दक्षिण का औरंगजेब टीपू कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों का दुलारा क्यों है?

आज हम पहली बार ‘कोडवा’ या ‘कुर्ग’ के बारे में पढ़े।

इन्हें जानने में हमें इतना टाइम लग गया तो सोचिए कि भारत के इतिहास में कितना ब्लंडर किया गया है सो।

टीपू सुल्तान को बड़का जोद्धा बना दिया गया… लेकिन इन कोडवाओं ने टीपू और उसके बाप हैदर को एक नहीं दो नहीं तीन नहीं बल्कि 31 युद्धों में परास्त किया था। सन 1785 में उलागुल्ली के युद्ध में टीपू के 15,000 सेना को 4,000 कोडवाओं ने तरिंगन सुझा दिया था।

इतिहास में इन्हें जगह कितनी दी गई इस पोस्ट के बाद ही जाहिर हो जाएगी।
स्वतंत्र भारत के प्रथम कमांडर-इन-चीफ ऑफ इंडियन आर्मी के.एम.करियप्पा कोडवा जनजाति से ही आते हैं।
कोडवा जनजाति के हरेक परिवार से आज भी एक जन इंडियन आर्मी को जाता है और ये नियम सा है।

ज्यादा नहीं लिखना है… आप भी अपने-अपने स्तर से इन्हें पढ़ सकते है।
✍🏻गंगवा, खोपोली से।

#वाडयर नाम सुना है कभी ? अच्छा #टीपू और #हैदर ?
अब जरा जोड़िये कि हैदर और टीपू ने मिलकर कितने साल शासन किया होगा ? दोनों ने मिलकर 38 साल शोषण किया था | (टाइपिंग मिस्टेक नहीं है, शोषण ही लिखा है )

उसका ठीक दस गुना कीजिये तो जितना होगा उतना वाडयर का शासन काल था | आप चालीस साल जानते हैं, चार सौ नहीं जानते | इंटरेस्टिंग… वैरी इंटरेस्टिंग

अपनी #सभ्यता, #संस्कृति और #इतिहास को जो कौमें भूला देती है (या भुलाने देती है) उनका भविष्य कभी उज्जवल नहीं हो सकता ।
गूगल करेंगे तो पता चलेगा की इन महाशय ने हिन्दू धर्म को सुदूर कम्बोडिया तक फैलाया था जहाँ आज भी आपको शिव और विष्णु की प्रतिमाएं मिल जाएँगी ।

मतदान स्याही…इस स्याही का उत्पादन और वितरण करने वाली एकमात्र कंपनी है.मैसुर {कर्नाटक}पेँट्स एँड वार्निश लिमिटेड..मैसुर के पूर्व महाराजा नलवाड़ी कृष्णराजे वाडेयर और भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने सन् 1937 मे इस कंपनी की स्थापना की थी..1947 मे इसे सार्वजनिक उपक्रम का रुप दिया गया.1953 मे इसके राष्टियकरण के बाद इसके उत्पादन का अधिकार सिर्फ एमपीविएल नेशनल फिजिकेल लेबोरेटरी मे विकसित इस स्याही का इस्तेमाल 1962 के आम चुनावो मे होना शूरू हुआ…10मिलिग्राम कि किमत लगभग 50/-पड़ती है.और इसको बनाने का तरीका सिर्फ एक व्यक्ति को पता होता है.व है कंपनी के क्वालिटि कंट्रोल मेनेजर जो सेवानिर्विती {रिटायर्ड}के वक्त अपने उत्तराधिकारी को य जिम्मेदारी सौपते है…पीढ़ी दर पीढ़ी……

मैसूर में में विजयदशमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। मैसूर राजघराने के वाडियार जी महल में भव्य आयोजन करते हैं। देश विदेश से मेहमान आते हैं।

ये पर्व महिषासुर के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। मैसूर में आज भी राजघराने की परम्परा है।

