‘हिंदुओं की सहनशीलता की परीक्षा क्यों?’: आदिपुरुष पर इलाहाबाद हाईकोर्ट

‘हिंदुओं की सहनशीलता का टेस्ट क्यों… ‘हिंदुओं की सहनशीलता का टेस्ट क्यों लिया जा रहा है?’ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘आदिपुरुष’ के निर्माताओं को फटकार लगाई

Avanish Pathak

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भगवान राम और भगवान हनुमान सहित धार्मिक चरित्रों को आपत्तिजनक तरीके से चित्रित करने को फिल्म आदिपुरुष के निर्माताओं की कड़ी आलोचना की है। कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते पूछा कि एक विशेष धर्म (हिंदू धर्म) की सहिष्णुता का स्तर क्यों परखा जा रहा है? जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने कहा,  सौम्य को दबा देना चाहिए? क्या ऐसा है? यह अच्छा है कि यह एक ऐसे धर्म के बारे में है, जिसके अनुयाईयों ने कानून व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं की। हमें आभारी होना चाहिए। हमने समाचारों में देखा कि कुछ लोग “सिनेमा हॉल में गए (जहां फिल्म प्रदर्शित हो रही थी) और उन्होंने केवल हॉल बंद करने को दबाव डाला, वे कुछ और भी कर सकते थे।”

पीठ ने कहा कि सीबीएफसी को इस मामले में प्रमाणपत्र देते समय कुछ करना चाहिए था। पीठ ने कहा, “अगर हम लोग इस पर भी आंख बंद कर लें क्योंकि ये कहा जाता है कि ये धर्म के लोग बड़े सहिष्‍णु हैं तो क्या उसका टेस्ट लिया जाएगा?”

कोर्ट ने यह टिप्पणी ओम राउत की फिल्‍म आदिपुरुष प्रदर्शन और संवादों के खिलाफ दायर दो जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई करते की। फिल्म के संवाद मनोज मुंतशिर शुक्ला ने लिखे हैं। यह देखते हुए कि धार्मिक ग्रंथ, जिनके प्रति लोग संवेदनशील हैं, को छुआ नहीं जाना चाहिए या उनमें घुसपैठ नहीं करनी चाहिए, पीठ ने जोर दिया कि उसके समक्ष दायर याचिकाएं बिल्कुल भी प्रचार को दायर याचिकाएं नहीं है और एक वास्तविक मुद्दे से संबंधित थीं।

पीठ ने कहा कि कैसे भगवान हनुमान, भगवान राम, भगवान लक्ष्मण, सीता मां को ऐसे चित्रित किया गया जैसे कि वे कुछ भी नहीं थे। उत्तरदाताओं के इस तर्क कि फिल्म में एक अस्वीकरण जोड़ा गया था, पीठ ने कहा, “क्या डिस्क्लेमर लगाने वाले देशवासियों और युवाओं को बुद्धिहीन मानते हैं? आप भगवान राम, भगवान लक्ष्मण, भगवान हनुमान, रावण, लंका दिखाते हैं और फिर कहते हैं कि यह रामायण नहीं है?”

कोर्ट ने भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया कि जब फिल्म में प्रथम दृष्टया आपत्तिजनक दृश्य और संवाद हैं तो वह फिल्म का बचाव कैसे करेंगे। हालांकि, अदालत ने उनसे इस मामले में सक्षम प्राधिकारी से निर्देश लेने को कहा।

पीठ को  सूचित किया गया कि फिल्म के कुछ आपत्तिजनक संवाद बदल दिये गये हैं, पीठ ने जवाब दिया, “अकेले इससे काम नहीं चलेगा। आप दृश्यों का क्या करेंगे? निर्देश लें, फिर हम जो करना चाहते हैं वो जरूर करेंगें…अगर फिल्म का प्रदर्शन रोका गया तो जिन लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं , राहत मिलेगी।”

कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक की वकील रंजना अग्निहोत्री ने बताया कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और ऐसा पीके, मोहल्ला अस्सी, हैदर आदि फिल्मों में भी हो चुका है।

अंत में, अदालत ने फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला को जनहित याचिका में प्रतिवादी पक्ष के रूप में शामिल करने की मांग करने वाली याचिका स्वीकार कर उन्हें नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।

