I.N.D.I.A. को जिस सनातन से असुविधा है,वो आखिर है क्या?
सनातन मतलब क्या? जानें- विवेकानंद-शंकराचार्य से गांधी-सावरकर और सुप्रीम कोर्ट तक किसने क्या कहा था
उदयनिधि स्टालिन के सनातन को लेकर दिए गए बयान के बाद हंगामा मच गया है. भाजपा सहित हिंदू संगठनों ने इस बयान की निंदा की है और साथ ही कांग्रेस को भी घेरा है. इस नई बहस के बीच सनातन को लेकर भी बहस छिड़ गई है कि आखिर सनातन का मतलब क्या है, इसे लेकर समय-समय पर किसने क्या कहा है?
नई दिल्ली,04 सितंबर 2023। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि के एक बयान ने फिर से सनातन पर नई बहस छेड़ दी है. देश में 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जो वातावरण तैयार हो रहा है, उनके बयान ने इसमें भूचाल ला दिया है और अब धीरे-धीरे दो पक्ष आमने-सामने आते दिख रहे हैं. भाजपा सहित हिंदू संगठनों ने इस बयान की निंदा की है और साथ ही कांग्रेस को भी घेरा है, जो कि नए बने INDIA इंडिया गठबंधन में स्टालिन की पार्टी DMK के साथ सहयोगी है.
लिहाजा, सवाल कांग्रेस और INDIA गठबंधन पर भी है कि क्या वह सनातन विरोधी हैं, और क्या सनातन व सनातनी उनके लिए डेंगू-मलेरिया जैसे हैं (जैसा कि उदयनिधि ने कहा) या क्या उनके राजनीतिक विचारों में सनातन वाकई कोई गई-गुजरी पद्धति है, जिसका अब वर्तमान में कोई अर्थ नहीं.
सवाल कई हैं और तमाम राजनीतिक चर्चाओं-बयानों को छोड़ें तो एक सवाल जो सबसे बोल्ड और कैपिटल में उभर कर आता है, वह यह है कि सनातन की असल परिभाषा क्या है? इसे लेकर किसने किस तरह के विचार रखे हैं और प्राचीन से लेकर अर्वाचीन तक में इसके क्या अर्थ हैं? इस सवाल को ठीक तरीके से समझने की कोशिश करेंगे, इससे पहले देखते हैं कि उदय निधि ने असल में क्या कहा है?
उदयनिधि स्टालिन ने क्या कहा था?
दरअसल, उदयनिधि ने अपने बयान में सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया से की है. उन्होंने कहा है कि सनातन का सिर्फ विरोध नहीं किया जाना चाहिए. बल्कि, इसे समाप्त ही कर देना चाहिए. उदयनिधि ने शनिवार को सनातन उन्मूलन सम्मेलन में दिए बयान में कहा, ‘सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है. कुछ चीजों का विरोध नहीं किया जा सकता, उन्हें खत्म ही कर देना चाहिए. हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते. हमें इसे मिटाना है. इसी तरह हमें सनातन को भी मिटाना है. सनातन नाम संस्कृत का है. यह सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है.’
अपने बयान के ही बीच, उदयनिधि ने सवाल किया कि सनातन क्या है? इसका जवाब खुद देते हुए उन्होंने कहा कि सनातन का अर्थ है कुछ भी बदला नहीं जाना चाहिए और सब कुछ स्थायी है. लेकिन द्रविड़ मॉडल बदलाव की मांग करता है और सभी की समानता की बात करता है.
विश्व हिंदू परिषद ने किया पलटवार
उधर, दूसरी ओर विश्व हिंदू परिषद ने रविवार को द्रमुक नेता उदयनिधि स्टालिन पर ‘सनातन धर्म’ के खिलाफ उनकी टिप्पणी को लेकर हमला बोला. वीएचपी ने कहा कि उन्हें ऐसे बयानों से बचना चाहिए और नहीं तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने तमिलनाडु सरकार से यह स्पष्ट करने के लिए भी कहा कि क्या वह उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों से सहमत है? उन्होंने कहा कि यदि ऐसा है, तो केंद्र से दक्षिण के लोगों के अपने धर्म का पालन करने के अधिकार की “रक्षा” करने का अनुरोध किया जाएगा.
