राहुल का हाईड्रोजन बम भी कैसे निकला गीला पटाखा ?

राहुल गांधी के ‘223 वोट’ दावे की पड़ताल, हरियाणा के इस गांव से पता चली असली कहानी
राहुल गांधी के ‘223 एक जैसी वोटर एंट्री’ के आरोप की जांच में पता चला कि हरियाणा के ढकोला गांव के बूथ पर यह एक टेक्निकल गलती थी,फर्जीवाड़ा नहीं.BLO ने फोटो प्रिंटिंग एरर की बात मानी.डेटा से पता चला कि 2019 से 2024 के बीच कांग्रेस ने यहां बड़ी बढ़त बनाई.

राहुल गांधी ने हरियाणा में मतदान के दौरान धांधली का दावा किया है. (File Photo: ITG)

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक बूथ में ‘223 एक जैसी एंट्री’ के आरोप के बाद पूरे देश में नई चर्चा शुरू हो गई है. लेकिन पोलिंग डेटा को करीब से देखने पर एक रोचक बात सामने आती है. राहुल गांधी जिस बूथ की बात कर रहे हैं, वह हरियाणा के राई विधानसभा क्षेत्र के ढकोला गांव का है, एक ऐसी जगह जहां कांग्रेस ने 2019 और 2024 के बीच अपने वोट शेयर में काफी सुधार किया है.

हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कहा, “चुनाव आयोग को हमें यह बताना होगा कि यह महिला, जिसका नाम हम नहीं जानते, जिसकी उम्र हम नहीं जानते, लेकिन हम जानते हैं कि वह दो बूथों पर 223 बार आती है. लोकसभा चुनाव में, वह एक बूथ में 223 बार थी और फिर उन्होंने इसे दो बूथों में बांटने का फैसला किया.”

जिस बूथ की बात हो रही है…

राहुल गांधी जिस बूथ का ज़िक्र कर रहे हैं, वह धकोला गांव का बूथ नंबर 63 लगता है, जिसे बाद में 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए बूथ 63 और 64 में बांट दिया गया था. सार्वजनिक रूप से उपलब्ध पोलिंग स्टेशन लिस्ट इस बदलाव की पुष्टि करती हैं.

2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में, बूथ 63 धकोला और बूथ 64 रामपुर का प्रतिनिधित्व करता था. 2024 के विधानसभा चुनावों के लिए, धकोला को बूथ 63 और 64 में बांट दिया गया और रामपुर बूथ 65 और उसके आगे चला गया. यह बदलाव राहुल गांधी की बातों में ‘दो बूथों’ के ज़िक्र को समझाता है.

क्या कहते हैं आंकड़े?

लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों का फॉर्म 20 डेटा साफ दिखाता है कि कांग्रेस ने न सिर्फ BJP से अंतर कम किया, बल्कि 2024 में ढाकोला में BJP से आगे निकल गई.

डेटा से कांग्रेस की तरफ एक बड़ा बदलाव दिखता है. 2019 में बीजेपी से पीछे रहने के बाद, कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में साफ बढ़त हासिल की. ​​दूसरे शब्दों में, इस बार ढाकोला ने कांग्रेस को निर्णायक वोट दिया, जबकि BJP के वोट लगभग आधे रह गए.

2019 विधानसभा चुनाव- INC: 316, BJP: 460
2019 लोकसभा चुनाव- INC: 315, BJP: 355
2024 विधानसभा चुनाव- INC: 602, BJP: 275
2024 लोकसभा चुनाव- INC: 610, BJP: 218

BLO ने गलत छपाई की बात मानी लेकिन…

इंडिया टुडे की एक इन्वेस्टिगेशन में पता चला कि एक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को उस फोटो की गलत छपाई के बारे में पता था, जिसका ज़िक्र राहुल गांधी ने किया था, जिसमें कई वोटर नामों के सामने एक ब्राज़ीलियन मॉडल की तस्वीर छपी थी.

BLO ने कहा, “जब मैं सर्वे कर रहा था, तो मैंने देखा कि वही फोटो तीन बार छपी थी. मैंने उन लोगों को ठीक कर दिया, जिन्होंने अपनी फोटो जमा की थीं. लेकिन जिनके ओरिजिनल फोटो उपलब्ध नहीं थे, उनमें गलत छपाई वैसी ही रही.”

