भीड़ चुप देखती रही साक्षी की हैवानी हत्या, ये है भीड़ का मनोविज्ञान
भीड़ क्यों चुपचाप देखती रही साक्षी की हत्या, इसके पीछे है दर्शक प्रभाव, जानें क्या है यह मनोविज्ञान
शाहबाद डेयरी निवासी बच्ची साक्षी की साहिल ने चाकू और पत्थरों से हत्या कर दी। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर दुनिया ने देखा। साहिल उसे चाकू से गोद रहा था और पत्थर से कुचल कुचल कर मार रहा था, तब वहां दर्जनों लोग थे। लोगों क्यों मदद के लिए आगे नहीं बढ़े इसके पीछे है दर्शक प्रभाव। जानिए क्या है ये।
नई दिल्ली31मई। दिल्ली के शाहबाद डेयरी इलाके में साहिल ने सड़क पर 16 वर्षीय लड़की साक्षी की चाकू से गोदकर हत्या कर दी। 20 वर्षीय साहिल एसी मैकेनिक है। हत्या के बाद वह भाग गया। पुलिस ने उसे बुलंदशहर से पकड़ा। साहिल 2 दिन के पुलिस रिमांड पर है। दोनों परिचित थे। बहस से साहिल नाराज था। हत्या के वक्त साक्षी अपनी दोस्त के बेटे के जन्मदिन में जा रही थी, तभी साहिल ने उसे रोक बेरहमी मार दिया। हत्या के वायरल वीडियो में साफ दिखता है कि साहिल लड़की को चाकू से बेरहमी से गोद रहा था तो 7- 8 लोग वहां थे, लेकिन सभी उदासीन दर्शक बने रहे और साहिल लड़की को चाकू घोंपता रहा। ऐसी भयावह हत्या आंखों के सामने होते देख भी लोग चुप कैसे रहे? क्यों लोगों ने उसे रोका नही? लोगों के इस व्यवहार पर सभी हैरान हैं, हालांकि एक्सपर्ट के अनुसार भीड़ के मनोविज्ञान को देखें तो यह बात समझ आती है कि भीड़ ने क्यों उसे नहीं रोका। दरअसल, मनोवैज्ञानिक इसे बाईस्टैंडर इफेक्ट (दर्शक प्रभाव) कहते हैं।
यह पहला ऐसा मामला नहीं है जब लोगों ने भीड़ को उदासीन दर्शक पाया है। अगर हम अपने आसपास ही गौर करें तो हमें हर दिन होने वाले ऐसे बहुत से अपराधों के उदाहरण मिलेंगें जब किसी पीड़ित की मदद की बजाए भीड़ आराम से तमाशा देखती रही। बहुत लोग तो वीडियो बनाने लगते हैं। फिर चाहे वह आए दिन सड़क पर होने वाली छोटी-मोटी झड़पें हों या फिर मेट्रो में होते झगड़े। सड़क पर लोग झगड़ रहे हैं तो आसपास से गुजरते लोग यह सोचकर आगे बढ़ जाते हैं कि हमें क्या। ऐसा ही उदासीनता तब भी देखने को मिलती हो जब किसी महिला से भीड़ भरी बस, मेट्रो या गाड़ियों में अभद्रता होती है और वह अकेले अपने लिए लड़ रही होती है, ऐसा कम ही होता है कि कोई पीड़ित का साथ दे। दोनों के बीच का मामला है, सोचकर भीड़ तमाशा देखती है। मनोविज्ञान की भाषा मे यही दर्शक प्रभाव यानी बाईस्टैंडर इफेक्ट है।
मनोविज्ञान की बाईस्टैंडर थ्योरी कहती है कि इसकी संभावना ज्यादा है कि अकेला इंसान किसी जरूरतमंद की मदद करने आगे बढ़े जबकि भीड़ किसी दुर्घटना या अपराध की गवाह होती है तो उसके मदद करने की संभावना काफी कम होती है। साइकॉलोजिस्ट जॉन एम. डार्ले और बिब लताने ने 1968 में सबसे पहले बाईस्टैंडर इफेक्ट समझना शुरू किया। 1964 में किटी गेनोविस से रेप और उसकी निर्मम हत्या के दौरान तमाशा देखते लोगों का मनोविज्ञान समझने को इस स्टडी की शुरुआत की गई। मार्च 1964 में अमेरिकी युवती किटी का उस समय रेप किया गया जब वह काम से घर लौट रही थी। रेप के बाद उसकी चाकू से गोदकर हत्या की गई थी। यह सब किटी के घर के सामने ही हुआ था और इसे आसपड़ोस के करीब 40 लोगों ने देखा था। 