उनकी टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कुमार ने कहा, “मैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे और राज्य मंत्री उदयनिधि स्टालिन के बयान की भाषा और भावना दोनों से आश्चर्यचकित हूं. उन्होंने कहा, “याद रखें कि जो ‘सनातन धर्म’ को नष्ट करने की बात करता है वह स्वयं नष्ट हो जाता है.”
विहिप नेता ने कहा कि ‘सनातन धर्म’ को “मुसलमानों, मिशनरियों और अंग्रेजों” से चुनौतियों का सामना करना पड़ा, फिर भी उसने जीत हासिल की. “कुछ राजनेता उस ‘सनातन धर्म’ को नष्ट करने का दिवास्वप्न देख रहे हैं, जिसे मुगलों, मिशनरियों और अंग्रेजों द्वारा भी नष्ट नहीं किया जा सका. ‘
- संघ ने भी की उदयनिधि पर टिप्पणी
वहीं, स्टालिन की टिप्पणी पर पलटवार करते हुए आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने रविवार को कहा कि देश में नफरत फैलाने वाले राजनेताओं पर लगाम लगनी चाहिए.”यह मानवता,वैश्विकता और लोकतंत्र का सूत्र है कि हम एक बहु-धार्मिक देश हैं.अपने धर्म का पालन करें,दूसरे के धर्म का अपमान न करें और उसका सम्मान करें,यह लोकतंत्र विरोधी है.”मानवता विरोधी,ईश्वर विरोधी,शांति और विकास विरोधी और ये राष्ट्रों की समृद्धि विरोधी हैं.पार्टियों और लोगों को ऐसे राजनेताओं को रोकना चाहिए ताकि देश में नफरत न फैले.
अमित शाह ने कहा, ये सनातन का अपमान
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसे तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति बताया और जेपी नड्डा ने भी इस बयान पर सवाल उठाए हैं. भाजपा ने इस बयान को एक तरफ हेट स्पीच करार दिया है तो वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि, दो दिन से INDIA गठबंधन इस देश की संस्कृति और सनातन धर्म का अपमान कर रहे हैं.
अमित शाह ने कहा ‘I.N.D.I.A गठबंधन के दो प्रमुख दल कांग्रेस और डीएमके कह रहे हैं कि सनातन धर्म को समाप्त कर देना चाहिए. तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति करने कि लिए इन लोगों ने ‘सनातन धर्म’ का अपमान किया है. वहीं, जेपी नड्डा ने सवाल उठाया कि, क्या यह सनातन धर्म को खत्म करने की उनकी राजनीतिक रणनीति है?’
पुजारी रंगराजन ने भी की टिप्पणी
चिलकुर बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी रंगराजन ने भी इस मसले पर अपनी टिप्पणी की है. उन्होंने एक मीडिया बातचीत में कहा कि सनातन धर्म ने उनके (उदयनिधि) जैसे लाखों लोगों को देखा है और वह समय की कसौटी पर खरा उतरा है. सनातन ने इस देश में सबसे भयावह आक्रमण देखे हैं, इसने विनाश और विध्वंसक हमलों को देखा है.यहां तक कि इसका पालन करने वालों पर भी अत्याचार हुए. इसके बावजूद यह देश में अभी भी जीवित है.
सनातन या हिंदुत्व क्या है?
ये तो रहीं वे बातें जो अलग-अलग लोगों या दलों ने उदयनिधि के बयान के विरोध में कहीं, अब असल मुद्दे कि सनातन का मतलब क्या है, उसकी ओर बढ़ते हैं. सनातन की बात होती है तो इसके साथ जुड़ते हुए एक और शब्द व्यवहार में आता है, जिसे हिंदुत्व और इसके मानने वालों को हिंदू कहा जाता है. मान्य तौर पर इसे धर्म माना जाता है और Religion वाले कॉलम में Hindu ही लिखा जाता है.
