संभव है? बजरंग पूनिया ने फुटपाथ पर फैंका पद्मश्री, कांग्रेस के साथ
Bajarang Punia Left The Padm Award Outside Pm Residence But Will Bajrang Punia Be Able To Return The Award Know The Rules
प्रधानमंत्री आवास के बाहर रख कर तो चले गए लेकिन क्या पुरस्कार लौटा पाएंगे बजरंग पुनिया? जानिए नियम
कुश्ती के ओलंपिक चैंपियन बजरंग पुनिया पद्म पुरस्कार लौटाने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं। उनसे पहले भी कई लोगों ने पुरस्कार का सनद पत्र और निशान लौटाने की घोषणा की है, लेकिन नियमों के मुताबिक नाम रजिस्टर में बना रहता है। पुरस्कार वापसी या स्वीकृति का कोई प्रावधान नहीं है।
मुख्य बिंदु
प्रधानमंत्री आवास के बाहर पद्म पुरस्कार रखकर चले गए बजरंग पुनिया
विरोध स्वरूप पद्म पुरस्कार लौटाना आसान लेकिन नाम हटाना मुश्किल
पुरस्कार पाने वाले की तरफ से वापसी की घोषणा के बाद नियम जानिए
पद्म पुरस्कार लौटाने का नियम क्या है?
नई दिल्ली 23 दिसंबर: कुश्ती में ओलिंपिक पुरस्कार विजेता बजरंग पुनिया ने भारत सरकार से मिले पद्म पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है। लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं है कि पद्म पुरस्कार लौटाया जा सके। एक अधिकारी ने बताया, ‘कोई पुरस्कार विजेता चाहे तो कारण बताकर लौटाने की घोषणा कर सकता है, लेकिन पद्म पुरस्कार के नियम में इसको लेकर कोई प्रावधान नहीं है। नियम में सिर्फ इतना है कि बिना किसी आधार के राष्ट्रपति पुरस्कार रद्द नहीं कर सकते और जब तक राष्ट्रपति फैसला नहीं लें तब तक विजेता का नाम राष्ट्रपति के निर्देशानुसार बनाए गए पद्म प्राप्तकर्ताओं के रजिस्टर में बना रहता है। राष्ट्रपति अगर किसी का पुरस्कार रद्द कर दें तो उनके फैसले को कैसे रद्द किया जा सकता है, नियम में इसका भी प्रावधान है।’
पूछकर दिया जाता है पुरस्कार
पद्म पुरस्कार कभी रद्द नहीं किए गए हैं। 2018 में गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा को बताया था, ‘देश की जांच एजेंसियों की तरफ से व्यक्ति के चरित्र और पृष्ठभूमि का सत्यापन किए जाने के बाद ही पुरस्कार दिए जाते हैं।’ सामान्य प्रथा के अनुसार, पुरस्कार की घोषणा से पहले ही संभावित प्राप्तकर्ता की इच्छा अनौपचारिक रूप से पूछी जाती है। कई लोग पूछने पर ही पुरस्कार लेने से इनकार कर देते हैं।
जान लीजिए पद्म पुरस्कार से जुड़ा नियम
एक बार किसी को पद्म विभूषण, पद्म भूषण या पद्म श्री सम्मान के बाद उसका नाम भारत के गजट में प्रकाशित होता है और ऐसे प्राप्तकर्ताओं का एक रजिस्टर बनाए रखा जाता है। एक अधिकारी ने कहा, ‘भले ही पुरस्कार विजेता बाद में पद्म पुरस्कार लौटाने को कहे, उसका नाम गजट या पुरस्कार विजेताओं के रजिस्टर से नहीं हटता ।’
पहले भी हो चुकी हैं पुरस्कार वापसी घोषणायें
पद्म पुरस्कार ‘वापसी’ में सबसे ताजा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व केंद्रीय मंत्री एसएस ढिंडसा थे। उन्होंने 2020 में राष्ट्रपति को लिखा कि वे तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध करते किसानों के साथ एकजुटता दिखा पुरस्कार ‘वापस’ कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि बादल और ढिंडसा का नाम अभी भी पद्म पुरस्कार विजेताओं के रजिस्टर में है।
WFE चीफ के चुनाव के बाद बवाल
ध्यान रहे, बृजभूषण शरण सिंह के सहयोगी संजय सिंह की भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) प्रमुख बनने के बाद पहलवान बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटाने की घोषणा करते राजधानी दिल्ली में लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास के बाहर अपना पुरस्कार फुटपाथ के पास रख दिया। बजरंग पुरस्कार लौटाने पीएम आवास की ओर बढ़े, जहां उन्हें दिल्ली पुलिस ने रोक दिया। पुनिया पद्मश्री पुरस्कार फुटपाथ पर रख चले गए और दिल्ली पुलिस से कहा, ‘मैं पद्मश्री पुरस्कार उसे दूंगा जो इसे प्रधानमंत्री मोदी तक लेकर जाएगा।’
क्या मानेंगे बजरंग पुनिया?
