राहुल की कलावती: बाद में क्या होता है गरीबी पर्यटन के पात्रों का?
छह साल बाद कहां तक पहुंची राहुल गांधी की कलावती?
संजीव चंदन Tue, 02 Sep 2014
कलावती बांदुरकर अब भूमिहीन मजदूर नहीं रहीं, उसके पास भी अब ठेके पर ली गई छह एकड़ खेती है।
अपने खेत में काम करती हुई अब वह मजदूरों की कमी की समस्या से जूझ रही है। वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं मिलना चाहती हैं।
वह स्पष्ट करती है, “पहले नरेंद्र मोदी खेती-बाडी के लिए कुछ ठोस करें तो मैं उनसे मिलना पसंद करूंगी। उन्होंने बड़े-बड़े वायदे किए हैं। उन्हें पूरा करें।” कलावती राहुल गांधी की चुनाव में पराजय को उनकी अलोकप्रियता से अलग करके देखती है।
वह मोदी से मिलने की किसी इच्छा से इनकार करते हुए राहुल गांधी की प्रशंसा करती हैं, “उन्होंने गरीबों के लिए बहुत किया है। उनकी सरकार ने किसानों की कर्जमाफी से कई औरतों को विधवा होने से बचाया है।”
राहुल और कांग्रेस की हार पर अफ़सोस जाहिर करते हुए कहती हैं, “पहले बीपीएल कार्ड पर 20 किलो राशन मिलता था, अब मोदी के राज में 12-13 किलो मिलता है।”
मोदी का मजाक
2013 में नरेंद्र मोदी ने फिक्की के एक आयोजन में कलावती का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि गुजरात में जस्सू बेन जैसी आदिवासी स्त्री हैं, जिनका लिज्जत पापड़ आज ब्रांड है, वह कलावती की तरह नहीं हैं।”
ठेके पर लिए गए अपने कपास के खेत में काम करती हुईं कलावती नरेंद्र मोदी की तरह उनका मजाक तो नहीं उडाती, लेकिन किसानों के लिए किए गए अपने वायदे पूरे करने के लिए उन्हें ललकारती हैं, “राहुल गांधी और उनकी सरकार ने गरीबों के लिए काफी काम किए हैं, योजनाएं चलाई हैं, मोदी भी किसानों के लिए कुछ ठोस करें।”
यह पूछे जाने पर कि वे फिर भी हार गए, वह विश्वास से कहती हैं कि वे दोबारा आएंगे, “मैं यह नहीं कह सकती कि कब, लेकिन वे प्रधानमंत्री जरूर बनेंगे और तब मैं अपने बच्चों की नौकरी के लिए उनसे मिलने जाउंगी, उन्होंने वायदा किया था।”
कौन है कलावती?
किसान की आत्महत्या से ग्रस्त विदर्भ के यवतमाल जिले के जालका गांव के एक किसान की विधवा और आठ बच्चों की मां हैं कलावती। उनके दो बच्चे पहले ही मर गए थे।
कलावाती उस समय सुर्खियों में आईं जब 2008 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी उसके घर पहुंचे और बाद में संसद में किसानों की आत्महत्या से जूझ रहे इलाके में गरीब किसान विधवाओं के लिए प्रतीक के तौर पर कलावती का उल्लेख किया।
इस उल्लेख ने उसे ‘पोस्टर वुमन’ बना दिया। इसके बाद सुलभ इंटरनेशनल ने उसे 36 लाख रुपये देने की घोषणा की और पहली किश्त के तौर पर 6 लाख रुपये का भुगतान भी किया।
बाद में 30 लाख रुपये उनके नाम से बैंक में जमा करवा दिए। उन्हें दूसरी सरकारी सहायता भी महाराष्ट्र सरकार की तरफ से उपलब्ध कराई गई।
अगले छह सालों में कलावती
where is rahul’s kalawati now?
