बिना दांत का शेर है ‘रेरा’, न्यायिक शक्तियां हों तो बात बने

दिल्ली-NCR के हजारों फ्लैट खरीदार क्यों ‘बेघर’, RERA पर लोगों को क्यों नहीं भरोसा?
रेरा को लागू हुए करीब 9 साल बीत गए हैं, लेकिन लोगों की यही शिकायत है कि रेरा महज कागजी शेर है. दिल्ली-एनसीआर में आज भी सैकड़ों ऐसी इमारतें हैं, जो खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं, तो कुछ इमारतों में इतना स्लो काम हो रहा है कि उसकी डेड लाइन ही पूरी नहीं हो पा रही है.

अपने घर के लिए सड़क पर प्रदर्शन करते लोग

स्मिता चंद
नोएडा,
15 अप्रैल 2025,दिल्ली-एनसीआर में हजारों फ्लैट खरीदार अपने सपनों के आशियाने के मिलने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन कई साल गुजरने के बाद भी उनका सपना अधूरा रह गया है. सालों पहले जब रेरा आया था, तब यही उम्मीद जगी थी कि लोगों के साथ बिल्डर की मनमानी अब नहीं चलेगी. लेकिन अभी भी दिल्ली- एनसीआर में हजारों घर खरीदारों को अपना घर नहीं मिला है. रेरा यानी यानी रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (Real Estate Regulatory Authority) आखिर क्या है पहले आपको ये बताते हैं.

क्या है रेरा?

रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) ये कानून लाने का मकसद बिल्डरों की मनमानी और उनकी धोखाधड़ी को रोकना था. 2016 से पहले रियल एस्टेट का सेक्टर काफी असंगठित हुआ करता था. आम आदमी को प्रॉपर्टी खरीदने में काफी परेशानियां झेलनी पड़ती थीं. खरीदारों के हितों को देखते हुए सरकार 2016 में ये कानून लेकर आई. ये एक नियामक संस्था है, जो रियल एस्टेट क्षेत्र की निगरानी और विनियमन करती है, पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता को बढ़ावा देती है, साथ ही खरीदारों और डेवलपर्स दोनों के हितों की रक्षा करती है. किसी भी तरह के प्रॉपर्टी खरीदार को अगर धोखा मिला हो, तो उसके खिलाफ वो रेरा में शिकायत दर्ज करा सकता है.

हर राज्य सरकार की रेरा अथॉरिटी होती है, जो जितने भी रियल एस्टेट के प्रोजेक्ट हैं, उनको रेगुलेट करने का काम करती है. बिल्डरों को शुरू की गई सभी परियोजनाओं के लिए मूल दस्तावेज जमा करने होते हैं, खरीदार की सहमति के बिना बिल्डर योजना में कोई बदलाव नहीं कर सकता है. इस कानून के बनने के बाद सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि कोई भी प्रोजेक्ट बेचने से पहले बिल्डर को उसका अप्रूवल लेना जरूरी होता है. जब प्रोजेक्ट बनाने से पहले अप्रूवल लिया जाएगा तो जाहिर है कि कौन उसको बना रहा है उसके बारे में सारी बातें रिकॉर्ड पर आ जाएंगी, जिससे प्रॉपर्टी खरीदने वाले को पता चल जाता है कि वो किस तरह की प्रॉपर्टी खरीद रहा है.

रेरा के फायदे?

रेरा की वेबसाइट पर आप जिस प्रोजेक्ट में भी प्रॉपर्टी लेना चाहते हैं उसकी सारी डिटेल मिल जाएगी. रेरा से एक फायदा ये भी है कि बिल्डरों को अपनी प्रॉपर्टी का कारपेट एरिया मेंशन करना जरूरी होता है. पहले अगर आपने 3 हजार स्क्वॉयर फीट का फ्लैट लिया है, तो उसमें पजेशन के टाइम पर 30 फीसदी सुपर एरिया और बिल्ट-अप एरिया में चला जाता था, आपको पता ही नहीं चलता था कि 3 हजार स्क्वॉयर फीट में आपका डिडक्शन कितना होगा. नए कानून से ये फायदा हुआ कि अब लोगों को कारपेट एरिया ही मिलता है. रेरा ने लोगों को एक बड़ी सुरक्षा दी है कि अगर आप किसी वजह से अपनी बुकिंग कैंसिल करना चाहते हैं, तो इसका भी आपको अधिकार है.

