वामपंथियों और मलेचछों से निपटें कंविस्ड युवा सनातनी

जब मैं बहुत छोटा था यानि 5-6 क्लास में रहा होऊँगा तो उस समय सिर्फ two स्ट्रोक बाइक्स ही हुआ करते थे.

हाल ऐसा था कि… मोटर साइकल बोले तो… राजदूत.
बहुत बढ़ गए तो… यजीदी.

और, उस समय बुलेट बहुत शान की सवारी समझी जाती थी.

मतलब कि… उस समय बुलेट या तो पुलिस इंस्पेक्टर आदि को हुआ करते थे या फिर किसी रंगदार अथवा दबंगों को.

बुलेट की आवाज भी ऐसी कि.. 200-300 मीटर दूर से आवाज सुन के ही मालूम पड़ जाए कि बुलेट आ रही है.

फिर, हीरो होंडा आ गई फोर स्ट्रोक बाइक लेकर… जिसमें आवाज नहीं के बराबर थी और तुलनात्मक रूप से माइलेज भी ज्यादा थी.

इसके बाद… फोर स्ट्रोक बाइक्स की और भी कंपनियां आ गई.

फिर, धीरे धीरे लोग टू स्ट्रोक बाइक्स को छोड़कर फोर स्ट्रोक बाइक में शिफ्ट होने लगे…
और, सड़क पर सिर्फ फोर स्ट्रोक बाइक्स ही नजर आने लगे.

बुलेट लोगों के गैराज में ही सिमट कर शोभा की वस्तु बनकर रह गई तथा बुलेट चलाने वाले को लोग मूर्ख टाइप इंसान समझने लगे..!

और, बुलेट सड़क से लगभग गायब ही हो गई.

फिर, रॉयल एनफील्ड कंपनी ने इसपर शोध किया और वो भी फोर स्ट्रोक बुलेट बनानी लगी.

लेकिन, बुलेट का जो क्रेज पहले था वो लौट नहीं पाया.

इसके बाद रॉयल एनफील्ड कंपनी ने एक गेम चेंजर कदम उठाया..

और, उन्होंने देश के लगभग बड़े कॉलेज और यूनिवर्सिटी में अपने कंपनी की प्रदर्शनी रखी.

वहाँ रॉयल एनफील्ड के अधिकारी अपने 10-20 बुलेट के साथ खड़े रहते और स्टूडेंट्स को फ्री में बुलेट चलाकर ट्रायल लेने को बोलते.. और, उनका फीडबैक लेते.

किसी पर खरीदने का कोई दबाब नहीं.

मतलब कि गाड़ी चलाओ, मजे लो और घर जाओ.

शुरू में तो दिक्कतें आई ही होगी… लेकिन, जिन्होंने भी बुलेट को चलाया वो इस बाइक से काफी प्रभावित हुआ.

और, इस तरह एक बार फिर से बुलेट के बारे में लोगों का नजरिया बदलने लगा.

फिर, स्टूडेंट्स ने बुलेट को खरीदना शुरू किया तथा बुलेट सड़क पर नजर आने लगी.

और, आज हालात ये है कि बुलेट का लगभग वही जलवा फिर से बहाल हो गया है जो टू स्ट्रोक गाड़ियों के जमाने में हुआ करता था…!

तो… हमारा सनातन हिन्दू धर्म भी वही बुलेट है.. जो कभी शान की सवारी मानी जाती थी.

लेकिन… ईसा-महामद जैसे लोगों ने इंसान की एक कमजोर नब्ज पकड़ ली… पैसा, पावर और से क्स.

और, उनलोगों ने इसी को लालच की तरह प्रस्तुत करते हुए…. पैसा, पावर और से क्स की सारी वर्जनाएं समाप्त कर दी.

ईसा-महामद आदि के पंथ में… न तो लूट को बुरा माना जाता है और न ही अपनी ही माँ-बहनों-मौसियों और चाचियों से संबंध बनाने को.

हिन्दू सनातन धर्म में बुराइयों की जितनी भी व्याख्याएं हैं… उनके लिए वो कोई बुराई है ही नहीं…

जैसे कि… झूठ बोलना, बेगुनाहों पर अत्याचार, स्त्रियों के अपमान से लेकर… नहीं नहाना, किसी तरह के सुचिता का पालन नहीं करना आदि आदि.

इसे ही आप वामपंथी झुकाव कह सकते हैं…

परिणाम ये हुआ कि…. उनका रास्ता लोगों को ज्यादा स्वच्छंद और आजादी वाला लगा…
इसीलिए, आज के युवा वामपंथ की ओर अपेक्षाकृत जल्दी झुक जाते हैं.