सुर्खियों में आने के बाद और सरकारी-गैरसरकारी सुविधाएं मिलने के बाद भी कलावती का दास्तान अंतहीन दुःख और उससे उबरने के संघर्ष का दास्तान है।
एक ओर तो सुलभ इंटरनेशनल से मिले पैसों के ब्याज से उसके घर का मासिक खर्च पहले की तुलना में ज्यादा आसान हो गया तो दूसरी ओर उनके दामाद के बाद एक–एक कर दो बेटियां की मौत हो गई।
विधवा बेटी के बच्चे और अपने बच्चों की परवरिश भी उनके जिम्मे हैं। वह कहती है, “अभी एक बेटी की शादी में तीन लाख रुपये खर्च हुए, जिसमें से डेढ़ लाख रुपये लड़के वालों ने लिए। और अब लड़का मेरी बेटी को मारने–पीटने लगा तो वह मेरे घर वापस आ गई है।”
इस बीच उनका घर झोपडी से ईटों के छोटे से घर में बदल गया। ठेके पर छह एकड खेत भी ले ली है।
नियमित आमदनी के ये स्रोत हालांकि उनके बच्चों की परवरिश को सुविधाजनक बनाते हैं लेकिन 10वीं और 12वीं में पढ़ रहे अपने बेटों के खर्चों को चलाने में खुद को असमर्थ बताते हुए वह कांग्रेस के नेताओं की वादाखिलाफी को कोसने लगती हैं।
“कांग्रेस के अध्यक्ष माणिक राव ठाकरे ने कहा था कि वे बच्चों को गोद ले लेंगे यानी दो बच्चों की पढ़ाई का खर्चा देंगे। नेताओं के कहने से मेरे घर पर बिजली का मीटर लग गया और ठाकरे ने कहा था कि 20 साल तक बिजली का कोइ बिल नहीं आएगा लेकिन बिजली का बिल भी मैं दे रही हूं और बच्चों की पढाई भी जैसे–तैसे करवा रही हूं।”
संपर्क करने पर माणिकराव ठाकरे इस सिलसिले में कुछ भी नहीं कह सके।
राजनीति की डगर और कलावती की राह
2009 में कलावती के चुनाव लड़ने की घोषणा ने कांग्रेस के खेमे में हडकंप पैदा कर दिया था।
कलावती कहती हैं, “वह सब एक धोखा था, मुझे विदर्भ जनांदोलन समिति के नेता किशोर तिवारी के घर पर किसानों और किसान विधवाओं की हालात पर सवाल किए गए थे, जिसपर मैंने कहा था कि उनकी स्थिति बुरी है, किसी एक कलावती की मदद से सभी किसान–महिलाओं की समस्या का समाधान नहीं हो जाता। इसके बाद मुझ से चुनाव संबंधी बात धोखे से कहवा ली गई थी।”
तिवारी कहते हैं कि उनके साथ किए गए वायदे जब पूरे नहीं हो रहे थे तो उन्हें न्याय दिलाने के लिए चुनाव में खड़े होने की घोषणा की गई थी। कलावती के अनुसार वह उन दिनों काफी परेशान रहीं।
2011 में कलावती को भाजपा के लोगों ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी के मंच पर लाने की कोशिश की थी। उसी समय 24 साल की अपनी बेटी की मौत से दुखी कलावती इससे बचने के लिए घर से गायब हो गई थीं।
गरीबों से किए वादे तोड़ने के गुनहगार हैं राहुल गांधी
प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब पाले राहुल गांधी देशवासियों से वादा कर रहे हैं कि वे उनके सपने पूरे करेंगे। हालांकि दूसरा पहलू ये है कि कांग्रेस अध्यक्ष एक बच्चे से किया वादा भी पूरा नहीं कर पाए। कुछ साल पहले जिस नाबालिग बच्चे को अखबार बेचते हुए देखकर पढ़ाने का वादा किया था, आज वह ठेला लगाकर परिवार को पाल रहा है।
दरअसल, 2013 में जब राहुल गांधी भोपाल आए थे तब उन्होंने अखबार बेचने वाले नाबालिग कौशल शाक्य को पढ़ने के लिये मदद करने का वादा किया था। उन्होंने कौशल की पढ़ाई का खर्च उठाने की घोषणा की थी और हर महीने एक हजार रुपये देने का वादा किया। राहुल के आदेश पर मध्य प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने कौशल का एडमिशन राजीव गांधी हायर सेकंडरी स्कूल में करा दिया। एक साल तक कौशल को राहुल गांधी से एक हजार रुपये मिलते रहे, लेकिन बाद में यह मदद बंद हो गई।
जब यह खबर मंत्री स्मृति ईरानी को लगी तो उन्होंने कौशल का एडमिशन केंद्रीय विद्यालय में करवाने की बात कही। लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस ने राजनीति की और कौशल की पढ़ाई का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया।
महाराष्ट्र की कलावती के पति ने 2005 में आत्महत्या कर ली थी। 2008 में राहुल गांधी ने इस मामले को अपनी छवि चमकाने के लिए खूब भुनाया। बाद में राहुल गांधी उन्हें भूल गए।
वर्ष 2008 में राहुल गांधी बुंदेलखंड गए थे, वे दलित के घर सोए और वहां खाना भी खाया। केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो वहां के हालात बदलने का वादा किया, लेकिन अब तक नहीं बदला।
ड्रामा करने में भी माहिर हैं राहुल गांधी
कर्नाटक में राहुल गांधी जब दिखावे के लिए एक कार्यकर्ता के घर पर खाना खाने पहुंचे थे तो उनके साथ उनकी पार्टी के कई और वरिष्ठ नेता मौजूद थे। राहुल के खाने के लिए यहां अलग रंग ढंग वाली थाली का इंतजाम किया गया था आप इस बात का अंदाजा इस तस्वीर को देखकर लगा सकते हैं।
गरीबों का मसीहा बनने वाले राहुल गांधी जब गरीबों के बीच पहुंचे तो उन्हें पता भी नहीं होगा तस्वीरें उनका सच बयां कर देंगी। राहुल के साथ एक महिला मनरेगा के तहत मिट्टी ले जाती नजर आ रही हैं। यहां भी महिला को लोहे की तो राहुल बाबा को प्लास्टिक का बकेट दिया गया ताकि उन्हें ज्यादा भारी ना लगे।