ऑफिसर के बयान से पता चलता है कि एंट्रीज़ में एक ही महिला की तस्वीर का बार-बार आना एक टेक्निकल या क्लर्कियल गलती थी, न कि जानबूझकर वोटर डुप्लीकेशन.

इलेक्टोरल रोल्स पर एक बड़ा सवाल

वोट चोरी या डुप्लीकेशन का आरोप अभी तक साबित नहीं हुआ है, लेकिन यह घटना एक बड़े मुद्दे को सामने लाती है, जो है भारत की इलेक्टोरल रोल्स की सटीकता और रखरखाव. फोटो मिसमैच, डुप्लीकेट एंट्री और पुराने रिकॉर्ड जैसी दिक्कतें लंबे वक्त से इस सिस्टम में बनी हुई हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां डिजिटाइजेशन और वेरिफिकेशन में कमी है.

ये ‘223 एंट्री’ शायद 223 नकली वोटर न हों, लेकिन ये इस बात पर ज़रूर ज़ोर देती हैं कि डेटा एंट्री और वेरिफिकेशन में गलतियां चुनावी प्रक्रिया में लोगों का भरोसा कैसे कम कर सकती हैं. फिलहाल, ढकोला के आंकड़े अपनी कहानी खुद कहते हैं- यह हेरफेर वाले वोटिंग की जगह होने के बजाय, एक ऐसा गांव था, जिसने 2019 और 2024 के बीच अपने पॉलिटिकल मैप को बदलते हुए, कांग्रेस को ज़बरदस्त जीत दिलाई.

वोट चोरी पर सवालों में BLO… उन्हीं से जानिए कैसे करते हैं वेरिफिकेशन, फोटो में गड़बड़ी की कहां आशंका
BLO Work Process: वोटर लिस्ट में धांधली के आरोपों के बाद आज जानते हैं कि आखिर वोटर लिस्ट बनाने में बीएलओ का क्या काम होता है और किस तरह वोटर ऐप्लीकेशन का काम कैसे पूरा किया जाता है.
नई दिल्ली, 06 नवंबर 2025,लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक बार फिर वोटर लिस्ट में धांधली होने का आरोप लगाया है. राहुल गांधी का आरोप है कि पिछले साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में डाले गए हर आठ में से एक वोट फर्जी था. उन्होंने एक महिला की तस्वीर दिखाते हुए दावा किया कि इस महिला ने हरियाणा के 10 बूथों पर 22 वोट डाले हैं. इसके बाद वोटर आईडी कार्ड बनने और BLO के काम की चर्चा हो रही है कि आखिर किन कारणों से ऐसी गलतियां हो जाती हैं. तो BLO से ही समझते हैं कि वोटर आईडी बनने का प्रोसेस क्या है और इस पूरे प्रोसेस में बीएलओ का क्या काम है?

वोटर आईडी बनाने में धांधली होने के आरोपों के बीच हमने राजस्थान, हरियाणा के बीएलओ से बात की, जिन्होंने बताया कि आखिर वोटर आईडी बनाने में सिस्टम कैसे काम करता है…

BLO का क्या काम होता है?

राजस्थान में विद्याधर नगर विधानसभा क्षेत्र के एक बीएलओ ने बताया कि वोटरआई डी कार्ड बनाने में बीएलओ का सबसे अहम काम वेरिफिकेशन का होता है. बीएलओ सिर्फ नए वोटर को वेरिफाई करने, जानकारी अपडेट करने और वोटर लिस्ट में किसी का नाम हटाने का काम करता है. एक तरह से कहा जाता है कि बीएलओ वो कड़ी है, जो वोटर लिस्ट में किसी के नाम को जोड़ने, अपडेट करने और हटाने का इजाजत देने वाला ऑफिसर है. बीएलओ या तो मतदान केंद्र पर शिविर आदि के माध्यम से या फिर घर-घर जाकर अपने क्षेत्र की वोटर लिस्ट को अपडेट रखता है. इसके साथ ही वोटर आईडी कार्ड बनकर आने पर उसे मतदाता को देने का काम करता है.