28 साल की किटी रेप और हत्या से बचने की कोशिश में चीखती-चिल्लाती रही, लेकिन कोई भी उसके मदद को नहीं आया। इस दौरान किसी ने पुलिस को कॉल किया, जब तक पुलिस घटनास्थल पर पहुंचती, किटी की मौत हो चुकी थी। रेप और हत्या के इस बर्बर अपराध ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं। डर से चुप रहने वालों को गेनोविस सिंड्रोम नाम दिया गया।सिंड्रोम का प्रयोग आम लोगों पर किया गया। मनोवैज्ञानिकों जूडिथ रोडिन और बिब लताने ने ऐसी परिस्थितियां बनाई जब किसी महिला को मदद की जरूरत थी। प्रयोग में शामिल 70 प्रतिशत लोगों को जब लगा कि महिला गिर गई है या उसे चोट लगी है तो वह मदद को आगे बढ़े। ऐसा उन्होंने तब किया जब वह अकेले थे। लेकिन जब उन्हें लगा कि महिला किसी अजनबी के साथ है, तो मात्र 40 प्रतिशत लोग उसकी मदद को आगे आए।
भीड़ की व्यवहार का कारण
200 से ज्यादा अलग-अलग तरह के अध्ययन से पता चला कि अगर पीड़ित किसी को मदद को नाम से बुलाए तो संभव है कि अकेला व्यक्ति भी मदद को सामने आए, लेकिन भीड़ में ऐसा नहीं होता। भीड़ में ज्यादातर लोगों की सोच होती है कि कोई दूसरा मदद कर देगा। भीड़ जिम्मेदारी लेने से बचती है कि कोई दूसरा पहले आगे बढ़े। यही वजह है कि लोगों की संख्या होने के बावजूद वे तमाशबीन बने रह जाते हैं। साथ ही, लोग दूसरों के मामले में फंसने से बचना चाहते हैं और आपसी विवाद समझकर चुपचाप घटना के गवाह बनते हैं। केटी गेनोविस मामले में भी यही हुआ था जो साक्षी हत्याकांड में हुआ। केटी गेनोविस के पड़ोसियों से जब पूछताछ की गई तो उनमें से ज्यादातर का बयान था कि उन्हें लगा कि यह दो प्रेमियों के बीच का विषय है। जब तक लोगों ने समझा, तब तक किटी की हत्या हो चुकी थी। ऐसा ही कुछ साक्षी मामले में भीड़ का व्यवहार नजर आया। हालांकि जिस तरह से चाकू से गोद रहा था, उस पर एक्सपर्ट का कहना है कि हमलावर के हाथ में हथियार देखकर लोगों पर डर हावी होता है कि अगर वह पीड़ित को बचाने गए तो उन पर भी हमला हो सकता है। खुद को सुरक्षित रखने की मानसिकता ही है कि लोग ऐसे अपराधों के दर्शक बनते हैं।
CrimeWhy People Did Not Help Sakshi And Try To Stop Sahil From Stabbing Her Know Social Psychological Theory Bystander Effect
साहिल चाकू-पत्थर मारता रहा, लोग देखते रहे:क्या है ‘दर्शक प्रभाव’, जिससे साक्षी को बचाने नहीं आई भीड़
28 मई यानी रविवार की रात पौने 9 बजे। दिल्ली के शाहबाद डेयरी के पास गली में नीली शर्ट पहने एक युवक साहिल खड़ा था। लोग गली से गुजर रहे थे। दोस्त के बेटे की बर्थडे पार्टी में जाने को साक्षी पास के एक पब्लिक टॉयलेट से तैयार होकर बाहर निकली। तभी गली में खड़ा साहिल ने साक्षी को रुकने को कहा।
इसके बाद उसने एक हाथ से साक्षी को पकड़ दूसरे हाथ में लिए चाकू से हमला कर दिया। साक्षी ने दीवार की ओट ले खुद को बचाने की कोशिश की। लेकिन साहिल चाकू मारता रहा। साहिल ने 66 सेकेंड तक साक्षी पर 40 बार चाकू से हमला किया। लड़की सड़क पर गिर गई तो साहिल ने वहां पड़े एक बड़े पत्थर से 6 बार उसका सिर कूंच दिया।
इसके बाद वह साक्षी को लातें मार वहां से चला गया। तब वहां से अलग-अलग उम्र के कम से कम 17 लोग गुजरते हैं। इनमें कुछ महिलाएं भी थी, लेकिन इनमें से किसी ने भी लड़की को बचाने की कोशिश नहीं की । शुरु में एक लड़के ने बचाने की कोशिश की, लेकिन बाद में वह भी वहां से चला गया। आधे घंटे तक साक्षी का शव सड़क पर पड़ा रहा।
आखिर वहां मौजूद डेढ़ दर्जन लोगों में से किसी ने साक्षी को बचाया क्यों नहीं?
