देश का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुला नहीं देखा तो क्या देखा?

हिंदी साहित्य में रूचि रखने वाले कई लोगों ने अज्ञेय की लिखी ‘नदी के द्वीप’ का नाम या तो सुना होगा, या फिर किताब ही पढ़ रखी होगी | नाम सुनने में बड़ा अजीब सा लगता है | पहले हम भी सोचा करते थे, नदी छोटी सी तो होती है | भला उसमें द्वीप कहाँ से होगा ? जब गंगा देख ली तो समझ आया कि नदी में डॉलफिन भी हो सकती है और द्वीप भी हो सकता है | सोएंस और नकार मैथिली किस्से-कहानियों के जीव नहीं होते, ये सचमुच में होते हैं |

जब नदियों की धारा अपना रुख मोड़ती है तो नदी के द्वीप बनते हैं | नदी के द्वीप देखने के लिए गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ भारत में ही हैं | अगर खूबसूरत सा नदी का द्वीप देखना हो तो असम जाइये | नदियों की धारा रोज़ नहीं बदलती | पिछली बार ब्रह्म पुत्र की धारा 1650-1750 के दौर में बदली थी |

असम और आस पास के इलाकों में 1661-1696 के बीच कई भूकंप आये | इन भूकंपों ने ब्रह्मपुत्र बाढ़ की जमीन तैयार कर दी थी | फिर 1750 में लगातार 15 दिन तक बाढ़ आई | पानी आता रहा आता रहा, ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों में भी इस बाढ़ का जिक्र है | स्थानीय कहानियों में भी ये बाढ़ बहती है |

इस बाढ़ के असर से ब्रह्म पुत्र की धारा दो हिस्सों में बंट गई | एक बुर्हिदिहिंग चैनल से बहती है जो थोड़ा दक्षिण की तरफ है और उत्तर की तरफ ब्रह्मपुत्र की मुख्य धारा तो है ही | दोनों धाराएँ वैसी की वैसी ही रह गई हों ऐसा नहीं है | पहले उत्तरी भाग को मुख्य ब्रह्म पुत्र माना जाता था, उसे स्थानीय लोग लुइत जुती कहते हैं, ये सिमट कर छोटी होती गई | दक्षिणी भाग जिसे बूरही जुती कहते हैं, वो चौड़ी होते होते आज ब्रह्मपुत्र की मुख्य धारा है |

इन दोनों धाराओं के बीच स्थित है नदी का द्वीप, माजुली |

राजा रत्नधजपाल ने यहाँ अपनी राजधानी बनाई थी और उसका नाम रतनपुर रखा था | ऐसा जिक्र योगिनी तंत्र में कहीं आता है | लेकिन शायद वो बाढ़ों में बह गया | यहाँ अभी जो लोग रहते हैं वो मिसिंग आदिवासी काबिले के हैं | ये कभी ना कभी अरुणाचल से आकर यहाँ बसे थे ऐसा माना जाता है | एक अनोखी चीज़ ये भी है कि इन मिसिंग कबीले वालों का बर्तन बनाने का तरीका पक्का वही है जो हड़प्पा के अवशेषों में आज मिलता है | तो अगर माजुली जायेंगे तो दो – चार मिट्टी के बर्तन ले आइयेगा |

नदी की धारा मुड़ने से बना माजुली,सोलहवीं शताब्दी की शुरुआत से ही असम की सांस्कृतिक राजधानी रहा है | इसलिए अगर असम (नार्थ-ईस्ट) घूमने जा रहे हैं तो यहाँ गए बिना आपका ट्रिप अधूरा है | अगर कहीं आप अभी भी सोच रहे हैं कि इस ‘नदी के द्वीप’ की इतनी क्या तारीफ़ किये जा रहा है ! छोटा सा तो होगा | तो जनाब इस माजुली में छह कॉलेज हैं | अंदाजा हो गया होगा आकार का ? माप में जायें तो 421 वर्ग किलोमीटर ।

