जब तक चीन/इस्राइल नहीं बन जाता,ऐसे ही फजीहत झेलेगा भारत
पैगम्बर टिप्पणी विवाद: भारत ने अरब देशों के हाथों फजीहत क्यों बर्दाश्त की?
कहा जाता है कि मोहम्मद साहब पर एक औरत रोज़ कूड़ा फेंका करती थी मगर उन्होंने कभी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। न ही इस हरकत के लिए उनके शिष्यों ने महिला से कोई बदसलूकी की। एक दिन महिला नहीं दिखी तो मोहम्मद साहब ने उसके बार में आसपास के लोगों से पूछा। पता चला कि उसकी तबीयत खराब हो गई है। ये पता लगने के बाद पैगम्बर साहब हाल जानने महिला के घर पहुंचे। कहते हैं- इसके बाद उन्होंने तब तक उस महिला की तीमारदारी की जब तक वो पूरी तरह ठीक नहीं हो गई।
गुरु-शिष्य सम्बन्ध पर बात करते हुए गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा था कि मैं नहीं चाहता कि मुझे देखकर तुम इतने गंभीर हो जाओ। मैं चाहता हूं तुम मेरे साथ दोस्तों की तरह रहो। मेरे सामने मेरा ही मज़ाक बनाओ। मुझे चुटकुले सुनाओ और जो मन में आए बेहिचक पूछो, मैं कभी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगा। मैं नहीं चाहता कि मेरी मौजूदगी के दबाव में तुम हर वक्त मेरे सामने गंभीर चेहरे लेकर बैठे रहो।
अमेरिकी प्रवास के दौरान ओशो से एक अमेरिकी पत्रकार ने पूछा था कि आप क्या चाहते हैं कि आपको किस रूप में याद रखा जाए? जानते हैं ओशो का जवाब क्या था? उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं- मुझे माफ कर दिया जाए और मुझे भुला दिया जाएI’ उन्होंने यह बात अंग्रेजी में कही थी, ‘Should be forgiven and forgotten!’
ऐसे एक नहीं, अनेक उदाहरण मिलेंगे। आप किसी भी धर्म को ले लीजिए। ईश्वर का, सच्चे गुरुओं का यही चरित्र मिलेगा। वे इतने ही दरियादिल, सद्भावनापूर्ण और खुशमिजाज़ मिलेंगे। वो इंसानियत को गंभीरता से लेते मिलेंगे, न कि खुद को। मगर भक्त इसके बिल्कुल विपरीत प्रवृत्ति के होते हैं।
वो गुरु की बात को भूल जाते हैं और गुरु को पकड़कर बैठ जाते हैं। गुरु चांद की तरफ इशारा करता है और वो चांद न देखकर उस तरफ इशारा करने वाली उंगली में अटक जाते हैं। आज के भक्तों का यही मिजाज़ है। फिर चाहे वो किसी इतिहास पुरुष के भक्त हों या किसी सर्वोच्च धार्मिक सत्ता के!
बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैगम्बर मुहम्मद के खिलाफ की गई कथित विवादित टिप्पणी के बाद से पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। एक तरफ ऐसे लोग हैं जो नुपूर शर्मा के बयान में कुछ भी गलत नहीं मानते। दूसरी तरफ, कुछ लोग इस बयान के लिए नूपुर शर्मा की जान तक लेने पर उतार हूं। इस बीच बीजेपी समर्थकों का एक ऐसा वर्ग भी है जो इस बयान के लिए नूपुर शर्मा को निलंबित करने पर पार्टी से काफी नाराज़ हैं। आइए एक-एक कर हम तमाम आपत्तियों को समझने और उनका जवाब देने की कोशिश करते हैं।
क्या नूपुर शर्मा ने सीमा लांघी?