कभी कर्नाटका मैसूर राज्य में था। फिर 1973 में मैसूर कर्नाटका का हिस्सा बन गया।

मैसूर का इतिहास बहुत शानदार है नंदा वंश भी यहाँ से जुड़ा है जिस को मगध में लिखा गया। राजा कृष्णदेव राय भी यहीं के थे। बहुत शानदार इतिहास रहा। यहाँ के इतिहास में टीपू सुलतान को घुसाया गया।

1973 में मैसूर को हटा कर कर्नाटक को राज्य बना दिया। 1973 में ही भारत सरकार को राष्ट्र पशु की याद आई।

तब ही टीपू सुल्तान के चिन्ह को भारत का राष्ट्र पशु घोषित कर दिया गया। बाघ टीपू सुल्तान का राज्य चिन्ह था। ध्वज का और सैनिको की वर्दी भी में बाघ है। ये इतिफाक हो सकता है मगर राष्ट्र पशु 1973 में घोषित हुआ और 1973 में मैसूर कर्णाटक हुआ था।

अब महिषासुर की बात भी कर लेते हैं इस राज्य में महिषासुर की पूजा होती है। महिषासुर का बाप रंभ असुरो का राजा था। एक दिन उस ने एक भैंस से सबंध बनाये । जिस कारण वामियो के बाप महिषासुर का जन्म हुआ। महिषा मतलब भैंस होता है। तब ही ये कभी भैंस बन जाता था कभी असुर।

महिषासुर का वध विजयदशमी है।

बाघ टीपू सुल्तान का राज्य चिन्ह था जिस को राष्ट्र पशु बना दिया। 1973 से पहले शेर भारत का राष्ट्रीय पशु था।

टीपू सुल्तान

आज भारत की अधिकांश जनता इसे हीरो और राष्ट्र भक्त मानती है। इसके बारे मे जितना भी आप इन्टरनेट पर पढने की कोशिश करे ज्यादातर लोग और साइट्स भगवान गिडवानी की लिखी किताब THE SWORD OF TIPU SULTAN की ही कहानी सुनाते या उसके आगे जा कर महीमामंडण करते मिलेंगे।

भगवान गिडवानी अपनी किताब के बारे मे कहते है यह उनकी तेरह साल की मेहनत का फल है।

ऐतिहासिक उपन्यास अक्सर ऐतिहासिक तथ्य और कल्पनाओं का मिश्रण होती हैं ।

गिडवानी भी अपवाद नही हैं ।

मजे कि बात यह है कि गिडवानी कभी केरल नही गये और खास कर मालाबार क्षेत्र नही गया।

बची खुची सच्चाई संजय खान की टेली सिरीज़ जो इसी the sword of tipu SULTAN के नाम से बनी थी उसने कर दी।

टीपू सुल्तान अपने पिता हैदर अली जो वाडियार राज्य का एक साधारण सैनिक हुआ करता था उसकी दुसरी पत्नी फखरूनिशा का बेटा था।

हैदर अली को दो शादीयो के बाद भी कोइ बेटा नही था। फिर अपने एक मातहत ने उसे कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले के नायकाना हटटी गांव के संत थिपपे रूद्रा स्वामी से मिलने को कहा।

कन्नड मे थिपपे का मतलब होता है कचरे का मैदान जिसके पास स्वामी जी रहा करते थे। इनकी कृपा से हैदर अली को बेटा हुआ तो उसने उन्ही के नाम पर इसका नाम थिपपे सुल्तान रखा।लेकिन अंग्रेजों ने थिपपे को थिपपू और बाद मे यह टीपू सुल्तान कहा जाने लगा।

केरल और दक्षिण भारत में यह एक घृणित नाम माना जाता है और शायद ही आपको इस नाम का कोई व्यक्ति मिले। यह उतना ही घृणित नाम है जैसे कोई अपने बच्चों का नाम रावण या कैकेयी नही रखता ।

टीपू सुल्तान या टीपू शैतान

मैसूर के वोडेयार वंश के राजा कृष्णराजा वोडेयार-II ने अनपढ़ हैदरअली को अपने दरबार में नौकरी दिया था और फिर एक दिन हैदर अली ने उसी राजा को सत्ता से बेदखल कर पूरे वोडेयार वंश को खत्म कर न सिर्फ मैसूर की सत्ता पर अधिकार कर लिया बल्कि मैसूर के हिन्दू प्रजा पर भी भयानक अत्याचार किया और उन्हें जबरन धर्मान्तरित होने को विवश किया.

