मत: सुप्रीम कोर्ट में औपनिवेशिक समर वैकेशन कब तक?

बिबेक देबरॉय का लेख: क्या यह स्कूल है जो समर वेकेशन होना चाहिए, आखिर सुप्रीम कोर्ट में इतनी छुट्टियां क्यों?

नए सीजेआई में सुप्रीम कोर्ट अब ‘तारीख पे तारीख’ कोर्ट नहीं रह गया है। लेकिन हमें वकेशन को भी खत्म करना चाहिए। सालाना छुट्टियों (अर्न्ड लीव, कैजुअल लीव) के दिन तय होने चाहिए जिसके जज हकदार हैं ताकि ऐसी नौबत न आए कि उनके ग्रैंडचिल्ड्रेन उन्हें पहचान ही न पाएं।

हाइलाइट्स
दुनिया के किसी भी प्रमुख देश की अदालतों में वेकेशन जैसा कुछ नहीं होता है
भारत की अदालतों में वेकेशन की क्या जरूरत, वह भी तब जब इतने लंबित केस हों
अदालतों में वेकेशन को खत्म किया जाना चाहिए, ये कोई स्कूल नहीं हैं जो वेकेशन जरूरी हो

बिबेक देबरॉय और आदित्य सिन्हा

पिछली बार हमने (Status and Status Quo, TOI, 26 अगस्त 2022) सुप्रीम कोर्ट के जजों की सैलरी और सेवा शर्तों को लेकर 1958 के कानून का जिक्र किया था। उसमें बताया गया है कि एक जज को कितनी छुट्टियां मिलती हैं। साथ में उसमें इसका भी जिक्र है कि कैसे ये छुट्टियां (Leaves) और लंबे अवकाश (Vacation) एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

वेकेशन क्या है? यह हमें समर और विंटर वेकेशन की याद दिलाता है जब हम स्टूडेंट थे। जुलाई 2022 में पूर्व सीजेआई एनवी रमण ने ‘जस्टिस एसबी सिन्हा मेमोरियल लेक्चर’ में ‘एक जज की जिंदगी’ (Life of a Judge) विषय पर स्पीच दी थी। वैसे उनके शब्द वैसे ही थे जो किसी भी कड़ी मेहनत करने वाले व्यक्ति की होती हैं। उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी हम परिवार के महत्वपूर्ण आयोजनों तक में शामिल नहीं हो पाते। कई बार यह ख्याल आता कि मेरे नाती-पोते मुझे पहचान भी पाएंगे या नहीं क्योंकि उन्हें देखे कई दिन हो चुके होते हैं।’

बहुत ज्यादा काम का बोझ न सिर्फ पारिवारिक रिश्तों के लिए खराब हैं बल्कि उत्पादकता पर भी इनका बुरा असर पड़ता है। इसीलिए कई संस्थान कर्मचारियों को वार्षिक छुट्टी लेने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन ‘व्यक्तिगत छुट्टी’ और ‘वेकेशन’ में फर्क है। वेकेशन में संस्थान के हर कर्मचारी छुट्टी पर होते हैं।

वेकेशन शब्द ‘Vacate’ से ही निकला है। इसी से उसकी व्युत्पत्ति हुई है। वेकेशन के दौरान संस्थान खाली रहता है। बंद हो जाता है। अदालतों को छोड़कर बेहद कम संस्थान ही इस तरह से सामूहिक तौर पर छुट्टी पर जाते हैं। हां, कर्मचारी व्यक्तिगत तौर पर छुट्टी लेते हैं, जो सही भी है। यहां तक कि शैक्षिक संस्थाओं में भी छात्रों का वेकेशन होता है, टीचर्स का उस तरह वेकेशन नहीं होता।

सुप्रीम कोर्ट के लिए वेकेशन का फैसला कौन करता है? (हाई कोर्ट के लिए अलग प्रावधान हैं)। 1958 का कानून कहता है, ‘वेकेशन का मतलब साल की वह अवधि या अवधियां हैं जिसे सुप्रीम कोर्ट के नियमों में और राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से वेकेशन के तौर पर तय किया जाता है।’

इसका आशय ‘सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013’ और ताजा अधिसूचना (16 मई 2022) से है। यह कहता है, ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश ने निर्देश दिया है कि सुप्रीम कोर्ट सालाना ग्रीष्मकालीन अवकाश को सोमवार, 23 मई 2022 से रविवार, 10 जुलाई 2022 तक बंद रहेगा।’

