मत: तो ‘माननीय’ अतीक ‘जी’ को श्रद्धांजलि देगी अब लोकसभा -विधानसभा?
Lucknow Politics Will Lok Sabha And Up Assembly Pay Respect To Atiq Ahmed And Ashraf Ahmad
संपादकीय: हमारे वोट से लोकतंत्र के मंदिर पहुंचा अतीक अहमद, क्या सदन श्रद्धांजलि देगी?
अतीक अहमद पांच बार उत्तर प्रदेश विधानसभा और एक बार लोकसभा का सदस्य रहा
हमारे देश की राजनीति में बाहुबल के योगदान पर कई थीसिस लिख दिए गए हैं और आगे लिखे भी जाएंगें। अतीक अहमद और अशरफ अहमद पर फोकस शायद आने वाले थीसिस में हो। लेकिन क्या अतीक के साथ ही राजनीति में अपराधियों का हस्तक्षेप खत्म माना जाए?
हाइलाइट्स
क्या अतीक को दी जाएगी श्रद्धांजलि?
विधानसभा-लोकसभा का सदस्य रहा अतीक
पूर्व सदस्यों की याद में मौन की रही है परंपरा
माफिया अतीक या लॉ मेकर अतीक
सिस्टम की कमियों का परिणाम था अतीक
मेरे मन में बार-बार एक बात कौंध रही है। क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा और लोकसभा में जब अगले सत्र की शुरुआत होगी तो पूर्व सदस्य अतीक अहमद को श्रद्धांजलि दी जाएगी? क्या याद में मौन रखा जाएगा? क्या सदन की कार्यवाही श्रद्धांजलि के बाद स्थगित कर दी जाएगी? आज कुछ इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करेंगे।
इस बीच पुलिस कस्टडी में अतीक अहमद और अशरफ अहमद की हत्या से कानून की हत्या हुई या नहीं इस पर बहस जारी है। बहस इस पर भी हो रही है कि अतीक अहमद को कैसे पुकारा जाए। उसके या उनके नाम के आगे जी लगाया जाए या नहीं। लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिन पर बहस की गुंजाइश नहीं है। जैसे – अतीक-अशरफ के साथ ही प्रयागराज और पूरे उत्तर प्रदेश से उनके या उसके आतंक का खात्मा हो गया, अतीक ने जो बीज बोया था अंत में उसी फसल को काटना पड़ा, शिक्षा के बदले बचपन में ही जिस बेटे को हथियार चलाना सिखाया वो अतीक के जीते जी एनकाउंटर में मारा गया, दो अव्यस्क बच्चे सुधार गृह में हैं, दो व्यस्क बेटे जेल में हैं, पत्नी शाइस्ता परवीन अपने माथे पर 50 हजार का इनाम लिए दर-दर भटक रही है, पुलिस पीछे पड़ी है, 11 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति में से कुछ दो हजार करोड़ रुपए की संपत्ति पर बुलडोजर चल चुका है, पूजा पाल, सूरजकली और पुष्पा जैसी सैंकड़ों महिलाओं को सांत्वना मिली है जिनका सुहाग उजड़ गया और कब्जा ली गई जमीन आज तक वापस नहीं मिली, उमेश पाल की विधवा खुश है, उमेश के साथ बलिदान दोनों गनरों के घरों में शोक के बीच संतोष है। संतोष इस बात से कि योगी आदित्यनाथ ने जिस माफिया को मिट्टी में मिलाने की बात कही थी, वो मिट्टी में मिल चुका है।
ये सब तथ्य हैं। टीवी के पर्दे पर आ चुके। खबरों में छप चुके। अब कुछ उन बिंदुओं पर आते हैं जिन पर सवाल उठ रहे हैं।
1. क्या अतीक के बेटे असद और शूटर गुलाम का एनकाउंटर फर्जी था?
2.असद के एनकाउंटर के बाद अतीक की सुरक्षा और बढ़ानी चाहिए थी लेकिन मेडिकल के लिए जाने के दौरान लवलेश, सनी और अरुण मौर्य ने कैसे उसे भून डाला?
3. साबरमती जेल टू प्रयागराज गाड़ी नहीं पलटी लेकिन मीडिया के वेश में भी कोई हत्या कर सकता है, क्या इस तरह के कुछ ट्वीट पहले ही सामने नहीं आए?
4.अतीक-अशरफ पर हमले के दौरान पुलिस ने काउंटर एक्शन क्यों नहीं किया?
5.हमलावरों के खाने के लाले पड़े थे फिर जिगाना जैसी महंगी पिस्टल किसने दी, क्या अतीक के मर्डर की प्लानिंग बन चुकी थी?
