मत: 2024 की चुनौती,भाजपा को क्यों है नये वोट बैंक की तलाश?
BJP को क्यों चाहिए नया वोट बैंक?
पूनम पाण्डे |
2014 का चुनाव भाजपा ने युवाओं को साथ लेकर जीता और 2019 में भी युवाओं ने भाजपा का साथ नहीं छोड़ा, लेकिन 2023 के बदलते हालात में भाजपा को भी अंदेशा है कि रोजगार और महंगाई की समस्या के बीच कहीं युवा उसके पाले से खिसक ना जाएं। इसलिए भाजपा 2024 के चुनाव की तैयारी में इस पर पूरा फोकस कर रही है और नया वोट बैंक भी तलाश रही है।
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इस साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं। भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के जरिए जिस तरह का संदेश अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को दिया है उससे साफ है कि भाजपा नया वोट बैंक तैयार करने पर फोकस कर रही है। भाजपा के लिए यह बेहद जरूरी भी है क्योंकि भाजपा नेताओं को यह पता है कि नया वोट बैंक तैयार किए बिना अगले साल का लोकसभा चुनाव जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। ध्यान देने की बात है कि बीजेपी जहां एक तरफ सभी धर्मों और जातियों को साथ लेकर चलने की बात कह रही है, वहीं दूसरी तरफ 18 से 25 साल के युवाओं पर भी फोकस कर रही है।
2023 के हालात अलग
बीजेपी जब 2014 में बंपर बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आई थी तब इसमें युवाओं की अहम भूमिका थी। पार्टी ने तब सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया था और उसके जरिए युवाओं की आकांक्षाओं को आवाज दी थी। युवाओं ने भी बीजेपी पर भरोसा जताया और जमकर वोटिंग की। 2019 में भी बीजेपी ने जीत दर्ज की। लेकिन वह युवा वर्ग जिसने 2014 में उसके लिए वोट किया था, इन पांच वर्षों के अंतराल में वह अपने जीवन के एक दूसरे चरण में पहुंच गया था। 2023 में हालात और अलग हैं। उन युवाओं में से बहुत सारे अब सोशल मीडिया पर बेरोजगारी और महंगाई की बातें कर रहे हैं।
युवाओं की दूसरे खेप
इतिहास गवाह है कि किसी भी चुनाव में या मूवमेंट में आम तौर पर युवा जिसके साथ रहते हैं, जीत उसी की होती है। युवा भविष्य के सपने देखते हैं और तुलना भी करते हैं। बीजेपी अब युवाओं की दूसरी खेप को अपना वोट बैंक बनाने की कोशिश कर रही है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कहा कि 18 से 25 साल के युवाओं ने भारत के राजनीतिक इतिहास को देखा नहीं है। उन्हें पता नहीं है कि भारत में पिछली सरकारों में किस तरह का कुशासन था। भारत कैसे अब सुशासन की ओर बढ़ रहा है। इसलिए इन युवाओं को भी जागरूक करने, इन्हें भी लोकतंत्र के मूल्यों के साथ जोड़ने की कोशिश होनी चाहिए। साथ-साथ इन युवाओं को धैर्य के साथ यह भी बताना होगा कि किस प्रकार देश कुशासन से सुशासन की तरफ आया है।
त्रिपुरा में मिला था युवाओं का साथ
बीजेपी को आखिर यह मुहिम चला कर बताने की जरूरत क्यों पड़ी, इसे हम त्रिपुरा के उदाहरण से समझ सकते हैं। त्रिपुरा में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन इससे पहले जो विधानसभा चुनाव हुए थे उसमें बीजेपी ने कई सालों के वामपंथी राज को खत्म कर त्रिपुरा में पहली बार जीत दर्ज की थी। हार के बाद कई वामपंथी नेताओं ने अलग-अलग बातचीत में बताया कि युवाओं ने त्रिपुरा की पहले वाली स्थिति नहीं देखी थी। उन्हें नहीं पता था कि पहले कितनी खराब हालत थी और किस तरह त्रिपुरा में विकास हुआ है। वे युवा त्रिपुरा को दिल्ली मुंबई से कंपेयर करते थे क्योंकि सोशल मीडिया के जरिए वह वहां का विकास देखते थे। वामपंथी त्रिपुरा में युवाओं को अपने साथ जोड़ने में कामयाब नहीं हुए थे और वहां बीजेपी ने बेहतर भविष्य का वादा कर चुनाव जीत लिया। अब खतरा यह है कि कहीं ठीक यही बात बीजेपी के साथ न हो जाए। इसलिए बीजेपी पहले से उस बात पर ध्यान देते हुए चल रही है।
दक्षिण में जमीन की तलाश
बीजेपी पिछले कुछ वक्त से जिस तरह सभी धर्मों और जातियों को साथ लेने की बात कर रही है उससे भी यह संदेश साफ है कि भारत जैसे विविधता वाले देश में अगर राष्ट्रीय पार्टी सभी की बात नहीं करेगी तो कुछ जगह भले बंपर जीत मिल जाए, लेकिन ऐसी जगहें भी रहेंगी जहां उसे पैर टिकाने की जगह तक न मिले। बीजेपी दक्षिण भारत में अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रही है और लोकसभा चुनाव के लिहाज से यह बीजेपी के लिए बेहद अहम भी है। पिछले लोकसभा चुनाव में ही बीजेपी उत्तर भारत के कई राज्यों में सेचुरेशन की स्थिति पर पहुंच गई थी। उन राज्यों में अब इससे आगे बढ़ने का स्कोप नहीं है बल्कि कुछ सीटें गंवाने का ही डर है। बीजेपी ने कई ऐसी सीटें चिह्नित की हैं और उन पर फोकस कर रही है। उनमें पिछली बार की हारी सीटों के लिए अलावा कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां उसने जीत दर्ज की थी लेकिन कुछ कारणों से वहां और मेहनत करने की जरूरत महसूस करती है।
दक्षिण से कैसे होगी भरपाई
जाहिर है उत्तर भारत में संभावित नुकसान की भरपाई दक्षिण के राज्यों से ही हो सकती है। बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री ने बीजेपी कार्यकर्ताओ से कहा कि वह सभी धर्मों और जातियों को साथ लेकर चलें। साथ ही कहा कि सभी भाषाओं और संस्कृतियों का सम्मान करना होगा। प्रधानमंत्री ने यह नसीहत भी दी की मुस्लिम समाज के बारे में गलत बयानबाजी ना करें। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि कई बयान अमर्यादित होते हैं और ऐसे बयान नहीं दिए जाने चाहिए। किसी को भी किसी जाति या संप्रदाय के खिलाफ बयान नहीं देना चाहिए। बीजेपी पर विपक्षी दल मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाते रहे हैं। हालांकि बीजेपी ने हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पिछली बैठक और इस बार दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुस्लिम समाज के पिछड़े वर्गों पर फोकस करने की बात कही। साथ ही क्रिश्चन समुदाय के पिछड़े वर्ग तक भी पहुंचने पर फोकस करने को कहा। साफ है कि इन तमाम उपायों से वह दक्षिण भारत में पकड़ बनाने की कोशिश कर रही है। वह तमिल-काशी संगमम की शुरुआत भी कर चुकी है। वह इस तरह के कार्यक्रमों के जरिए उत्तर भारत की पार्टी की अपनी छवि को बदलने की कोशिश कर रही है।