हां, वेकेशन बेंच भी हैं और यह भी सच है कि समर वेकेशन को छोटा किया जा चुका है। लेकिन क्या यह स्कूल है जो समर वेकेशन होना चाहिए? दरअसल इसकी जड़ें औपनिवेशिक काल में हैं। संविधान का ज्यादातर हिस्सा ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1935’ पर आधारित है। उसमें संघीय अदालत की व्यवस्था थी जो सुप्रीम कोर्ट है।

हो सकता है कि नागरिक इससे अनजान हों कि जजों पर काम का कितना ज्यादा बोझ होता है। लेकिन जस्टिस मलिमथ के बारे में जानना चाहिए। उन्होंने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में सुधार को बनी कमिटी (2013) की अगुआई की थी। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में अदालतों के वेकेशन पर भी बात की थी। उसके कुछ हिस्से को जस का तस कहना जरूरी है क्योंकि वो बहुत ही चुभते हुए हैं और खास बात ये कि न्यायपालिका के भीतर के ही व्यक्ति ने वो बातें कहीं हैं।

जस्टिस मलिमथ कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘अदालतों और शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर देश के किसी भी सरकारी संस्थान में वेकेशन नहीं है। शैक्षणिक संस्थानों की बात अलग है जहां बच्चे एकसाथ पढ़ाई करते हैं…इस संदर्भ में यह जानना जरूरी है कि दुनिया के ज्यादातर देशों में अदालतों को कोई वेकेशन नहीं होता। कमिटी ने फ्रांस और यूएसए की अदालतों के जिन जजों से बात की उन्होंने बताया कि उनके कोर्ट में कोई वेकेशन नहीं होता। जज अपनी सुविधा के अनुसार इस तरह छुट्टी ले सकते हैं कि अदालतों का काम-काज प्रभावित न हो। भारत की अदालतों में इस तरह के वेकेशन का कोई खास औचित्य है क्या?…यहां तक कि भारत में ही सबऑर्डिनेट क्रिमिनल कोर्ट्स में कोई वेकेशन नहीं होता। लेकिन अधीनस्थ दीवानी अदालतों, हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट में वेकेशन हैं। ऐसा लगता है कि अदालतों को वेकेशन औपनिवेशिक शासकों से विरासत में मिली है। तब उच्च न्यायपालिका में ज्यादातर प्रमुख जज इंग्लैंड के थे।’

कमिटी ने रिपोर्ट में आगे लिखा, ‘उस समय अदालतों में काम का इतना दबाव नहीं था। इसके अलावा, औपनिवेशिक शासक होने की वजह से उन्हें मुकदमों के निपटारे में देरी की समस्या की परवाह भी नहीं थी। अंग्रेज एक ऐसे देश से आए थे जो बहुत ठंडा था और उन्हें भारत में गर्मियां असहनीय लगती थीं। इसीलिए उन्होंने वेकेशन की व्यवस्था की ताकि वे गर्मियों में इंग्लैंड वापस जा सकें और वहां अपना समय आराम से बिता सकें। उस दौर में समंदर से यात्रा की मजबूरी थी जिसमें कई हफ्ते लगते थे। भारत की अदालतों में वेकेशन की व्यवस्था शुरू होने में असली वजह यही थी।’

तब जजों को पानी के जहाज से अपने घर जाने के लिए 1 महीने, लौटने के लिए एक और महीने और इंग्लैंड के खुशमिजाज मौसम का आनंद लेने को अलग से 1 महीने की जरूरत थी। आज सुप्रीम कोर्ट के जजों को उसकी जरूरत नहीं रह गई है।

अदालतों के समर वेकेशन को लेकर कई जनहित याचिकाएं और आरटीआई भी दाखिल हुए हैं। 2014 में तत्कालीन सीजेआई आरएम लोढ़ा ने वेकेशन खत्म करने की कोशिश की थी। 2016 में सीजेआई जस्टिस ठाकुर ने हाई कोर्ट्स से अपील की थी। हालांकि, वह अपील सुप्रीम कोर्ट के लिए नहीं थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्वैच्छिक रूप से समर वेकेशन का त्याग किया था।

समर वेकेशन तो है ही। क्रिसमस और दशहरे पर भी छुट्टियां होती हैं। एरियर्स कमिटी और लॉ कमिशन की 230वीं रिपोर्ट में इनकी अवधि को छोटी करने की सिफारिश थी लेकिन ड्यूरेशन कम करने का भी क्या मतलब?