जब सुप्रीम कोर्ट ने की सनातन पर टिप्पणी
साल 1995 में इससे जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, हिंदुत्व मात्र एक धर्म नहीं,यह जीवन शैली है.असल में 1990 में मामला महाराष्ट्र को हिंदू राज्य बनाए जाने जैसे बयान देने पर उछला था और सु्प्रीम कोर्ट पहुंच गया था. इससे पहले, हिंदुत्व को जीवनशैली बताने वाली पहली रिकॉर्डेड टिप्पणी 1994 की है. जब’इस्माइल फारुकी’ मामले में कोर्ट ने फैसले में इसे दर्ज किया गया था.सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सैम पिरोज भरूचा (वह बाद में सीजेआई बने) ने उस मामले में कहा, “आमतौर पर,हिंदुत्व को जीवन जीने का एक तरीका या मन की स्थिति के रूप में समझा जाता है और इसे धार्मिक हिंदू कट्टरवाद के साथ नहीं समझा जा सकता है.”
हेडगेवार और गोलवलकर के विचार
बात महाराष्ट्र की हो रही है तो सनातन और हिंदुत्व के मुद्दे पर बात करने वाला ये उचित राज्य है. यहीं 1925 में नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई और इसके संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार ने सनातन, हिंदुत्व और धर्म की लीक को लकीर बनाते हुए राष्ट्रवाद तक खींचा है. इसी आधार पर संघ अपने विजन में यह जोड़ता आया है कि ‘हिंदू संस्कृति, हिंदुस्तान की धड़कन है. इसलिए ये साफ है कि अगर हिंदुस्तान की सुरक्षा करनी है तो पहले हमें हिंदू संस्कृति को संवारना होगा’. संघ के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर के अनुसार भी सनातन परपंरा ही हिंदू राष्ट्र की वाहक है, ऐसा उनका मानना था और इसी विचार की पुष्टि उनके जीवन पर लिखी गई एक किताब ‘सनातन परंपरा के संवाहक’ भी करती है.
सनातनी विचार पर एक दिखते हैं संघ और गांधी
इसी किताब में सनातन और हिंदुत्व की व्याख्या भी की गई है. सनातन को अपने वैकल्पिक नाम हिंदुत्व के तौर पर जाना जाता है. इसी किताब के एक अध्याय में इसकी परिभाषा देते हुए कहा गया है कि ‘हिंदू एक शाश्वत धर्म है. हिंदू धर्म गंगा के प्रवाह के समान है. वह मूल में शुद्ध है. मार्ग में इस पर मैल चढ़ता है. इसे बावजूद जिस प्रकार गंगा की प्रवृत्ति अंत में पोषक है इसी प्रकार हिदू धर्म भी है. रूढ़ियों में परिवर्तन होगा, लेकिन धर्मसूत्र यथावत् बने रहेंगे. हिंदू धर्मावलंबी की तपश्चर्या पर ही हिंदू धर्म की शुद्धता आधारित है.’ हालांकि यह पंक्ति महात्मा गांधी के उद्गार के तौर पर ली गई है, जिसके जरिए गांधी से गोलवलकर और संघ के विचारों की समानता बताई गई है.
गांधी खुद को क्यों मानते थे सनातनी?
सनातन को लेकर यह विचार सिर्फ संघ या विश्व हिंदू परिषद तक नहीं है. सनातन को कभी नष्ट न होने वाला बताया गया है और इसी आधार पर महात्मा गांधी भी सनातन और हिंदुत्व को लेकर अपने विचार सामने रखे थे. महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ के 1921 के एक अंक में लिखा, “मैं अपने को सनातनी हिंदू इसलिए कहता हूं क्य़ोंकि, मैं वेदों, उपनिषदों, पुराणों और हिंदू धर्मग्रंथों के नाम से प्रचलित सारे साहित्य में विश्वास रखता हूं और इसीलिए अवतारों और पुनर्जन्म में भी.’ इस आधार पर महात्मा गांधी ने भी सनातन के अर्थ हमेशा रहने वाले (शाश्वत परपंरा) के तौर पर लगाए हैं.