आंसू भरी आंखों साक्षी मलिक के खेल छोड़ने की घोषणा के एक दिन बाद बजरंग ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख डब्ल्यूएफआई चुनावों पर निराशा जताई। इससे पहले दिन में, प्रधानमंत्री को संबोधित पत्र में पुनिया ने पुरस्कार लौटाने के फैसले का कारण बताया। उधर, खेल मंत्रालय ने कहा कि भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष संजय सिंह के चुनाव के विरोध में बजरंग पुनिया का पद्मश्री पुरस्कार लौटाने का फैसला व्यक्तिगत है,फिर भी उन्हें इस पर पुनर्विचार को मनाने की कोशिश होगी।
‘पद्मश्री’ लौटाकर प्रियंका गाँधी के साथ दिखे बजरंग पुनिया, संन्यास लेने वाली साक्षी मलिक भी थी साथ: संजय सिंह के WFI अध्यक्ष बनने से हैं नाराज
बृजभूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह कुश्ती संघ अध्यक्ष चुने गए तो कुछ नामी भारतीय पहलवान इसका विरोध किया। कल साक्षी मलिक ने कहा था कि वो कुश्ती छोड़ रही हैं तो बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री का सम्मान वापस लौटाने की कहीं । वीडियो में बजरंग पुनिया अवार्ड फुटपाथ पर रखकर भाग रहे हैं। उन्होंने अपने एक्स अकॉउंट पर लिखा, “मैं अपना पद्मश्री पुरस्कार प्रधानमंत्री जी को वापस लौटा रहा हूँ। कहने को बस मेरा यह पत्र है।”
अपने पत्र में बजरंग पुनिया ने प्रधानमंत्री से कहा,“इसी साल जनवरी में देश की महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ पर काबिज बृजभूषण शरण सिंह पर सेक्सुअल हरासमेंट के गंभीर आरोप लगाए थे, जब उन महिला पहलवानों ने अपना आंदोलन शुरू किया तो मैं भी उसमें शामिल हुआ। आंदोलित पहलवान जनवरी में अपने घर लौट गए, जब उन्हें सरकार ने ठोस कार्रवाई की बात कही। लेकिन तीन महीने बाद भी बृजभूषण पर एफआईआर तक नहीं की। तब हम पहलवानों ने अप्रैल में दोबारा सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया ताकि दिल्ली पुलिस कम से कम बृजभूषण सिंह पर एफआईआर करे, लेकिन फिर भी बात नहीं बनी, तो हमें कोर्ट में जाकर एफआईआर करवानी पड़ी।
जनवरी में शिकायतकर्ता महिला पहलवानों की गिनती 19 थी जो अप्रैल आते-आते 7 रह गई। इन तीन महीनों में अपनी ताकत से बृजभूषण सिंह ने 12 महिला पहलवानों को न्याय की लड़ाई में पीछे हटा दिया। आंदोलन 40 दिन चला। इन 40 दिनों में एक महिला पहलवान और पीछे हट गईं। हम सब पर बहुत दबाव था। प्रदर्शन स्थल तहस-नहस कर दिया गया और हमें दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया गया । प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी। जब ऐसा हुआ तो हमें कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें। इसलिए हमने अपने मेडल गंगा में बहाने की सोची।
तब आपके एक जिम्मेदार मंत्री का फोन आया और हमें कहा गया कि हम वापस आ जाएँ, हमारे साथ न्याय होगा। इसी बीच गृहमंत्री से भी हमारी मुलाकात हुई, जिसमें उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वे महिला पहलवानों के लिए न्याय में उनका साथ देंगे और कुश्ती फेडरेशन बृजभूषण, उसके परिवार और उसके गुर्गों को बाहर करेंगे। हमने उनकी बात मानकर सड़कों से अपना आंदोलन समाप्त कर दिया, क्योंकि कुश्ती संघ का हल सरकार कर देगी और न्याय की लड़ाई न्यायालय में लड़ी जाएगी, ये दो बातें हमें तर्कसंगत लगी।“
आगे बजरंग पुनिया ने संजय सिंह के अध्यक्ष बनने का हवाला दिया और कहा कि WFI के अध्यक्ष पद पर बृजभूषण शरण फिर काबिज हो गया है। उसने बयान दिया है कि दबदबा है और दबदबा रहेगा। महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोपित सरेआम ऐसा दावा कर रहा था, इसी मानसिक दबाव में आकर ओलंपिक पदक विजेता एकमात्र महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से सन्यास ले लिया।
उन्होंने लिखा, “खेल हमारी महिला खिलाड़ियों के जीवन में जबरदस्त बदलाव लेकर आए थे। पहले देहात में यह कल्पना नहीं थी कि देहाती मैदानों में लड़के-लड़कियाँ एक साथ खेलते दिखेंगे। लेकिन पहली पीढ़ी की महिला खिलाड़ियों की हिम्मत से ऐसा हो सका। हर गाँव में आपको लड़कियाँ खेलती दिख जाएँगी और वे खेलने के लिए देश विदेश तक जा रही हैं। लेकिन जिनका दबदबा कायम हुआ है या रहेगा, उनकी परछाई तक महिला खिलाड़ियों को डराती है और अब तो वे पूरी तरह दोबारा काबिज हो गए हैं। उनके गले में फूल-मालाओं वाली फोटो आप तक पहुँची होगी।”
बता दें कि साल 2013 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कई साहित्यकारों ने भी अवार्ड वापस का अभियान चलाया था। बाद में पता चला वो पूरा अभियान राजनीति प्रेरित था। पहलवान बजरंग पुनिया ने अपना अवार्ड लौटाया तब भी ऐसा देखने को मिला। कॉन्ग्रेस के ट्वीट में दिखा कि बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक समेत कई पहलवानों से कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने मुलाकात की।
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