रेरा से आखिर लोगों को क्यों है शिकायत ?

नोएडा में फ्लैट खरीदारों के अधिकारों के लिए NEFOWA (Noida Extension Flat Owner Welfare Association) सालों से काम कर रहा है. NEFOWA के वाइस प्रेसिडेंट दिपांकर बताते हैं कि रेरा के आने से पारदर्शिता तो आई है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ है. रेरा आरसी तो जारी करती है,लेकिन उसकी रिकवरी करने का पावर उसके पास नहीं है. सालों तक रिकवरी नहीं हो पाती. रेरा लोगों के फायदे के लिए लाया गया था, लेकिन लोग रेरा में शिकायत लेकर जाते तो हैं, लेकिन उनको इंसाफ नहीं मिलता. बाद में यही होता है कि खरीदारों को कोर्ट-कचहरी का चक्कर काटना पड़ता है. रेरा के पास ज्यूडजिशियल पावर होना बेहद जरूरी है.

NEFOWA के एक्स वाइस प्रेसिडेंट मनीष कुमार कहते हैं- रेरा टूथलेस टाइगर है, रेरा के पास शक्तियां तो हैं, लेकिन उनको लागू कराने का अधिकार नहीं है. वो किसी भी बिल्डर से वसूली नहीं करा सकता है. बिल्डर्स को पता है कि रेरा तो कुछ कर नहीं सकता, इसलिए वो मनमानी करते हैं. रेरा में एक बार शिकायत कर भी दी, तो लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है. मनीष ने सुपरटेक में फ्लैट खरीदा था वो बताते हैं – फ्लैट नहीं मिलने पर 2018 में रेरा में शिकायत की 2019 में ऑर्डर भी आ गया. लेकिन बिल्डर ने उनके ऑर्डर को फॉलो नहीं किया. उसके बाद कोविड आ गया, हालांकि उस दौरान ऑनलाइन सुनवाई भी हुई. सुपरटेक पर पेनाल्टी भी लगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ. दिक्कत ये है कि रेरा ऑर्डर पास तो कर देता है, लेकिन उसे लागू नहीं करा पाता है. रेरा को देखना होगा कि ऑर्डर पास करने के बाद उसे एक टाइम पीरियड में लागू किया जाए.

रेरा में शिकायत करने पर बिल्डर देते हैं धमकी

कुछ फ्लैट बायर्स की ये भी शिकायत है कि अगर वो रेरा में शिकायत लेकर जाते हैं, तो बिल्डर की तरफ से उन्हें बुकिंग कैंसिल करने की धमकी दी जाती है. महागुन मोटांज के एक फ्लैट खरीदार राहुल टंडन कहते हैं कि उनको जब वक्त पर फ्लैट नहीं मिला, तो उन्होंने रेरा में शिकायत की, लेकिन उसके बाद हालात और खराब हो गए. बिल्डर की तरफ से यूनिट कैंसिल करने की धमकियां मिलने लगी.

एक और फ्लैट खरीदार सौरभ का आरोप है कि जब उनके प्रोजेक्ट में देरी हुई तो वो रेरा की शरण में गए. उनके केस की फाइनल सुनवाई भी हो गई है और रेरा की तरफ से यही कहा गया कि बिल्डर की तरफ से पेनाल्टी भी दी जाएगी, लेकिन बिल्डर ने ये कहा कि उनका पेमेंट नहीं हुआ है. वो बताते हैं कि 27 लाख का पेमेंट करने के बाद अचानक 22 लाख की डिमांड आ गई, क्योंकि उन्होंने रेरा में केस किया है.

क्या कहते हैं वकील?

सुप्रीम कोर्ट के वकील कुमार मिहिर कहते हैं कि रेरा 2016 में आया था और नियम 2017 में बने थे. जो प्रोजेक्ट 2016 के पहले बने थे वो रेरा के अंदर आते ही नहीं है. हालांकि जो अधूरे प्रोजेक्ट थे उनको रेरा के अंदर रजिस्टर करना था. लेकिन उसमें कई ऐसे प्रोजेक्ट थे, जिसमें कंपनी दिवालिया हो गई, जब कंपनी दिवालिया हो जाती है तब IBC के अंदर एक प्रोविजन होता है सेक्शन 14, जिसमें ये प्रावधान होता है कि जब किसी कंपनी के इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया चलती है, तो उस कंपनी के खिलाफ किसी और कोर्ट में कार्यवाही नहीं चल सकती है. ऐसे केस में रेरा कुछ नहीं कर सकता है. वहीं ऐसे मामले जो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं उसमें भी रेरा हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.

