आखिर क्यों है 16 करोड़ जोलजेंस्मा इंजेक्शन की कीमत?
Zolgensma: आखिर क्यों 16 करोड़ रुपये की है इस दवा की एक डोज? किस बीमारी का और कैसे करती है इलाज
सृष्टि (Srishti) देश की दूसरी बच्ची है, जिसे 16 करोड़ का जोलजेस्मा (Zolgensma) नामक इंजेक्शन लगाया
हाइलाइट्स
सब कुछ ठीक रहा तो झारखंड की सृष्टि अब एक सामान्य बच्ची की जिंदगी जी सकेगी
दुर्लभ बीमारी से जूझ रही दो साल की सृष्टि को जोलजेस्मा इंजेक्शन लगा दिया गया है
इतनी बड़ी आर्थिक मदद कोल इंडिया ने मुहैया कराई थी
नई दिल्ली27फरवरी।स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 (Spinal Muscular Atrophy) नामक दुर्लभ बीमारी से जूझ रही दो साल की सृष्टि (Srishti) को नई दिल्ली स्थित एम्स में शुक्रवार को जोलजेस्मा (Zolgensma) नामक इंजेक्शन लगा दिया गया है। इस इंजेक्शन की एक डोज की कीमत 16 करोड़ रुपये है और इतनी बड़ी आर्थिक मदद कोल इंडिया ने उपलब्ध कराई थी। अगर सब कुछ ठीक रहा तो झारखंड की सृष्टि अब एक सामान्य बच्ची की जिंदगी जी सकेगी।आइए जानते हैं इस इंजेक्शन के बारे में और क्यों यह इतना महंगा है…
दुनिया की सबसे महंगी दवा
जोलजेस्मा इंजेक्शन स्विट्जरलैंड की नोवार्टिस कंपनी विशेष ऑर्डर पर बनाती है। जोलजेस्मा दुनिया की सबसे महंगी दवा है। यह एक लाइफ सेविंग दवा है और दुर्लभ आनुवंशिक स्थिति से पीड़ित शिशुओं और छोटे बच्चों में गतिशीलता को सक्षम कर सकती है। यह 2 वर्ष से कम उम्र के बाल रोगी के स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) के उपचार में इस्तेमाल होती है। एसएमए एक दुर्लभ और अक्सर घातक अनुवांशिक बीमारी है जो पैरालैसिस, मांसपेशियों की कमजोरी और मूवमेंट के प्रोग्रेसिव लॉस का कारण बनती है। गंभीर टाइप 1 एसएमए इस स्थिति का सबसे सामान्य रूप है। इसके साथ पैदा हुए बच्चे केवल दो साल जिंदा रह सकते हैं।
कैसे काम करती है यह दवा
जोलजेस्मा एक एडेनो-एसोसिएटेड वायरस वेक्टर-बेस्ड जीन थेरेपी है। एकबारगी जीन थेरेपी एसएमए का इलाज करती है। जीन थेरेपी में बीमारी के इलाज के लिए फॉल्टी या नॉन वर्किंग जीन को नए वर्किंग जीन से रिप्लेस किया जाता है। जोलजेस्मा मरीज में मानव SMN जीन की एक नई, कार्यशील कॉपी के जरिए मिसिंग या नॉन वर्किंग SMN1 जीन को बदलती है। यह एक वेक्टर का उपयोग करके ऐसा करती है। वेक्टर एक एक वाहक है जो शरीर में नए, काम कर रहे SMN1 जीन को प्राप्त कर सकता है। इस मामले में वेक्टर एक वायरस है जिसका डीएनए हटा दिया गया है और एसएमएन 1 जीन के साथ बदल दिया गया है। इस प्रकार का वायरस आपको बीमार नहीं करता है, लेकिन यह जल्दी से शरीर के माध्यम से मोटर न्यूरॉन कोशिकाओं तक जा सकता है और नए जीन को डिलीवर कर सकता है।
Zolgensma मोटर न्यूरॉन सेल के न्यूक्लियस के अंदर बैठता है और मोटर न्यूरॉन सेल को नया SMN1 प्रोटीन बनाना शुरू करने के लिए कहता है। एक बार जब जीन अपने गंतव्य तक पहुंच जाते हैं, तो वैक्टर टूट जाते हैं और शरीर से बाहर निकल जाते हैं और बच्चे के डीएनए का हिस्सा नहीं बनते हैं। जोलजेस्मा ने शिशुओं को बिना वेंटिलेटर के सांस लेने, अपने दम पर बैठने और क्रॉल करने और सिंगल इन्फ्यूजन ट्रीटमेंट के बाद चलने जैसे मील के पत्थर तक पहुंचने में मदद की है। यह दवा टाइप 1 एसएमए वाले छोटे बच्चों के जीवन को लम्बा खींच सकती है।
क्यों होती है इतनी महंगी?
जोलजेस्मा पर्सनलाइज्ड या प्रिसीजन मेडिसिन की श्रेणी में आती है। इसका कारण है कि यह एक ऐसी दवा है जो किसी व्यक्ति के यूनीक जेनेटिक कोड के कारण होने वाली विशिष्ट समस्याओं को लक्षित करती है। प्रिसीजन मेडिसिन को बीमारियों के इलाज में कन्वेंशनल दवाओं से ज्यादा प्रभावी माना जाता है। जीन थेरेपी प्रभावी इलाज तो है लेकिन इसकी दवा बनाने की प्रक्रिया महंगी और कठिन है। यही वजह है कि इस लागत का बोझ दवा मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां मरीजों पर डालती हैं।
प्रॉडक्शन की प्रॉसेस के चलते दुर्लभ बीमारियों के इलाज वाली दवा बनाने के लिए दुनिया में पर्याप्त मैन्युफैक्चरिंग क्षमता भी नहीं है। मैन्युफैक्चरर्स को जीन थेरेपी की दवा बनाने के लिए बेहद महंगा कच्चा माल खरीदना पड़ता है, तो क्षमता विस्तार कैसे हो। इसी के चलते जोलजेस्मा की कीमत इतनी उच्च है।
सृष्टि के लिए कैसे जुटाई गई इतनी बड़ी आर्थिक मदद?
सृष्टि के पिता सतीश छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में साउथ इस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड एसईसीएल में कार्यरत हैं। सृष्टि लगभग एक साल से वेंटीलेटर पर है। उसकी बीमारी का इलाज सिर्फ जोलजेस्मा इंजेक्शन है। सृष्टि के परिवार के लिए इस इंजेक्शन के लिए 16 करोड़ रुपये की राशि जुटा पाना आसान नहीं था, इसलिए कइ लोगों से मदद की गुहार लगाई गई। पिछले छह महीने से छत्तीसगढ़ से लेकर झारखंड तक क्राउड फंडिंग का अभियान चलाया जा रहा था, लेकिन इससे मात्र 40 लाख रुपये ही जुट पाये थे।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, चतरा के सांसद सुनील सिंह सहित कई लोगों ने सृष्टि के इलाज की मदद के लिए देश की कई बड़ी कंपनियों को पत्र लिखा था। एसईसीएल के कर्मियों ने भी मदद की गुहार लगाते हुए कंपनी को पत्र लिखा था। इसके बाद एसईसीएल ने कोल इंडिया को प्रस्ताव भेजा और आखिरकार कोल इंडिया ने अपने एक साधारण कर्मचारी की बेटी के लिए इतनी बड़ी आर्थिक सहायता मंजूर कर ली।