राहुल को राहत के पांच अर्थ,पांच फलितार्थ
राहुल गांधी को मानहानि केस में सुप्रीम कोर्ट से राहत के बाद वे 5 संदेश जो 2024 तक जाते है
‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी मामले में राहुल गांधी को मिली 2 साल की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने कांग्रेस नेता की अपील पर फैसला होने तक उनकी दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगाई है। इससे अब उनकी संसद सदस्यता जीवित होने का रास्ता भी साफ हो गया है जो सूरत की अदालत के फैसले के बाद चली गई थी।
rahul gandhi conviction stayed by sc know its impact on 2024 loksabha chunav in 5 points
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जैसे ही आपराधिक मानहानि केस में राहुल गांधी को मिली 2 साल की सजा और दोषसिद्धि पर रोक का फैसला सुनाया, कांग्रेस में खुशी की लहर दौड़ गई। अधीर रंजन चौधरी समेत तमाम कांग्रेस सांसद तो संसद परिसर में ही पूरे जोश में ‘वी फॉर विक्ट्री’ का नारा लगाने लगे। ट्विटर पर कांग्रेस ‘सत्य की जीत’ का जश्न मनाने लगी। कांग्रेस मुख्यालय के बाहर कार्यकर्ता खुशी से नाचने लगे, झूमने लगे। ये स्वाभाविक भी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राहुल गांधी के नाम के साथ वायनाड के पूर्व सांसद का ठप्पा भी हट गया है। उनकी न सिर्फ संसद सदस्यता पुनर्जीवित हो रही है बल्कि उनके 2024 का चुनाव लड़ने पर छाए संशय के बादल भी छंट गए हैं। फैसले के बाद उन्होंने कहा कि आज नहीं तो कल, सच की जीत तो होनी ही थी। कांग्रेस उत्साह में है। जोश हाई है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 2024 की दृष्टि से क्या-क्या बदलेगा? क्या हैं वे 5 बड़े संदेश जो 2024 तक जाते हैं? आइए समझते हैं।
भाजपा के लिए बढ़ेगी चुनौती या और आसान होगी राह?
राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल होने और 2024 में उनके चुनाव लड़ने का रास्ता साफ होने से सत्ताधारी एनडीए खासकर भाजपा की चुनौती बढ़ने वाली है। संसद में अब राहुल गांधी की पहले से भी कड़े तेवरों के साथ वापसी हो रही है। मौजूदा दौर में राहुल गांधी निःसंदेह विपक्ष के सबसे असरदार नेता और नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार के खिलाफ सबसे मुखर आवाज हैं। सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक वह मोदी सरकार को घेरते आए हैं। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद उनकी परिपक्व और जुझारू नेता की छवि उभरी है। इससे कहा जा सकता है कि भाजपा की चुनौती बढ़ेगी। हालांकि, इसका दूसरा पहलू भी है। अब भाजपा 2024 के चुनाव को ‘मोदी बनाम राहुल’ की सीधी लड़ाई बनाने में कामयाब भी हो सकती है। ‘मोदी बनाम राहुल’ की सीधी लड़ाई का इतिहास भाजपा के पक्ष में रहा है। 2014 और उसके बाद एक के बाद एक कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार का ट्रैक रिकॉर्ड राहुल गांधी के खिलाफ जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद तो उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। भाजपा 2024 के चुनाव को भी ‘मोदी बनाम राहुल’ की लड़ाई बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी क्योंकि ये उसे सबसे ज्यादा रास आता है। भाजपा के कई समर्थक तो राहुल गांधी को ‘भाजपा का सबसे बड़ा स्टार प्रचारक’ तक कहा करते हैं। भाजपा समर्थकों को छोड़िए, कांग्रेस के नेतृत्व में बने विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. की महत्वपूर्ण सहयोगी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘टीआरपी’ बता चुकी हैं। टीआरपी टीवी चैनलों की लोकप्रियता मापने का पैमाना है। इसी साल 19 मार्च को ममता बनर्जी ने मुर्शीदाबाद के टीएमसी कार्यकर्ताओं की वर्चुअल बैठक में कहा था कि भाजपा चाहती है कि राहुल गांधी विपक्ष का चेहरा बने रहें क्योंकि वह मोदी के लिए ‘टीआरपी’ हैं।
कांग्रेस के लिए अर्थ
सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे वक्त आया है जब अगले लोकसभा चुनाव में बमुश्किल 8-9 महीने बचे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी को मिली ये बड़ी राहत कांग्रेस का मनोबल बढ़ायेगी। ‘मोदी सरनेम’ पर टिप्पणी से जुड़े मानहानि केस में सूरत कोर्ट से राहुल गांधी को सजा और उसके बाद उनकी संसद सदस्यता रद्द होने पर कांग्रेस की हालत एक ऐसी सेना की हो गई थी जिसका सेनापति ही चाहते हुए भी युद्ध में नहीं था। सेनापति की वापसी से सेना का जोश हाई होना पक्का है। राहुल गांधी ने पिछले 2-3 सालों में कड़ी मेहनत से ‘अनिच्छुक राजनीतिज्ञ’ और ‘अपरिपक्व’ राजनेता की उस छवि को ध्वस्त करने में काफी सीमा तक सफलता प्राप्त की है जो उनके विरोधियों ने गढ़ी है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ उसका सबसे बड़ा प्रमाण है। राहुल सीधे सामान्य जन से मिल रहे हैं। ट्रक ड्राइवर या सब्जी वाला, बाइक मकैनिक या रेहड़ी वाला…वह सीधे सामान्य जन से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस जोश में है। उत्सव मना रही है। उनका सेनापति चुनावी समर से ठीक पहले लौट आया है।
विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के सहयोगी दलों के लिए क्या संदेश
सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी को मिली राहत के बाद विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के कुछ सहयोगी दलों की चुनौती भी बढ़ेगी। राहुल गांधी को चुनावी परिदृश्य से बाहर देख विपक्षी गठबंधन के सहयोगी दलों की प्रधानमंत्री पद की इच्छा हिलोरें मार रही थी। वह कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश में थीं कि राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ पाते हैं तो किसी अन्य दल के नेता को पीएम फेस के तौर पर उतारा जाए। टीएमसी, आम आदमी पार्टी, जेडीयू जैसे I.N.D.I.A. के कई सहयोगी दलों को विपक्ष की तरफ से ‘प्रधानमंत्री पद के चेहरे’ में अपने-अपने नेताओं की छवि दिख रही थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं। अब इन नेताओं की हसरत ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ में बदल सकती है। I.N.D.I.A. की सबसे बड़ी घटक कांग्रेस गठबंधन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से अब तक प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर बहुत संभलकर बोल रही थी, लेकिन अब वह इस पर अपनी दावेदारी को स्वाभाविक बताते हुए आक्रामक हो सकती है। इससे I.N.D.I.A. के भीतर ही रार की स्थिति पैदा हो सकती है।
भाजपा से ज्यादा झटका तो ममता बनर्जी को!
टीएमसी चीफ और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। राहुल गांधी के सीन से गायब होने को टीएमसी अपने लिए मौके के रूप में देख रही थी। तभी तो बेंगलुरु में पिछले महीने 18 जुलाई को I.N.D.I.A. की बैठक के बाद जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि कांग्रेस को सत्ता या प्रधानमंत्री पद में कोई रुचि नहीं है तो टीएमसी ने ममता बनर्जी की दावेदारी पेश करने में तनिक भी देर नहीं लगाई। टीएमसी सांसद शताब्दी राय से जब खरगे के बयान को लेकर पूछा गया तो उन्होंने तपाक से कहा कि तब तो हम चाहेंगे कि विपक्ष की तरफ से ममता बनर्जी प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनें। राय ने कहा कि अगर कांग्रेस प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं है तो वह चाहेंगी कि उनकी नेता राज्य की मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। ममता बनर्जी सार्वजनिक तौर पर राहुल गांधी का उपहास उड़ा चुकी हैं। वह बार-बार संकेत दे चुकी हैं कि उन्हें राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार नहीं है। I.N.D.I.A. गठबंधन बनने से पहले तक वह नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुद को विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करती आई हैं। अब राहुल गांधी की वापसी से उनकी चुनौती जरूर बढ़ गई है।
प्रियंका गांधी वाड्रा का इंतजार!
आपराधिक मानहानि के मामले में सजा से राहुल गांधी की संसद सदस्यता छिनने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस के भीतर केंद्रीय भूमिका की मांग जोर पकड़ रही थी। राहुल चुनाव नहीं लड़ सकते थे इसलिए प्रियंका गांधी वाड्रा के लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो गई थीं। कांग्रेस के भीतर ये मांग भी होने लगी थी कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रियंका को चेहरा बनाया जाए। हालांकि, कांग्रेस अगर ऐसा चाहती तब भी गठबंधन की मजबूरियों की वजह से उसके हाथ बंधे थे। लेकिन राजनैतिक पंडित मानकर चल रहे थे कि अगर 2024 में I.N.D.I.A. गठबंधन के सत्ता में आने के समीकरण उभरते तो राहुल गांधी की अनुपस्थिति में कांग्रेस प्रधानमंत्री पद के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को आगे करती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस को अब किसी ‘प्लान बी’ की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।