वेकेशन होनी ही नहीं चाहिए। कई हॉलिडे भी नहीं होने चाहिए। लेकिन हॉलिडे वाली तो ऐसी सामान्य बीमारी है जो सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट तक सीमित नहीं हैं।

नए सीजेआई के समय सुप्रीम कोर्ट अब ‘तारीख पे तारीख’ कोर्ट नहीं रह गया है। लेकिन हमें वेकेशन को भी खत्म करना चाहिए। सालाना छुट्टियों (अर्न्ड लीव, कैजुअल लीव) के दिन तय होने चाहिए जिसके जज हकदार हैं ताकि ऐसा न हो कि उनके नाती पोते उन्हें पहचान ही न पाएं।

(बिबेक देबरॉय ‘द इकनॉमिक अडवाइजरी काउंसिल टु द प्राइम मिनिस्टर’ के चेयरमैन और आदित्य सिन्हा अडिशनल प्राइवेट सेक्रटरी (रिसर्च) हैं। )

No Major Country Has Their Top Court Going On Long Holidays Then Why Should Supreme Court Of India

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सुप्रीम कोर्ट में अगले साल कितने दिन रहेगी छुट्टी? आ गया 2023 का कैलेंडर

सुप्रीम कोर्ट के साल 2023 का कैलेंडर जारी हो गया है। कैलेंडर में सुप्रीम कोर्ट में अगले साल समर और विंटर वेकेशन की छुट्टियों का जिक्र है। शीर्ष अदालत में क्रिसमस हॉलीडे के दौरान 25 दिसंबर को रजिस्ट्री बंद रहेगी। कैलेंडर में वेकेशन को ऑरेन्ज कलर से दर्शाया गया है।

मुख्य बिंदु 

शीर्ष अदालत में समर वेकेशन 22 मई 2023 से शुरू होगा, 3 जुलाई से खुलेगी अदालत
दिसंबर में 17 तारीख से 31 तक शीर्ष अदालत में नहीं होगा कामकाज, महीने में 17 छुट्टी
अगले साल दशहरे के दौरान 22 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक शीर्ष अदालत में रहेगी छुट्टी

सुप्रीम कोर्ट में वेकेशन को लेकर जारी बहस के बीच शीर्ष अदालत का साल 2023 का कैलेंडर जारी हो गया है। शीर्ष अदालत में अगले साल समर वेकेशन 22 मई से शुरू हो रहा है। समर वेकेशन के बाद 3 जुलाई को फिर से अदालत शुरू होगी। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के विंटर वेकेशन की अवधि 42 दिन होगी। वहीं, दिसंबर में 17 जुलाई से लेकर 31 अगस्त तक शीर्ष अदालत में क्रिसमस हॉलीडेज रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के कैलेंडर में शीर्ष अदालत की छुट्टियों और संडे को रेड कलर से दर्शाया गया है।

समर वेकेशन में खुली रहेगी रजिस्ट्री

सुप्रीम कोर्ट कैलेंडर में होली, दशहरा, दीवाली क्रमश: 8 मार्च 2023, 24 अक्टूबर 2023 और 12 नवंबर 2023 को पड़ रहा है। कैलेंडर में समर वेकेशन को ऑरेन्ज कलर से दर्शाया गया है। हालांकि, वेकेशन के दौरान शनिवार, रविवार और छुट्टियों को छोड़कर कोर्ट की रजिस्ट्री पूरी तरह से काम करेगी। क्रिसमस वैकेशन के दौरान रजिस्ट्री 25 दिसंबर 2023 से 1 जनवरी 2024 तक बंद रहेगी।

सुप्रीम कोर्ट वेकेशन पर बहस

दरअसल कुछ समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट में वेकेशन को लेकर काफी चर्चा चल रही थी। बिबेक देबरॉय और आदित्य सिन्हा के टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख में शीर्ष अदालत में वेकेशन को लेकर सवाल उठाया गया था। लेख में कहा गया था कि क्या यह स्कूल है जो समर वेकेशन होना चाहिए? दरअसल इसकी जड़ें औपनिवेशिक काल में हैं। संविधान का ज्यादातर हिस्सा ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1935’ पर आधारित है। उसमें संघीय अदालत की व्यवस्था थी जो सुप्रीम कोर्ट है।

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