ज्ञान: संस्कृत में कोचिंग – सूत्र साहित्य
#सूत्रग्रन्थ-
“अल्पाक्षरं असंदिग्धं सारवत् विश्वतोमुखम्।
अस्तोभं अनवद्यं च सूत्रं सूत्र विदो विदुः॥“ –वायु पुराण
सूत्र किसी बड़ी बात को अतिसंक्षिप्त रूप में अभिव्यक्त करने का तरीका है। इसका उपयोग साहित्य, व्याकरण, गणित, विज्ञान आदि में होता है। सूत्र साहित्य में छोटे-छोटे किन्तु सारगर्भित वाक्य होते हैं जो आपस में भलीभांति जुड़े होते हैं।
इनमें प्रायः पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्दों का खुलकर किया जाता है ताकि गूढ से गूढ बात भी संक्षेप में किन्तु स्पष्टता से कही जा सके। प्राचीन काल में सूत्र साहित्य का महत्व इसलिये था कि अधिकांश ग्रन्थ कंठस्थ किये जाने के ध्येय से रचे जाते थे; अतः इनका संक्षिप्त होना विशेष उपयोगी था। सूत्रों को चार भागों में विभाजित किया गया-
• श्रौतसूत्र – इनमें यज्ञों की विधियाँ बताई गई है। ऋग्वेद के सांख्यायन और आश्वलायन नाम के श्रौत-सूत्र हैं। सामवेद के मशक, कात्यायन और द्राह्यायन के श्रौतसूत्र हैं।
शुक्ल यजुर्वेद का कात्यायन श्रौतसूत्र और कृष्ण यजुर्वेद के आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, भारद्वाज आदि के 6 श्रौतसूत्र हैं। अथर्ववेद का वैतान सूत्र है।
• गृह्य सूत्र – इनमें गृहस्थों के कृत्य,संस्कार तथा वैसी ही धार्मिक बातें बताई गई है। गृह्यसूत्रों में सांख्यायन, शाम्बव्य तथा आश्वलायन के गृह्यसूत्र ऋग्वेद के हैं। सामवेद के गोभिल और खदिर गृह्यसूत्र हैं।
शुक्ल यजुर्वेद का पारस्कर गृह्यसूत्र है और कृष्ण यजुर्वेद के 7 गृह्य सूत्र हैं जो उसके श्रौतसूत्रकारों के ही नाम पर हैं। अथर्ववेद का कौशिक गृह्य सूत्र है।
• धर्मसूत्र– इनमें समाज की व्यवस्था के नियम बताये गये हैं। आश्रम, भोज्याभोज्य, ऊँच-नीच, विवाह एवं अपराध आदि विषयों का वर्णन किया गया है। धर्मसूत्रकारों में आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, गौतम, वशिष्ठ आदि मुख्य हैं। हिन्दू दर्शन के योगसूत्र,न्यायसूत्र,वैशेषिक सूत्र,पूर्व मीमांसा सूत्र,ब्रह्मसूत्र या वेदान्त सूत्र आदि मुख्य हैं ।
• शुल्बसूत्र-यज्ञशाला का शिल्प। शुल्बसूत्र संस्कृत के सूत्रग्रन्थ हैं जो स्रौत कर्मों से सम्बन्धित हैं। इनमें यज्ञ-वेदी की रचना से सम्बन्धित ज्यामितीय ज्ञान दिया हुआ है। संस्कृत कें शुल्ब शब्द का अर्थ नापने की रस्सी या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है।
✍🏻पंकज कुमार मिश्रा
प्राचीन वैदिक साहित्य की विशाल परंपरा में अंतिम कड़ी सूत्रग्रंथ हैं। यह सूत्र-साहित्य तीन प्रकार का है: श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र। वेद प्रतिपादित विषयों को स्मरण कर उन्हीं के आधार पर आचार-विचार को प्रकाशित करनेवाली शब्दराशि को “स्मृति” कहते हैं। स्मृति से विहित कर्म स्मार्त कर्म हैं। इन कर्मों की समस्त विधियाँ स्मार्त सूत्रों से नियंत्रित हैं। स्मार्त सूत्र का नामांतर गृह्यसूत्र है। अतीत में वेद की अनेक शाखाएँ थीं। प्रत्येक शाखा के निमित्त गृह्यसूत्र भी होंगे। वर्तमानकाल में जो गृह्यसूत्र उपलब्ध हैं वे अपनी शाखा के कर्मकांड को प्रतिपादित करते हैं।
प्रमुख गृह्यसूत्र
विभिन्न शाखाओं के गृह्यसूत्रों का प्रकाशन अनेक स्थानों से हुआ है। “शांखायनगृह्यसूत्र” ऋग्वेद की शांखायन शाखा से संबद्ध है। इस शाखा का प्रचार गुजरात में अधिक है। कौशीतकि गृह्यसूत्र का भी ऋग्वेद से संबंध है। शांखायनगृह्यसूत्र से इसका शब्दगत अर्थगत पूर्णत: साम्य है। इसका प्रकाशन मद्रास युनिवर्सिटी संस्कृत ग्रंथमाला से 1944 ई. में हुआ है। आश्वलायन गृह्यसूत्र ऋग्वेद की आश्वलायन शाखा से संबंद्ध है। यह गुजरात तथा महाराष्ट्र में प्रचलित है।
पारस्करगृह्यसूत्र शुक्ल यजुर्वेद का एकमात्र गृह्यसूत्र है। यह गुजराती मुद्रणालय (मुंबई) से प्रकाशित है।
यहाँ से लौगाक्षिगृह्यसूत्र तक समस्त गृह्यसूत्र कृष्ण यजुर्वेद की विभिन्न शाखाओं से संबंद्ध हैं। बौधायान गृह्यसूत्र के अंत में गृह्यपरिभाषा, गृह्यशेषसूत्र और पितृमेध सूत्र हैं। मानव गृह्यसूत्र पर अष्टावक्र का भाष्य है। भारद्वाजगृह्यसूत्र के विभाजक प्रश्न हैं। वैखानसस्मार्त सूत्र के विभाजक प्रश्न की संख्या दस हैं। आपस्तंब गृह्यसूत्र के विभाजक आठ पटल हैं। हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र के विभाजक दो प्रश्न हैं। वाराहगृह्यसूत्र मैत्रायणी शाखा से संबंद्ध हैं। इसमें एक खंड है। काठकगृह्यसूत्र चरक शाखा से संबंद्ध है। लौगक्षिगृह्यसूत्र पर देवपाल का भाष्य है।
गोभिलगृह्यसूत्र सामवेद की कौथुम शाखा से संबद्ध है। इसपर भट्टनारायण का भाष्य है। इसमें चार प्रपाठक हैं। प्रथम में नौ और शेष में दस दस कंडिकाएँ हैं। कलकत्ता संस्कृत सिरीज़ से 1936 ई. में प्रकाशित हैं। द्राह्यायणगृह्यसूत्र, जैमिनिगृह्यसूत्र और कौथुम गृह्यसूत्र सामवेद से संबद्ध है। खादिरगृह्यसूत्र भी सामवेद से संबद्ध गृह्यसूत्र है।
कोशिकागृह्यसूत्र का संबंध अथर्ववेद से है। ये सब गृह्यसूत्र विभिन्न स्थलों से प्रकाशित हैं।
✍🏻स्रोत—विकीपीडिया