उसी हैदर अली का बेटा था टीपू सुल्तान जो उसकी मौत के बाद गद्दी पर बैठा था. वह अपने बाप से भी ज्यादा क्रूर, धर्मान्ध और हिंसक था. टीपू भी अपने पूर्ववर्ती धर्मान्ध, हिंसक, जिहादी, बर्बर मुस्लिम सुल्तानों कि तरह ही था और किसी भी तरह औरंगजेब, कासिम, गौरी, गजनवी जैसे शैतानों से कम नहीं था. दक्षिण के इतिहासकारों ने उसे दक्षिण भारत का औरंगजेब की संज्ञा दी है. टीपू सुल्तान कम शैतान ज्यादा था यह शोध का विषय नहीं है; दर्जनों देशी विदेशी किताब उसके शैतानी कुकृत्यों के विवरण से भरे पड़े हैं. हम इस लेख में उन किताबों से सिर्फ कुछ उद्धरण रख रहे हैं.

पर बिडम्बना देखिए जब टीपू की सच्चाई अंग्रेज इतिहासकार बताते हैं तो वामपंथी इतिहासकार कहते हैं ब्रिटिश टीपू सुल्तान के विरोधी थे इसलिए ऐसा लिखे हैं और जब टीपू के दरबारी मुस्लिम इतिहासकार टीपू की क्रूरता, नृशंसता और जिहादी कुकृत्यों का भूरी भूरी प्रशंसा कर वर्णन करता है तो धूर्त वामपंथी इतिहासकार यह कहकर झूठ फैलाते हैं कि उन लोगों ने बढ़ा चढ़ाकर लिख दिया होगा. इसी तरह के शैतानी कुकृत्य करनेवाले तमाम इस्लामिक आक्रान्ताओं और सुल्तानों को इन वामपंथी इतिहास्यकारों ने इन्सान और महान बताकर फर्जी इतिहास लिखकर हम भारतियों को मूर्ख बना रखा है. जरा इन धूर्तों से पूछिए कि मुस्लिम इतिहासकार अगर मुस्लिम सुल्तानों द्वारा हिन्दुओं, बौद्धों के नरसंहार, उनके मन्दिरों के विध्वंस या मस्जिदों में परिवर्तन जैसे कुकृत्य का निंदा करने कि जगह बढ़ा चढ़ाकर और प्रशंसा करते हुए लिखते है तो उसका क्या अर्थ निकलता है?

मैसूर को इस्लामिक राज्य घोषित कर हिन्दुओं पर अत्याचार

टीपू सुल्तान गद्दी पर बैठते ही मैसूर को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया. मुस्लिम सुल्तानों की परम्परा के अनुसार टीपू ने आम दरबार में घोषणा की, “मै सभी काफिरों (गैर मुस्लिमों) को मुस्लमान बनाकर रहूंगा. उसने सभी हिन्दुओं को फरमान जारी कर दिया. उसने मैसूर के गाव-गाँव के मुस्लिम अधिकारियों के पास लिखित सूचना भिजवादी कि, “सभी हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षा दो. जो स्वेच्छा से मुसलमान न बने उसे बलपूर्वक मुसलमान बनाओ और जो पुरूष विरोध करे, उनका कत्ल करवा दो और उनकी स्त्रियों को पकड़कर शरिया कानून के अनुसार मुसलमानों में बाँट दो.”

इतिहासकार लिखते हैं टीपू हर गाँव में एक हाथ में तलवार और दुसरे हाथ में कुरान लेकर पहुंचा और लोगों को मुसलमान बनाया या फिर मौत के घाट उतार दिया.