वापिस इसके सांस्कृतिक मुख्यालय होने के कारणों पर आयें तो यहाँ सोलहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध संत श्रीमंत शंकरदेव अपने शिष्य माधवदेव के साथ आये थे | हिन्दुओं के वैष्णव मत के ये प्रवर्तक इस जगह कई सत्र स्थापित कर गए | स्थानीय भाषा में सत्र को सतरा भी कहते हैं | सैलानी इन्हें देखने आते हैं | द्वीप लम्बाई में ज्यादा और चौड़ाई में कम है इसलिए पक्षी देखने के शौक़ीन सैलानी उत्तरी सिरे से या फिर दक्षिण पूर्व और दक्षिण पश्चिमी कोनों पर जाते हैं | हां, दोबारा याद दिला दें, यहाँ से मिट्टी के बने बर्तन और चेहरे के मुखौटे लेना मत भूल जाइएगा |

वैसे असम में बरसों से कांग्रेसी सरकार रही है, जिन्होंने इस इलाके में विकास के लिए लगभग कुछ नहीं किया है | जोरहाट से ये जगह मुश्किल से 20 किलोमीटर होगी, और बस से जोरहाट से यहाँ तक पहुँचने में तीन घंटे लग जाते हैं |

माजुली या माजोली (उच्चारित: माद्ज़ुली, mʌʤʊlɪ) (असमिया- মাজুলী) असम के ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य में बसा एक बड़ा नदी द्वीप है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के ए.जे. मिफेट मिल्स के सर्वेक्षण अनुसार १८५३ में इसका कुल क्षेत्रफल १२४६ वर्ग किमी (४८३ वर्ग मील) था परन्तु प्रतिवर्ष बाढ़ और भूकटाव के चलते यह सिमट कर (२००१ के सर्वे के अनुसार) मात्र ४२१.६५ वर्ग किमी (१६३ वर्ग मील) रह गया है। सच्चाई ये है की माजुली प्राकृतिक और मानवजनित कारणों से दिन प्रतिदिन सिकुड़ रहा है और इसके अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा हुआ है।

माजुली
भूगोल अवस्थिति- ब्रह्मपुत्र नदी
निर्देशांक
26°57′0″N 94°10′0″E / 26.95000°N 94.16667°E
क्षेत्रफल: 1,250 km2 (483 sq mi)
अधिकतम ऊँचाई:84.5 m (277.2 ft)
माजुली को विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप के रूप में दर्शाया जाता रहा है। यह सत्य नहीं है। ब्राज़ील और कई अन्य जगहों के कई नदी द्वीप काफी बड़े आकार के हैं और उनमे सबसे बड़ा है बनानाल द्वीप जो लगभग १९००० वर्ग किमी बड़ा है। वैसे तो नदी पर अवस्थित सबसे बड़ा द्वीप ब्राज़ील के अमेज़न और परा नदी पर स्थित माराजो द्वीप है परन्तु इसे नदी द्वीप नहीं माना जा सकता क्योंकि इसके एक किनारे पर अटलांटिक महासागर है। नदी द्वीप को लेकर अनेक भ्रामक तथ्य मौजूद हैं। यहाँ तक की बांग्लादेश के मेघना नदी पर अवस्थित हटिया द्वीप भी १५०० वर्ग किमी के साथ माजुली से बड़ा है।

माजुली द्वीप के दक्षिण में ब्रह्मपुत्र नदी और उत्तर में खेरकुटिया खूटी नामक धारा अवस्थित है। खेरकुटिया खूटी ब्रह्मपुत्र नदी से निकलती है और आगे चलकर फिर उसी में प्रवेश करती है। उत्तर में सुबनसिरी नदी खेरकुटिया खूटी से जुड़ जाती है। माजुली द्वीप कालांतर में ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों विशेषकर लोहित नदी के दिशा और क्षेत्र परिवर्तन की वजह से बनी है।

माजुली का जिला मुख्यालय जोरहाट शहर है जो यहाँ से २० किमी की दूरी पर है। माजुली जाने के लिए जोरहाट से नियमित परिवहन सेवाएँ उपलब्ध हैं। माजुली जाने के लिए फेरी लेना जरुरी है क्योंकि यहाँ नदी पर पुल नहीं है। असम की राजधानी गुवाहाटी से माजुली द्वीप लगभग २०० किलोमीटर पूर्व में है।

माजुली को असम की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जा सकता है। माजुली पूर्वी असम का नव वैष्णव विचारधारा का मुख्य केंद्र है।

