उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की 12वीं बार शपथ, तीरथ नवें नेता
20 साल पुराने उत्तराखंड में 12वीं बार किसी मुख्यमंत्री ने शपथ ली, तीरथ पर भाजपा की पहली बार सत्ता वापसी की मनोकामना पूरी करने की जिम्मेदारी
देहरादून 10 मार्च। बात 9 नवंबर 2000 की है। इस दिन देश के नक्शे पर उत्तर प्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य उभरा, उत्तरांचल (जो अब उत्तराखंड है)। इसके नौ दिन पहले भी एक राज्य बना था, छत्तीसगढ़ और छह दिन बाद तीसरा नया राज्य बना झारखंड। इन तीन में से दो राज्यों में पिछले 20 साल में 10 से ज्यादा मुख्यमंत्री हो चुके हैं। उत्तराखंड में आज 12वीं बार किसी नेता ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
तीरथ सिंह रावत इस पद की शपथ लेने वाले 9वें नेता हैं। अब तक भाजपा के छह और कांग्रेस के तीन नेता इस पद की शपथ ले चुके हैं। कांग्रेस के हरीश रावत ने तो तीन साल के अंदर ही तीन बार इस पद की शपथ ली। पहली बार दो साल एक महीने 25 दिन तो दूसरी बार एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। तीसरी और आखिरी बार दस महीने पांच दिन के लिए इस पद पर रहे। हरीश रावत के अलावा भुवन चंद्र खंडूरी भी दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं।
अब तक केवल एक नेता, कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी ही ऐसे हैं जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। 20 साल पहले बने इस राज्य में कब -क्या हुआ जो मुख्यमंत्रियों को बदलना पड़ा? इन बदलावों का राज्य और उस पार्टी के ऊपर क्या असर पड़ा? आइये जानते हैं…
सबसे पहले जानिए तीरथ सिंह रावत को, जिन पर भाजपा को सत्ता में वापस लाने की जिम्मेदारी होगी
नौ अप्रैल 1964 को पौड़ी में जन्मे तीरथ सिंह रावत 1983 से 1988 तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे। समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर और पत्रकारिता में डिप्लोमा करने वाले रावत ने चुनावी शपथपत्र में खुद को किसान और समाज सेवक बताया है।
उत्तर प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष रहे रावत को राजनीति में पहला बड़ा ब्रेक तब मिला, जब 1997 में पार्टी ने उन्हें उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सदस्य बनाया। विधान पार्षद बनने के दो साल बाद 9 दिसंबर 1999 को इन्होंने छात्र नेत्री रश्मि रावत से शादी कर ली। डॉक्टर रश्मि रावत शिक्षिका हैं। 2000 में जब उत्तराखंड नया राज्य बना तो नित्यानंद स्वामी सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री बनाए गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में चौबट्टाखाल से जीते और विधायक बने।
एक साल बाद राज्य के पार्टी प्रमुख बना दिए गए। नौ फरवरी 2013 से 31 दिसंबर 2015 तक इस पद पर रहे।
2019 के लोकसभा चुनाव में रावत पौड़ी गढ़वाल सीट से जीतकर पहली बार सांसद बने। जब से सांसद बने हैं, अब तक एक भी दिन ऐसा नहीं रहा, जब वो सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं हुए हों। रावत ने चुनावी हलफनामे में अपने पास 1.5 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति बताई है।
उत्तराखंड के 20 साल के इतिहास में चार विधानसभा सामान्य चुनाव हो चुके हैं। अब तक कोई भी पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी नहीं कर सकी है। तीरथ सिंह रावत पर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में वापसी कराने की ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी।
बात उत्तराखंड के अब तक मुख्यमंत्रियों के आने-जाने की…
एक साल भी पद पर नहीं रह पाए थे पहले मुख्यमंत्री
