दिल्ली: मनोज तिवारी को छोड़ बाकी सांसद क्यों नहीं बचा पाए टिकट?
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मनोज तिवारी के अलावा कोई क्यों नहीं बचा पाया अपना टिकट, दिल्ली लोकसभा सीटों पर BJP का पूरा गणित समझिए
राजधानी दिल्ली की पांच लोकसभा सीटों पर भाजपा ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिये है। इन पांच सीटों पर भाजपा ने चार नए चेहरों पर दांव खेला है। मनोज तिवारी के अलावा सभी चारों का पत्ता इस बार कट गया है।
नई दिल्ली 03 मार्च: जैसी उम्मीद थी, वही हुआ। भाजपा ने दिल्ली के मौजूदा सांसदों में से चार के टिकट काट दिए और उनकी जगह नए नाम घोषित कर दिये । अभी दो सीटों पर भाजपा ने प्रत्याशी घोषित नहीं किये है। इनमें से पूर्वी दिल्ली सीट पर गौतम गंभीर ने खुद ही चुनाव न लड़ने की घोषणा की है, जबकि उत्तर पश्चिम सीट पर मौजूदा सांसद हंसराज हंस का भी टिकट कटना लगभग तय माना जा रहा है। दिलचस्प ये है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली से मनोज तिवारी का भी टिकट कटने की चर्चा थी और माना जा रहा था कि उन्हें इसकी बजाय पूर्वी उत्तर प्रदेश या बिहार की किसी सीट से उतारा जा सकता है, लेकिन वे फिलहाल इन पांच में से अकेले सांसद हैं, जो अपना टिकट बचाने में कामयाब रहे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि नए उम्मीदवारों का चयन करते वक्त पार्टी ने जातिगत समीकरणों के साथ-साथ इन नेताओं की छवि को भी ध्यान में रखा है। यही वजह है कि पार्टी ने मनोज तिवारी को फिर से उतारने का फैसला किया। जिन नेताओं के टिकट काटे गए हैं, उनके कामकाज के साथ ही लोगों के बीच छवि को भी ध्यान में रखा गया है। पार्टी ने जो पांच उम्मीदवार घोषित किए हैं,उनमें से एक ब्राह्मण,एक जाट,एक वैश्य,एक गुर्जर समुदाय और एक पूर्वांचल के हैं।
टिकट को लेकर क्या बनाया आधार
भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने टिकट देते हुए ’जिताऊ उम्मीदवार’ का पैमाना तो ध्यान में रखा ही है, साथ ही एंटी इन्कमबेंसी को भी कम करने की कोशिश की है। साथ ही पार्टी ने इस बात का भी ध्यान रखा है कि कौन सा नेता पार्टी के लिए सक्रिय रहकर काम करता रहा और किसने पार्टी के लिए अलग अलग मंचों पर लड़ाई लड़ी। इसके अलावा पार्टी ने इस बार पांच में से दो टिकट महिलाओं को दिए हैं जबकि पिछले दो चुनाव से दिल्ली में पार्टी एक ही महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारती रही है।
तिवारी की सक्रियता से बचा टिकट
यही लोकसभा क्षेत्र ऐसा है, जिसके मौजूदा सांसद मनोज तिवारी को पार्टी ने लगातार तीसरी बार उम्मीदवार बनाया है। इसकी एक वजह तो यही है कि तिवारी लगातार अपने क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं और पार्टी के मंचों पर भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं। पार्टी यह मान रही थी कि दिल्ली में पूर्वांचल का कम से कम एक उम्मीदवार होना चाहिए। ऐसे में पूर्वांचलियों में फिलहाल तिवारी से बड़ा कोई विश्वसनीय चेहरा नहीं था। कांग्रेस और आप का गठबंधन होने के बाद अब ये सीट कांग्रेस के पास है। ऐसे में बीजेपी को लग रहा है कि कांग्रेस की काट पूर्वांचल का वोटर बन सकता है।
