क्यों वर्जित है मक्का मदीना में गैर मुस्लिमों का प्रवेश ?

क्यों वर्जित है मक्का मदीना में गैर मुस्लिमों का प्रवेश ?

 

सऊदी अरब की धरती पर इस्लाम का जन्म हुआ, इसलिए मक्का और मदीना जैसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थल उस देश की थाती हैं। मक्का में पवित्र काबा है, जिसकी परिक्रमा कर हर मुसलमान धन्य हो जाता है। यही वह स्थान है जहां हज यात्रा सम्पन्न होती है। इस्लामी तारीख के अनुसार 10 जिलहज को दुनिया के कोने-कोने से मुसलमान इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं, जिसे “ईदुल अजहा’ कहा जाता है। मक्का के लिए मुख्य नगर ‘जेद्दाह’ है। जेद्दाह से मक्का जाने वाले मार्ग पर ये निर्देश लिखे होते हैं कि यहां मुसलमानों के अतिरिक्त किसी भी और धरम का व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। अधिकांश सूचनाएं अरबी भाषा में लिखी होती हैं, जिसे अन्य देशों के लोग बहुत कम जानते हैं।यहा यह भी लिखा जाता था कि “काफिरों’ का प्रवेश प्रतिबंधित है।

मक्का के बारे में कहते हैं कि वह मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल ‘शिवलिंग’ था जो ‘खंडित अवस्था’ में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही ‘पूजते और चूमते’ हैं। इसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में बहुत विस्तार से लिखा है। वेंकतेश पण्डित ग्रन्थ ‘रामावतारचरित’ के युद्धकांड प्रकरण में एक बहुत अद्भुत प्रसंग ‘मक्केश्वर लिंग’ से संबंधित हैं, जो आम तौर पर अन्य रामायणों में नहीं मिलता है। शिव रावण द्वारा याचना करने पर उसे युद्ध में विजयी होने के लिए एक लिंग (मक्केश्वर महादेव) दे देते हैं और कहते हैं कि जा, यह तेरी रक्षा करेगा, मगर ले जाते समय इसे मार्ग में कहीं पर भी धरती पर नहीं रखना।

रावण लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को ‘शिवलिंग’ धरती पर रखना पड़ता है। वह दुबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। वेंकतेश पण्डित के अनुसर यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है। सऊदी अरब के पास ही ‘यमन’ नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने ‘कालयवन’ नामक राक्षस का विनाश किया था।

अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को ‘लात’ कहा जाता था। मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले ‘इजराइल’ और ‘अन्य यहूदियों’ द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं।

काबा से जुड़ी है “पवित्र गंगा”। जैसा कि सभी जानते हैं भारतीय संस्कृति में शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के रिश्ते को कभी अलग नहीं किया जा सकता। जहाँ भी ‘शिव’ होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा ‘निश्चित’ ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र ‘झरना’ पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। अब इसका गंगाजल की तरह वैज्ञानिक परीक्षण हुआ कि नही,पता नहीं. न भी हो, हर जगह गंगा हो जाये तो उसका महत्व और विलक्षणता रहे कहां? इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था। हाजी हज से लौटते इस आबे ज़मज़म को अपने साथ ‘बोतल’ में भरकर ले जाते हैं।

ऐसा क्यों है कि ‘कुम्भ’ में शामिल होने वाले हिन्दुओं द्वारा गंगाजल को पवित्र मानने और उसे बोतलों में भरकर घरों में ले जाने, तथा इसी प्रकार हज की इस परम्परा में इतनी समानता है?

इसके पीछे क्या कारण है ?
http://hindi.speakingtree.in/spiritual-slideshow/seekers/faith-and-rituals/content-342865/140726

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