कर्नाटक के डॉक्टर चिदानंद मूर्ति ने कन्नड़ भाषा में टीपू पर लिखी अपनी किताब में लिखा है, “वे बेहद चालाक शासक थे. वे तटीय क्षेत्रों और केरल के मलाबार इलाक़े पर हमले में हिंदुओं के लिए बहुत क्रूर थे.”

“वे क्रूर और पक्षपाती शासक थे. वे जिहादी थे. उन्होंने हज़ारों हिंदुओं को ज़बदरदस्ती मुस्लिम बना दिया. वह अपनी धार्मिक पुस्तक का पालन करता था जिसमें लिखा था मूर्तिपूजकों का वध करो.”

ब्रिटिश अधिकारी विलियम लोगान ने टीपू पर लिखी अपनी किताब “मालाबार मैनुअल” में टीपू को एक असहिष्णु और निरंकुश शासक बताया है. लोगान ने अपनी किताब में कई ऐसे उदाहरण दिए हैं जिसमें टीपू द्वारा बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को गिराए जाने और लाखों लोगों को तलवार के बल पर धर्मांतरण कराने की जानकारी है. अपनी इन्ही धर्मांध नीतियों के कारणों टीपू सुल्तान को दक्षिण का औरंजेब भी कहा जाता है. इस्लामीकरण का यह तांडव टीपू ने इतनी तेजी से चलाया कि पूरे हिंदू समाज में त्राहि त्राहि मच गई.इस्लामिक शैतानों से बचने का कोई उपाय न देखकर धर्म रक्षा के विचार से हजारों हिंदू स्त्री, पुरुषों ने अपने बच्चों सहित तुंगभद्रा आदि नदियों में कूद कर जान दे दी, हजारों ने अग्नि में प्रवेश कर अपनी जान दे दी.

हिन्दुओं के कत्लेआम और धर्मांतरण के लिए लिखे गये टीपू सुल्तान के पत्र

टीपू सुल्तान ने हिन्दुओं पर अत्यार एवं उनके धर्मान्तरण के लिए कुर्ग एवं मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों में अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे. जिन्हें प्रख्यात विद्वान और इतिहासकार पणिक्कर ने लन्दन के इन्डिया ऑफिस लाइब्रेरी तक पहुँच कर ढूँढ निकाला था.

टीपू सुल्तान ने १४ दिसम्बर १७८८ को कालीकट के अपने सेना नायक को पत्र लिखा:

”मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ. उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और यदि वो इस्लाम कबूल ना करे तो उनका वध कर देना. मेरा आदेश है कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को कारागृह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार को पेड़ पर लटकाकार वध कर देना.” (भाषा पोशनी-मलयालम जर्नल, अगस्त १९२३)

‌दिनांक २२ मार्च१७८८ टीपू सुल्तान ने अब्दुल कादर को पत्र लिखा:

“बारह हजार से अधिक हिन्दुओं को इस्लाम में धर्मान्तरित किया गया. इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे. इस उपलब्धि का हिन्दुओं के बीच व्यापक प्रचार किया जाए ताकि स्थानीय हिन्दुओं में भय व्याप्त हो और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए. किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए.”

टीपू सुल्तान का अपने सेनानायक को पत्र:

 

”जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में धर्मान्तरण किया जाना चाहिए; अन्यथा उनका वध करना सर्वोत्तम है; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनका इस्लाम में सम्पूर्ण धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ सत्य-असत्य, कपट और बल सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए.”

(हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन एन अटेम्पट टू ट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड २ पृष्ठ १२०)

टीपू सुल्तान ने दिनांक १९ जनवरी १७९० को बदरुज़ समाँ खान को पत्र लिखा:

 

”क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है. चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बना लिया गया. मैंनें अब उस रमन नायर की ओर बढ़ने का निश्चय किया हैं ताकि उसकी प्रजा को इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए. मैंने रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है”

कदाथंद राजा के मुख्यालय (किला) कुट्टीपुरम पर टीपू सुल्तान ने भारी सैनिकों के साथ हमला किया और किले को घेर लिया. नायरों ने यथाशक्ति प्रतिरोध किया पर किले को नहीं बचा पाने कि स्थति में आत्मसमर्पण कर दिया. उन्हें बंदी बनाकर दूसरे जगह ले जाया गया. उन्हें जबरन मुसलमान बनाया गया और खतना किया गया. अगले दिन सभी स्त्री पुरुष बंदियों को जबरन गौ मांस खिलाया गया (विकिपीडिया).

टीपू सुल्तान द्वारा मन्दिरों का विध्वंस

हरिहरेश्वर मन्दिर, हरिहर, कर्नाटक

दी मैसूर गज़टियर बताता है कि टीपू ने दक्षिण भारत में आठ सौ से अधिक मन्दिर नष्ट किये थे. के.पी. पद्मानाभ मैनन द्वारा लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ कोचीन’ और श्रीधरन मैनन द्वारा लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ केरल’ उन नष्ट किये गये मन्दिरों में से कुछ का वर्णन करते हैं:

”अगस्त १७८६ में टीपू की फौज ने प्रसिद्ध पेरुमनम मन्दिर की मूर्तियों का ध्वंस किया और त्रिचूर तथा करवन्नूर नदी के मध्य के सभी मन्दिरों का ध्वंस कर दिया. इरिनेजालाकुडा और थिरुवांचीकुलम के भव्य मन्दिरों को भी टीपू की सेना द्वारा नष्ट किया गया.

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया टीपू सुल्तान द्वारा तिन प्रमुख मन्दिरों के विध्वंस का विवरण देता है. ये हैं हरिहर के हरिहरेश्वर मन्दिर जिसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया, श्रीरंगपट्टनम के वराहस्वामी मन्दिर और होसपेट के ओडाकार्या मन्दिर (Kamath, M. V. “Tipu Sultan: Coming to terms with the past)

अन्य प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिरों में से कुछ जिन्हें लूटा गया और नष्ट किया गया था वे हैं:

त्रिप्रंगोट, थ्रिचैम्बरम्, थिरुमवाया, थिरवन्नूर, कालीकट थाली, हेमम्बिका मन्दिरपालघाट का जैन मन्दिर, माम्मियूर, परम्बाताली, पेम्मायान्दु, थिरवनजीकुलम, त्रिचूर का बडक्खुमन्नाथन मन्दिर, वेलूर शिवा मन्दिर आदि.

इतिहासकार रवि वर्मा ने टीपू सुल्तान कि क्रूरता का वर्णन किया है

“It was Tippu Sultan and his fanatic Muslim army who converted thousands of Hindus to Islam all along the invasion route and occupied areas in North Kerala, Coorg, Mangalore, and other parts of Karnataka. Besides over 8,000 Hindu temples were desecrated and/or destroyed by his Muslim army. Even today, one can see large concentrations of Muslims and ruins of hundreds of destroyed temples in North Kerala as standing evidence of the Islamic brutalities committed by Tippu Sultan … He was, all through, waging a cruel Islamic war against the unarmed Hindu population of Kerala, with a large Muslim army and ably assisted by the French with powerful field guns and European troops. …”

ब्राह्मणों पर भयानक अत्याचार

टीपू सुल्तान के दरबार में १५ नवयुवक ब्राह्मण लिपिक थे. जिनमें से १४ के दाहिने हाथ के अंगूठे और तर्जनी अंगुली कटी हुई थी. जो १५ वा युवक था वह बाएं हत्था था तो उसकी बाएं हाथ का अंगूठा और बाएं हाथ की तर्जनी काटी गई थी. किसी भी छोटी लिपिक त्रुटि पर यह दंड दिया जाता था मुख्यतः ब्राह्मणों को.

टीपू द्वारा ब्राह्मणों को एक पतले से स्थान पर घंटो खड़ा कर के प्रताड़ित किया जाता था. यदि ब्राह्मण दंड किसी तरह झेल जाता तब उसे चाबुकों से पीटा जाता था. यदि कोड़े भी ब्राह्मण झेल जाता तो उस पर सूइयां चुभाई जाती.

