टेलीग्राफ को उसी के कार्यक्रम में नंगा कर आये प्रो. आनंद रंगनाथन

मंच टेलीग्राफ का,महफिल लूट ले गए आनंद रंगनाथन: ‘दीदी मीडिया’ की खोली पोल तो श्रोताओं की तालियां,आयोजक कराने लगे चुप
जेएनयू प्रोफेसर व वैज्ञानिक आनंद रंगनाथन ने ‘द टेलीग्राफ’ के प्रोग्राम में ‘द टेलीग्राफ’ को बहुत लताड़ा। उन्होंने कलकत्ता क्लब के मंच से बोलते हुए द टेलीग्राफ को ‘दीदी मीडिया’ कह डाला और ये तक बताया कि बंगाल में अनगिनत हिंसा की घटनाएँ हुईं हैं लेकिन टेलीग्राफ ने हमेशा उनके लिए अपनी आँखों को मूंदे रखा।

कार्यक्रम के दौरान आनंद रंगनाथन ने जो मीडिया संस्थान को 2 मिनट में धोया है उसकी क्लिप अब सोशल मीडिया पर वायरल है। देख सकते हैं कि वो कहते हैं- “मुझे लगता है कि ‘दीदी मीडिया’ की चर्चा के बिना बात अधूरी रह जाएगी।” आनंद के इतना कहते ही वहाँ बैठे लोग तालियाँ बजाने लगते हैं। पैनल में बैठे एक बुद्धिजीवी उन्हें अपना सत्र समाप्त करने को कहते हैं लेकिन आनंद अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं, “मैं सुनिश्चित करता हूँ कि द टेलीग्राफ अब कभी सीडीसी का आयोजन नहीं करेगा।”

इस पर आयोजक फिर कहते हैं, “आनंद, अब सच में आपको रुक जाना चाहिए।” हालाँकि, इस बीच ऑडियंस समझ जाती है कि आनंद अब आगे क्या करने वाले हैं। वह अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं, “वर्षों से जब भी राज्य सरकार को लेकर कोई अप्रिय खबर आती है तो यहाँ का मीडिया ने मौन रहने की कला में महारत हासिल कर ली है या फिर अखबार के 20वें पन्ने पर नीचे कहीं महीन अक्षरों में देकर वह खबर दबा देती है।”

इतना सुनकर आयोजक उन्हें फिर रोकते हैं और आनंद इस बार डायरेक्ट ऑडियंस से पूछते हैं कि क्या आप लोग मुझे 30 सेकेंड और देंगे। इस पर जनता तेज से ‘हाँ’ में जवाब देती है।

आनंद फिर अपनी बात शुरू करते हुए एक-एक करके बंगाल में रिपोर्ट किए गए अत्याचारों को गिनाते हैं। वह कहते हैं, “एक मेधावी प्रोफेसर को थप्पड़ मारा जाता है और गिरफ्तार कर लिया जाता है सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने एक अहिंसक कार्टून शेयर किया था, उन्हें 11 साल बाद जाकर रिहाई मिलती है। एक पत्रकार को आधी रात में उठाकर जेल में डाल दिया जाता है। हत्या,आगजनी और लूट से 20 हजार पंचायत सीटों पर विपक्ष का उम्मीदवार खड़ा होने से रोका जाता है। तृणमूल कार्यकर्ता कैमरे के सामने बैलट बॉक्स से छेड़छाड़ करते हैं। हाई कोर्ट कहता है कि चुनाव बाद हुई हिंसा के 60% मामलों में एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई। धमकियों से डरकर जज मुकदमों की सुनवाई से अलग हो जाते हैं। टीएमसी से जुड़े लोग के घर से 40 करोड़ रुपए कैश मिलता हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की तुलना कोविड से होती है। इन सबके बीच द टेलीग्राफ सहर्ष बहस का आयोजन इस मकसद से करता है कि पत्रकारों को इन सब मुद्दों पर चुप ही रहना चाहिए ना कि मुखर होना चाहिए।”

रंगनाथन ने कहा,“आप कहते हैं कि आप सत्ता के लिए सच बोलते हैं,सत्ता के लिए सच बोलते हैं,लेकिन ऐसा लगता है कि आपके लिए केवल मोदी ही सत्ता में हैं,दीदी नहीं हैं।”

रंगनाथन ने इस वीडियो अपने अकॉउंट से शेयर किया है। उनके इस ट्वीट पर यूजर्स कहते हैं कि ये सब कहने के लिए वाकई बहुत ज्यादा हिम्मत चाहिए। टेलीग्राफ की बेइज्जती टेलीग्राफ के आगे करने पर भी कई लोग आनंद रंगनाथन को सराह रहे हैं। लोग ये देखकर भी हैरान हैं कि ये कार्यक्रम जो कि आयोजित कोलकाता में हुआ, उसमें भी ऐसे लोग थे जो आनंद रंगनाथन की इन बातों को सुनने के लिए उत्सुक थे।

 

What Did Anand Ranganathan Say At A Debate Event In Kolkata That Became Very Famous On Social Media
कोलकाता में दहाड़ने लगे आनंद रंगनाथन तो सोशल मीडिया पर जमकर हुई वाहवाही, जानिए क्या कहा

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के प्रोफेसर आनंद रंगनाथन की बेबाकी की लोग जमकर तारीफ कर रहे हैं। उनका 1 मिनट 58 सेकंड का वीडियो क्लिप को सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया जा रहा है। दरअसल, आनंद रंगनाथन ने ‘गोदी मीडिया’ की रेटरिक के जवाब में कई उदाहरणों से साबित करने की कोशिश की कि कैसे आयोजक अखबार समेत कई मीडिया संस्थान ‘दीदी मीडिया’ की भूमिका निभा रहे हैं। जब वो उदाहरण पर उदाहरण दे रहे होते हैं तो श्रोताओं की भीड़ से उन्हें बार-बार वाहवाही मिलती है।

बेबाकी क्या होती है, आनंद रंगनाथन को सुन लीजिए

आनंद रगंनाथ कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि ‘दीदी मीडिया’ की चर्चा बिना बात अधूरी रह जाएगी।’ आनंद के इतना कहते ही श्रोताओं की भीड़ से तालियों  गूंज उठती है। फिर आनंद रंगनाथन कहते हैं, ‘मैं सुनिश्चित करता हूं कि (आयोजक अखबार का नाम लेकर) अब कभी सीडीसी (कार्यक्रम का नाम) का आयोजन नहीं करेगा।’
आनंद बोलते रहे और तालियां बजती रहीं

श्रोता तालियों की गड़गड़ाहट से आनंद रंगनाथन का समर्थन करते हैं।

ध्यान रहे कि आनंद रंगनाथन अक्सर टीवी चैनलों पर दिखते हैं। वो कहते हैं कि भारत में हिंदू आठवें दर्जे का नागरिक बनकर रह गया है। वो बताते हैं कि कैसे भारत में हिंदुओं पर आधिकारिक अत्याचार हो रहा है। वो हिंदुओं के खिलाफ सरकार की नीतियों की बिल्कुल बेबाकी से आलोचना करते हैं। आनंद रंगनाथन खुद को नास्तिक बताते हैं, साथ ही यह भी कहते हैं कि उनके नास्तिक होने का ये कतई मतलब नहीं है कि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर वो नहीं बोलें। उनकी किताब ‘हिंदूज इन हिंदू राष्ट्र’ काफी चर्चित है।

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