इतिहास
भौगोलिक परिस्थिति
जलवायु

असम के अन्य भागों की तरह माजुली द्वीप में भी उप-उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु पाया जाता है। यहाँ की जलवायु परिस्थितियाँ भारत के पूर्वोत्तर मैदानी क्षेत्रों के जैसे ही है। ग्रीष्मकाल आमतौर पर गर्म रहता हैं और अत्यधिक नमी बनी रहती है। क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा लगभग २१५ सेमी है। वास्तव में, माजुली यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च है। माजुली का मौसम और जलवायु के बारे में अधिक जानकारी निम्नलिखित हैं।

गर्मी- माजुली में गर्मी के मौसम मध्य मार्च से जुलाई अंत तक होता है। इस समय यहाँ काफी गर्मी होती है और आर्द्रता प्रतिशत काफी ऊँचा होता है। इन महीनों के दौरान,तापमान सर्वाधिक ३६ डिग्री सेल्सियस भी हो सकता है। पर्यटकों ऐसे मौसम से दूर रहना पसंद करते हैं।

मानसून- माजुली में मानसून का मौसम जुलाई के आसपास शुरू होता है और अगस्त तक रहता है। इस समय बाढ़ का तांडव चरम पर होता है।

सर्दी- सर्दियों के मौसम नवंबर से शुरू होता है और फरवरी तक रहता है। मौसम के दौरान औसत तापमान सर्वाधिक १८ डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम ७ डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। बारिश कम या नहीं के बराबर होती है। में सभी प्रमुख उत्सव तथा त्योहारों को सर्दियों के मौसम में आयोजित किया जाता हैं जब मौसम शांत और सुखद होता है।

जनसांख्यिकी

२०११ की जनगणना अनुसार, असम के जोरहाट जिले में स्थित माजुली में १,६७,३०४ लोगों की आबादी है। बाढ़ और भुकटाव के चलते अब यहाँ कुल १९२ गाँवों में ३२,२३६ परिवार रहते हैं। यहाँ पुरुषों की जनसंख्या ८५,५६६ (५१.१४%) और महिलाओं की जनसंख्या ८१,७३८(४८.८६%) है। माजुली में, महिला लिंग अनुपात ९५५ प्रति १००० है जो की राज्य के औसत ९५८ से कुछ ही कम है। ०-६ साल के उम्र के बच्चों की संख्या २२,०६२ हैं जिसमे ११,३२४ बाल हैं और १०,७३८ बालिकायें हैं। बाल लिंग अनुपात की स्थिति ९४८ प्रति १००० के साथ और कम है। यहाँ की साक्षरता दर ६८.२०% जो की राष्ट्रीय और राज्यिक औसत से भी कम है। महिला साक्षरता दर ६१.३३% है, जबकि पुरुष साक्षरता दर ७४.७६% है। माजुली में अनुसूचित जाति के लोग २३८७८(१४%) हैं जबकि अनुसूचित जनजाति के लोग ७७,६०३(४६%) हैं।

माजुली की जनसंख्या का मजेदार पहलू ये है कि १९७१ के बाद से यहाँ रहने लायक क्षेत्र घटा है जबकि जनसंख्या बहुत बढ़ी है। रोज़गार, शिक्षा आदि की तलाश में बड़ी संख्या में लोगों का द्वीप से बहिर्गमन के बावजूद जनसंख्या घनत्व में इज़ाफा हुआ है।

लोग और उनका जीवन

माजुली में विभिन्न जाति जनजातियों के लोग रहते हैं। इन्होनें माजुली के शानदार सांस्कृतिक विरासत को अमूल्य योगदान दिया है। यहाँ अनुसूचित जनजाति के लोग ज्यादा बसते हैं। द्वीप में ४७% जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है जिनमें मिसिंग, देउरी और सोनोवाल-कछारी शामिल हैं। माजुली की आबादी में असमिया के अन्य जाति उपजाति जैसे-कलिता,कोंच,नाथ,अहोम,चुतीया, मटक और ब्राह्मण भी रहते हैं। इन के अलावा,कमोवेश संख्या में चाय जनजाति के लोग,नेपाली,बंगाली, मारवाड़ी और मुसलमान भी वर्षों से यहाँ वास कर रहे हैं।

