाकर जेल में बंद कर रखा है।
कुलभूषण जाधव को भी पाकिस्तान की अदालत ने फाँसी की सजा दी थी, लेकिन भारत इस मामले को लेकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पहुँच गया था। इसके बाद पाकिस्तान को फाँसी की सजा टालनी पड़ी थी। हालाँकि, कुलभूषण जाधव को अभी भी पाकिस्तान ने रिहा नहीं किया और वे पाकिस्तानी जेल में बंद हैं। उन्हें प्रताड़ना से गुजरना पड़ रहा है।
इस मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जाने का विकल्प भारत के मौजूद है। दूसरी तरफ, सजा पाए इन 8 अधिकारियों के परिजनों ने कतर के अमीर के पास दया याचिका लगा रखी है। कतर के अमीर चाहें तो अदालत द्वारा दी गई सजा को माफ कर सकते हैं। वे अक्सर रमजान और ईद पर माफी की घोषणा करते हैं।
हालाँकि, भारत सरकार कतर के लगातार संपर्क में है। कतर ने भारत के इन पूर्व अधिकारियों को पहले सिंगल सेल में अकेले में रखा था। भारत के कहने पर कतर ने अभी एक महीना पहले ही उन्हें एकांतवास से बाहर निकाला है। इसके साथ ही इन्हें काउंसर पहुँच भी दी गई है।
इंडिया टुडे को एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने बताया कि सरकार के पास एक तरीका यह है कि वह कतर की ऊपरी अदालत में फाँसी की सजा के खिलाफ अपील करे। अगर अपील नहीं सुनी जाती है तो भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय अदालत का रुख कर सकती है।
एडवोकेट ग्रोवर ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय कानून और इंटरनेशनल कॉन्वेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स (ICCPR) के प्रावधान कहते हैं कि कुछ मामलों को छोड़कर फाँसी की सजा नहीं दी जा सकती है। फाँसी रूक सकती है, लेकिन उन्हें छोड़ने का निर्णय कतर पर होगा।
इसके अलावा, कतर पर राजकीय अथवा अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाकर नागरिकों को मौत की सजा से बचाया जा सकता है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र की मदद का भी एक विकल्प है। कुलभूषण जाधव के मामले में एडवोकेट हरीश साल्वे ने सिर्फ एक रुपए की फीस लेकर अंतरराष्ट्रीय अदालत में लड़ाई लड़ी थी।
इस मसले को कूटनीतिक तरीके से भी सुलझाया जा सकता है। इसके लिए भारत सरकार कतर या उसके मित्र देशों से बातचीत करे। साल 2017 में भारत ने कतर की मदद की थी। बहरीन, मिस्र, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर कतर से राजनयिक संबंध खत्म कर लिए थे।
इसके कारण कतर को गंभीर संकट से गुजरना पड़ा था। आयात-निर्यात के लिए उसे सुदूर बंदरगाहों का इस्तेमाल करना पड़ा था। वहाँ गंभीर खाद्य संकट खड़ा हो गया था। उस समय भारत सरकार ने भारत-कतर एक्सप्रेस सेवा नामक समुद्री आपूर्ति लाइन के जरिए कतर की मदद की थी। कतर खाने-पीने के सामानों के लिए भारत पर निर्भर है। इतना ही नहीं, भारत यहाँ से सबसे अधिक LNG आयात करता है।
दरअसल, मई 2022 में पैगंबर मुहम्मद पर नुपूर शर्मा के बयान के बाद कतर पहला मुस्लिम देश था, जिसने प्रतिक्रिया जाहिर की थी। उसने भारतीय राजनयिक को तलब कर लिया था। इसको लेकर दोनों देशों के बीच रिश्तों में थोड़ी तल्खी आ गई थी। इसके तीन महीने बाद बिना किसी सूचना के कतर के अधिकारियों ने इन सभी भारतीयों को गिरफ्तार कर लिया था।
इनकी गिरफ्तारी को लेकर कतर के अधिकारियों ने औपचारिक तौर पर भारत को किसी तरह जानकारी नहीं दी। ये आज तक भारत को नहीं बताया गया है कि इन लोगों पर किस तरह के आरोप लगाए गए हैं। हालाँकि, मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इन अधिकारियों पर इजरायल के साथ जासूसी करने का आरोप है।
भारतीय अधिकारियों पर आरोप
दरअसल, भारतीय नौैसेना के पूर्व अधिकारी कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और नाविक रागेश कतर की एक निजी फर्म दाहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए काम करते थे।
डिफेंस सर्विस प्रोवाइडर ऑर्गनाइजेशन दाहरा का स्वामित्व रॉयल ओमानी एयरफोर्स के एक रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर खामिस अल-अजमी के पास है। यह प्राइवेट फर्म कतर के सशस्त्र बलों को प्रशिक्षण और संबंधित सेवाएँ उपलब्ध कराती थी। अजमी को भी भारतीयों के साथ 30 अगस्त 2022 को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्हें फीफा वर्ल्ड कप के पहले नवंबर 2022 में रिहा कर दिया गया।
जानकारी के मुताबिक इन भारतीयों को इजरायल के लिए एक सबमरीन प्रोग्राम की जासूसी करने का दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, कतर ने साल 2020 में इटली में बनी हाईटेक सबमरीन खरीदने के लिए एक समझौता किया था। ट्राइस्टे स्थित जहाज बनाने वाली कंपनी ‘फिनकेंटियरी एसपीए’ के साथ यह समझौता हुआ था।
कतर ने समझौते के तहत चार कॉर्वेट (जहाज़ का एक प्रकार) और एक हेलीकॉप्टर का ऑर्डर भी दिया था। इस प्रोजेक्ट के तहत कंपनी को कतर में नौसेना का एक बेस बनाना था। इसके साथ ही नौसैनिक बेड़े की देखरेख भी करनी थी। इसके लिए कतर ने जिस दाहरा कंपनी को यह काम दिया, उसमें ये सभी भारतीय काम कर रहे थे।
कतर के अधिकारियों का आरोप है कि ये 8 भारतीय अधिकारी इस प्रोग्राम की गोपनीय जानकारी इज़रायल से साझा कर रहे थे। कतर की इंटेलिजेंस एजेंसी ‘कतर स्टेट सिक्योरिटी’ ने दावा किया था कि उसने भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों के उस सिस्टम को इंटरसेप्ट कर लिया था, जिससे वो कथित रूप से जासूसी कर रहे थे। हालाँकि, कतर ने भारत के साथ कोई भी सबूत साझा नहीं किया है।
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