BLO के काम का प्रोसेस क्या है?

BLO के काम के प्रोसेस की बात करें तो सबसे पहले सरकार के लिए काम कर रहे किसी कर्मचारी को बीएलओ नियुक्त किया जाता है और जिला चुनाव अधिकारी के कार्यालय से तय होता है. इसके बाद बीएलओ को कुछ भाग संख्या का कार्य सौंपा जाता है और उन्हें उस इलाके की वोटर लिस्ट दी जाती है. इसके बाद बीएलओ समय समय पर उसे अपडेट करता है कि कौन उस क्षेत्र में नया रहने आया है, कौन चला गया है, क्या किसी की मृत्यु हुई है या कोई शिफ्ट हो गया है या कौन 18 साल के ऊपर हो गया है.

इस काम में दो तरह से काम होता है. एक होता है ऑनलाइन और एक ऑफलाइन. ऑनलाइन माध्यम से जब कोई नाम जोड़ता है या फिर अपडेट करता है तो बीएलओ को उनकी बीएलओ ऐप पर इसका नोटिफिकेशन मिलता है कि आपके क्षेत्र में किसी ने ये अर्जी डाली है. इसके बाद बीएलओ उसे वेरिफाई करता है कि वो कितना सही है. वोटर आईडी में अपडेशन की स्थिति में भी बीएलओ ऑनलाइन माध्यम से अप्रूव करता है.

अगर ऑफलाइन माध्यम से प्रोसेस होता है तो बीएलओ फॉर्म-6 आदि को भरकर जिला चुनाव कार्यालय में जमा करता है. उसके साथ जरूरी दस्तावेज जमा करता है और उसके बाद निवार्चन अधिकारी आगे की प्रोसेस करते हैं.

क्या इसके अलग से पैसे मिलते हैं?

हरियाणा और राजस्थान दोनों राज्यों के बीएलओ ने बताया कि इस काम के लिए बीएलओ को हर साल के 6000 रुपये मिलते हैं. उन्होंने ये भी बताया कि कुछ दिनों से इसे बढ़ाए जाने की बात की जा रही है और इसे 12000 किए जाने के लिए कहा जा रहा है.

कैसे हो जाती है फोटो में गड़बड़ी?

जब बीएलओ से फोटो में होने वाली गड़बड़ी के बारे में पूछा गया तो बीएलओ ने बताया कि ऐसा एक तो टेक्निकल गलतियों की वजह से हो सकता है या फोटो गलत अपलोड हो गई हो. इसके अलावा एक कारण ये भी हो सकता है कि जब कोई ऑनलाइन माध्यम से वोटर आईडी के लिए अप्लाई करता है तो एक तय सीमा में उसका वोटर आईडी बनना होता है. उस तय सीमा में ही बीएलओ को भी रिपोर्ट देनी होती है.

ऐसे में ऑनलाइन माध्यम से अप्लाई करते हैं तो सेंट्रल सिस्टम से राज्य और फिर जिले तक रिपोर्ट आती है. इसके बाद बीएलओ के पास वेरिफाई के लिए रिपोर्ट आती है और उसे 3-4 दिन में वेरिफाई करके आगे भेजना होता है. लेकिन, अगर कोई बीएलओ उस पर कोई कमेंट नहीं करता है तो वो ऑटो वेरिफाई मोड में आकर वेरिफाई हो जाता है. इस स्थिति में भी गलत फोटो आदि अपलोड हो सकती है. हालांकि बीएलओ ने ये भी बताया कि फोटो वेरिफाई करने का काम भी उनका ही होता है.

SIR में BLO को क्या-क्या करना है?

चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया था कि एसआईआर के वक्त सबसे पहले BLO हर मतदाता को उसके घर पर यूनीक इनूमेरेशन फॉर्म (Enumeration Forms) देने जाएंगे.इस फॉर्म में मतदाता की हर डिटेल होगी.उसके बाद जिनका भी नाम है, उन्हें ये देखना होगा कि उनका नाम 2003 की लिस्ट में था तो उन्हें कोई कागज नहीं देना होगा. अगर उनके माता-पिता का नाम भी उसमें था तो उन्हें कोई कागज नहीं देना होगा.इस दौरान बीएलओ का अहम काम मतदाता को 2003 की लिस्ट से लिंक करवाना होगा. पहले बीएलओ लिंक करके और फिर ड्राफ्ट लिस्ट आएगी और उस लिस्ट में जब किसी का नाम नहीं होगा तो उसे कागज देने होंगे.

फिर BLA का क्या काम है?

BLA बूथ लेवल एजेंट होते हैं,जो किसी पार्टी की ओर से बनाए गए प्रतिनिधि होते हैं. ये एजेंट बीएलओ की मदद करने का काम करते हैं और ये राजनीतिक पार्टियों के एजेंट होते हैं, जो सरकार की ओर से नियुक्त नहीं किए जाते हैं.

सॉफ्टवेयर लीडर के घर वोटर लिस्ट एरर

भारत आईटी का सुपर पावर है जब हम यह सुनते हैं तो हमें बड़ा गर्व होता है मगर आईटी तकनीक का अपने ही लिए हम कितना उपयोग करते हैं इसका उदाहरण भारत की सरकारी कंप्यूटर रिसर्च कंपनी सी-डेक के द्वारा बनाया गया वह सॉफ्टवेयर है जिसको चुनावी वोटर लिस्ट में डुप्लीकेट एंट्री को पकड़ने के लिए बनाया गया था।

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ने आज बताया तो ध्यान इस तरफ गया कि यह सॉफ्टवेयर पिछले तीन साल से इस्तेमाल नहीं हुआ है। जिज्ञासा हुई तो हिंदुस्तान टाइम्स की खबर को पड़ा जिसमें साफ लिखा है कि विपक्ष द्वारा यह आशंका जाहिर की गई थी कि इस सॉफ्टवेयर के द्वारा डेमोग्राफी को पकड़ने में मदद मिलेगी, ऐसे में इसका इस्तेमाल ना हो।

डेमोग्राफी का मतलब है कि किस इलाके में कितने हिंदू कितने मुसलमान रहते है इसका पता चल सकता है, जो उन इलाकों के वोटरों को बाद में टारगेट करने के लिए इस्तेमाल हो सकता हैं। यह तर्क मोरेलिटी के आधार पर सही है पर फिर इसकी वजह से हो रहे दुष्परिणाम भी झेल लीजिए। अब विपक्षी नेता राहुल गांधी खुद ही कह रहे हैं कि ब्राज़ील की लड़की का नाम और फोटो बार-बार इस्तेमाल हुआ है । विडंबना देखिए जिस सी-डेक के सॉफ्टवेयर जो फोटोग्राफ के डुप्लीकेट इस्तेमाल और डाटा में डुप्लीकेट एंट्री को पकड़ता था उसको विपक्ष ने हीं इस्तेमाल करवाना बंद करवाया हैं।

भारत के तकरीबन 800 जिलों में करीब 6000 तहसीलों में करीब 30,000 ब्लॉक है इन ब्लॉकों में कुल 50 हजार लोग रहते हैं। यूपीएससी से निकलने वाला हर आईएएस अधिकारी जो तीन-चार साल तक कमरे में बंद करके पढ़ाई करते हैं और बाद में आईएएस बनने के बाद उन्हें उत्कृष्ट ट्रेनिंग दी जाती है जाहिर है उसे एक्सेल शीट भी सिखाई जाती होगी इस एक्सेल शीट से वह रिवेन्यू रिकॉर्ड वगैरह भी समझते हैं सो वे अपने लेवल पर जिलेवार डाटा चेक कर सकते है। अब इस आईएएस के नीचे 5 से 6 एसडीएम जो की तहसीलों में बैठते हैं और हर एसडीएम के नीचे मान लीजिए 5 ब्लॉक होते हो तो इतने बीडीओ ब्लॉक में बैठते हैं। इन सब की कुल संख्या 36 हजार होगी फिर आईटी सुपर पावर देश में अगर इनको एक-एक एक्सेल शीट का टेंपररी एक्सपर्ट भी मुहैया करा दिया जाए तो करीबन 72 हजार लोग होते हैं। बस इतने अधिकारी और सहायक लगेंगे किसी भी वोटर लिस्ट को अच्छे से डुप्लीकेट एंट्री या डुप्लीकेट फोटो एंट्री को चेक करने में अगर इन सब अधिकारियों की जिम्मेवारिया तय हो जाए तो यह सब विवाद खड़ा ही ना हो। बाद में केंद्रीय रूप से सी-डेक के सॉफ्टवेयर द्वारा फिर जांच हो तो गड़बड़ी न्यूनतम लेवल तक पहुंच जाएंगी।

