ज्ञान:धर्म,संस्कृति-सभ्यता कमज़ोर करने को नये नही पर्वों पर हमले
Google ने एक दिन शेख दीन मोहम्मद (Sake Dean Mahomed) का #Google_ Doodle बनाया था। यूरोप को शैंपू करना तथा भारतीय पद्धति से चंपी करके स्नान करना उन्होंने ही सिखाया था। 1800 के प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने लंदन में इसकी दुकान खोली थी। इससे प्रभावित होकर इंग्लैंड के राजा #George_IV ने उन्हें अपना शाही शैंपू सर्जन बनाया था। इसमें विस्तार से जानना हो तो गूगल की वेबसाइट पर जाइए।
भारत में #मकर_संक्रांति के पवित्र अवसर पर पूरा देश अपने निकट की नदियों में डुबकियां लेकर नहा रहा होगा। इसके तुरंत बाद कुंभ जैसा महापर्व होता है जिसमें स्नान का विशेष महत्त्व है। परंतु क्या जानते हैं कि हेयर स्पा, शैंपू बाथ आदि आधुनिक चीजें विश्व को भारत की देन हैं?
वैसे तो यूरोप को दोबारा स्नान करना भी भारत ने ही सिखलाया। यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि रोमन साम्राज्य के अंत के बाद ईसाई राज में यूरोप में स्नान का अर्थ था शर्ट बदल लेना। प्रसिद्ध फ्रांसीसी इतिहासकार #Jules_Michelet ने लिखा है कि यूरोप हजार वर्ष नहाए बिना रहा। इस पर टिप्पणी करते हुए #The_Dirt_On_ Clean पुस्तक में लेखिका #Katherine_ Ashenburg लिखती हैं, चार सौ साल अधिक सही संख्या है। यूरोप चार सौ वर्ष नहाया ही नहीं। नहाने के नाम पर वे शर्ट बदल लिया करते थे। तो इस बार जब #कुंभ या फिर किसी और त्योहार में नहाने जाएं तो स्मरण रखें कि दुनिया को साफ रहना हमने सिखाया।
रूप और सौभाग्य को पुष्य स्नान
#रूप_चतुर्दशी
✍🏻अत्रि विक्रमार्क
गायब होती लोक कथाओं में से एक मूसेसाव की कहानी में एक जाना माना व्यापारी नगर के अन्य व्यापारियों से धनादि लेकर समुद्री रास्ते से व्यापार को निकलता है। समुद्र में भयावह तूफ़ान में व्यापारी जिस जहाज पर था वो डूब जाता है। उसका जहाज डूबने की खबर आने पर नगर के अन्य व्यवसायी अपना माल भी डूबा मान लेते हैं और जो रकम बिक्री से पहले ले ली थी उसी पर संतोष कर लेते हैं। उधर जिस व्यापारी की मृत्यु हुई उसके परिवार पर संकटों का बादल टूट पड़ता है। काफी रकम खर्च करके उन्होंने व्यापार में निवेश किया था। वापस ना आने पर जमा पूँजी भी सब डूब गई थी।
ऐसे में उसकी पत्नी और बेटा कंगाली जैसी स्थिति में आ गए। हारकर एक दिन बेटे ने कहा कि जिन व्यापारियों से पिताजी ऋण लिया करते थे उनसे ही मैं भी कुछ रकम मांगकर व्यापार शुरू करने की कोशिश करता हूँ। कम से कम जीविका चले। माँ से अनुमति लेकर लड़का पहले एक फिर दूसरे करते सभी के पास गया। लेकिन रकम डूबने से खिन्न उसके पिता के भूतपूर्व मित्रों ने भी उसकी मदद नहीं की। एक व्यापारी के पास वो गया तो उसके अनाज का नुकसान हो रहा था इसलिए वो अपनी दुकान में चूहा मारने में जुटा था।
लड़के ने व्यापारी की मदद को चूहा मार दिया, मगर उसके बाद धन की बात की तो उसने लड़के की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि दम होता तो वो उस मरे चूहे से ही कमा लेता,ऐसे भीख ना मांगता फिरता। निराश लड़का मरा चूहा लेकर नगर श्रेष्ठी से सलाह करने चला। वहां नगर श्रेष्ठी की पालतू बिल्ली चूहा देखकर मचल गई। श्रेष्ठी ने चूहा माँगा तो लड़का फ़ौरन बोला, मैं तो इसे बेचने ही निकला हूँ ! मरे चूहे के बदले श्रेष्ठी ने आधे घड़े भर चना लड़के को दे दिया।