यदि फिर भी ब्राह्मण से वो धर्म परिवर्तन नही करवा पाते तो उसे एक पिंजरे में सड़ने देते थोड़े से चावल और नमक के साथ बिना पानी के जब तक मृत्यु न हो जाए. टीपू सुल्तान का मानना था कि अगर ब्राह्मण का धर्मपरिवर्तन करवा दिया गया तो इसके पीछे कई हिन्दू आसानी से धर्मपरिवर्तन कर लेंगे पर पर लगभग ९५% ब्राह्मणो ने अपने प्राण दे दिये लेकिन धर्मपरिवर्तन नही किया. सोर्स: द केपेटिविटी सफरिंग एंड एस्केप ऑफ जेम्स स्क्युरी (पेज नंबर 114 से 117)

श्री रंगपटनम के किले में प्राप्त टीपू का लिखवाया शिला लेख

शिलालेख के शब्द इस प्रकार हैं: ”हे सर्वशक्तिमान अल्लाह! काफिरों (गैर-मुसलमानों) के समस्त समुदाय को समाप्त कर दे. उनकी सारी जाति को बिखरा दो, उनके पैरों को लड़खड़ा दो अस्थिर कर दो! और उनकी बुद्धियों को फेर दो! मृत्यु को उनके निकट ला दो, उनके पोषण के साधनों को समाप्त कर दो. उनकी जिन्दगी के दिनों को कम कर दो. उनके शरीर सदैव उनकी चिंता के विषय बने रहें, उनके नेत्रों की दृष्टि छीन लो, उनके चेहरे काले कर दो, उनकी जीभ को बोलने के अंग को, नष्ट कर दो! उन्हें शिदौद की भाँति कत्ल कर दो जैसे फ़रोहा को डुबोया था, उन्हें भी डुबो दो और उन पर अपार क्रोध करो. हे संसार के मालिक मुझे अपनी मदद दो.” Rao, C. Hayavadana, Mysore Gazetteer. Volume II, Part IV. Government Press. p. 2697.

टीपू का जीवन चरित्र

टीपू की फारसी में लिखी ‘सुल्तान-उत-तवारीख’ और ‘तारीख-ई-खुदादादी’ नाम वाली दो जीवनियाँ हैं. ये दोनों जीवनियाँ लन्दन की इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी में रखी हुई हैं. इन दोनों जीवनियों में टीपू ने स्वयं को इस्लाम का सच्चा नायक दिखाने के लिए हिन्दुओं पर ढाये अमानवीय अत्याचारों और यातनाओं, का विस्तृत वर्णन खुद ही किया है.

यहाँ तक कि मोहिब्बुल हसन, जिसने अपनी पुस्तक, हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान में टीपू को एक समझदार, उदार और धर्मनिरपेक्ष शासक बताया था उसको भी स्वीकार करना पड़ा था कि ”तारीख यानी कि टीपू की जीवनियों के पढ़ने के बाद टीपू का जो चित्र उभरता है वह एक ऐसे धर्मान्ध, काफिरों से नफरत के लिए मतवाले पागल का है जो गैर-मुस्लिम लोगों की हत्या और उनके इस्लाम में बलात परिवर्तन कराने में सदैव लिप्त रहा था.” (हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान, मोहिब्बुल हसन, पृष्ठ ३५७)

१९६४ में प्रकाशित किताब “लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान” की माने तो उसने मलाबार क्षेत्र में एक लाख से अधिक हिंदुओं और ७० हजार से ज्यादा ईसाइयों को तलवार के दम पर इस्लाम अपनाने को मजबूर किया था. इतिहासकार पणिक्कर ने यह संख्यां पांच लाख बताई है. टीपू सुल्तान के पोते गुलाम मोहम्मद ने हैदर अली और टीपू सुल्तान पर एक किताब लिखी थी जो १८८६ में छपी थी. १९७६ में इसका दोबारा प्रकाशन किया गया. इसमें टीपू के पोते ने उन घटनाओं का जिक्र बड़े विस्तार से किया है कि टीपू इस्लाम को फैलाने के लिए हिंदुओं और अन्य धर्म के लोगों पर किस तरह के अत्याचार किया करता था.