देखिए, पहली बात तो यह स्वीकार करने की है कि हर धर्म में उसकी धार्मिक पुस्तकों में बहुत सी ऐसी बातें लिखी हुई हैं जो मौजूदा परिस्थिति में किसी भी दृष्टिकोण से जायज़ नहीं लगती। ऐसे में किसी भी गैर-धार्मिक इंसान के लिए बड़ा आसान हो जाता है कि वह उन्हीं बातों को बार-बार हवाला देकर संबंधित धर्म के मानने वालों को शर्मिंदा करे।
इस्लाम में पैगम्बर मोहम्मद की शादी की उम्र ये विषय हो सकता है, तो हिंदुओं के लिए धोबी के कहने पर भगवान राम का सीता का त्याग करना और बाइबल में ‘ईश्वरीय प्रभाव’ से मरियम के गर्भवती होने की बात जिसके बाद यीशु का जन्म हुआ।
अब किसी भी बहुधर्मी समाज मे ये बड़ा ज़रूरी होता है कि आप ऐसे नाज़ुक मुद्दों पर बात कर सामने वाले की धार्मिक भावनाओं को आहत न करें। कारण यह है कि किसी भी धार्मिक व्यक्ति के लिए उसका धर्म आस्था का विषय ज़्यादा होता है, विज्ञान का कम। वैसे भी कहा जाता है कि विज्ञान चलकर मानता है और धर्म मानकर चलता है।
इसलिए मेरा मानना है कि चाहे नूपुर शर्मा हों या शिवलिंग का मज़ाक उड़ाने वाले एक से ज़्यादा मुस्लिम स्कॉलर, किसी को भी ऐसा करने से बचना चाहिए था। वैसे भी (जैसा मैंने शुरू में कहा) अपने आराध्य देव के विपरीत भक्त बड़ी नाज़ुक तबीयत के होते हैं। इनकी आस्था बुलबुलों की बनी होती है। इसलिए इन्हें आहत करने से बचना चाहिए। लेकिन, बचाव की ये समझाइश एकतरफा नहीं हो सकती।
जिन नूपुर शर्मा के बयान पर कानपुर से लेकर कतर तक दुनियाभर का मुस्लिम समाज भड़का हुआ है, वह बयान उन्होंने बिना किसी संदर्भ के तो नहीं दे दिया। ऐसा तो नहीं था कि बात यह चल रही थी कि दो गिलास शिकंजी में कितने चम्मच चीनी डालनी चाहिए और अचानक से वो पैगम्बर साहब की शादी की बात करने लगी।
नूपुर शर्मा ने तैश में वो बयान दिया क्योंकि सामने बैठे मुस्लिम स्कॉलर शिवलिंग पर संवेदनहीन टिप्पणी कर रहे थे। इस तरह की टिप्पणियां कई मुस्लिम स्कॉलर ज्ञानवापी मस्जिद में कथित तौर पर शिवलिंग मिलने के दावे के बाद से करते आ रहे थे। पूरा सोशल मीडिया अजीबोगरीब चीज़ों से शिवलिंग की तुलना कर उसका उपहास उड़ाने वाली तस्वीरों से भरा हुआ है।
judge sahab can seal this area when someone claim it as #shivling pic.twitter.com/JpJC49tIlh
— Shadab Chauhan شاداب چوہان (@shadab_chouhan1) May 17, 2022
अब सवाल यह है कि दूसरे की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर आहत करते हुए आप यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि सामने वाला पलटवार नहीं करेगा? किसी भी बहस का यह बुनियादी मनोविज्ञान है कि कोई आपकी फीलिंग हर्ट करता है तो आप भी ऐसी जली-भुनी बातें करते हैं ताकि सामने वाला भी तहस-नहस हो जाए। उस बहस में नुपूर शर्मा ने भी यही किया।
मैं फिर इस बात को अंडरलाइन करता हूं कि उन्होंने जो भी कहा, उन्हें नहीं कहना चाहिए था लेकिन उन्होंने जो कहा, उसका उकसावा उस बहस के दौरान और उससे कई दिन पहले से मिल रहा था।
ऐसा नहीं हो सकता कि आप कहें कि मुझे तो शिवलिंग का मज़ाक उड़ाने की छूट दी जाए, ऐसे मज़ाक उड़ाने वाले Tweets को Retweet करने का हक दिया जाए लेकिन तुम ऐसी कोई बात नहीं करोगे जिससे मेरी भावनाएं हर्ट हों और ऐसा किया, तो मैं तुम्हारा सर तन से जुदा कर दूंगा!
