बृजभूषण शरण मामले में दुविधाग्रस्त क्यों है भाजपा?
बृजभूषण सिंह को लेकर धर्मसंकट में भाजपा! जानिए पार्टी क्यों नहीं कर पा रही कोई कार्रवाई
अभिषेक मिश्रा
उत्तर प्रदेश के कैसरगंज से सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहे बृजभूषण शरण सिंह (Brijbhushan Singh) का भाजपा से नाता पुराना रहा है और आने वाले समय में भाजपा का साथ पार्टी और बृजभूषण दोनों के लिए जरूरत का सौदा नजर आता है. बृजभूषण शरण सिंह न सिर्फ गोंडा बल्कि, अयोध्या, श्रावस्ती, बाराबंकी समेत आसपास की लोकसभा सीटों में अपना दबदबा रखते हैं. अपनी छवि क्षेत्रीय दबदबे के चलते बृजभूषण शरण सिंह राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत नजर आते हैं.
लगातार 6 बार से सांसद
1991 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए 66 वर्षीय बृजभूषण या उनकी पत्नी लगभग तब से उत्तर प्रदेश से सांसद हैं. 1996 में, जब दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों को कथित रूप से शरण देने के लिए टाडा मामले में आरोपित होने के बाद सिंह को टिकट से वंचित कर दिया गया था, तो उनकी पत्नी केकती देवी सिंह को गोंडा से भाजपा ने मैदान में उतारा और जीत हासिल की. वहीं 1998 में, सिंह को गोंडा से समाजवादी पार्टी के कीर्तिवर्धन सिंह से एक दुर्लभ चुनाव हार का सामना करना पड़ा.
राम मंदिर आंदोलन से मिला बल
दूसरी तरफ बृजभूषण शरण सिंह की संघ से नजदीकी विश्व हिन्दू परिषद प्रमुख अशोक सिंघल के नाते बताई जाती है. भूषण ने अयोध्या से पढ़ाई की और उसके बाद छात्र राजनीति से अपनी शुरुआत की जिसमें उनको बल राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने पर मिला. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद ब्रजभूषण समेत कई पर लोगों की भावना भड़काने का आरोप लगा और उन पर मुकदमा दर्ज हुआ तब तक बृजभूषण भाजपा के सांसद के तौर पर चुनाव जीत चुके थे.
क्षेत्र में ऐसा है दबदबा
इसके साथ ही अपने प्रभावशाली चुनावी प्रभाव के अलावा, बृजभूषण सिंह के लगभग 50 शैक्षणिक संस्थानों के जरिए अपना दबदबा कायम करते रहे, जो अयोध्या से श्रावस्ती तक 100 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. इसके मद्देनजर, उनके रिश्तेदारों ने भी इस तरह के संस्थानों की स्थापना की है और स्थानीय भाजपा सूत्रों का कहना है कि सिंह की चुनाव मशीनरी लगभग पूरी तरह से पार्टी से स्वतंत्र इस सेट-अप के जरिए चलाई जाती है. जिससे लगता है कि सिंह को पार्टी के साथ-साथ पार्टी को भी सिंह की उतनी ही जरूरत है.
सपा से भी लड़ चुके हैं चुनाव
अगर 2009 का जिक्र किया जाए तो बृजभूषण सिंह ने भाजपा की घटती किस्मत को भांपते हुए सपा का रुख किया और कैसरगंज से एक भाजपा उम्मीदवार को हराकर जीत हासिल की. केंद्र में 2009 के चुनाव में यूपीए ने सहयोगी के रूप में सपा के साथ जीते थे. सिंह ने जुलाई 2008 में भाजपा सांसद के रूप में परमाणु समझौते की बहस के दौरान इस निर्णय की घोषणा की थी. बृजभूषण सिंह हमेशा से अपने बयानों और राजनीति को लेकर मुखर रहे हैं.
जब राज ठाकरे को दी खुली चुनौती
पिछले दिनों भी बृजभूषण शरण सिंह ने राज ठाकरे के अयोध्या कूच करने के मामले को लेकर भी चर्चा में रहे. जहां बृजभूषण शरण सिंह ने राज ठाकरे का खुलकर विरोध किया और अयोध्या से लेकर बहराइच तक इस बात के पोस्टर लगाए गए कि राज ठाकरे को आने नहीं दिया जाएगा. अपने हार्डकोर हिंदुत्व छवि और स्थानीय सहयोग के दम पर बृजभूषण सिंह लगातार अपने क्षेत्र में दबदबा कायम रख सके हैं. हालांकि मौजूदा समय में बृजभूषण और भाजपा के संबंधों में संबंधों में संवेदनशीलता बनी हुई है. माना जाता है कि आलाकमान के नेता बृजभूषण के कुश्ती महासंघ के मामले को लेकर खुश नहीं है. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ भी ब्रजभूषण शरण सिंह को लेकर की कोई ज्यादा नजदीकी नहीं दिखाई देती.
धर्मसंकट में घिरी भाजपा!
हालांकि इस पूरे मामले में अभी तक की हुई कार्रवाई यह दिखाती है कि बृजभूषण शरण सिंह को लेकर के फिलहाल पार्टी का क्या रुख है, जो लगातार विवादों में घिरे होने के बावजूद भी बचे हुए नजर आते हैं. वहीं इस मामलें में इन खिलाड़ियों को मिल रही राजनीतिक समर्थन भी भाजपा के लिए राजनीतिक नुकसान की वजह बन सकती है. इसलिए 6 बार सांसद रहे बृजभूषण सिंह अब कड़े संघर्ष की बात कहने लगे हैं. ऐसे में टाडा समेत कई आरोपों को झेलकर बरी होने वाले बृजभूषण सिंह के लिए इस बार पहलवान महिलाओं के गंभीर आरोपों से बेदाग निकल पाना आसान नहीं है. 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है और भाजपा विपक्ष के हाथ इस मुद्दे को भुनाने का मौका नहीं देगी जिसका भारी चुनावी खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़े.