मिहिर आगे बताते हैं कि कई मामलों में प्रोजेक्ट के डिले होने पर रेरा मुआवजा देने का ऐलान भी करता है. रेरा ने कई ऑर्डर पास भी किए हैं. रेरा रिकवरी सर्टिफिकेट जारी करता है, जिसके आधार पर डीएम को रिकवरी करने का अधिकार होता है. हालांकि कई बिल्डर जिनके खिलाफ रिकवरी सर्टिफकेट जारी किया गया वो कोर्ट चले गए और उन्होंने स्टे ले लिया, जिस वजह से रिकवरी ही नहीं हो पाई. हां नए प्रोजेक्ट में रेरा काफी मददगार रहा है.

रेरा को लागू हुए करीब 9 साल बीत गए हैं, लेकिन लोगों की यही शिकायत है कि रेरा महज कागजी शेर है. दिल्ली-एनसीआर में आज भी सैकड़ों ऐसी इमारतें हैं, जो खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं, तो कुछ इमारतों में इतना स्लो काम हो रहा है कि उसकी डेड लाइन ही पूरी नहीं हो रही है, जिससे लोगों का भरोसा रेरा से उठता जा रहा है.

the story of a failed rera who constantly settles with the builder
लूटघर सीजन 2: एक नाकाम रेरा की कहानी जो लगातार बिल्डर से करता है सेटलमेंट
नियम के मुताबिक रेरा होमबायर्स की परेशानी सुनता है और शिकायत सच पाने पर बिल्डर-बायर में सेटलमेंट कराते हैं. बिल्डर को फ्लैट या पैसे लौटाने के आदेश जारी किए जाते हैं. बिल्डर अगर रेरा के आदेशों का पालन नहीं करता है तो कंपनी और प्रोमोटर के पर्सनल एसेट अटैच किए जाते हैं.
लूटघर में हमने आपको कल बताया कि जो रेरा अब तक हाथी के दांत साबित हो रही थी. उसी रेरा ने उत्तर प्रदेश में सुपरटेक बिल्डर्स की नकेल कस रखी है. इसे बाकी राज्यों की रेरा को एक नजीर की तरह देखना चाहिए और यूपी  रेरा को भी अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए. लेकिन अब हम आपको दिखाते हैं एक नाकाम रेरा की कहानी, जो मुंबई के बिल्डर से लगातार सेटलमेंट करता रहा और सैकड़ों होम बायर्स दर दर की ठोकर खाते रहे.

हर कोई अपने सपनों का घर चाहता है, जिसके लिए वो जिंदगी भर की जमा पूंजी लगाता है. फिर दर-दर की ठोकरें खाता है और एक वक्त ऐसा भी आता है. जब वो सिस्टम से हार जाता है.

उसी सिस्टम में से एक है रेरा. 1 मई 2016 को रेरा यानी Real Estate (Regulation and Development) Act लागू हुआ. इससे बायर्स को शिकायत करने का एक मंच मिला. लेकिन अधिकतर मामलों में बिल्डर्स ने रेरा के आदेशों का भी पालन नहीं किया और ये तकलीफ कितनी बड़ी है, ये समझने के लिए TV9 की टीम ने एक रिटायर्ड बैंक मैनेजर सीएस मौर्या के घर का रुख किया.

इनको 10 साल से घर के ये तमाम कागजात चिढ़ा रहे हैं. क्योंकि पचास लाख रुपये लेकर बिल्डर फरार हो गया और महाराष्ट्र रेरा भी कुछ नहीं कर सका. सितंबर 2010 में रिटायरमेंट के पैसे से फ्लैट बुक किया, 2013 तक 90 परसेंट पेमेंट करीब 50 लाख, इसके बाद काम बंद हो गया.

एक रिटार्यड बैंक मैनेजर का ये केस भी साबित करता है कि रियल एस्टेट में देर भी है और अंधेर भी है. सीएस मौर्या ने 2010 में आरएनए बिल्डर के प्रोजेक्ट में एक फ्लैट बुक किया. मीरा रोड में 1100 स्क्वायर फीट के फ्लैट की कीमत 57 लाख रुपये थी. तीन साल के अंदर होमबायर ने बिल्डर को 90 परसेंट पैसा चुका दिया, लेकिन 10 परसेंट चुकाने से ऐन पहले प्रोजेक्ट अधर में लटक गया और अधर में लटक गए 650 परिवारों के सपने.