किसी भी सभ्य समाज में आप ‘हिंसा की धमकी’ को बहस जीतने का हथियार नहीं बना सकते। आप आज ऐसा करेंगे तो इससे दूसरा पक्ष भी उग्र हो जाएगा। अपने धर्म और उनकी मान्यताओं के ईद-गिर्द होने वाले हंसी मज़ाक, टीका टिप्पणी को हो सकता है, कल तो वह नज़रअंदाज़ कर देता था, मगर आज के बाद वो ऐसा कतई नहीं करेगा। इससे पूरा समाज और उग्र, हिंसक और Intolerant हो जाएगा।
अरब देशों का दोगलापन
इस पूरे मामले में सबसे कड़ी प्रतिक्रिया अरब देशों की तरफ से आई है। कहा जा रहा है कि उन्हीं की आपत्ति पर भारत सरकार नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के खिलाफ एक्शन लेने को मजबूर हुई और यही बात एक वर्ग को रास नहीं आ रही। उसका कहना है कि जो अरब देश नूपुर शर्मा की टिप्पणी को इस्लाम का अपमान बता रहे हैं, वही चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर कभी चूं तक नहीं करते।
जो कतर आज नुपूर शर्मा के बयान पर सबसे ज़्यादा भड़का हुआ है, उसी कतर ने उइगर मुसलमानों को चीन मे पनाह तक देने से मना कर दिया था। सऊदी अरब ने हज पर आए इन्हीं उइगर मुसलमानों से पूछताछ कर उसकी जानकारी चीन को दी। यूएई ने इन्हीं उइगर मुसलमानों का बॉयोमीट्रिक डेटा चीन को सौंपा और इन सब देशों ने झिंजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के खिलाफ की जा रही चीनी कार्रवाई को सही तक बता दिया ।
इसी कतर ने हिंदू देवी-देवताओं के आपत्तिजनक चित्र बनाने वाले एमएफ हुसैन को अपनी नागरिकता दी। 57 देशों वाले Organisation of the Islamic Conference (OIC) ने कई मौकों पर कश्मीर का मुद्दा तो उठाया लेकिन कश्मीर में इस्लामिक निजाम के नाम पर हो रही कश्मीरी पंडितों की हत्या पर कभी कोई बयान नहीं दिया। पिछले 8-9 महीनों में ही 20 से ज़्यादा कश्मीरी पंडितों और गैर मुसलमानों की हत्या की जा चुकी है, मगर किसी इस्लामी देश ने इसकी निंदा नहीं की।
इन लोगों को नूपुर शर्मा का बयान इस्लाम का अपमान लगता है लेकिन इस्लाम के नाम पर दूसरे धर्मों की हत्या, इस्लाम का अपमान नहीं लगती। एक बयान से अपनी धार्मिक भावनाएं आहत होना तो इनके लिए मुद्दा है लेकिन धर्म के नाम पर एक जीते जागते इंसान को कत्ल कर देना इनके लिए कोई मसला नहीं है। मतलब अपनी तो ‘भावनाएं’ भी कीमती हैं और दूसरे की ‘जान’ के भी कोई मायने नहीं!
