तेज रफ्तार हिमंत बिस्व सरमा आयेंगें केंद्र में?
तेज रफ्तार पर केंद्र का प्यार… पूर्वोत्तर में तो झंडा गाड़ दिया, दिल्ली कब पहुंचेंगे हिमंत बिस्व सरमा?
बीजेपी ने हिमंत बिस्व सरमा की काबिलियत को तो बहुत पहले पहचान लिया था। पार्टी ने उन्हें असम का मुख्यमंत्री बनाया। अब तो पार्टी में उनका कद दिन दूनी, रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ रहा है। सरमा अब बीजेपी का बड़ा चेहरा बन चुके हैं जिन्हें अब राष्ट्रीय फलक पर महत्वपूर्ण भूमिका दिए जाने पर मंथन हो रहा है।
असम से दिल्ली का रुख करने को तैयार हिमंत बिस्व सरमा।
हाइलाइट्स
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का कद बहुत तेजी से बढ़ रहा है
माना जा रहा है कि बीजेपी अब उन्हें असम तक सीमित नहीं रखकर राष्ट्रीय राजनीति में लाना चाहती है
पूरे पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त कराने के एवज में सरमा को संभवतः दिल्ली बुलाने की तैयारी हो रही है
गुवाहाटी 14 मार्च। अगर पूर्वोत्तर भारत के उतार-चढ़ाव भरे इतिहास को गंभीरता से लिखा जाए तो असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा उन चुनिंदा शख्सियतों में गिने जाएंगे जिन्होंने इस क्षेत्र का भाग्य संवारने और इसे दुर्दशा से उबारने में बड़ी भूमिका निभाई। सरमा पूर्वोत्तर के राज्यों में बिस्व के नाम से पुकारे जाते हैं। उन्होंने ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) से अपनी उज्ज्वल राजनीति की शुरुआत की। इस पार्टी ने लंबा आंदोलन चलाया जिसने दो प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के सामने सबसे बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक संकट चुनौती खड़ी हो गई थी। बाद में हिमंत बिस्व सरमा कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और अब वो बीजेपी का बड़ा चेहरा बन चुके हैं।
सरमा एएएसयू, असम गण परिषद और कांग्रेस का अहम चेहरा तो रहे, लेकिन उनकी क्षमता को सबसे ज्यादा अच्छे से बीजेपी ने पहचाना। जुबां से मोह लेने की कला, सांगठनिक क्षमता, कार्यकर्ताओं में जोश भरने की काबिलियत, अड़ियल सहयोगियों को साथ लेकर चलने का कौशल और हाई कमान के निर्देशों के साथ-साथ अपने किए वादों पर खरा उतरने का दुर्लभ गुण हिमंत बिस्व सरमा को करिश्माई नेता बनाते हैं। इन सबसे बढ़कर उनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP), दोनों का मिजाज पढ़ने की अद्भुत शक्ति है। इस कारण वो संघ के एजेंडे और बीजेपी की सोच के मुताबिक सारी रणनीति बनाते हैं और कड़ाई से लागू भी करते हैं।
इतने सारे गुणों के बावजूद सरमा के सामने कुछ चुनौतियां भी हैं। उनके सामने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसी शख्सियत है जो बीजेपी में अगली पीढ़ी की राष्ट्रीय राजनीति का एक बड़ा दावेदार हैं। हालांकि, केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता के बाद आरएसएस और बीजेपी को लगता है कि प्रदेशों में ही देश की नींव जमी हुई है। अगर सरमा अपनी तय रफ्तार से बढ़ते रहे तो कौन जानता है भविष्य में क्या हो जाए? बीजेपी ने पूर्वोत्तर को देश की राजनीति के केंद्र में लाने की भरपूर कोशिश की है। पार्टी इस क्षेत्र में शांति बहाली की लगातार दावे करती रहती है। ऐसे में यह धारणा कि देश का प्रधानमंत्री तो किसी हिंदी प्रदेश का व्यक्ति ही बनेगा, जल्द ही टूट जाए तो हैरत नहीं होगी।