और, हमारी हालत कमोबेश रॉयल एनफील्ड कंपनी जैसी हो चली है जिन्हें रूढ़िवादी और दक्षिणपंथी की उपमा दी जा रही है.

तो, चूँकि… समस्या समान है तो इसका समाधान भी लगभग समान ही होगा…!

जैसा कि… हमने देखा कि रॉयल एनफील्ड कंपनी ने अपने बुलेट के कलेवर को बदल कर मूल CC वही रहने दिया एवं कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी में युवाओं को टारगेट किया..

तो, मैं भी बिल्कुल वैसा ही करना चाहता हूँ.

हम अपने हिन्दू सनातन धर्म की थीम एवं मूल भावना को बदले बिना इसे एक बिल्कुल नए और वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करेंगे.

अपने हर पर्व त्योहार, आस्था, परंपरा का वैज्ञानिक महत्व समझाएंगे.

हम कॉलेज और यूनिवर्सिटीज़ के स्टूडेंट्स के साथ साथ देश के युवाओं को बताएंगे कि…. अगर हमारा सनातन हिन्दू धर्म ऐसा कहता है तो क्यों कहता है और इसके पीछे की वैज्ञानिक सोच क्या है…!

यथा…. येन केन प्रकारेण… धन कमाने से धन का महत्व खत्म हो जाता है और लाइफ स्टाइल ऐसी हो जाती है कि वो विभिन्न प्रकार के असाध्य रोगों को जन्म देती है.

जबकि, मेहनत करके कमाने से ये एहसास रहता है कि पैसा कितनी मुश्किल से आता है और उसे लोग गलत काम में खर्च नहीं करना चाहते हैं.

उसी प्रकार से… फ्री से क्स से बहुत तरह की वंशानुगत बीमारियां होती है इसीलिए हमारे सनातन धर्म में इसे प्रतिबन्धित किया गया है.

इसी तरह… आप अपने हर पर्व, त्योहार, मान्यता, परंपरा का वैज्ञानिक आधार पर व्याख्या कर युवाओं को कन्विंस कर सकते हैं.

बाकी, वामपंथियों और मलेचछों से निपटें कंविस्ड युवा सनातनी

और, हाँ… इसके लिए तो जो शिक्षा के प्रोफेशन में हैं वो बातों ही बातों में क्लास में अपने स्टूडेंट्स को बता सकते हैं.

और, जो कुछ नहीं कर सकते एवं कहीं आ जा नहीं सकते…
वे कम से कम अपने बच्चों, दोस्तों और परिवारजनों से ऐसी चर्चा तो कर ही सकते हैं.

एक बार अगर ये हो गया…
तो फिर…. एक तरफ होगी… आसमानी किताब की उल-जलूल किताबों को AS IT IS मान कर जानवरों सी जीवन जीने की बाध्यता.

और, दूसरी तरफ होगी… खुली आजादी.
और, हर एक पर्व, त्योहार, परंपरा और नियम का वैज्ञानिक आधार.

आप खुद ही समझ सकते हैं कि… ऐसे में लोग किसको चुनना ज्यादा पसंद करेंगे…!!

अब रह गई बात कि… हमारे हिन्दू सनातन धर्म के हर त्योहार और परंपरा का वैज्ञानिक आधार तो है ही..
इसको भला क्या बताना है ??

तो, इसका एक ही जबाब है कि…

पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं धनं। कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनं॥

अर्थात… किताब में लिखी विद्या और दूसरे पास गए धन का कोई मोल नहीं होता है…
क्योंकि, वो जरूरत पर काम नहीं आते हैं.

इसीलिए, किसी भी चीज का वैज्ञानिक आधार होना और उसे जानने में अंतर होता है.

आधार तो है ही…
लेकिन, अब उसे व्यापक रूप से प्रचारित किये जाने की आवश्यकता है.

बेशक शुरू में हमें भी रॉयल एनफील्ड कंपनी की तरह थोड़ी दिक्कत हो सकती है.

लेकिन, जब ये प्रचारित होने लगेगा तो फिर आपको धर्मान्तरण कानून के लिए रोना नहीं होगा बल्कि आपके दुश्मन रोयेंगे कि कानून बनाकर लोगों को सनातन धर्म में जाने से रोको नहीं तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा.

जय सनातन धर्म…!!
जय महाकाल…!!!
कर्मण्येवाधिकारस्ते की भित्ति से साभार।

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