अकबर समेत मुस्लिम शासकों का महिलाओं से था निष्कृष्ट व्यवहार
सभी मुग़ल शासकों में अकबर को सबसे न्यायप्रिय बताया जाता हैं, अगर सभी मुस्लिम शासकों का उदहारण देंगे तो एक पूरी पुस्तक बन जायेगी इसलिए केवल अकबर का ही वर्णन करते हैं।
1. चौलागढ़, जिला नरसिंघपुर कि छोटी सी रियासत पर अकबर के सरदार आसफ खान ने हमला किया। वहाँ के राजा बीर नारायण ने वीरता से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हो गये। महल कि सभी स्त्रियों ने सामूहिक जौहर में भाग लिया और जब चार दिन पश्चात जौहर कक्ष को खोला गया तो उसमें से दो स्त्रियाँ जीवित निकली, सयोग से उनके ऊपर लकड़ी का एक तख़्त गिर गया था जिससे उनकी प्राण रक्षा हो गई। उनमें से एक रानी दुर्गावती की बहन कमलावती थी और दूसरी राजा की नववधु थी। दोनों को अकबर के हरम में भिजवा दिया गया।
(Ref -Page 72 Akbar the Great Mogul – Vincent Smith )
2. अकबर के हरम में 5,000 औरतें थी। (Ref -Page 359 Akbar the Great Mogul – Vincent Smith )
पाठक स्वयं सोच सकते हैं कि अकबर ने ये 5000 औरतें किस प्रकार से जोर जबर्दस्ती हिन्दू एवं गैर हिन्दू घरों से एकत्र की थी। जहाँगीर ने अपने शासन काल में हरम की संख्या बढ़ा कर 6000 कर दी थी।
जहां एक और मुस्लिम शासकों में हिन्दू लड़कियों से अपने हरम भरने की होड़ लगी थी, वही, दूसरी और हिन्दू राजाओं जैसे महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, वीर दुर्गा दास राठोड़ ने अपने चरित्र के आदर्श से संसार के समक्ष एक ऐसा अनुकरणीय उदाहरण स्थापित किया था जिसकी आज पूरे विश्व को नारी जाति के सम्मान को आवश्यकता हैं। यह गौरव और मर्यादा उस कोटि के हैं ,जो संसार की केवल सभ्य और विकसित जातियों में ही मिलते हैं।
महाराणा प्रताप के मुगलों के संघर्ष के समय स्वयं राणा के पुत्र अमर सिंह ने विरोधी अब्दुर रहीम खानखाना के परिवार की औरतों को बंदी बना कर राणा के समक्ष पेश किया तो राणा ने क्रोध में आकर अपने बेटे को हुकुम दिया कि तुरंत उन माताओं और बहनों को पूरे सम्मान के साथ अब्दुर रहीम खानखाना के शिविर में छोड़ कर आये एवं भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की प्रतिज्ञा करे। खानखाना महाराणा प्रताप के चारित्रिक गुण से अत्यंत प्रभावित हुआ एवं उसने महाराणा की प्रशंसा में ये शब्द कहे
धर्म रहसि रहसि धारा खास जारो खुरसन, अमर विशम्बर उपराओं राखो न जो रण
(Ref. Maharana Pratap – Dr Bhawan Singh Rana Page 85 ,86 )
ध्यान रहे महाराणा ने यह आदर्श उस काल में स्थापित किया था जब मुग़ल अबोध राजपूत राजकुमारियों के डोले के डोले से अपने हरम भरते जाते थे। बड़े- बड़े राजपूत घरानों की बेटियाँ मुगलिया हरम के सात पर्दों के भीतर जीवन भर को कैद कर दी जाती थी। महाराणा चाहते तो उनके साथ भी ऐसा ही कर सकते थे। पर नहीं, उनका आर्य स्वाभिमान ऐसी उन्हें कभी नहीं करने देता था।