मिसिंग समुदाय- माजुली में मिसिंग समुदाय के लोगों की संख्या लगभग ६८,००० के आसपास है (२०११ जनगणना के आधार पर)। मिसिंग जनजाति को “मिरी” भी पुकारा जाता है। यह संख्या द्वीप की कुल आबादी का ४१ प्रतिशत है। मिसिंग जनजाति सदियों पहले अरुणाचल प्रदेश से यहां आकर बस गए थे। मिसिंग लोग वास्तव में बर्मा(वर्तमान म्यांमार) देश से ताल्लुक रखने वाले मंगोल मूल के लोग हैं। लगभग ७०० साल पहले वे बेहतर जीवन की तलाश में अरुणाचल प्रदेश के रास्ते होते हुए असम आये और ब्रह्मपुत्र नदी के सहायक नदियों जैसे दिहिंग, दिसांग, सुवनशिरी, दिक्रंग के इर्द गिर्द बसने लगे। इसी क्रम में माजुली में भी मिसिंग लोग बहुतायात में बस गए। नदी के किनारे बसने के कारण वे बहुत कुशल नाविक और मछुआरे होते हैं। ऐसा कहा जाता है की हर दूसरा मिसिंग बच्चा बढ़िया तैराक होता है। ये लोग नदी किनारे की ज़िन्दगी के आदी हो गए हैं और नदी को अपना जीवनदाता मानते हैं। नदी की विभीषिका और इससे उपजने वाली विषम परिस्थितियों को ये जीवन का अंग मानते हैं आजीवन इससे संघर्ष करते हैं।


माजुली स्थित एक गाँव

मिसिंग लोगों के विशिष्ट लोक संगीत, नृत्य और संगीत वाद्ययंत्र होते है। इनमें से अधिकांश का इस्तेमाल उनकी सामाजिक और धार्मिक उत्सवों के दौरान होता हैं। एक परंपरागत मिसिंग घर लठ्ठों (आमतौर पर बांस) के ऊपर बना होता है। ऐसा वे अचानक आने वाली बाढ़ से बचने के लिए करते है। इनके घरों के छत फूस से बने होते हैं और फर्श, दीवारों और छत के लिए बांस बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। मिसिंग लोग यूँ तो विभिन्न त्योहारों को मनाते हैं लेकिन उनके दो मुख्य पारंपरिक त्योहार हैं- आली-आय-लिगांग और पोराग। ये त्यौहार उनके कृषि चक्र के साथ जुड़े होते हैं। मिसिंग महिलायें कुशल बुनकर होतीं हैं। वे अपनी किशोरावस्था तक पहुँचने से पहले इस कला में निपुण हो जाती हैं। उन्हें प्राकृतिक रंगों का भी अच्छा ज्ञान होता है। माजुली की मिसिंग महिलाओं को विशेष रूप से उनके उत्तम हथकरघा उत्पाद मिरीजेन शॉल और कंबल के लिए जाना जाता है।

माजुली में देउरी लोगों की जनसंख्या ३ प्रतिशत है और उनकी मुख्य आबादी २ गाँवों श्रीराम देउरी और मेजर देउरी गाँव में केन्द्रित है। देउरी लोगों को अनुसूचित जनजातियाँ के अन्दर पुरोहित वर्ग माना जाता है। अपने स्वयं के बोली और संस्कृति अक्षुण्ण रखते हुए, माजुली के देउरी लोग बिहू मनाते हैं और अलग नृत्य और गीत की शैली के साथ हुरियारंगाली भी मनाते हैं। उनकी जीवन शैली मिसिंग लोगों से काफी मिलती जुलती है।

अन्य अनुसूचित जनजातियाँ जैसे सोनोवाल-कछारी आदि लोग भी अपनी परंपरा निभाते हुए माजुली में रह रहे है। सत्रों के संचालन में मुख्य भूमिका निभाने वाले ब्राह्मण समाज की भी माजुली में गहरी पैठ है।