चना पानी में फुलाकर लड़का अगले दिन पास के वन में जा बैठा,जहाँ राजा के कुछ मजदूर, राजमहल के काम को लकड़ियाँ काट रहे होते थे। उनसे चने-पानी के बदले उसने लकड़ियाँ लेनी शुरू की। थोड़े ही समय में उसके पास काफी लकड़ियाँ इकठ्ठा हो गयीं। उनमें से कुछ बेचकर वो रोज चने ही ले लेता और धीरे-धीरे चने से आगे सत्तू फिर और अनाज का व्यापार भी शुरू कर दिया। कुछ साल बीतते-बीतते जब तक राजमहल बना,लड़का भी अनाज का बड़ा व्यापारी हो चुका था। राजदरबार से भी अनाज की खरीद-बिक्री का काम उसे मिलने लगा।
एक रोज अनाज के काम के ही सिलसिले में कई साल पहले मरा चूहा देने वाला व्यापारी उसके पास आया तो लड़का पूछ बैठा, पहचाना मुझे ? मैं वही चूहे वाला लड़का। चूहे को मूस भी कहते हैं, इसलिए ये व्यापारी मूसेसाव नाम से ही विख्यात हुआ। भारत के त्यौहार जो कृषि-वाणिज्य जैसे कर्मों से जुड़े होते हैं उनकी परंपरा भी देखें तो आपको ऐसी ही छोटी-छोटी चीज़ों पर ध्यान देना, नजर आ जाएगा।
दीपावली का त्यौहार जिस दिन मनाया जाता है, उसे से दो दिन पहले और दो दिन बाद तक कोई ना कोई आयोजन चल रहे होते हैं। इनकी शुरुआत धन्वन्तरि उपासना यानी धनतेरस से शुरू होती है। आप स्वस्थ नहीं हैं,तो कोई सुख लेने में समर्थ ही नहीं होंगें। मिठाई जैसी चीज़ें खरीदने के पैसे होने का क्या फायदा जब आप डाईबिटिज जैसी बिमारियों से उसे खा ही ना सकें ? आयुर्वेद बिमारी की रोकथाम पर ही नहीं,बल्कि पहले से उसके बचाव का प्रबंध रखने में विश्वास रखता है इसलिए धनधान्य से जुड़ा ये पर्व उनसे ही शुरू होता है।
क्रम में दूसरे स्थान पर नरक निवारण चतुर्दशी है जिसे दो रूपों में देख सकते हैं। एक तो “नरक मचाना” गंदगी फैलाने को कहा जाता है। स्वच्छता के बिना ना स्वास्थ्य होगा,ना वैभव,इसलिए ये स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने का दिन भी है। इस दिन जो नरकासुर मारा गया था,ये वही था जिसने कई हजार कन्याओं का हरण कर रखा था और उन्हें छुड़ा कर श्रीकृष्ण वापस ले आये थे। किन्हीं कारणों से जो लक्ष्मी बाहर चली गई हैं,उसे वापस लाने के प्रयासों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए,ये भी इस दिन याद कर सकते हैं।
दीपावली तीसरी होती है,जिस दिन सनातनियों में नए बही खाते,और कई नए प्रयास शुरू करने का दिन माना जाता है। आयातित अंधविश्वासों के जो हालेलुइया पोषक ये सिखाते हैं कि अमावास की रात भयावह या अशुभ होती है,इस दिन उन्हें ये जरूर याद दिलाइये कि ऐसी मूर्खताएं सनातनियों में नहीं चलती। दीपावली अमावस्या को ही शुरू होती है,और हम ना तो आयातित विचारधाराओं जैसे किसी को वाणिज्य-व्यवसाय जैसे कर्मों के कारण अपना शत्रु मानते हैं,ना अमावस्या पर कोई काम शुरू करने से अकारण दूरी रखते हैं।