औरंगजेब के राज में हिन्दुओं पर अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। धर्मान्ध औरंगजेब के अत्याचार से स्वयं उसके बाप और भाई तक न बच सके , साधारण हिन्दू जनता की दशा की स्वयं पाठक कल्पना कर सकते हैं। औरंगजेब की स्वयं अपने बेटे अकबर से किसी बात को लेकर अनबन हो गयी थी। इसी कारण उसका बेटा आगरे के किले को छोड़कर औरंगजेब के प्रखर विरोधी राजपूतों से जा मिला था जिनका नेतृत्व वीर दुर्गादास राठोड़ कर रहे थे। कहाँ राजसी ठाठ बाठ में किलो की शीतल छाया में पला बढ़ा अकबर , कहाँ राजस्थान की भस्म करने वाली तपती हुई धूल भरी गर्मियाँ। शीघ्र सफलता न मिलते देख संघर्ष न करने के अभ्यस्त अकबर एक बार राजपूतों का शिविर छोड़ कर भाग निकला। पीछे से अपने बच्चों अर्थात औरंगजेब के पोते-पोतियों को राजपूतों के शिविर में ही छोड़ गया। जब औरंगजेब को इस बात का पता चला तो उसे अपने पोते-पोतियों की चिन्ता हुई क्यूंकि वह जैसा व्यवहार औरों के बच्चों के साथ करता था कहीं वैसा ही व्यवहार उसके बच्चों के साथ न हो जाये। परन्तु वीर दुर्गा दास राठोड़ एवं औरंगजेब में भारी अंतर था। दुर्गादास की रगों में आर्य जाति का लहू बहता था। दुर्गादास ने प्राचीन आर्य मर्यादा का पालन करते हुए ससम्मान औरंगजेब के पोते-पोतियों को वापिस औरंगजेब के पास भेज दिया जिन्हें पाकर औरंगजेब अत्यंत प्रसन्न हुआ। वीर दुर्गादास राठोड़ ने इतिहास में अपना नाम अपने आर्य व्यवहार से स्वर्णिम शब्दों में लिखवा लिया।
(Ref. The House of Marwar Published in 1994 ,Dhananjay Singh page 94 )
वीर शिवाजी महाराज का सम्पूर्ण जीवन आर्य जाति की सेवा,रक्षा, मंदिरों के उद्धार, गौ माता के कल्याण एवं एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के रूप में गुजरा जिन्हें पढ़कर प्राचीन आर्य राजाओं के महान आदर्शों का पुन: स्मरण हो जाता हैं। जीवन भर उनका संघर्ष कभी बीजापुर से, कभी मुगलों से चलता रहा। किसी भी युद्ध को जीतने के बाद शिवाजी के सरदार उन्हें नजराने के रूप में उपहार पेश करते थे। एक चर्चित प्रकरण बार-बार सुनाया जाता है। एक बार उनके एक सरदार ने कल्याण के मुस्लिम सूबेदार की अति सुन्दर बीवी शिवाजी के सम्मुख पेश की। उसको देखते ही शिवाजी महाराज अत्यंत क्रोधित हो गए और उस सरदार को तत्काल यह हुक्म दिया कि उस महिला को ससम्मान वापिस उसके घर छोड़ आये। अत्यंत विनम्र भाव से शिवाजी उस महिला से बोले ” माता आप कितनी सुन्दर हैं , मैं भी आपका पुत्र होता तो इतना ही सुन्दर होता। अपने सैनिक की गई गलती के लिए मैं आपसे माफी मांगता हूँ”। यह कहकर शिवाजी ने तत्काल आदेश दिया कि जो भी सैनिक या सरदार जो किसी भी ऊँचे पद पर होगा अगर शत्रु की स्त्री को हाथ लगायेगा तो उसका अंग छेदन कर दिया जायेगा।
(Ref Page No.4 Shivaji the Great Published in 1940 -Bal Krishna )
कहाँ औरंगजेब की सेना के सिपाही जिनके हाथ अगर कोई हिन्दू लड़की लग जाती या तो उसे या तो अपने हरम में गुलाम बना कर रख लेते थे अथवा उसे खुलेआम गुलाम बाज़ार में बेच देते थे और कहाँ वीर शिवाजी का यह पवित्र आर्य आदर्श।
मुस्लिम आक्रमण जितना ही पुराना है इतिहास जौहर का
जौहर का इतिहास बहुत पुराना बताया गया है। बताया जाता है कि जब मुस्लिम आक्रमण में राजा की युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी या राजा वीरगति को प्राप्त हो जाता था तब वहां की रानियां जौहर करती थी। किले के अंदर बड़े-बड़े कुंड बने हुए थे। जौहर के समय इन कुंडों में अग्नि प्रज्वलित की जाती थी। महिलाएं इस जलती कुंड में कूदकर अपने प्राण दे दिया करती थी। यह बडे ही साहस की बात होती है। जब महिलाएं जौहर करती है।
क्यों करती थी जौहर?