सीएस मौर्या ने बताया कि 10 परसेंट काम पांच साल से नहीं हुआ. इसके बाद रेरा से शिकायत की, उसने नई डेट दे दी. लेकिन उसके बाद रेरा ने कोई एक्शन नहीं लिया. तब देश में रेरा नहीं था. लिहाजा आठ साल तक परेशान होम बायर्स अदालतों के चक्कर काटते रहे और 2018 में रेरा का जब गठन हुआ तो चक्कर काटने का एक और ठिकाना मिल गया. रेरा एक ऐसा बंदूक साबित हुआ, जिसमें कारतूस ही नहीं था.

नियम के मुताबिक रेरा होमबायर्स की परेशानी सुनता है और शिकायत सच पाने पर बिल्डर-बायर में सेटलमेंट कराते हैं. बिल्डर को फ्लैट या पैसे लौटाने के आदेश जारी किए जाते हैं. बिल्डर अगर रेरा के आदेशों का पालन नहीं करता है तो कंपनी और प्रोमोटर के पर्सनल एसेट अटैच किए जाते हैं और उनकी नीलामी करके होम बायर को उसका पैसा लौटाया जा सकता है.

लेकिन अधिकतर मामलों में रेरा के अफसर सेटलमेंट कर देते हैं. बिल्डर की डेडलाइन बढ़ाते जाते हैं और बायर चक्कर में फंसे रह जाते हैं, जैसा कि मुंबई के रिटायर्ड बैंक मैनेजर के साथ हुआ.

सीएस मौर्या ने बताया ” मोफा का रेफरेंस दिया तो बोला कंज्यूमर कोर्ट जाओ. फिर हम अपील में गए लेकिन लेट हो गए. उसके बाद कोर्ट में डेट लगता रहा.”

शहरी विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है कि 2016 के बाद से देश के सभी प्रदेशों ने जुलाई 2020 तक 48,556 केस निपटाए थे. जिनमें यूपी के करीब साढ़े आठ हजार, हरियाणा के दस हजार और महाराष्ट्र के करीब आठ हजार केस थे.

लेकिन इनकी असलियत क्या है ये मुंबई के सीएस मौर्या से समझिए. सीएस मौर्या ने जब रेरा के डेडलाइन बढ़ाने पर आपत्ति जताई तो उन्होंने होम बायर को कंज्यूमर कोर्ट भेज दिया और अदालत ने उनके प्रोजेक्ट में रिसीवर नियुक्त कर दिया. लेकिन फ्लैट फिर भी नहीं मिला.

रेरा का क्या फायदा

अब सवाल उठता है कि रेरा का क्या फायदा? उत्तर प्रदेश रेरा में 2018 से 28438 केस दाखिल हुए इनमें से 21200 केस का रेरा ने निपटारा कर दिया. बाकी 2177 केस में आरसी यानी रिकवरी सर्टिफिकेट जारी किए गए. लेकिन कार्रवाई 353 आरसी पर ही हुई.

रेरा कहता है कि वो प्रशासन को आरसी ही जारी कर सकता है. वसूली का अधिकार प्रशासन के पास है. लेकिन ये रोना सिर्फ रेरा का ही नहीं है. रोने वाले संस्थान और अफसरों की भी लंबी फेहरिस्त है. देश में चुनाव आयोग से लेकर ऐसे तमाम संस्थान, जिन्हें बिना नाखून बिना दांत के शेर कहा जाता था. लेकिन टीएन शेषन की तरह उन्हें किसी एक नेतृत्व ने पूरी तरह से बदल लिया. उत्तर प्रदेश रेरा में भी इस बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है.

जहां सुपरटेक बिल्डर पर रेरा और प्रशासन ने ऐसा चाबुक चलाया कि उसे अपनी प्रॉपर्टी गिरवी रखनी पड़ी है और ये नजीर बन सकता है देशभर के रेरा के रोते अफसरों के लिए और प्रशासन के सोते अफसरों के लिए जो रियल एस्टेट में भरोसा जगा सकते हैं. देश के लाखों होम बायर्स को उनके हक लौटा सकते हैं.

 

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