सावरकर के विचारों में सनातन
बात गांधी की हो तो सावरकर को नहीं छोड़ा जा सकता है. यूं भी भारतीय संसद के जिस हॉल में जहां महात्मा गांधी की तस्वीर लगी है, उसके ही ठीक सामने सावरकर भी स्थापित हैं. इस तरह दोनों वैचारिक तौर पर विरोधी होते हुए भी एक-दूसरे की ओर देख रहे हैं. हालांकि ये पहली बार नहीं है. गांधी जब महात्मा नहीं बने थे, अपने ‘कुछ बनने के दौर में’ उनका एक वक्त ऐसा भी आया था जब वह सावरकर के साथ ही बैठे थे.
साल था 1909. गांधी तब लंदन में थे और एक शाम सावरकर से मुलाकात करने पहुंचे थे. इस दौरान सावरकर ने उनके सामने सनातन, हिंदू और हिंदुत्व के विषय में जैसे विचार रखे, वही बातें गांधी के जेहन में एक किताब की शक्ल लेने लगे और महात्मा गांधी ने ‘हिंद स्वराज्य’ नाम से पुस्तक लिखी. सावरकर के कई विचारों में यह आया है कि सनातन ही हिंदुत्व की पहचान है. सावरकर ने हिंदू और हिंदुत्व पर अपने विचार रखे थे. उनके मुताबिक हिंदुत्व हर भारतीय का एक समावेशी शब्द है. सावरकर की परिभाषा में हिंदुत्व के तीन अनिवार्य तत्व थे सामान्य राष्ट्र (राष्ट्र), सामान्य नस्ल (जाति), और सामान्य संस्कृति या सभ्यता (संस्कृति). यहां सावरकर सनातन सभ्यता को ही हिंदुओं की सभ्यता और संस्कृति मानते थे.
सनातन कहां से आया?
सनातन शब्द को भले ही हिंदुत्व के तौर पर प्रचलित किया गया है, लेकिन असल में सनातन को प्राचीन भारतीय वैदिक पद्धति के रूप में परिभाषित किया गया है. यह इस रूप में मान्य है कि सनातन का न आदि है और न अंत. इस शब्द के सबसे प्राचीन प्रयोग शंकराचार्य परंपरा के साथ मिलते हैं. इसमें भी केरल के कालड़ी नामके गांव में जब शंकर का जन्म हुआ और उन्हें ही बाद में आदि शंकराचार्य के तौर पर जाना गया. शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की और इसका उद्देश्य बताते हुए कहा कि यह सनातन के आधार पर भारत को एक सूत्र में बांधेगा. बाद में इसी आधार पर सनातन शब्द की अवधारणा सामने आई.
जब सनातन को शिकागो तक ले गए विवेकानंद
आधुनिक रूप में सनातन की व्याख्या स्वामी विवेकानंद के समय-समय पर दिए गए विचारों से निकाली जाती है. शिकागो की धर्म संसद में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था और सनातनी परंपरा को सामने रखा था. उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि ‘मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी.’
सनातन और शाश्वत है निश्चलानंद सरस्वती
जगतगुरु पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चिलानंद सरस्वती ने भी सनातन की व्याख्या करते हुए कहा है कि ‘सनातन सिद्धांत दार्शनिक, वैज्ञानिक, व्यावहारिक और धरातल स्तर पर सर्वश्रेष्ठ है. इसमें सभी से सामंजस्य साधने की क्षमता है, जो अन्यत्र कहीं नहीं है. यही जीवन की सार्थकता का सिद्धांत है. जो अटल है वही सनातन है.’
किस ओर जाएगी सनातन की बहस?
सनातन परंपरा को अलग-अलग नामों और विचारों से हमेशा जाना गया है और ये विचार देश के निवासियों की मूल जीवनशैली के तौर पर उनके व्यवहार में दिखाए देते रहे हैं. यह सिर्फ धर्म या कोई एक प्रोसेस नहीं है, बल्कि हम जैसे रहते हैं और जिस तरीके से जी रहे हैं यानी सुबह सोकर उठने से लेकर रात में सो जाने तक के क्रिया-कलापों में सनातन की छाप बताई जाती है. फिलहाल उदयनिधि का बयान इस बहस को और किस दिशा में लेकर जाएगा, देखने वाली बात होगी.