दोगलेपन की इससे बड़ी मिसाल और क्या होगी और इसी दोगलेपन पर एक वर्ग बुरी तरह भड़का हुआ है। जिन अरब देशों में न लोकतंत्र है, न धर्मनिरपेक्षता अगर वो धार्मिक सहिष्णुता के मुद्दे पर भारत को ज्ञान दें और भारत सरकार उस ज्ञान के दबाव में आकर कोई कार्रवाई भी कर दे, तो इसे भला कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है? यही आज लाखों-करोड़ों लोगों की कसमसाहट है, खीझ है जिसे चाहकर भी वो बर्दाश्त नहीं कर पा रहे।
शाहरुख की अम्मी और सरकार की ग़मी
रईस में शाहरुख खान का एक डायलॉग है कि अम्मी जान कहती थी कि कोई भी धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। शाहरुख के किरदार की अम्मी की यही बात दुनिया का सबसे बड़ा सार्वभौमिक सत्य है। यह ऐसा सच है जिसके सामने न चाहते हुए भी भारत सरकार को घुटने टेकने पड़े और इसी सच के सामने यूरोप से लेकर अमेरिका, पाकिस्तान से लेकर अरब देश तक सब नतमस्तक होते आए हैं।
पिछले साल भर की घटनाओं पर नज़र डालें तो पता लगता है कि दो देशों के बीच मतभेद कितने भी पुराने क्यों न हों,आपसी नफरत कितनी भी चरम पर क्यों न हो मगर ये नफरत और मतभेद आखिरकार व्यावसायिक हितों के आगे घुटने टेक देते हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस का खुलकर विरोध न करने को लेकर यूरोपीय देश भारत की कितनी आलोचना करते आए हों लेकिन ये भी सच है कि इन्हीं यूरोपीय देशों ने युद्ध के दो महीने बाद भी रूस से अपना गैस आयात कम नहीं किया।
गलवान घाटी में खूनी संघर्ष के बावजूद चीन और भारत के बीच आपसी व्यापार आज तक के ऐतिहासिक स्तर पर है। भारत को मुस्लिम भावनाओं के मुद्दे पर खरी-खोटी सुनाने वाले अरब देश अपने व्यावसायिक हितों के कारण उइगर मुसलमानों के मुद्दे पर चीन के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलते। बोलना तो दूर, कहीं न कहीं वो उइगर मुसलमानों के खिलाफ चीन के अभियान में मददगार ही साबित हुए हैं।
भारत के खिलाफ दुनियाभर में ज़हर उगलने वाले पाकिस्तान की हिम्मत नहीं है कि वो अपने थिएटर ऑनर्स को कह सके कि भारतीय फिल्में न दिखाएं। जब भी भारतीय फिल्मों को न दिखाने के आदेश दिए भी गए तो उसके कुछ ही दिनों में झक मारकर वहां की सरकार को उसे वापस लेना पड़ा क्योंकि पाकिस्तानी फिल्मों का वो स्तर नहीं कि सिर्फ उसे दिखाकर वहां के सिनेमा हॉल चल पाएं।
अभी दो दिन पहले पाकिस्तान के सबसे बड़े व्यापारी मियां माशां ने पाकिस्तानी सरकार को नसीहत दी है कि अगर वो भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते सामान्य कर लें तो पाकिस्तान की आधी दिक्कतें दूर हो सकती हैं।
और जैसा मैंने ऊपर कहा कि ये व्यावसायिक और आर्थिक निर्भरता ही दो देशों के बीच रिश्तों का सबसे बड़ा सार्वभौमिक सत्य है। भारत को भी छोटे-छोटे अरब देशों के आगे अगर झुकना पड़ा है तो उसके पीछे ये निर्भरता ही असल वजह है। इसे ज़रा कुछ आंकड़ों से समझिए-
-पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने मार्च महीने में संसद को बताया था कि भारत को हर दिन 50 लाख बैरल तेल की ज़रूरत है और इस 5 मिलियन बैरल तेल का 60 फीसदी गल्फ देशों से आयात किया जाता है।
-तकरीबन 90 लाख भारतीय अरब देशों में काम करते हैं। जो हर साल 50 अरब डॉलर के आसपास पैसा भारत भेजते हैं।
-यूएई जैसे देश में तो लगभग 35 फीसदी आबादी (34 लाख) भारतीयों की है। ये भारतीय बड़ी तादाद में खाड़ी के देशों में रेस्टोरेंट और रिटेल स्टोर चलाते हैं। ताज़ा विवाद के चलते भारतीय दुकानों, भारतीय सामान के बहिष्कार की मांग उठने लगी थी।