दिसंबर में दायर की गई थी जनहित याचिका

हाईकोर्ट की पीठ सामाजिक कार्यकर्ता कुलदीप तिवारी और बंदना कुमार की ओर से से वकील रंजना अग्निहोत्री और सुधा शर्मा के माध्यम से पिछले साल दिसंबर में दायर जनहित याहिका पर सुनवाई कर रही थी।  याचिका में हाल ही में एक संशोधन आवेदन दायर किया गया था। याचिका में कहा गया है कि फिल्म महान महाकाव्य रामायण के पात्रों पर आक्षेप लगाती है और अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत की छवि धूमिल करती है।

संशोधन याचिका में कहा गया है, “मनोज मुंतशिर ने समृद्ध संस्कृति और सबसे पुरानी सभ्यता यानी सनातन संस्कृति पर हमला कर फिल्म के संवाद लिखते समय, हमारे देवताओं की भाषा पूरी तरह से नष्ट कर दी है, हमारे आइकन और रोल मॉडल के चरित्रों का हनन किया है…(शुक्ला) ने रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर आपत्तिजनक, बहुत निम्न स्तर के, सस्ते और हास्यास्पद संवाद लिखे … फिल्म में धार्मिक पात्रों को गलत और अनुचित तरीके से प्रस्तुत करके हिंदू समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, जो महर्षि वाल्मिकी और संत तुलसीदास जैसे महाकवियों के दिए विवरणों के खिलाफ है।”

याचिका में फिल्म का ट्रेलर भद्दा और अश्लील कहा गया, जिसके परिणामस्वरूप हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हुई।

संशोधन याचिका में कहा गया है, “फिल्म में रावण और भगवान हनुमान जैसे पात्रों का चित्रण पूरी तरह से भारतीय सभ्यता से अलग है। फिल्म में सैफ अली खान का निभाया गया रावण का दाढ़ी वाला लुक हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत करता है, ब्राह्मण रावण को कच्चा लाल मांस खिलाते दिखाया गया है, वह गलत तरीके से भयानक चेहरा बना रहा है, जो हिंदू सभ्यता का अपमान है।”

संशोधन याचिका में फिल्म से आपत्तिजनक संवादों और दृश्यों को हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