प्रत्यक्षदर्शियों के वर्णन:

दक्षिण भारत में इस्लाम के प्रसार के लिए टीपू द्वारा किये गये भीषण अत्याचारों और यातनाओं को एक पुर्तगाली यात्री और इतिहासकार, फ्रा बार्थोलोमियो ने १७९० में अपनी आँखों से देखा था. उसने जो कुछ मालाबार में देखा उसे अपनी पुस्तक ‘वौयेज टू ईस्ट इण्डीज’ में लिखा है:

”कालीकट में हिन्दू आदमियों और औरतों को छोटी गलतियों के लिए फाँसी पर लटका दिया जाता था ताकि वो जल्दी से जल्दी इस्लाम स्वीकार कर लें. पहले माताओं और उनके बच्चों को गर्दनों से बाँधकर लटकाकर फाँसी दी जाती थी. उस बर्बर टीपू द्वारा नंगे हिन्दुओं और ईसाई लोगों को हाथियों की टांगों से बँधवा दिया जाता था और हाथियों को तब तक दौड़ाया जाता था जब तक कि उन असहाय निरीह विपत्तिग्रस्त प्राणियों के शरीरों के चिथड़े-चिथड़े नहीं हो जाते थे.

मन्दिरों और गिरिजों में आग लगाने, खण्डित करने, और ध्वंस करने के आदेश दिये जाते थे. टीपू की सेना से बचकर भागने वालों और वाराप्पुझा पहुँच पाने वाले अभागे व्यक्तियों से सुनकर मैं विचलित हो उठा था… मैंने स्वंय अनेकों ऐसे विपत्ति ग्रस्त व्यक्तियों को वाराप्पुझा नदी को नाव द्वारा पार जाने के लिए सहयोग किया था.’ ‘ (वौयेज टू ईस्ट इण्डीजः फ्रा बर्थोलोमियो पृष्ठ १४१-१४२)

टीपू सुल्तान की डायरी

“चिराकुल राजा ने मेरी सेना द्वारा स्थानीय मन्दिरों को विनाश से बचाने के लिए मुझे चार लाख रुपये का सोना चाँदी देने का प्रस्ताव रखा था. किन्तु मैंने उत्तर दिया यदि सारी दुनिया भी मुझे दे दी जाए तो भी मैं हिन्दू मन्दिरों को ध्वंस करने से नहीं रुकूँगा (फ्रीडम स्ट्रगिल इन केरल: सरदार के.एम.पाणिक्कर).

टीपू द्वारा केरल की विजय का प्रलयंकारी एवं सजीव वर्णन, ‘गजैटियर ऑफ केरल के सम्पादक और विख्यात इतिहासकार ए. श्रीधर मैनन द्वारा किया गया है. उसके अनुसार, “हिन्दू लोग, विशेष कर नायर और सरदार जाति के लोग जिन्होंने टीपू के पहले से ही इस्लामी आक्रमणकारियों का प्रतिरोध किया था, टीपू के क्रोध का प्रमुख निशाना बन गये थे. सैकड़ों नायर महिलाओं और बच्चों को पकड़ कर श्री रंगपट्टनम ले जाया गया और डचों के हाथ दास के रूप में बेच दिया गया था. हजारों ब्राह्मणों, क्षत्रियों और हिन्दुओं के अन्य सम्माननीय जाति के लोगों को इस्लाम या मृत्यु में से एक चुनने को बाध्य किया गया.”

