कुंभ 1954: 800 की जान गई,कहा कि भिखारी थे
#कुछ_भिखारी_ही_मरे_हैं🥲
साल था 1⃣9⃣5⃣4⃣आजाद भारत का पहला कुंभ था लिहाजा सरकार तैयारियों में किसी तरह का कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। संगम के करीब ही अस्थाई रेलवे स्टेशन बनाया गया था। बड़ी संख्या में टूरिस्ट गाइड अपॉइंट किए गए थे। बुलडोजर से उबड़-खाबड़ जमीनें समतल की गई थीं।सड़कों पर बिछी रेलवे लाइनों के ऊपर पुल बनाए गए थे। पहली बार कुंभ में बिजली के खंभे लगाए गए। करीब एक हजार खंभे। 9 अस्पताल खोले गए, ताकि कोई बीमार पड़े या हादसे का शिकार हो तो उसे फौरन मेडिकल फैसिलिटी मुहैया कराई जा सके।कुंभ में 40-50 लाख लोगों के आने का भी अनुमान था
3⃣ फरवरी को मौनी अमावस्या का पवित्र दिन था और
इलाहाबाद/आज की भाँति प्रयागराज महाकुंभ मेला था
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के साथ-साथ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी कुंभ पहुंचे थे। राजेंद्र प्रसाद ने तो महीनेभर संगम क्षेत्र में कल्पवास किया था। उस रोज सुबह नेहरू नाव में बैठे। उनके परिवार के लोग भी साथ थे। सभी ने संगम में डुबकी लगाई, लेकिन नेहरू ने स्नान तो दूर, खुद के ऊपर गंगा का पानी तक नहीं छिड़का।’
सीनियर फोटो जर्नलिस्ट N.N मुखर्जी
भी 1954 के उस महाकुंभ में मौजूद थे
1989 में मुखर्जी की आंखों-देखी रिपोर्ट ‘छायाकृति’
नाम की हिंदी मैगजीन में छपी। मुखर्जी लिखते हैं-
‘प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद एक
ही दिन स्नान के लिए संगम पहुंच गए। ज्यादातर पुलिस और अफसर उनकी व्यवस्था में व्यस्त हो गए।करीब 10.20 बजे की बात है। स्नान करने वाले घाट पर बैरिकेड लगाकर हजारों लोगों को रोका गया था। आम लोगों के साथ-साथ हजारों नागा साधु, घोड़ा गाड़ी, हाथी, ऊंट सब घंटों इंतजार करते रहे। दोनों तरफ जनसैलाब जम गया था।इसी बीच नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की कार त्रिवेणी की तरफ से आई और किला घाट की तरफ निकल गई। जब नेहरू और बाकी वीवीआईपी लोगों की गाड़ी गुजर गई, तो बिना किसी योजना के भीड़ को छोड़ दिया गया।
भीड़ बैरिकेड तोड़कर घाट की तरफ जाने लगी।
उसी रोड पर दूसरी छोर से साधुओं का जुलूस निकल
रहा था। भीड़ और साधु-संत आमने सामने आ गए।
जुलूस बिखर गया। बैरिकेड की ढलान से लोग ऐसे गिरने लगे, जैसे तूफान में खड़ी फसलें गिरती हैं।जो गिरा वो गिरा ही रह गया, कोई उठ नहीं सका। चारों तरफ से मुझे बचाओ, मुझे बचाओ की चीख गूंज रही थी। कई लोग तो गहरे कुएं में जा गिर गए।’भगदड़ में छोटे छोटे बच्चे कुचलते हुए जा रहे थे। कोई
बिजली के तारों पर झूलकर खुद को बचा रहा था।
स्थिति बेकाबू हो गयी सैकड़ों लोगों की जान चली गई
आजादी के बाद पहला कुंभ था, इसलिए सरकार के लिए यह साख का भी सवाल था।उत्तर प्रदेश में भी सरकार कांग्रेस की ही थी प्रखर गांधीवादी नेहरू के ख़ास गोविंद बल्लभ पंत CM थे
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सरकार ने कहा कि हादसे में कुछ #भिखारी_ही_मरे_हैं।
महाकुंभ में सैकड़ों लोगों के मरने की खबर गलत है।