 आदिपुरुष विवाद : ‘क्या यूनियन ऑफ़ इंडिया जनहित में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम में कदम उठाएगा?’: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूछा, संवाद लेखक मनोज मुंतशिर को नोटिस 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदिपुरुष फिल्म के प्रदर्शन के खिलाफ दायर दो जनहित याचिकाओं से निपटते हुए मंगलवार को भारत संघ से पूछा कि क्या वह सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 6 में अपनी पुनरीक्षण शक्ति को लागू करके बड़े पैमाने पर जनहित में उचित कदम उठाने पर विचार कर रहा है। संदर्भ को सिनेमैटोग्राफ अधिनियम का उपर्युक्त प्रावधान केंद्र सरकार को पुनरीक्षण शक्तियां प्रदान करता है, जिससे वह किसी भी कार्यवाही का रिकॉर्ड मांग सकती है, जो पहले लंबित है, या जिस पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से निर्णय हो चुका है। भारत संघ किसी भी स्तर पर ऐसा कर सकता है।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने जनहित याचिका में फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला को पार्टी प्रतिवादी के रूप में शामिल करने की मांग करने वाली अर्जी भी स्वीकार कर उन्हें नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। यह आदेश आज तब पारित किया गया जब डिवीजन बेंच ने भगवान राम और भगवान हनुमान सहित धार्मिक पात्रों को आपत्तिजनक तरीके से चित्रित करने को ‘आदिपुरुष’ के फिल्म निर्माताओं की खिंचाई की। कोर्ट ने तीखी टिप्पणी में पूछा कि एक विशेष धर्म (हिंदू धर्म) की सहिष्णुता के स्तर को क्यों परखा जा रहा है। पीठ ने कहा, “जो सौम्य है, उसे दबा देना चाहिए? क्या ऐसा है? यह अच्छा है कि यह एक ऐसे धर्म के बारे में है, जिसके मानने वालों ने कानून व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं की। हमें आभारी होना चाहिए। हमने समाचारों में देखा कि कुछ लोगों ने “सिनेमा हॉल में गए (जहां फिल्म प्रदर्शित हो रही थी) और उन्होंने केवल हॉल बंद करने को दबाव डाला, वे कुछ और भी कर सकते थे।” पीठ ने कहा कि सीबीएफसी को इस मामले में प्रमाणपत्र देते समय कुछ करना चाहिए था। पीठ ने आगे कहा, “अगर हम लोग इस पर भी आंख बंद कर लें क्योंकि  कहा जाता है कि ये धर्म के लोग बड़े सहिष्‍णु हैं तो क्या उसका टेस्ट लिया जाएगा?” कोर्ट ने यह टिप्पणी ओम राउत की फिल्‍म आदिपुरुष प्रदर्शन और संवादों के खिलाफ दायर दो जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई करते की। सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं में से एक की वकील रंजना अग्निहोत्री ने अदालत का ध्यान फिल्म के कुछ हिस्से की आपत्तिजनक रंगीन तस्वीरों की ओर आकर्षित किया। उन्होंने सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5-बी की उपधारा 2 में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों के प्रमाणन के लिए जारी दिशानिर्देशों की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया, जिससे यह दिखाया जा सके कि फिल्म के न केवल कुछ संवाद बल्कि भगवान राम, देवी सीता, भगवान हनुमान, रावण और विभीषण की पत्नी आदि का चित्रण भी दिशानिर्देशों के अनुसार चित्रित नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि फिल्म पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाए क्योंकि उपरोक्त फिल्म न केवल बड़े पैमाने पर लोगों की भावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, जो भगवान राम, देवी सीता, भगवान हनुमान आदि की पूजा करते हैं, बल्कि इसके तरीके को भी प्रभावित कर सकते हैं। रामायण के जिस चरित्र का चित्रण किया गया है, उससे समाज में भयंकर वैमनस्यता भी उत्पन्न होगी। दूसरी ओर, जब कोर्ट ने भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल, सीनियर एडवोकेट एसबी पांडे से पूछा कि उन्हें इस मामले में क्या कहना है, तो उन्होंने सक्षम प्राधिकारी से निर्देश लेने के बाद तथ्यों को सत्यापित करने के लिए कुछ समय देने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि फिल्म प्रमाणन बोर्ड फिल्म को पहले ही जारी किए गए प्रमाणपत्र पर दोबारा गौर नहीं कर सकता और सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 की धारा 6 के अनुसार, पुनरीक्षण शक्ति केंद्र सरकार के पास है। इसके अलावा, जब उन्होंने प्रस्तुत किया कि उन्हें बताया गया है कि फिल्म शुरू करने से पहले इस आशय का डिस्क्लेमर दिखाया गया है कि यह फिल्म रामायण नहीं है तो न्यायालय ने उनसे निम्नलिखित प्रश्न पूछा: “ …जब फिल्म निर्माता ने भगवान राम, देवी सीता, भगवान लक्ष्मण, भगवान हनुमान, रावण, लंका आदि को दिखाया है तो फिल्म का डिस्क्लेमर बड़े पैमाने पर लोगों को कैसे समझाएगा कि कहानी रामायण से नहीं है? ”

इसके बाद अदालत ने उन्हें भारत संघ, विशेष रूप से सूचना और प्रसारण मंत्रालय (विपरीत पक्ष संख्या 1) और फिल्म प्रमाणन बोर्ड (विपरीत पक्ष संख्या 3) से पूर्ण निर्देश प्राप्त करने के लिए 24 घंटे का समय दिया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए बुधवार को पोस्ट कर दिया।

अपीयरेंस याचिकाकर्ताओं के वकील: रंजना अग्निहोत्री, प्रिंस लेनिन प्रतिवादी के लिए वकील: सीनियर एडवोकेट एसबी पांडे (भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल) की सहायता को अडवोकेट अश्विनी कुमार सिंह (विपरीत पक्ष संख्या 1 और 3 के लिए); यूपी के अपर एडवोकेट जनरल विनोद कुमार शाही, मुख्य सरकारी वकील शैलेन्द्र कुमार सिंह।

केस टाइटल- कुलदीप तिवारी एवं अन्य बनाम सचिव, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से भारत संघ और 13 अन्य [सार्वजनिक हित याचिका (पीआईएल) नंबर- 728/2023

 

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