अफगानिस्तान के शाह से मिलकर भारत विरोधी षड्यंत्र

मैसूर के तृतीय युद्ध (१७९२) के पहले से ही टीपू सुल्तान अफगानिस्तान के कट्टर इस्लामी शासक जमनशाह जो भारत में हिन्दुओं के खून की होली खेलने वाले अहमदशाह अब्दाली का परपोता था को पत्र लिखा करता था जिसे कबीर कौसर ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान (पृष्ठ१४१-१४७) में इसका अनुवाद किया है:

१. टीपू के ज़मन शाह के लिए पत्र

”महामहिम आपको सूचित किया गया होगा कि, मेरी महान अभिलाषा का उद्देश्य जिहाद है. मेरी इस युक्ति का अल्लाह ‘नोआ के आर्क’ की भाँति रक्षा करता है और त्यागे हुए काफिरों की बढ़ी हुई भुजाओं को काटता रहता है.”

२.टीपू से जमनशाह को पत्र दिनांक ५ फरवरी १७९७:

”… .इन परिस्थितियों में जो, पूर्व से लेकर पश्चिम तक, मैं विचार करता हूँ कि अल्लाह और उसके पैगम्बर के आदेशों से हमें अपने धर्म के शत्रुओं के विरुद्ध जिहाद करने के लिए, संगठित हो जाना चाहिए. इस क्षेत्र में इस्लाम के अनुयाई, शुक्रवार के दिन एक निश्चित किये हुए स्थान पर एकत्र होकर प्रार्थना करते हैं.

”हे अल्लाह! उन लोगों को, जिन्होंने इस्लाम का मार्ग रोक रखा है, कत्ल कर दो. उनके पापों को लिए, उनके निश्चित दण्ड द्वारा, उनके सिरों को दण्ड दो.”

मेरा पूरा विश्वास है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह अपने प्रियजनों के हित के लिए उनकी प्रार्थनाएं स्वीकार कर लेगा और तेरी (अल्लाह की) सेनायें ही विजयी होंगी.”

श्रीरंगपट्टनम हारने के बाद (४ मई १७९९) ज़ब्त की गई टीपू सुलतान की तलवार की मूठ पर लिखा है: “मेरी तलवार काफिरों के लिए चमकती है, ऐ खुदा!! उसे विजयी बना, जो पैगम्बर पर भरोसा करता है, जो मोहम्मद पर विश्वास नहीं करते उनका नाश करना और जो इस तरफ झुकाव रखते हैं, उन्हें बचाना…” (हिस्ट्री ऑफ मैसूर सी.एच. राव खण्ड ३, पृष्ठ १०७३)

विकिपीडिया ने कई ग्रंथों से साक्ष्य देकर टीपू सुल्तान की क्रूरता के बारे में लिखा है

Tipu got Runmust Khan, the Nawab of Kurnool, to launch a surprise attack upon the Kodava Hindus (also called Coorgs or Coorgis) who were besieged by the invading Muslim army. 500 were killed and over 40,000 Kodavas fled to the woods and concealed themselves in the mountains.

In Seringapatam, the young men were reported to be forcibly circumcised and incorporated into the Ahmedy Corps, and they formed eight Risalas or regiments. Thousands of Kodava Hindus were seized along with the Raja and held captive at Seringapatam (Srirangapatna). They were also subjected to forcible conversions to Islam, death, and torture. The actual number of Kodavas that were captured in the operation is unclear. The British administrator Mark Wilks gives it as 70,000, historian Lewis Rice arrives at the figure of 85,000, while Mir Kirmani’s score for the Coorg campaign is 80,000 men, women and child prisoners. In a letter to Runmust Khan, Tipu himself stated:

We proceeded with the utmost speed, and, at once, made prisoners of 40,000 occasion-seeking and sedition-exciting Coorgis, who alarmed at the approach of our victorious army, had slunk into woods, and concealed themselves in lofty mountains, inaccessible even to birds. Then carrying them away from their native country (the native place of sedition) we raised them to the honour of Islam, and incorporated them into our Ahmedy corps. (Wikipedia: prosecution of Hindus)

@आलेख आनन्द कुमार जी की पोस्ट और इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं पर आधारित है।

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