उत्तराखंड के गठन के बाद 10 नवंबर 2000 को भाजपा के नित्यानंद स्वामी ने राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। एक साल भी पूरे नहीं हुए थे कि पार्टी ने उन्हें इस्तीफा देने को कह दिया। उनकी जगह स्वामी सरकार में मंत्री रहे भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया। कोश्यारी इस वक्त महाराष्ट्र और गोवा के राज्यपाल हैं।
दरअसल, भाजपा को ये फैसला उन नेताओं के दबाव में लेना पड़ा जिन्होंने उत्तराखंड को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष किया था। इस राज्य का वोटर तीन लाइन्स पर बंटा हुआ है। पहाड़ और मैदानी इलाके, कुमाऊनी और गढ़वाली और तीसरा ठाकुर और ब्राह्मण। नित्यानंद स्वामी देहरादून के मैदानी गढ़वाल इलाके से थे, लेकिन उत्तराखंड की पहचान पहाड़ी राज्य के रूप में है। समीकरणों को साधने के लिए भाजपा ने कोश्यारी को चुना।
कोश्यारी कुमाऊं से थे और राज्य गठन के वक्त मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे। 30 अक्टूबर 2001 को उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, लेकिन मुख्यमंत्री बदलना भाजपा के काम नहीं आया और चार महीने बाद हुए चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा।
चुनाव बाद कांग्रेस आई और तिवारी ने कार्यकाल पूरा किया
2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। तिवारी ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया, लेकिन 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत मिली।
पांच साल में तीन बार बदले मुख्यमंत्री, फिर भी भाजपा की सत्ता में नहीं हुई वापसी
2007 में भाजपा की जीत के बाद रिटायर्ड मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी राज्य के मुख्यमंत्री बने। खंडूरी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके थे, लेकिन दो साल बाद ही खंडूरी को पद से हटना पड़ा।
जून 2009 में हरिद्वार कुंभ से पहले खंडूरी की जगह रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने, लेकिन वो भी दो साल ही इस पद पर रह पाए। चुनाव से पांच महीने पहले भाजपा ने एक बार फिर खंडूरी को मुख्यमंत्री बना दिया। इस बदलाव का भी भाजपा को फायदा नहीं हुआ और उसे हार का सामना करना पड़ा। यहां तक की मुख्यमंत्री खंडूरी को भी कोटद्वार से हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को 31 जबकि कांग्रेस को 32 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने बसपा की मदद से सरकार बनाई।
कांग्रेस आई, लेकिन इस बार अस्थिरता और बढ़ी
मार्च 2012 में आए चुनाव नतीजे के बाद कांग्रेस के नेता विजय बहुगुणा राज्य के मुख्यमंत्री बने। दो साल भी पूरे नहीं हुए थे कि जनवरी 2014 में उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। एक फरवरी 2014 को हरीश रावत राज्य के नए मुख्यमंत्री बने, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस के अंदर की कलह बढ़ती गई। मार्च 2016 आते-आते पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा समेत नौ विधायकों ने बगावत कर दी और सभी भाजपा में आ गए। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।
मामला कोर्ट तक गया। इस बीच रावत एक दिन के लिए भी मुख्यमंत्री बने। मई 2016 में रावत ने बहुमत साबित किया और तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पार्टी की बगावत, कांग्रेस नेताओं के भाजपा में जाने से कांग्रेस 2017 के चुनावों में 11 सीट पर सिमट गई।
हरीश रावत की जगह त्रिवेंद्र रावत ने ली, अब तीरथ रावत की सरकार
2017 में 57 सीटें जीतकर भाजपा सत्ता में आई। हरीश रावत की जगह त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य के मुख्यमंत्री बने। रावत सरकार के चार साल पूरे होने के पहले ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। अब उनकी जगह तीरथ सिंह रावत ले रहे हैं। वो भी अधिक से अधिक एक साल तक ही इस पद पर रहेंगे क्योंकि अगले साल चुनाव होने हैं। 2022 में अगर भाजपा यहां सत्ता में वापसी करती है तो पहली बार कोई पार्टी सत्ता में वापसी करेगी।