जबकि जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी ने अधिकारियों को हादसे की तस्वीरें दिखाईं, जिसमें महंगे गहने पहनी महिलाएं भी थीं। जो इस बात का तस्दीक कर रही थीं कि अच्छे बैकग्राउंड वाले भी लोग कुचलकर मरे हैं।’चूंकि लिपापोती करने का आदेश था इस लिए चुप रहे लेकिन 4⃣ फरवरी 1⃣9⃣5⃣4⃣ यानि हादसे के अगले दिन को अमृत बाजार पत्रिका नाम के अखबार में हादसे की खबर छपी। एक तरफ भगदड़ में लोगों के मारे जाने की खबर और दूसरी तरफ राजभवन में राष्ट्रपति के स्वागत में रखी गई पार्टी की तस्वीर अखबार में छपी।
तत्कालीन बेशर्म निर्ल्लज यूपी सरकार ने कहा कि
ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। अखबार में गलत खबर छपी है। अखबार वालों को इसका खंडन छापना चाहिए।’
‘NN मुखर्जी ने हादसे की खबर तो छाप दी थी, लेकिन सरकार का दबाव था कि कुछ हुआ ही नहीं। एक पत्रकार के नाते उन्हें इसका सबूत पेश करना था। अगले दिन वे फिर से मेले में पहुंच गए। मुखर्जी ने देखा कि प्रशासन शवों का ढेर बनाकर उसमें आग लगा रहा था। किसी भी फोटोग्राफर या पत्रकार को वहां जाने की इजाजत नहीं थी। चारों तरफ बड़ी संख्या में पुलिस मुस्तैद थी।बारिश हो रही थी।NN मुखर्जी एक गांव वाले की वेशभूषा में छाता लिए वहां पहुंचे। उनके हाथ में खादी का झोला था, जिसके भीतर उन्होंने छोटा सा कैमरा छिपाया हुआ था। झोले में एक छेद कर रखा था ताकि कैमरे का लेंस नहीं ढंके।फोटोग्राफर NN मुखर्जी ने पुलिस वालों से रोते हुए कहा कि मुझे आखिरी बार अपनी दादी को देखना है। वे सिपाहियों के पैर पर गिर पड़े। उनसे मिन्नतें करने लगे कि आखिरी बार मुझे दादी को देख लेने दो।एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें इस शर्त पर जाने की छूट दी कि वे जल्द लौट आएंगे। वे तेजी से शवों की तरफ दौड़े। अपनी दादी को ढूंढने का नाटक करने लगे। इसी दौरान उन्होंने गिरते-संभलते जलती हुई लाशों की फोटो खींच ली।📸
NEXT DAYअखबार में जलती हुई लाशों की फोटो छपी
खबर पढ़कर यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत गुस्से
से लाल हो गए। उन्होंने पत्रकार को गाली देते हुए कहा
था- ‘कहां है वह हरामी…. फोटोग्राफर।’ 1989 में छपी
‘छायाकृति’ मैगजीन में भी इस किस्से का जिक्र है।
कुछ लोगों का दावा है कि हादसे के दिन पंडित नेहरू कुंभ में मौजूद नहीं थे। बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट में हादसे के वक्त मौजूद रहे नरेश मिश्र ने बताया था- ’नेहरू हादसे से ठीक एक दिन पहले प्रयाग आए थे, उन्होंने संगम क्षेत्र में तैयारियों का जायजा लिया और दिल्ली लौट गए, लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद संगम क्षेत्र में ही थे और सुबह के वक्त किले के बुर्ज पर बैठकर दशनामी संन्यासियों का जुलूस देख रहे थे।’
हालांकि, कई लेखक, पत्रकार और खुद नेहरू ने भी संसद में माना था कि वे हादसे के वक्त कुंभ में मौजूद थे। 15 फरवरी 1954 को जवाहर लाल नेहरू ने संसद कहा- ‘मैं किले की बालकनी में था। वहां से खड़े होकर कुंभ देख रहा था। यह अनुमान लगाया गया था कि कुंभ में 40 लाख लोग पहुंचे थे। बहुत दुख की बात है कि जिस समारोह में इतनी बड़ी संख्या में लोग जुटे थे, वहां ऐसी घटना हो गई और कई लोगों की जान चली गई।’
‘#पिलग्रिमेज_एंड_पावर_द_कुंभ_मेला_इन_इलाहाबाद फ्रॉम 1776-1954’ में कामा मैकलिन ने भी हादसे के वक्त नेहरू के कुंभ में मौजूद रहने की बात लिखी है। कामा मैकलिन ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन एंड वर्ल्ड हिस्ट्री की प्रोफेसर रह चुकी हैं।