सरमा 2015 जब कांग्रेस में थे, तब भी असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बायां हाथ माने जाते थे। वहीं, प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री रॉकीबुल हुसैन गोगोई के दाएं हाथ कहलाते थे। उसी वर्ष कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरमा को दिल्ली बुलाया था। मीटिंग में जो हुआ, उससे उनमें कांग्रेस पार्टी और खासकर राहुल गांधी के प्रति विरक्ति हो गई। बहरहाल, कांग्रेस में मुख्यमंत्री के बायां हाथ कहे जाने वाले सरमा का बीजेपी में कितना बड़ा कद हो गया है, इसका प्रमाण उनके लिए मीडिया को संबोधनों में ढूंढा जा सकता है। असम का मीडिया सरमा को बीजेपी के मैकियावेली, विराट कोहली, चाणक्य और किंगमेकर जैसे उपनाम देता रहता है।
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। हिमंत बिस्व सरमा वर्ष 2013 तक जालुकबाड़ी विधानसभा से तीन बार चुने जा चुके थे- वर्ष 2001, 2006 और फिर 2011 में। पहली बार उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु और एएएसयू के संस्थापक भृगु फूकन को मात दी थी। कांग्रेस छोड़ भाजपा का रुख करने के बाद भी उन्होंने अपने लिए जालुकबाड़ी ही सुरक्षित रखा और फिर पहले 2016 और फिर 2021 में जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार रोमेन चंद्र बोरठाकुर को एक लाख से भी ज्यादा मतों से हराया।
राहुल गांधी आखिर ऐसे चमकते सितारे को कैसे पहचान नहीं सके? दरअसल, मार्च 2010 में असम से दो कांग्रेस नेता नाजनीन फारूकी और सिल्वियस कोन्डप्पन राज्यसभा पहुंचे। भाजपा ने दोनों को तगड़ी चुनौती दी, लेकिन बहुत कम अंतर से हार गई। उस वक्त तरुण गोगोई में पुत्र मोह की जड़ें गहरा रही थीं। उधर, राहुल गांधी का भी अमेरिका से लौटे गौरव गोगोई के प्रति झुकाव था। अब गौरव गोगोई राहुल की टीम का हिस्सा हैं जबकि सरमा ने 2015 में भाजपा जॉइन करने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भाजपा में जाते ही सरमा ने असम की एक-एक विधानसभा सीट जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने लगे। इतना ही नहीं, पड़ोसी राज्यों मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भी भाजपा सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई। उनके प्रताप से नागालैंड और मेघालय की सरकारों में भाजपा शामिल हुई। त्रिपुरा में तो इतिहास रच गया। वहां दशकों से लेफ्ट की चूलें हिल गईं और लगातार दूसरी बार वहां भाजपा की सरकार बन चुकी है।
पूर्वोत्तर में भाजपा की सफलता की नींव 24 मई, 2016 को रखी गई थी जब नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस यानी नेडा (NEDA) का गठन हुआ। कुछ दिनों पहले ही बीजेपी ने असम में पहली बार अपनी सरकार बनाई थी। सरमा को नेडा का संयोजक बनाया गया। इस कांग्रेस निरपेक्ष गठबंधन में उन पार्टियों को शामिल किया गया जो एनडीए में शामिल हुए बिना केंद्र सरकार और भाजपा के साथ कदमताल करना चाहते हैं। नेडा ने भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान को भी बल दिया। पूर्वोत्तर से कांग्रेस का सफाया हो चुका है। हैरत की बात है कि इस बार त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के हाल के चुनावों में कांग्रेस की करारी हार पर पार्टी ने कहा- वो तो छोटे राज्य हैं, उनका बहुत महत्व नहीं है।
अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने हिमंत बिस्व सरमा को पूर्वोत्तर तक सीमित रखने के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने हिमंत को खुले आकाश में पूरी क्षमता से उड़ान भरने की छूट दे रखी है। यही वजह है कि सरमा को झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और गुजरात तक में अपना जलवा बिखेरने का मौका मिला। जब शिव सेना दोफाड़ हो गई तो सरमा ने एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों के लिए गुवाहाटी में ठहराया। उन्होंने झारखंड में भी सरकार बनाने की संभावना तलाशी।
असम में पहली बार 2016 में ही भाजपा की सरकार बनी थी, लेकिन तब सरमा को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। उनकी जगह मृदुभाषी सर्बानंद सोनावाल सरकार के चेहरा बने। वो भी सरमा की तरह ही एएएसयू और एजीपी में रह चुके थे। सोनोवाल ने केंद्र सरकार के कानून Illegal Migrants (Determination by Tribunal) Act, 1983 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसके कारण उस वक्त उन्हें सरमा पर बढ़त मिल गई थी। लेकिन सोनोवाल सरकार की ज्यादातर कल्याणकारी योजनाओं की रूपरेखा खींचकर सरमा ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर दिया। असम के 22 लाख परिवारों को 830 रुपये के मासिक भुगतान की योजना भी उन्हीं के दिमाग की उपज है।
सरमा के शानदार प्रदर्शन के दम पर ही 2021 में असम विधानसभा चुनाव का वक्त आते-आते तय हो गया था कि इस बार भाजपा सोनोवाल को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। दरअसल, पार्टी ने असम विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री कैंडिडेट की घोषणा ही नहीं की थी। तब सरमा को असम से दिल्ली का आदमी के तौर पर देखा जाता था, लेकिन चुनाव बाद 10 मई, 2021 को वो प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।
यूं तो उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ आरएसएस और वीएचपी (विश्व हिंदू परिषद) की पसंद हैं। लेकिन केंद्र सरकार की नजर में नॉर्थईस्ट के हिमंत विस्व सरमा भाजपा के एजेंडे पर ज्यादा फिट बैठते हैं। कभी तरुण गोगोई के प्रमुख संकटमोचक रहे सरमा के पास भरोसेमंद लोगों की बड़ी जमात है। वो मेहनत की पराकाष्ठा में विश्वास रखते हैं, लोगों को बड़े धैर्य से सुनते हैं और अपने घर के दरवाजे हर किसी के लिए खुला रखते हैं। सरमा ने गाय को माता घोषित करते हुए Assam Cattle Preservation (Amendment) Act पास करवाया और गो-हत्या को अपराध करार दे दिया। साथ ही उन्होंने एनआरसी (National Register of Citizens) के वेरिफिकेशन की मांग की, मदरसों के साथ-साथ मुसलमानों के अवैध कब्जे की जमीनों पर बुलडोजर चलवाए और बाल विवाह के आरोपितों को जेल भेजा।
सरमा का दावा है कि उन्होंने क्षेत्रीयता की भावना उभारने वाले नेता की जगह सर्वसमावेशी छवि अपनाने को कांग्रेस जॉइन की थी। वो अब भी खुद के मुस्लिम विरोधी होने के आरोप को बहुत कड़ाई से खारिज करते हैं। वो कहते हैं कि उनका विरोध सिर्फ कट्टरपंथी मुसलमानों की जमात से है। सरमा का नारा है- जाति, माटी, भेटी यानी अपनी पहचान, अपनी जमीन और अपना घर। क्षेत्रीयता से आरएसएस छाप राष्ट्रीयता में उनका विचार परिवर्तन घुप्प अंधेरे में जानदार रोशनी की तरह दूर से ही झलकती है। सरमा का मानसिक पटल बिल्कुल साफ है। उन्हें पता है, क्या करना है क्या नहीं। यही खासियत हिमंत बिस्व सरमा को भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति का बड़ा दावेदार बनाती है।
Assam Cm Himanta Biswa Sarma Becoming A Strong Contender For Important Role In National Politics