पशु-पक्षी और पर्यावरण में मनुष्यों के योगदान जैसी चीज़ों की भी सनातन त्योहारों में महत्ता होती है। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा,घर के पालतू पशुओं के लिए है। फिरंगी हमलावरों के दौर में कुत्ते पालने पर रोक लग गई,और आज भी दिल्ली जैसे कई शहरों में गाय पालना मना है। कभी छल और कभी बल से परम्पराओं को गायब करने और अर्थोपार्जन के तरीके रोकने के प्रयास जारी रहे हैं। ऐसे त्यौहार में जब आपके लिए गोवर्धन पूजा पर कोई बसहा बळद,कोई गाय ना हो,तो हमलावरों का शोषण भी याद रखिये।
ये त्यौहार भाई दूज पर समाप्त होता है जब भाई अपनी बहनों से मिलने उनके घर जाते थे। अकेले मनाई जाने वाली खुशियाँ अधूरी सी होती हैं। अपने ससुराल पक्ष से,सिर्फ रक्त सम्बन्धी ही नहीं,शादी से बने संबंध याद रखना और जोड़ना याद रखना ही चाहिए। वैसे तो पत्नी के भाई से जुड़ी कुछ कहावतें भी हमने सुनी हैं,इसलिए इसे कोई भूलता होगा,ऐसा तो हमें बिलकुल नहीं लगता। बाकी चार दिन का जिक्र किया है इसलिए इसका नाम लिख देने की खानापूर्ति करनी पड़ी है।
भाई दूज के ही दिन बिहार के कई इलाकों में चित्रगुप्त पूजा भी होती है। ये सभी जगह मनाया जाता है या नहीं ये नहीं पता। कलम-दवात की पूजा और यमराज के पास लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त की पूजा इस दिन शायद कायस्थ बिरादरी के लोग हर जगह ही करते होंगे। आपके काम करने के औजार (चाहे वो कलम ही क्यों ना हो) भी महत्वपूर्ण होते हैं,इसे भी त्योहारों से याद दिला दिया जाता है। कोई सभ्यता-संस्कृति जितनी पुरानी होगी उसमें एक प्रतीक के जरिये सौ बातें कहने का गुण भी उतना ही बढ़ता जाता है। हमारे त्यौहार प्रतीक हैं,उनके पीछे के महत्व,त्यौहार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।
बाकी जब इतना पढ़ ही लिया है तो भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का तीसरा श्लोक भी याद दिलाते चलें :-
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।
इसका स्थूल अर्थ बताया जाता है कि हे पार्थ, कायर मत बनो। यह तुम्हारे लिये अशोभनीय है। हे परंतप, हृदय की क्षुद्र दुर्बलता त्यागकर खड़े हो जाओ। इस पर ध्यान दिलाने की वजह इसका पहला शब्द “क्लीव” है, आम तौर पर इसका अर्थ सिर्फ “नपुंसक” बता कर छोड़ दिया जाता है। लेकिन इस शब्द का मतलब उतना ही नहीं होता। ये अक्सर क्रॉस ड्रेसर के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है, यानि कोई ऐसा जिसने स्त्रियों जैसे कपड़े पहने हों मगर पुरुष हो, या फिर पुरुषों जैसे कपड़े पहने हुए कोई स्त्री हो।
नौटंकी में राजा, व्यवसायी, पंडित बना कोई व्यक्ति जिसने सिर्फ रूप बदल लिया हो लेकिन गुण उसमें ना हो, उसके लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे क्रॉस ड्रेसर कई बार नर होने पर भी मादा की, या मादा होते हुए भी नर होने की नौटंकी करते-करते अपनी ही हरकतों से अपनी पोल खोल देते हैं। चश्मा, बढ़ी दाढ़ी, बिखरे बाल, कुर्ता-झोलाधारी ऐसे कई बुद्धिपिशाचों की पोल खुलना भी वैसा ही है। ऐसी बेइज्जती करवाने वाली हरकतें नहीं करनी चाहिए, यही श्रीकृष्ण यहाँ अर्जुन को समझा रहे होते हैं।
✍🏻आनंद कुमार
