महंगी शिक्षा और चिकित्सा पर डॉ. मोहन भागवत की चिंता किसे संबोधित है?
शिक्षा और इलाज पर मोहन भागवत की चिंता को कैसे समझा जाए?
RSS प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत ने देश की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के व्यवसायीकरण हो जाने पर चिंता जताई है, और कहा है कि ये आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए हैं – सवाल है कि ये संदेश आखिर किसके लिए है?
RSS प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत ने इलाज और शिक्षा को लेकर जो फिक्र जताई है, उसके आगे क्या उम्मीद है?
नई दिल्ली,11 अगस्त 2025,डॉक्टर भागवत ने देश में शिक्षा और इलाज की मौजूदा स्थिति पर चिंता जाहिर की है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख का कहना है कि शिक्षा और इलाज दोनों को ही आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गए हैं.
संघ प्रमुख मोहन भागवत एक कैंसर केयर सेंटर के उद्घाटन के मौके पर कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की जरूरत हर कोई महसूस करता है,लेकिन दोनों ही सामान्य जन की आर्थिक क्षमता से बाहर हैं.मोहन भागवत ने माना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि चिकित्सा और शिक्षा दोनों का देश में व्यवसायीकरण हो गया है.
ये ठीक है कि संघ प्रमुख ने ये बात एक कार्यक्रम में कही है जो कैंसर के इलाज से जुड़े केयर सेंटर के उद्घाटन के मौके पर हुआ है,लेकिन समझने वाली बात है कि संघ की तरफ से ऐसी बातें यूं ही नहीं की जातीं.संघ प्रमुख की तरफ से जो भी कहा जाता है,उसका खास राजनीतिक मतलब होता है-मोहन भागवत ने जो विषय उठाया है,लोग उससे बेहद परेशान हैं लेकिन समस्या का समाधान भी कुछ है क्या?
शिक्षा और इलाज तो सामान्य जन की पहुंच में होने ही चाहिए
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बताया कि हाल ही में उन्होंने एक रिपोर्ट पढ़ी थी,जिसमें बताया गया है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था अब ट्रिलियन-डॉलर का बिजनेस बन चुकी है. और, कहा कि जब कोई क्षेत्र इतना बड़ा कारोबार बन जाता है,तो वो अपने आप सामान्य जन की पहुंच से बाहर हो जाता है.
मोहन भागवत का कहना है कि स्वास्थ्य और शिक्षा आज के समय में दो ऐसे विषय हैं,जो समाज में बहुत ही बड़ी आवश्यकता बन गए हैं… ज्ञान प्राप्त करना है तो उसका साधन तो शरीर ही है… स्वस्थ शरीर सब कुछ कर सकता है… अस्वस्थ शरीर कुछ भी नहीं कर सकता है… इसलिए स्वास्थ्य भी बहुत ही जरूरी है.
सामान्य जन के प्रति चिंता जताते हुए मोहन भागवत ने कहा, कि आदमी इसके लिए अपना घर बेच देगा,लेकिन अच्छी शिक्षा को संतान भेजेगा… अपना घर बेच देगा लेकिन अच्छी जगह अपने इलाज का प्रबंध करेगा… दुर्भाग्य से ये दोनों आज सामान्य व्यक्ति की पहुंच से बाहर हैं… उसके आर्थिक सामर्थ्य के बाहर है.
मुश्किल ये है,मोहन भागवत कहते हैं,उन्नत स्वास्थ्य सेवाएं केवल आठ से 10 भारतीय शहरों में ही उपलब्ध हैं.कहते हैं,अच्छी चिकित्सा पाने को कहां जाना है,शहरों में जाना है…कैंसर के लिए तो भारत में केवल आठ से 10 शहर हैं जहां पर जाना पड़ता है,तो चिकित्सा का खर्चा अलग और वहां पर रहने का खर्च अलग… और आने-जाने का खर्च अलग हो जाता है.
और,फिर सुझाव देते हैं,मरीजों को इलाज को भारी रकम खर्च करने,और लंबी दूरी तय करने को मजबूर होना पड़ता है… स्वास्थ्य सेवा को चिंता का विषय नहीं बनना चाहिए.कैसी हो चिकित्सा व्यवस्था के सवाल पर मोहन भागवत कहते हैं,समाज को ऐसी चिकित्सा चाहिए जो सहज और सुलभ हो.
संघ का संदेश किसके लिए है?
चिंता तो बहुत उचित है,शिक्षा और इलाज तो सामान्य जन की पहुंच के बाहर तो हो ही गए हैं.अस्पताल पहुंचते ही पहला सवाल यही सुनने को मिलता है,इंश्योरेंस तो होगा ही.हां,में प्रतिक्रिया सुनते ही व्यवहार सामान्य हो जाता है,जैसे चिंता की कोई बात ही नहीं.इलाज तो हो ही जाएगा.ऐसी ऐसी खबरें आती हैं,मालूम होता है इलाज के दाम तो मरीज की मौत के बाद शव तक से वसूले जा रहे हैं.जो हाल है,उसे देखकर तो यही लगता है जैसे देश के बहुत सारे नर्सिंग होम तो मेडिक्लेम और बीमा से ही चल रहे हैं.
सवाल ये है कि शिक्षा और इलाज दोनों के ही महंगे होने की वजह तो जरूरत के हिसाब से सुविधाओं का नहीं होना ही है. और,अगर सुविधाएं हैं भी तो सबको उपलब्ध नहीं हैं.सरकार स्कूल और सरकारी अस्पताल भी हैं,लेकिन लंबी लाइन है. नतीजा ये होता है कि इंतजाम अच्छे नहीं रह जाते.जो खर्च वहन कर सकता है,वो निजी सुविधाओं का रुख कर लेता है.लेकिन, जिसके पास गिरवी रखने या बेचने के लिए घर और जमीन भी नहीं है,वे कहां जाएं?
स्कूलों की फीस नियंत्रण को दिल्ली सरकार की तरफ से पास हुआ एक बिल,फीस रोकने की कानूनी व्यवस्था जैसा है, लेकिन वो कितना व्यावहारिक होगा,कहना मुश्किल है.इलाज की बात करें तो आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं और महंगे इलाज में मदद के लिए कुछ उपाय भी हैं,लेकिन उसकी भी एक सीमा है.जरूरत तो सबको होती है,लेकिन सुविधाएं तो सबको मिलने से रहीं.
दुनिया के कई देशों से तुलना करें तो मुकाबले में भारत में इलाज सस्ता है. एक अनुमान के मुताबिक, 30 से 70 प्रतिशत सस्ता इलाज है. और, वो भी महंगा वाला ही विदेशियों को सस्ता पड़ता है, लेकिन देश के सामान्य जन को क्या मिलता है?
बड़ा सवाल ये है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने क्या सरकार को कोई सलाह है,और अगर ऐसा है तो क्या सरकार कुछ करने वाली है-और अगर ये सब नहीं है तो ऐसी चिंता का बहुत मतलब भी नहीं रह जाता.