आर्थिक स्रोत


माजुली की अर्थव्यवस्था विविध और आत्मनिर्भर क्षेत्रों पर आधारित है। यहाँ का मुख्य उद्योग कृषि है और मुख्य उत्पाद धान / चावल है। यहाँ एक समृद्ध और विविध कृषि परंपरा है। यहाँ के लोग रबी फसलों पर निर्भरशील हैं क्योकि वे यहाँ अच्छे उगते हैं। यहाँ के किसान मौसम अनिश्चितता और बाढ़ के कारण खरीफ फसल की खेती नहीं करना चाहते। हालांकि अब तटबंधों के निर्माण के बाद खरीफ फसल भी बड़े पैमाने पर उगाये जाने लगे हैं। माजुली में उगाई जाने वाली मुख्य फसलें हैं- चावल, मक्का, गेहूं, अन्य अनाज, काला चना, सब्जियां, फल, अन्य खाद्य फसलों, कपास, जूट, अरंडी, गन्ना आदि।
लोगों की आर्थिक स्थिति के उत्थान के लिए माजुली में अन्य उद्योग भी प्रचलित है।

मछली पालन: मछली पालन यहाँ एक पारंपरिक उद्योग है। यहाँ स्थित ६० से अधिक बड़े जलनिकायों(बील) माजुली निवासियों को बड़ी संख्या को आजीविका प्रदान करते है। पशु पालन और डेयरी भी लोगों के आजीविका का प्रमुख स्रोतों में से एक है।
मिट्टी के बर्तन: माजुली मिट्टी के बर्तनों के उत्पाद और कलाकृतियों के डिजाइन और गुणवत्ता के लिए भी प्रसिद्ध है। हालांकि मांग में कमी के चलते यह उद्योग मुमूर्ष अवस्था में है।
नाव निर्माण: जलीय इलाका एवं बाढ़ के खतरे के कारण नाव एक उपयोगी साधन है, इसीलिए नाव बनाने की कला यहाँ का एक पारंपरिक व्यवसाय है। यहाँ के नाव बनाने में माहिर लोगों की मांग हमेशा बनी रहती है।
हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग: यहाँ बांस और गन्ने से फर्नीचर आदि बनाये जाते हैं। हथकरघा गांवों की औरतों के बीच एक प्रमुख व्यवसाय है। माजुली की महिलायें कुशल बुनकर होती हैं और अपने कपड़े स्वयं बुनती हैं। मिसिंग महिलाओं को कपड़ों के विदेशी डिजाइन और मनभावन रंग संयोजन के लिए जाना जाता है। वे “मिरजिम” नामक विश्व प्रसिद्ध कपड़े बनाती हैं। यहाँ लगभग २० गाँव कच्चे रेशम के एक किस्म “एंडी” का उत्पादन करते है और उसके उत्पाद तैयार करते हैं।
मुखौटा शिल्प: मुखौटा बनाना भी यहाँ कमाई का एक स्रोत है। सत्रों में भावना (नाटक), रास उत्सवों में इस्तेमाल होने वाले मुखौटों की माजुली से बाहर भी आपूर्ति की जाती है। विशेष रूप से सामागुरी सत्र मुखौटा बनाने के शिल्प में अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध है।
माजुली में औद्योगिक उद्यम नहीं के बराबर होने के कारण नौकरियों का अभाव हैं। शिक्षित युवा रोजगार की तलाश में जोरहाट और अन्य शहरों का रुख करतें हैं। अभी हाल ही में आयल इंडिया लिमिटेड द्वारा माजुली में दो तेल के कुओं का पता लगाया गया है। इससे यहाँ औद्योगिक उद्यमों की संभावनाएं बढ़ी हैं।

चावल उत्पादन

यहाँ चावल का एक सौ अलग अलग किस्में किसी भी प्रकार के कृत्रिम खाद या कीटनाशक के इस्तेमाल के बिना उगाई जाती हैं। “कुमल शाऊल” (हिंदी: कोमल चावल) यहाँ चावल के सबसे लोकप्रिय किस्मों में से एक है। इसे सिर्फ पंद्रह मिनट के लिए गर्म पानी में डुबो कर रखने के बाद खाया जा सकता है। आमतौर पर इसे नाश्ते के रूप में खाया जाता है। बाओ धान, चावल का एक अनूठा किस्म होता है जो कि पानी के नीचे होती है, और दस महीने और बाद काटा जाता है। बोरा शाऊल एक अन्य किस्म का चावल है जो चिपचिपा भूरे रंग का होता है। यह चावल असम के पारंपरिक खाद्य पीठा बनाने और अन्य आनुष्ठानिक कार्यों में प्रयुक्त होता है। यहाँ की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि और खेती लायक जमीन के कटाव के कारण अब चावल/धान का उत्पादन कम हो गया है और माजुली में अब खुद की जरुरत भी पूरी नहीं हो पा रही है।