महिलाएं अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किया करती थी। बताया जाता है कि जब राजा युद्ध हार जाते थे तो उस समय विजय प्राप्त करने वाला बादशाह और उसके सैनिक किले में प्रवेश कर रानियों तथा अन्य महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार किया करते थे। ऐसे में देश की वीरांगनाएं अपनी इज्जत सम्मान की रक्षा के लिए जौहर करती थी।
क्या है जौहर का इतिहास
अगर जौहर के इतिहास के संबंध में नजर डाली जाए तो पता चलता है कि जोहर का इतिहास 1301 ईस्वी के पूर्व का बताया जाता है।
बताया जाता है कि भारत में प्रथम जौहर 1301 ईस्वी में हुआ था। उस समय दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजी का शासन था। इस युद्ध में राणा रतन सिंह पराजित हो गए। इसके पश्चात महारानी पद्मिनी ने अपने सील की रक्षा के लिए जौहर किया था।
वही दूसरे जौहर के संबंध में पता चलता है कि यह चित्तौड़ में 8 मार्च 1535 को हुआ था। जिसमें चित्तौड़ की महारानी कर्णावती ने 13000 नारियों के साथ जलते हुए आग के कुंड में कूद कर अपने प्राण दे दिए थे।
देश में तीसरा जौहर 1568 ईस्वी में हुआ। जिसमें फतेह सिंह चुंडावत की पत्नी फूलकंवर मेड़तानी के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर किया था।
जोहर का यह भी था एक कारण
जोहर के संबंध में चर्चा करने पर ही रूह कांप जाया करती है। जीवित शरीर को अग्निकुंड को समर्पित करना कोई बच्चों का खेल नहीं है। इसमें बहुत ही साहस की आवश्यकता होती है। साथ ही इसके पीछे कारण भी उतने ही ज्वलंत होते हैं।
मुगल शासक करते थे अपमान
बताया जाता है कि जब राजा खास तौर पर मुगल शासक युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात किले में प्रवेश करते थे तो वह महारानी के साथ ही सुंदर सुंदर औरतों पर अपना कब्जा चाहते थे। इसके लिए वह महिलाओं का अपमान भी किया करते थे। लेकिन इसके पूर्व वह सभी स्त्रियां या तो जहर खाकर प्राण दे देती थी या फिर जौहर कर लेती थी।
करते थे क्रूरता
इतिहास में ऐसे भी हमलावर मुगल शासक हुए हैं जिन्होंने विजय के पश्चात जब किले में कब्जा किया तो और रानी को मरा हुआ पानी पर गुस्से से पागल हो जाते थे। कई बार तो यह भी बताया गया है कि उस मृत शरीर के साथ क्रूरता की जाती थी।
कई बार मृत शरीर के शरीर के अंगों को काट डाला जाता था। यह तब होता था जब महिलाएं तथा महारानियां जहर खाकर अपना प्राण देती थी। ऐसे में महिलाओं ने अपने शरीर को समूल पंचतत्व में विलीन कर देने जौहर करने लगी।
इतिहास में बहुत कुछ विपरीत बताया जा रहा है। अकबर को महान व महाराणा प्रताप को सामान्य बताया जाता रहा है। वामपंथी और जेहादी इतिहासकारों की मानसिकता से बाहर आएं। उच्च कोटि के शोध ग्रन्थों से वास्तविक इतिहास जानिए।
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