विवाद बना टिकट कटने की वजह
दक्षिण दिल्ली से इस बार रमेश बिधूड़ी भी अपना टिकट नहीं बचा पाए। हालांकि अपने क्षेत्र में बिधूड़ी का असर माना जाता है और वे अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय भी रहे हैं, लेकिन इस बार उनके टिकट कटने की वजह लोकसभा में उनके भाषण से जुड़ा विवाद माना जा रहा है। हालांकि इससे पहले भी उनकी ‘भाषा’ को लेकर विवाद होता रहा है, लेकिन पिछले साल एक मौजूदा सांसद के बारे में सदन के भीतर ही उनकी विवादित टिप्पणी की देशभर में चर्चा हुई थी। हालांकि उस वक्त पार्टी नेतृत्व ने उन्हें सिर्फ एक नोटिस दिया था। बाद में विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गई थी। उस वक्त माना गया था कि संभवत पार्टी उनके साथ है, लेकिन उनकी सक्रियता और कामकाज पर, विवादित टिप्पणी भारी पड़ गई।
गुर्जर समाज के रामवीर सिंह विधूड़ी को ही दिया टिकट
उधर पार्टी ने बिधूड़ी का टिकट तो काटा ही लेकिन उसी क्षेत्र के और उसी समाज के रामवीर सिंह बिधूड़ी को उम्मीदवार बना दिया। रामवीर सिंह बिधूड़ी गुर्जर समाज से ही आते हैं और बीते चार साल से विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभा रहे हैं। पार्टी ने संभवत उनके लंबे राजनीतिक करियर और परिपक्वता को ध्यान में रखा है। साथ ही जिस तरह से उन्होंने विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में आम आदमी पार्टी की सरकार को घेरने के लिए जिस तरह से काम किया, वो भी उनकी टिकट की राह आसान बनाने में कामयाब रही। हालांकि अब इसके साथ ही सवाल ये होगा कि लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में पार्टी को किसी और को जिम्मेदारी देनी होगी।
वर्मा को नहीं मिला तीसरी बार टिकट
पश्चिमी दिल्ली से प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को मजबूत कैंडिडेट माना जा रहा था, लेकिन पार्टी ने उन्हें भी तीसरी बार टिकट नहीं दिया। इसकी सबसे बड़ी वजह उनकी कार्यशैली को लेकर लोगों में नाराजगी थी। यही नहीं, उन पर इलाके में निष्क्रिय रहने के भी आरोप लगते रहे हैं। हालांकि ये माना जाता है कि पश्चिमी दिल्ली के देहाती विधानसभा सीटों पर उनकी जबरदस्त पकड़ रही है। पार्टी ने प्रवेश वर्मा की जगह जाट बिरादरी से ही महिला उम्मीदवार के रूप में कमलजीत सहरावत को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट में जाट के साथ ही पंजाबी वोटरों की भी खासी संख्या है। इसी वजह से पार्टी में इस सीट के लिए आशीष सूद का नाम भी उम्मीदवारों की दौड़ में था, लेकिन पार्टी ने किसी तरह का कोई खतरा मोल लेने की बजाए जाट समुदाय का उम्मीदवार देने का फैसला किया। इस तरह से सहरावत दिल्ली में भाजपा की दूसरी महिला उम्मीदवार हो गई हैं।
सहरावत तो क्यों मिला मौका?