कला और संस्कृति

माजुली द्वीप असमिया नव-वैष्णव संस्कृति का केन्द्र रहा है। नव-वैष्णव विचारधारा असमिया संत महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव द्वारा १५वीं सदी के आसपास शुरू की गयी थी। इन महान संतों द्वारा निर्मित कई सत्र अभी भी अस्तित्व में हैं और असमिया संस्कृति का अंग बने हुए हैं। माजुली प्रवास के दौरान श्रीमंत शंकरदेव यहाँ पश्चिम माजुली के बेलागुरी नामक स्थान में कुछ महीने रूके थे। इसी स्थान पर दो महान संतों, श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव का महामिलन हुआ था। इस ऐतिहासिक भेंट का बहुत महत्व है क्योंकि इसी के बाद बेलागुरी में “मनिकंचन संजोग” सत्र स्थापित हुआ। हालांकि यह सत्र अब अस्तित्व में नहीं है। इस सत्र के बाद माजुली में पैंसठ सत्र और स्थापित किए गए। असम में कुल ६६५ मूल सत्रों में से ६५ माजुली में स्थित थे। माजुली में स्थित मूल पैंसठ में से अब केवल बाईस ही अस्तित्व में है। कुछ सत्र भूकटाव के चलते विलीन हो गए और कुछ सत्र सही परिचालन के अभाव में नहीं रहे। माजुली के प्रमुख सत्र जो अब भी अस्तित्व में हैं वो निम्नलिखित हैं-

दक्षिणपाट सत्र: इस सत्र को वनमाली देव ने स्थापित किया था। वे रासलीला अथवा रास उत्सव के समर्थक थे। रासलीला अब असम के राष्ट्रीय त्योहारों के रूप में मनाया जाता है।
सामागुरी सत्र: यह सत्र रास उत्सव, भावना(धार्मिक नाट्य) और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए मुखौटा बनाने के लिए भारत भर में प्रसिद्ध है।
गरमूढ़ सत्र: ‘यह सत्र लक्ष्मीकांत देव द्वारा स्थापित किया गया था। शरद ऋतु के अंत के दौरान, पारंपरिक रासलीला समारोह धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन हथियार जिन्हें “बरतोप” या तोप कहा जाता है यहाँ संरक्षित किये गए हैं।
आउनीआटी सत्र: निरंजन पाठक देव द्वारा स्थापित किया गया यह सत्र “पालनाम और अप्सरा नृत्य के लिए प्रसिद्ध है। यह सत्र प्राचीन असमी कलाकृतियों, बर्तनों, आभूषण और हस्तशिल्प के अपने व्यापक संकलन के लिए भी प्रसिद्ध है। इस सत्र के दुनिया भर में एक सौ पच्चीस शिष्य और सात लाख से अधिक अनुयायी हैं।
कमलाबारी सत्र: बादुला पद्म आता द्वारा स्थापित किया गया यह सत्र, माजुली द्वीप में कला, सांस्कृति, साहित्य और शास्त्रीय अध्ययन का एक केंद्र है। इसकी शाखा उत्तर कमलाबारी सत्र पूरे देश में और विदेशों में सत्रीय नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं।
बेंगेनाआटी सत्र: मुरारी देव जो की श्रीमंत शंकरदेव की सौतेली माँ के पोते थे, सत्र के संस्थापक थे। यह सांस्कृतिक महत्व और कला का प्रदर्शन करने के लिए एक नामचीन सत्र था। यहाँ अहोम राजा स्वर्गदेव गदाधर सिंघा का शुद्ध सोने का बना शाही पोशाक रखा गया है। इसके अलावा यहाँ स्वर्णनिर्मित एक शाही छाता भी संरक्षित है।
ये सत्र ‘बरगीत’,’मटियाखारा’,सत्रीय नृत्य जैसे- झुमोरा नृत्य,छली नृत्य,नटुआ नृत्य,नंदे भृंगी,सूत्रधार,ओझापल्ली, अप्सरा नृत्य,सत्रीय कृष्णा नृत्य,दशावतार नृत्य आदि के संरक्षक स्थल हैं। ये सभी श्रीमंत शंकरदेव द्वारा प्रख्यापित किये गए थे।