वक्त रहते भारत सरकार इस गुस्से को शांत न करती तो लाखों भारतीय रातोंरात अपने काम-धंधे से हाथ धो सकते थे। उनके लिए रोज़ी-रोटी का संकट पैदा हो सकता था। उनके परिवारों तक पहुंच रही लाखों-करोड़ों की मदद रुक सकती थी।
बेशक बहुत सारे लोग नूपुर शर्मा के मामले में अरब देशों के दबाव के आगे झुकने से सरकार से नाराज़ हैं। मगर सरकार और आम आदमी में फर्क होता है। आम आदमी की तरह सरकार मुद्दों पर सिर्फ भावनात्मक प्रतिक्रिया ही नहीं दे सकती, उसे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति भी देखनी पड़ती है। अपनी आर्थिक ज़रूरतों का ध्यान रखना पड़ता है और उसी आधार पर अपनी प्रतिक्रिया से होने वाले तमाम नफे-नुकसान का आकलन करना पड़ता है।
इज़राइल की ताकत
लोग इज़राइल का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि किस तरह चारों तरफ दुश्मन देशों से घिरा होने के बावजूद इज़राइल किसी से डरता नहीं। बेशक नहीं डरता। लेकिन ये न डरना फिल्म पुष्पा के मशहूर डायलॉ ‘पुष्पा झुकेगा नहीं साला’ वाला मामला नहीं है। असल ज़िंदगी में आपका चरित्र आपकी डायलॉगबाजी से नहीं, आपकी आर्थिक हैसियत से आंका जाता है।
इज़राइल अगर झुकता नहीं है तो इसकी वजह है कि छोटा सा देश होने के बावजूद वो Scientific Innovation का हब है। विश्व व्यापार में उसकी हिस्सेदारी है। इजरायल भले ही खेती कम करता हो पर टेक्नोलॉजी के रूप में इसकी एडवांस फ्री मार्केट इकॉनमी है। इजरायल हीरे, उच्च प्रौद्योगिकी उपकरणों और फार्मास्यूटिकल्स का गढ़ है।
वह दुनिया में सबसे ज़्यादा पैकेज दवाएं बेचता है। रिफाइंड पेट्रोलियम बेचने में वो दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है। इलेक्ट्रॉनिक चिप का ग्लोबल हब है। दुनिया के हीरा कारोबार में उसकी हिस्सेदारी 8 फीसदी है। और एयरक्राफ्ट पार्ट बेचने में इज़राइल दुनिया में बड़ा पार्टनर है।
व्यावसायिक दृष्टि से इजरायल दुनिया में तीसरे स्थान पर है। वहां करीब 4,000 से भी ज्यादा टेक्नोलॉजी कंपनी है, जो पूरी दुनिया में सिलिकॉन वैली के बाद दूसरे स्थान पर है।
मतलब साफ है जब तक विश्व व्यापार में आपकी बड़ी हिस्सेदारी नहीं होगी (उसमें भी एक्सपोर्ट में) तब तक आप बड़ी आर्थिक महाशक्ति नहीं बन सकते। जब तक आप अपनी ज़रूरतों पर दूसरे देशों पर बड़े पैमाने पर निर्भर रहेंगे, तब तक आपकी वैश्विक नीति भी पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हो पाएगी। जब आप वो हैसियत हासिल कर लेते हैं तो आप इज़राइल हो जाते हैं, चीन बन जाते हैं।
भला मानें या बुरा ,चाहे ये आपके किसी नैतिक मापदंड पर खरा उतरे या नहीं, एक बार जब आप वो हैसियत हासिल कर लेते हैं तो दुनिया भी आपकी बांह मरोड़ना बंद कर देती है। आपके आंतरिक मामलों में दखल देने की उसकी हिम्मत नहीं होती।
चीन से बड़ा उदाहरण इसका कोई नहीं। हॉन्गकॉन्ग से लेकर ताइवान और तिब्बत से लेकर झिंजियांग तक चीन की हैसियत ने यही साबित किया है। चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हम चाहकर भी वैसे अराजक नहीं हो सकते, न ही हमारा ऐसा कोई साम्राज्यवादी इतिहास रहा है। लेकिन उसके जैसे मज़बूत होकर, आर्थिक महाशक्ति बनकर, दूसरों को खुद पर निर्भर करवाकर वो रुतबा तो हासिल कर ही सकते हैं जहां नैतिक तौर पर भ्रष्ट देश नैतिकता के मुद्दे पर नसीहत देकर हमारी फजीहत न कर पाएं। जब तक हम वो मुकाम हासिल नहीं कर लेते तब तक ऐसे झटके लगते रहेंगे।
लेखक
नीरज बधवार
टीवी ऐंकरिंग से लेकर 10 सालों तक व्यंग्य कॉलम, नवभारत टाइम्स डॉटकॉम में न्यूज एडिटर