यूं ढहेगी US की चौधराहट: ब्रिक्स से भारत की डॉलर को चुनौती

Indias Strategy In Brics And Ric Against Trump Tarrif Challenge Americas Declining Dollars Dominance
दुनिया के चौधरी बने अमेरिका की धड़ाधड़ बंद हो रही दुकान …भारत ने ब्रिक्स में दे दी वोस्ट्रो खातों को अनुमति
अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए भारत ब्रिक्स के माध्यम से एक नई रणनीति अपना रहा है। भारत ने रूस से तेल खरीदने पर अमेरिकी धमकी अनसुनी कर, अब डॉलर पर निर्भरता कम करने को वोस्ट्रो खाते खोलने की अनुमति दी है।

नई दिल्ली 19 अगस्त 2025 : दुनिया के चौधरी बने फिर रहे अमेरिका के दिन अब लदने वाले हैं। दूसरी बार अमेरिका की सत्ता संभालने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ये लगा था कि वो पूरी दुनिया में अपनी बात मनवा लेंगे। मगर, उनकी यह कोशिश नाकाम हो चुकी है। ट्रंप बार-बार अपने मंसूबे में फेल हो रहे हैं। उन्होंने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना अच्छा दोस्त बताने के बावजूद 50 फीसदी टैरिफ लगाकर अचानक गच्चा दे दिया। वहीं, रूस से तेल न खरीदने को लेकर धमकियां भी दे डाली थी। ऐसे में भारत ने भी खुद को संप्रभु राष्ट्र बताते हुए ट्रंप को साफ कर दिया था कि हम झुकने वालों में से नहीं हैं। अब इससे एक कदम और आगे जाकर भारत ने ब्रिक्स के रूप में नई चाल चल दी है।
BRICS INDIA

भारत ने ऐसा क्या कर दिया, जिससे परेशान अमेरिका
दरअसल, ट्रंप के 50 फीसदी टैरिफ के जवाब में भारत ने भी चुपचाप एक चाल चल दी।  एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने बैंकों को बिना पूर्व अनुमति के और अधिक वोस्ट्रो खाते खोलने का निर्देश दिया है। वेबसाइट watcherguru पर छपी रिपोर्ट के हवाले से ये बताया गया था कि हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा है कि बैंक अब दूसरे देशों के आयात-निर्यात व्यवसायों को विशेष वोस्ट्रो खातों के माध्यम से रुपये में व्यापार निपटान की अनुमति दे सकते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इस कदम से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में डॉलर के प्रभुत्व में गिरावट और तेज हो सकती है। अमेरिकी की बड़ी परेशानी की वजह यही है।

रिक: यह भी दे रहा है ट्रंप को सिरदर्द
डोनाल्ड ट्रंप को एक और बात से बड़ा सिरदर्द हो रहा है। वह है RIC का मंच तैयार करना। ट्रंप की चिंता यही है कि भारत उसके दो प्रतिद्वंद्वियों रूस और चीन के करीब जा रहा है। भारतीय विदेश मंत्री डाक्टर एस जयशंकर हाल ही में चीन में शंघाई सहयोग संगठन में हिस्सा लेने गए थे। वहां उन्होंने इस बात के संकेत दिए थे। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहां जा सकते हैं। ऐसे में ट्रंप की टेंशन बढ़ना स्वाभाविक है।

रूस-यूक्रेन युद्ध भी नहीं खत्म करा पाए
ट्रंप ने वादा किया था कि वो रूस-यूक्रेन युद्ध जल्द खत्म करा देंगे। मगर, वह इतने दिन बाद भी ऐसा नहीं करा पाए। वह भारत-पाकिस्तान में सीजफायर का भी दावा कर चुके थे। मगर, भारत ने बार-बार सिरे से उनकी बात का खंडन कर दिया था। ऐसा कोई दावा और किसी देश ने भी नहीं किया था। उनका हर दावा झूठा निकला है।

ब्रिक्स क्या है, इसका मकसद क्या है
COUNCIL ON FOREIGN RELATIONS पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिक्स में शामिल देश ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के अलावा पांच नए सदस्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक अनौपचारिक समूह हैं। ये सदस्य वैश्विक व्यवस्था में अपना प्रभाव बढ़ाने की उम्मीद कर रहे हैं। 2009 में ब्रिक्स की स्थापना इस आधार पर की गई थी कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं पर पश्चिमी शक्तियों का अत्यधिक प्रभुत्व था और वे विकासशील देशों को मदद देने से पीछे हट रही थीं। इस समूह ने अपने सदस्यों की आर्थिक और कूटनीतिक नीतियों में तालमेल बनाने, नए वित्तीय संस्थानों की स्थापना करने और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने का प्रयास किया है।

ब्रिक्स क्यों महत्वपूर्ण है, अमेरिका परेशान
यह गठबंधन कोई औपचारिक संगठन नहीं है, बल्कि गैर-पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं का एक स्वतंत्र समूह है जो एक साझा लक्ष्य के इर्द-गिर्द आर्थिक और कूटनीतिक प्रयासों का समन्वय करता है। ब्रिक्स देश विश्व बैंक , ग्रुप ऑफ़ सेवन (G7) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे प्रमुख बहुपक्षीय समूहों में पश्चिमी दृष्टिकोण के प्रभुत्व के विकल्प के रूप में एक विकल्प बनाने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा, ब्रिक्स 24 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला बाजार है। इसी पर अमेरिका की नजर है।

यह भी है बड़ा कारण, जान लीजिए
समूह का 2024 का विस्तार कई भू-राजनीतिक निहितार्थों के साथ आया है। यह बढ़ती आर्थिक और जनसांख्यिकीय ताकत का प्रतीक है। 11 ब्रिक्स देश अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक-चौथाई से ज्यादा और दुनिया की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह समूह गाजा पट्टी और यूक्रेन में युद्धों , वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के स्वरूप, चीन और पश्चिम के बीच प्रतिस्पर्धा और स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के प्रयासों पर प्रभाव डालने के लिए तैयार है। हालांकि, बढ़ती सदस्यता के साथ नई चुनौतियां भी आ रही हैं, जिनमें पश्चिमी देशों और समूह के भीतर विभाजनों से बढ़ता प्रतिरोध भी शामिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिक्स सदस्य इन तनावों से कैसे निपटते हैं, यह तय करेगा कि क्या यह समूह वैश्विक मंच पर एक अधिक एकीकृत आवाज बन पाएगा।

ऐसे हुई थी ब्रिक्स की पैदाइश
यह शब्द मूल रूप से गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ’नील द्वारा 2001 के एक शोध पत्र में गढ़ा गया था , जिसमें उन्होंने तर्क दिया था कि तत्कालीन ब्रिक देशों (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) की वृद्धि प्रमुख जी 7 धनी अर्थव्यवस्थाओं को चुनौती देने के लिए तैयार थी।

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