पर्यटन

जोरहाट शहर से मात्र २० किलोमीटर की दूरी पर स्थित माजुली द्वीप, एक प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत स्थल के रूप में माना जाता है। माजुली के वैष्णव सत्र राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए एक बहुत अच्छा माध्यम रहें हैं। यहाँ १६वीं शताब्दी के बाद से बने अनेक सत्र देखे जा सकते है। पर्यटक इन सत्रों में प्राचीन असमीया कलाकृतियों, अस्त्र-शस्त्र, बर्तनों, वस्त्र, आभूषण और हस्तशिल्प के व्यापक संकलन को देख सकते हैं और असम की विरासत को महसूस कर सकते हैं।

माजुली में रासलीला का एक दृश्य

इन सत्रों में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं- कमलाबारी सत्र, उत्तर कमलाबारी सत्र, सामागुरी सत्र, गरमूढ़ सत्र, आउनीआटी सत्र, बेंगेनाआटी सत्र, दक्षिणपाट सत्र इत्यादि। नवम्बर महीने में यहाँ ३ दिवसीय रास उत्सव होता है जिसे देखने दूर दूर से लोग आते हैं। साल भर यहाँ रंग बिरंगे सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं जो पर्यटकों को बहुत भाते हैं।

यहाँ विभिन्न जनजाति के लोग रहते हैं। उनके गाँवो में समय बिताकर उन्हें और उनकी संस्कृति को जाना जा सकता है। उनके खान पान, मुश्किल हालात में जीने की कला आदि को समझा जा सकता है। अली-आए-लिगांग मिसिंग जनजाति द्वारा वसंत ऋतु (फ़रवरी- मार्च) में मनाया जाने वाला एक त्योहार है। पर्यटक इस त्यौहार का भी काफी लुत्फ़ उठाते हैं। इस के अलावा, यहाँ मुखौटे, मिट्टी के बर्तन, मूगा रेशम की बुनाई जैसे हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों को देखा या ख़रीदा जा सकता है।

यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता और जैव विविधता को देखने और अध्ययन के लिए विश्व भर से लोग आते हैं। यहाँ अनेक प्रजातियों के दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रवासी पक्षियों का आवागमन चलता रहता है। इनमे हवासील (पेलिकान), साइबेरियन क्रेन और ग्रेटर एडजुटेंट सारस जैसे प्रवासी पक्षी शामिल हैं। इन पक्षियों को देखने के लिए नवंबर से मार्च के बीच का समय सबसे उत्तम होता हैं। यहाँ तीन ऐसे स्पॉट्स हैं जहाँ से इन पक्षियों को देखा जा सकता है- माजुली द्वीप के दक्षिण पूर्व इलाका, ‘माजुली द्वीप के दक्षिण पश्चिम इलाका और माजुली द्वीप के उत्तरी भाग।

माजुली में साल के किसी भी वक़्त भ्रमण किया जा सकता है। वर्षा ऋतु के दौरान इस द्वीप के ५०-७०% भाग में पानी भर जाता है, लेकिन विडंबना यह है कि साल के इस समय यहाँ नाव से यात्रा आसान हो जाती है। प्राकृतिक सुन्दरता भी इसी समय अपने चरम पर होती है।

माजुली में पर्यटन के लिए बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं किया गया है। यहाँ कोई भी बड़ा नगर(टाउन) है न ही यहाँ कोई अच्छे होटल हैं। यहाँ के सबसे बड़े नगर कमलाबारी और गरमूढ़ है। यहाँ कुछ मध्य निम्न स्तर के होटल जरुर हैं। यहाँ असम सरकार के कुछ अतिथि भवन जैसे “सर्किट हाउस”, “इंस्पेक्शन बंगले” जरूर हैं पर वे सीमित संख्या में हैं और आम पर्यटक की पहुँच से दूर हैं। यहाँ असम पर्यटन विभाग का “प्रशांति टूरिस्ट लॉज” भी है, परन्तु यह भी सीमित संख्या में ही टूरिस्टों को रख सकता है।