अब देखिए किसी कंपनी में क्या होता है, वहां सेल्स प्रमुख अपना डाटा देते हैं वह अपने नाम से उसे साइन करते हैं यानी उसे डाटा की सत्यता का पूरा भरोसा देते हैं। ऐसे ही फाइनेंस के प्रमुख अपना डाटा साइन करके देते हैं, मैन्युफैक्चरिंग के प्रमुख अपना डाटा साइन करके देते हैं, एचआर के प्रमुख अपना डाटा साइन करके देते हैं, यह सब डाटा कंपनी की बैलेंस शीट के लिए इस्तेमाल होता है जिसको एक चार्टड एकाउंटेंट बनाता है वह भी इसे साइन करता है उसके बाद कंपनी के सीईओ उस डाटा को साइन करते हैं यानी वह भी गारंटी देते हैं कि यह डेटा सही है फिर वह डाटा पब्लिक के इस्तेमाल के लिए अगर वह पब्लिक लिमिटेड कंपनी है तो उसे सेबी की निगरानी में स्टॉक एक्सचेंज में अपलोड कर दिया जाता है। कुछ गड़बड़ हो तो सीईओ सीए धरे जाते है साथ ही निचले स्तर पर कोई अधिकारी झूठे आंकड़े नहीं दे रहा हो या कोई गलत प्रैक्टिस कर रहा हो जो प्रोसिजर में न हो उसके लिए ऑडिट होता हैं। इतने सब के बाद जाकर के हमें किसी कंपनी के आंकड़े मिलते हैं कई बार वह भी कुक किए यानी बनाए गए होने की चर्चा में आ जाते हैं पर अमूमन ज्यादातर डाटा ठीक ही होता है। यह जिम्मेवारी ब्लॉक अधिकारी एसडीएम और डीएम की तय होनी चाहिए जिसका ऑडिट जिले स्तर पर प्रमुख राजनैतिक दल करे।

छोटे डेटा के लिए एक्सेल शीट में ही डुप्लीकेट एंट्रीज को पकड़ लिया जाता है मैंने अपने कार्य में कई बार न केवल डुप्लीकेट एंट्री बल्कि स्पेशल एंट्रीज जैसे मोबाइल नंबर या एड्रेस के हिसाब से मल्टीप्ल एंट्रीज को फिल्टर लगा कर पकड़ा है। कई बार If, count, vlookup और index फंक्शन का उपयोग कर ऐसा किया हैं बाद में यही काम पायथन की कोडिंग से, sql से भी हो सकता है पर अब तो सफल एआई मॉडल भी आ चुके हैं जो मिनट में बड़े से बड़े डेटा मकी विसंगतियों को पकड़ लेंगे।

जब भारत में करीब लाख के ऊपर कंपनियां अपना डाटा सही तरीके से और पूरी जिम्मेदारी से अपलोड कर सकती हैं तो सवाल यह है कि ब्लॉक अधिकारी एसडीएम और डीएम क्यों नहीं पूरी जिम्मेदारी से उस डाटा का स्वामित्व लेते हुए उसे अपलोड कर सकते हैं। इसमें लापरवाही में आप क्रिमिनल दंड की जगह ट्रांसफर या डिमोशन जैसे कुछ दंड लगा सकते हैं यह ठीक वैसा ही हो जैसे हमने आईपीसी में पुलिस अधिकारी को गलती या ओमिशन से बचाने के लिए जनरल एक्सेप्शन के प्रावधान किए हुए है।

 

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