सहरावत बीते दो दशक से लगातार सक्रिय हैं। वे दक्षिण दिल्ली नगर निगम की मेयर भी रही हैं और दिल्ली बीजेपी में महासचिव भी हैं। फिलहाल वे नगर निगम में बीजेपी की सबसे अनुभवी पार्षदों में से हैं। पार्टी को लग रहा है कि सहरावत के आने से न सिर्फ एंटी इन्कमबेंसी को काउंटर करने में मदद मिलेगी बल्कि महिला वोटरों का भी बीजेपी की ओर झुकाव होगा। वैसे सहरावत 2008 में मटियाला से विधानसभा का चुनाव भी लड़ी थीं लेकिन उसमें उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।
1993 के बाद किसी सदन में नहीं होंगे हर्षवर्धन
चांदनी चौक से मौजूदा सांसद डॉक्टर हर्षवर्धन का टिकट पहले से ही कटने की चर्चा थी। कोविड के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल से उन्हें ड्रॉप कर दिया गया था। उस वक्त दावा किया गया था कि चूंकि कोविड के दौरान हेल्थ मिनिस्टरी उस तरह से एक्टिव नहीं रही, जैसी रहनी चाहिए थी। जिसकी वजह से देश के कई इलाकों में कोविड तेजी से फैला और कई लोगों की जान भी गई। वैसे डॉक्टर हर्षवर्धन को इससे पहले पिछली लोकसभा में भी 2014 में हेल्थ मिनिस्टर बनाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया था। 2019 में फिर उन्हें हेल्थ मिनिस्टर बनाया गया, लेकिन कोविड के बाद उन्हें हटा दिया गया। 1993 में दिल्ली विधानसभा में मंत्री के रूप में अपना करियर शुरू करने के बाद ये पहला मौका होगा, जबकि वे किसी सदन के सदस्य नहीं होंगे।
खंडेलवाल की मेहनत आ गई काम
डॉक्टर हर्षवर्धन की जगह प्रवीण खंडेलवाल भी वैश्य समुदाय से आते हैं और लंबे वक्त से व्यापारियों के संगठन में सक्रिय हैं। बीते दस वर्ष के दौरान खंडेलवाल ने अपने संगठन के बैनर तले कई बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जिनमें खुद प्रधानमंत्री तक ने भागीदारी की। हालांकि खंडेलवाल ने इससे पहले विधानसभा का भी चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली थी। पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाते समय जातिगत समीकरणों का भी ध्यान रखा। दरअसल, चांदनी चौक सीट में दो से तीन मुस्लिम बहुल विधानसभा को छोड़ दें तो बाकी विधानसभा क्षेत्रों में वैश्य समुदाय के वोटरों की संख्या काफी अधिक है। बीते लगातार दो लोकसभा चुनाव से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। इससे पहले लगातार दो बार कपिल सिब्बल ने ये सीट जीती थी।
क्यों नहीं बचा लेखी का टिकट
नई दिल्ली लोकसभा सीट को सबसे महत्वपूर्ण सीट माना जाता रहा है, लेकिन इस बार भाजपा ने मीनाक्षी लेखी का भी टिकट काटकर उनकी जगह सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि मीनाक्षी लेखी दिल्ली से ऐसी एकमात्र सांसद हैं, जो फिलहाल मोदी मंत्रिपरिषद की सदस्य हैं। वे विदेश राज्यमंत्री का कार्यभार संभाल रही हैं, लेकिन उन्हें पार्टी ने उम्मीदवार नहीं बनाया। पार्टी सूत्रों का कहना है कि 2019 में भी उनका टिकट कटने के आसार थे लेकिन उन्हीं दिनों राहुल गांधी के सुप्रीम कोर्ट से जुड़े एक बयान के मामले में लेखी खुद कोर्ट पहुंच गई थी। जिसकी वजह से राहुल गांधी को सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी पड़ी थी। उसके तुरंत बाद ही लेखी को फिर से उम्मीदवार बना दिया था। इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट देने की बजाए, उनकी जगह सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को उम्मीदवार बनाया। पार्टी सूत्रों के मुताबिक बांसुरी को टिकट देने के लिए पहले से ही भूमिका तैयार हो गई थी। दरअसल, बांसुरी को प्रदेश इकाई में सक्रिय किया गया और वे बीते कुछ वक्त से लगातार मीडिया में पार्टी का पक्ष रख रही थीं। पार्टी को लग रहा है कि बांसुरी इस सीट के लिए परफेक्ट उम्मीदवार हो सकती हैं। वैसे आम आदमी पार्टी ने भी यहां से एडवोकेट सोमनाथ भारती को मैदान में उतारा है। खुद बांसुरी भी एडवोकेट हैं।