कुछ ‘’सत्र’’ पर्यटकों के लिए कमरे उपलब्ध कराते है। इसके लिए पहले से ही सत्र परिचालक से संपर्क करना आवश्यक है। नतुन कमलाबारी, उत्तर कमलाबारी, आउनीआटी, भोगपुर और दक्षिणपाट सत्र में ऐसे कमरे उपलब्ध हैं,

राजनीति

माजुली असम के विधानसभा समष्टि के 99 नंबर निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है। इसके अलावा यह तीन सीटों वाली मिसिंग स्वायत्तशासी परिषद के निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार क्षेत्र में भी पड़ती है।
माजुली लखीमपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के नौ विधानसभा क्षेत्रों में से एक है।

शिक्षण संस्थाएँ

माजुली द्वीप मुख्य भूमि से कटा हुआ होने के बावजूद भी शिक्षण संस्थाओं की कमी नहीं है। हालांकि यहाँ कोई भी तकनीकी संस्थान नहीं है।

कॉलेज एवं जूनियर कॉलेज
कॉलेज

माजुली कॉलेज
जेंग्रईमुख कॉलेज
उजनी माजुली खेरकटिया महाविद्यालय
रंगाशाही कॉलेज
गरमूढ़ कॉलेज
जूनियर कॉलेज
नामोनि माजुली जूनियर कॉलेज
पीताम्बर देव गोस्वामी जूनियर कॉलेज
माजुली जनजाति जूनियर कॉलेज
उत्तर माजुली जनजाति जूनियर कॉलेज
आइलैंड अकादमी, कमलाबारी
स्कूल
केशव राम बोरा हाई स्कूल
महखूटी गेरेकी प्राथमिक विद्यालय
गेरेकी जनजाति एम. ई. स्कूल
द्वीप अकादमी
जेंग्रईमुख हाई स्कूल
जेंग्रईमुख गर्ल्स हाई स्कूल
सेंट पॉल स्कूल
श्री लोहित हाई स्कूल
माजुली आउनीआटी हेमचंद्र हाई स्कूल
मीरागढ़ नारायणदेव हायर सेकेंडरी स्कूल
जोनाकी जातीय विद्यालय
एन.एस. ग्रीनवुड अंग्रेजी मीडियम हाई स्कूल
मेखेलिगांव जनता गर्ल्स हाई स्कूल
करातीपार हाई स्कूल [स्थापित १९४०]
सामगुरी सत्र रावनापार[सीएसआर] मॉडल हायर सेकेंडरी स्कूल [स्थापित १९६२]
बापूजी हाई स्कूल
रंगाशाही थानूराम नाथ उच्च विद्यालय
रंगाशाही थानूराम नाथ एम. ई. स्कूल
२०८ न. रंगाशाही निम्न बुनियादी विद्यालय
४८ न. कटकीबारी प्राथमिक विद्यालय (एलपी स्कूल)
मध्य माजुली पारिजात हायर सेकेंडरी स्कूल, कटकीबारी गांव।
जोनाकी समूहिया अति हायर सेकेंडरी स्कूल।
विवेकानंद केंद्र विद्यालय
फूलनी हाई स्कूल
१ न. फूलनी प्राथमिक विद्यालय
गरमूढ़ श्री श्री पीताम्बर देव हाई स्कूल
सिराम बनामलीदेव हाई स्कूल
सिराम बनामलीदेव हायर सेकेंडरी स्कूल
भक्तिद्वार हायर सेकेंडरी स्कूल
रतनपुर मिरी हाई स्कूल
मुदोइबिल तेलियाबारी सीनियर बेसिक स्कूल
मेजर देवरी जनजातीय हाई स्कूल
स्वर्णश्री हाई स्कूल
रंगाशाही रूपज्योति प्राथमिक विद्यालय
जामुडचुक लाहन हाई स्कूल
१ न. कमलाबारी प्राथमिक विद्यालय
२ न. कमलाबारी प्राथमिक विद्यालय
६८ न. नामकाटानी प्राथमिक विद्यालय
कमलाबारी अकादमी, दारिया
खारंजपार ट्राइबल हाई स्कूल
मिलनज्योति हाई स्कूल, ततया गांव

✍🏻आनन्द कुमार

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