कामा मैकलिन लिखती हैं- ‘हादसे के बाद UP सरकार ने एक जांच कमेटी बनाई। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस #कमलाकांत_वर्मा, यूपी सरकार के पूर्व सलाहकार डॉ. #पन्नालाल और सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर #एसी_मित्रा शामिल थे।
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में हादसे के लिए सरकार को जिम्मेदार तो ठहराया, लेकिन सारा दोष #मीडिया पर मढ़ दिया। कमेटी ने कहा था कि कुंभ में मुख्य स्नान
के दिन VIP और VVIP को नहीं जाना चाहिए ।
छेदनी देवी नाम की एक महिला का पूरा परिवार हादसे में खत्म हो गया था। उसने सरकार से मुआवजे की मांग की। कमेटी ने उसकी मांग खारिज कर दी।
वर्मा ने कहा – ‘तीर्थ यात्री मेले में
करो या मरो की भावना से शामिल हुए थे।’
1 मई 2019, जगह यूपी का कौशांबी जिला। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने कहा था की – ‘पंडित नेहरू जब प्रधानमंत्री थे, तो कुंभ के मेले में आए थे। तब अव्यवस्था के चलते कुंभ में भगदड़ मच गई। सैकड़ों लोग कुचलकर मारे गए, लेकिन सरकार की इज्जत बचाने के लिए,सारी खबर ही दबा दी गई। भाइयो-बहनो… यह सिर्फ भगदड़ नहीं थी।
ऐसा पाप देश के पहले प्रधानमंत्री के काल में हुआ है।’
‘’बांग्ला के मशहूर उपन्यासकार समरेश बसु ने इस हादसे के ऊपर #अमृत_कुंभ_की_खोज_में’ नाम से उपन्यास लिखा था। 1955 में यह उपन्यास कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले बांग्ला अखबार ‘आनन्द बाजार’ पत्रिका में धारावाहिक रूप में पब्लिश हुआ। जिसको आज हम
ABP NEWS मीडिया नेटवर्क के नाम से जानते हैं📺
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मशहूर फिल्मकार #बिमल_रॉय इस उपन्यास पर एक हिन्दी फिल्म बनाना चाहते थे। गीतकार गुलजार उनके सहायक थे। गुलजार इस फिल्म की पटकथा भी लिख रहे थे। फिल्म पर टुकड़ों-टुकड़ों में काम चलता रहा। दूसरे मेलों में जाकर कुछ आउटडोर शूटिंग भी कर ली गई।1962 की सर्दियों में फिल्म रिलीज करने की तैयारी थी, लेकिन इसी बीच बिमल रॉय बीमार पड़ गए 8 जनवरी 1965 को बिमल रॉय का निधन हो गया। और आखिरकार फिल्म अमृत कुंभ ठंडे बस्ते में चली गई
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ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार जैसे 1000+ श्रद्धालुओ
की लाशें राजनीति की चिता में कांग्रेस ने ठंडी की थी!
नेहरू जी ऐसे पंडित थे जो न जनेऊ ही पहनते थे
और न ही महाकुंभ पहुँचने के बावजूद न स्नान करते थे
Becus सो कोल्ड पण्डित जी एसीडेंटल hindu थे.
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रिफरेंस :
1. पब्लिक लाइब्रेरी, प्रयागराज
2. प्रयागराज और कुंभ : कुमार निर्मलेन्दु
3. पिलग्रिमेज एंड पावर : द कुंभ मेला इन इलाहाबाद फ्रॉम 1776-1954
4. छायाकृति’ मैगजीन : एनएन मुखर्जी
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Note. आज प्रयागराज में
करीब 10 करोड़ श्रद्धालुओ का रेला पहुँच चुका है
कल सभी पावन पवित्र माँ गंगा की गोद में ख़ुद को
अर्पित करेंगे समर्पित करेंगे, मेरा सभी श्रद्धालुओ से
निवेदन है कि किसी भी अफवाह पर ध्यान मत देना
मेला प्रशासन द्वारा बताये बातों को ही ध्यान देना है
आस्था की डुबकी लगाते हुए,आराम से शांति पूर्वक
व्यस्वस्था को बनाते हुए अपने अपने घर प्रस्थान करें
महादेव माँ गंगा आपका कल्याण करें, हर हर गंगे 🙏🏿
रामभक्त संजीत चौरसिया जी
वाया,
Valam Meghwal Ji