इसे समझने को 6 दशक पुरानी एक घटना जानना जरूरी है। 1964 में अमेरिका के क्वींस शहर के केव गार्डन पर 28 साल की लड़की किटी जेनोविस रहती थी। 13 मार्च को इस लड़की का रेप और फिर सरेआम हत्या हो गई। हमलावर चाकू से जेनोविस पर हमला किया तो उस समय वहां 38 लोग थे।
हत्या से पहले 35 मिनट से ज्यादा समय तक केव गार्डन के पास हमलावर ने जेनोविस का पीछा किया। इसके बाद उसने लड़की पर तीन बार चाकू से हमला किया। इस समय जेनोविस ने कई बार मदद की गुहार लगाई, लेकिन वहां पर मौजूद सभी 38 लोगों ने इसे अनसुना कर दिया।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि जब जेनोविस की मौत हो गई तब एक व्यक्ति ने पुलिस को खबर दी। हमले के समय वहां मौजूद एक अन्य व्यक्ति ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा था कि मैं इस सब में शामिल नहीं होना चाहता था।
लॉस एंजिल्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस घटना के बाद एक्सपर्ट्स ने गवाहों के तमाशबीन बने रहने को समझाने को ‘दर्शक प्रभाव’ सिद्धांत स्थापित किया।
दर्शक सिद्धांत का मतलब: इस थ्योरी में बताया गया कि किसी घटना के दौरान जितने ज्यादा लोग मौजूद होंगे, वहां पर भीड़ के हस्तक्षेप करने यानी पीड़ित को बचाने की संभावना उतनी ही कम होगी।
अंग्रेजी भाषा के सबसे पुराने शब्दकोश ब्रिटानिका के मुताबिक, दर्शक सिद्धांत पर सबसे पहले शोध करने वाले 2 लोग थे। इनमें एक सामाजिक विज्ञानी बिब लताने और दूसरे जॉन डार्ले थे। इन्होंने शोध के बाद यह सिद्धांत समझाया था।
रिसर्चर लताने और डार्ले ने बताया कि कई बार दर्शक संकट में पड़े लोगों की परवाह करना चाहते हैं, लेकिन वे वास्तव में आक्रमणकारी को रोकते हैं या नहीं यह इन 5 कारणों पर निर्भर है…
घटना को नोटिस करना।
यह तय करना कि यह आपात स्थिति है।
यह देखना कि इस घटना के लिए वह व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं या नहीं।
हत्या करने वाले को रोकने का तरीका चुनना।
अंत में बचाने का फैसला करना।
एक्सपर्ट लताने और डार्ले कहते हैं कि इनमें से किसी एक भी चीज की कमी होने पर घटनास्थल पर मौजूद व्यक्ति मौके पर बचाव के लिए हस्तक्षेप नहीं करेगा।
साक्षी जैसे मामले में हमला होते देखने के बाद भी लोग बचाने क्यों नहीं आते हैं?
साइकोलॉजी टुडे के मुताबिक, लताने और डार्ले ऐसी घटनाओं के समय मौजूद लोगों के हस्तक्षेप नहीं करने के दो कारण बताते हैं। पहला- डिफ्यूजन ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी, दूसरा- सोशल इन्फ्लुएंस।
डिफ्यूजन ऑफ रिस्पॉन्सिबिलिटी: लताने और डार्ले ने बताया कि ऐसे अपराध के समय वहां पर मौजूद लोगों की संख्या जितनी ज्यादा होगी, बचाने वाले लोग उतने ही कम होंगे। दरअसल, उन्हें लगेगा कि यहां पर पहले से ही काफी लोग मौजूद हैं, ऐसे में हमें मामले में पड़ने की जरूरत नहीं है।
सोशल इन्फ्लुएंस: इस मामले में घटनास्थल पर मौजूद लोग यह सोचते हैं कि यदि कोई दूसरा मामले में हस्तक्षेप करता है तो हम भी करेंगे। साइकोलॉजी टुडे वेबसाइट के मुताबिक, कई कारणों से लोग ऐसे मामले में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। रिसर्च से पता चलता है कि जब यौन हमला होता है, तो लोगों के हस्तक्षेप करने की संभावना कम होती है…
यदि गवाह पुरुष है।
महिलाओं को कमतर आंकने वाले लोग हैं।
ड्रग्स या अल्कोहल लेने वाले लोग हैं।
CCTV में कैप्चर हुआ मर्डर, साहिल ने चाकू मारने के बाद पत्थर पटका
साहिल ने नाबालिग को 40 से ज्यादा बार चाकू मारा।
साहिल ने चाकू मारने के बाद 6 बार नाबालिग के सिर पर पत्थर पटका।
मौके पर मौजूद लोग इन 2 तरीकों से साक्षी को बचा सकते थे…
साइकोलॉजी टुडे वेबसाइट ने रिसर्च के हवाले से लिखा है कि बाईस्टैंडर इफेक्ट को 2 तरीकों से कम किया जा सकता है…
घटनास्थल पर मौजूद व्यक्ति सिर्फ तेज आवाज में चेतावनी दे सकता है कि ये क्या हो रहा है?
या फिर वहां मौजूद व्यक्ति कह सकता है कि पुलिस आ रही है। वह ऐसा करके दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकता है।