मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा की जीत, क्या भ्रमित हो रहे हैं मुसलमान?
दिल्ली, रामपुर, गुजरात… कहीं कन्फ्यूजिया तो नहीं हो गए हैं मुसलमान, उनका मन है किधर !
अमित शुक्ला
मुसलमान भाजपा का पारंपरिक वोटर नहीं रहा है। लेकिन, चुनाव में देखने को मिला है कि भाजपा प्रत्याशी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी जीत रही है
BJP winning Muslim dominated areasहाइलाइट्स
1-मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा के जीतने की क्या है वजह?
2-आप, कांग्रेस और एआईएमआईएम काट रही हैं मुस्लिम वोट
3-भाजपा को हिंदू वोट कंसोलिडेट करने में मिली है बड़ी सफलता
नई दिल्ली09 दिसंबर: भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने गुजरात विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम कैंडिडेट नहीं खड़ा किया था। वह 2002 से ऐसा नहीं कर रही है। यह और बात है कि भगवा पार्टी ने राज्य के मुस्लिम बहुल इलाकों में भी जीत दर्ज (BJP victory in Muslim dominated areas) की। दिल्ली एमसीडी चुनाव (MCD Elections 2022) में भी यह बात देखने को मिली। कई मुस्लिम डोमिनेटेड एरिया में भाजपा प्रत्याशी विजयी हुए। रामपुर चुनाव में तो इतिहास ही बन गया। पहली बार यहां कोई गैर-मुस्लिम विधायक बना। इन नतीजों ने चुनावी पंडितों को भी चक्कर में डाल दिया। पारंपरिक तौर पर मुसलमानों को भाजपा का वोटर नहीं माना जाता है। ऐसे में भाजपा का मुस्लिम बहुल इलाकों में भी सीट निकाल लेना चौंकाता है। सवाल उठना लाजिमी है। भाजपा ने चुनावी जीत का वो कौन सा फॉर्मूला खोज निकाला है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में भी उसका परचम फहराने लगा है। कहीं मुस्लिम कन्फ्यूज तो नहीं हो गए हैं? उनका मन किधर है? अगर यह भाजपा की रणनीति है तो कैसे यह सफल साबित हो रही है? आइए, यहां इन पक्षों को समझने की कोशिश करते हैं।
उदाहरण से समझिए हुआ क्या?
बात शुरू करते हैं गुजरात से। इसके लिए उदाहरण लेते हैं दरियापुर का। यह मुस्लिम बहुल सीट है। इस सीट पर कांग्रेस 10 साल से जीतती आ रही थी। इस सीट से कांग्रेस ने गियासुद्दीन शेख को उतारा था। हालांकि, वह भाजपा के कौशिक जैन से हार गए। गुजरात के कम से कम 16 मुस्लिम बहुल इलाकों में आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी अपने कैंडिडेट उतारे थे। लेकिन, कोई भी जीत दर्ज कर पाने में सफल नहीं हुआ। AAP के मैदान में उतरने से जो डैमेज हुआ अब उसे समझते हैं। आप के साथ असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने मुस्लिम वोटों को बांट दिया। यानी पारंपरिक तौर पर जो वोट पहले कांग्रेस को जाते थे वे बंटकर तीन पार्टियों में गए। आप, एआईएमआईएम और कांग्रेस। इस तरह मुस्लिम वोट की निर्णायकता का मतलब नहीं रह गया। एआईएमआईएम ने ज्यादातर उन जगहों पर अपने प्रत्याशी उतारे जहां मुस्लिम आबादी का घनत्व ज्यादा है। इसने कुछ किया या नहीं, वोट जरूर काटे।
मुसलमानों के पास ज्यादा विकल्प, ताकत बंटी
मुस्लिम वोटरों की सबसे बड़ी ताकत आज खत्म हो चुकी है। यह ताकत थी एकमुश्त वोट की। मुस्लिमों के पास विकल्प तो बढ़े हैं। लेकिन, उसी के अनुपात में ताकत घट गई है। पारंपरिक तौर पर मुस्लिम किसी एक पार्टी को वोट करते थे। यह वोटिंग अक्सर ‘टैक्टिकल’ होती थी। जिस तरफ भी ये वोटर घूम जाते थे, वही पार्टी चमक जाती थी। लेकिन, अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है। कह सकते हैं कि वे कन्फ्यूज हैं। मुस्लिम वोटर कांग्रेस, आप, एआईएमआई एम में से किसी एक को चुन नहीं पा रहे हैं। भाजपा के मुकाबले में जब ये तीनों खड़े हो तो मुस्लिमों का वोट बंट जाता है। यह मुस्लिम वोटर के वोटों का प्रभाव घटा देता है। दिल्ली, गुजरात के मुस्लिम बहुल इलाकों के साथ रामपुर में अगर भाजपा जीती तो यह कारक बेहद महत्वपूर्ण है।
कोई भी पार्टी मुस्लिम वोटर का भरोसा नहीं जीत पा रही है
मुस्लिम वोटरों के असमंजस में होने की एक और वजह है। कोई भी पार्टी उसका भरोसा नहीं जीत पा रही है। एआईएमआईएम को छोड़ दें तो कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आप तीनों सॉफ्ट हिंदुत्व के मुद्दे उठाते हैं। इनके नेता मंदिरों में पूजा और घरों में हवन करते दिखते हैं। इनके साथ हिंदू पहचान भी जुड़ी हुई है। दूसरे शब्दों में कहें तो हिंदू वोटरों से ये कभी सिरे से किनारा करते नहीं दिखते हैं। यह मुस्लिमों को किसी एक को चुन पाने में मुश्किल पैदा करता है।
भाजपा की तरफ शिफ्ट हुआ है दलित वोटर
भाजपा की ताकत हिंदू वोटों का कंसोलिडेशन है। इसमें भगवा पार्टी पूरी तरह सफल हुई है। यहां समझने के लिए रामपुर का उदाहरण लेते हैं। कभी यहां बहुजन समाज पार्टी (BSP) बड़ी ताकत हुआ करती थी। लेकिन, यह धीरे-धीरे कमजोर होती गई। पार्टी का पूरा वोट बीजेपी की तरफ शिफ्ट हुआ। इसने मुस्लिम वोट की रेलिवेंसी खत्म कर दी। वहीं, बीजेपी ने इस वोट बैंक के लिए पूरी ताकत झोंक दी। इस दौरान भगवा पार्टी ने बड़े ओबीसी वर्ग को भी अपने पाले में किया। मुस्लिम बहुल इलाकों में भी भाजपा जीत का झंडा फहरा रही है तो इसके पीछे यह बड़ी वजह बन गई है।
मुस्लिम वोट की हैसियत क्या?
सच यह है कि मुस्लिम वोट की हैसियत आज न किसी को जिताने की बची है न किसी को हराने की। इसका कारण यह है कि उसमें क्लैरिटी नहीं है। कई राजनीतिक दलों में वो उलझ गए हैं। दूसरी बड़ी बात यह है कि मुस्लिम महिलाएं भी कई मुद्दों पर बीजेपी को वोट करने लगी हैं। इनमें ट्रिपल तलाक जेसे मुद्दे शामिल हैं। महिलाएं देश की आबादी का आधा हिस्सा हैं। उन्हें किसी भी तरह से कमतर आंका नहीं जा सकता है। इसी बात का एहसास करते हुए कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर बड़ा दांव लगाया था। उसने ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा देकर उत्तर चुनाव में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को दिए थे। मुस्लिम महिलाओं के वोट को भाजपा कुछ हद तक खींच पाने में सफल हुई है।