6. अतीक ने हत्या का आशंका जता दी थी और अशरफ ने भी, फिर हर दिन मीडिया से उनके या उसके साक्षात्कार की क्या जरूरत थी?
7.क्या अतीक-अशरफ की हत्या आसमानी न्याय है जैसा योगी के एक मंत्री ने कहा?
8.अगर ऐसा है तो धरती पर कायम न्यायिक व्यवस्था से क्या सरकार का ही प्रभुत्व समाप्त हो गया है?
9.क्या उत्तर प्रदेश पुलिस स्टेट बनने की तरफ अग्रसर है
10. क्या गुड्डू मुस्लिम पकड़ा जाएगा या मारा जाएगा?क्या बाहुबल और राजनीति का मिलन खत्म ?
इन दस सवालों के बाद ये भी सोचिए कि क्या बाहुबल और राजनीति का मिलन अतीक के अंत के साथ ही खत्म हो जाएगा? गुजरात में पहली महिला डॉन संतोख बेन जडेजा से लेकर बिहार में शहाबुद्दीन तक, राजनीति में धौंस और चुनाव जीतने की मशीनरी के तौर पर सफेदपोशों ने अपराध की दुनिया से दोस्ती की। और मौका मिलते ही बाहुबली खुद राजनीति में हस्तक्षेप करने लगा। अब कुछ उदाहरण देख लीजिए,
पांच दिसंबर, 1994 – गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की मुजफ्फरपुर, बिहार में हत्या कर दी जाती है। एक दिन पहले डॉन छोटन शुक्ला की हत्या हुई थी और शवयात्रा में रेड लाइट गाड़ी दिखी तो जिलाधिकारी की हत्या कर दी । करने वाले कौन थे। एक जो विधायक बना, दूसरा आनंद मोहन जो आजीवन कारावास की सजा काट अब जेल से निकलने वाला है। इस सजा भुगते अपराधी को गले लगाने के लिए नीतीश कुमार से लेकर सुशील मोदी तक आतुर हैं।
14 जून 1998 – पूर्णिया में माकपा विधायक अजीत सरकार के शरीर में 107 गोलियां दागने वाले कौन थे? न्यायिक सिस्टम की खराबी कहिए या पुलिस की ढीली जांच, वो मुक्त हो गए लेकिन चरित्र पर खून के छींटे तो रहेंगे ही। आजकल राजद और जेडीयू, दोनों के भोजों में उनकी प्रतीक्षा होती है। कहा जाता है कि किम डेवी ने पुरुलिया के आसमान से एके-47 की जो बरसात की थी उसी से इस यादव बाहुबली को बल मिला था।
2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में तो राजन तिवारी, सूरजभान जैसे एक दर्जन एक-47 धारी सदन में पहुंचे थे। उत्तर प्रदेश में हरिशंकर तिवारी-वीरेंद्र शाही, मुख्तार अंसारी-बृजेश सिंह अपराध के रास्ते ही सदन में पहुंचे। उत्तर प्रदेश में इसी क्रम का नाम था अतीक अहमद। सबने दुरुपयोग किया। बढ़ाया, गिराया। 1989 में ये अपराधी इलाहाबाद पश्चिम से निर्दलीय विधायक बनता है तो एक सिलसिला बनता है। समाजवादी पार्टी का कद्दावर नेता बनता है। पांच बार लगातार विधायक। और 2004 में जवाहरलाल नेहरू की फूलपुर सीट से लोकतंत्र के मंदिर में कदम रखता है। सवाल ये है कि 1979 में पहला मर्डर करने वाला व्यक्ति 2014 के चुनाव तक प्रयागराज से लेकर श्रावस्ती तक की जनता के लाखों वोट पाता है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या ये सारे वोट भय से लिए गए? और हां तो ये क्या हमारे तंत्र की कमजोरी नहीं है?
और अब मैं वहां लौटता हूं जहां से शुरुआत हुई थी। जनता जनार्दन के आशीर्वाद से लोकतंत्र के मंदिर में पहुंचा अतीक आज मिट्टी में दबा है। तो क्या सिर्फ अपराध के बूते दबा है? हम इस बात को कैसे झुठला सकते हैं कि हमने-आपने ही अपने वोट से उसे लॉ मेकर यानी कानून निर्माता बनाया। लेकिन वो कानून की मौत नहीं मर सका। ये हम सबके लिए सोचने का विषय है। लेकिन इंतजार रहेगा उत्तर प्रदेश विधानसभा और लोकसभा के अगले सत्र के पहले दिन का। देखते हैं पूर्व सदस्यों को याद करने की परंपरा बदलती है या जारी रहती है।