प्राण-प्रतिष्ठा पर हर सवाल का उत्तर,16 जून 2026 तक भी वैकल्पिक शुभ मुहूर्त नहीं
रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा निर्माणाधीन मंदिर में क्यों, 22 जनवरी की तिथि ही क्यों? ‘प्रदीप कर्मकाण्ड’ में है जवाब, पढ़िए और भ्रम से बाहर निकलिए
अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को भगवान रामलला का प्राण-प्रतिष्ठा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में देश के प्रसिद्ध साधु-संत वैदिक रीति-रिवाजों से यह शुभ कार्य संपन्न कराएँगे। समारोह में उपस्थित रहने को देश के गणमान्य लोग भी निमंत्रित हैं। हालाँकि, प्राण-प्रतिष्ठा तिथि को लेकर सोशल मीडिया सहित तमाम जगह सवाल उठाए जा रहे हैं।
देश में कुछ ऐसे भी हैं, जो सवाल उठा रहे हैं कि 22 जनवरी 2024 को प्राण-प्रतिष्ठा को पर्याप्त मुहूर्त नहीं है। इसके बावजूद इस दिन मंदिर में भगवान रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की जा रही है। वहीं, कुछ लोग हैं जिनका दावा है कि मंदिर का कार्य अभी अधूरा है, अधूरे मंदिर में भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा शास्त्रसम्मत नहीं है। यह सवाल उठाने वालों में कुछ साधु-संत भी हैं।
दरअसल, 22 जनवरी 2024 को पौष शुक्ल 12 सोमवार को मेष लग्न में वृश्चिक नवांश के अभिजित मुहूर्त में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा होगी। तिथि का निर्धारण वाराणसी निवासी गणेश्वर शास्त्री द्राविडजी ने किया है। महाराष्ट्र के पुणे जिला निवासी बबन लक्ष्मणराव मस्के ने इन्हीं सवालों को गणेश्वर शास्त्री के समक्ष उठाया। इसका उन्होंने उत्तर भी दिया है।
मंदिर के शिखर का कार्य पूर्ण हुए बिना अधूरे मन्दिर में भगवान राम की प्रतिष्ठा कितना शास्त्र सम्मत है, इसका गणेश्वर शास्त्री द्राविडजी ने उत्तर दिया है। उनका कहना है कि देव मन्दिर की प्रतिष्ठा दो प्रकार से होती है- पहला, सम्पूर्ण मन्दिर बन जाने पर तथा दूसरा,मन्दिर में कुछ काम शेष रहने पर भी प्राण प्रतिष्ठा होती है।
गणेश्वर शास्त्री द्राविडजी का कहना है,“जहाँ पर सम्पूर्ण मन्दिर बन जाने पर देव-प्रतिष्ठा होती है,वहाँ गर्भगृह में देव-प्रतिष्ठा होने पर मन्दिर के ऊपर कलश-प्रतिष्ठा संन्यासी करते है। कलश-प्रतिष्ठा गृहस्थ नहीं करते। गृहस्थ कलश-प्रतिष्ठा करे तो वंशक्षय (वंश का नाश) होता है। मन्दिर का पूर्ण निर्माण हो जाने पर देव-प्रतिष्ठा के साथ मन्दिर के ऊपर कलश-प्रतिष्ठा होती है। जहाँ पर मन्दिर पूर्ण नहीं बना रहता,वहाँ देव-प्रतिष्ठा के बाद मन्दिर का पूर्ण निर्माण होने पर किसी शुभ दिन में उत्तम मुहूर्त में मन्दिर के ऊपर कलश-प्रतिष्ठा होती है।”
वैदिक शास्त्रों के ज्ञाता अण्णाशास्त्री वारे लिखित ‘कर्मकाण्ड प्रदीप’ ग्रन्थ के पत्र 338 का जिक्र करते हुए गणेश्वर शास्त्री कहते हैं, “‘इति व्रतोद्यापन-वद्द्व्यहःसाध्यः सर्वदेवप्रतिष्ठाप्रयोगः समाप्तः’ के बाद ‘अथ कलशारोपणविधिः’ से आरम्भ कर ‘इति प्रतिष्ठासारदीपिकोक्त: कलशारोपणविधिः’ तक स्वतन्त्र रूप से कलश आरोपण विधि दी गयी है।”
वे आगे कहते हैं, “पाञ्चरात्रागम में ईश्वर संहिता का अग्रिम वचन भी उक्त व्यवस्था के विरुद्ध नहीं है। वचन इस प्रकार है: ‘प्रासादाङ्गेषु विप्रेन्द्राः! क्रमान्निगहितेषु च। देवताधारभूतेषु यद्यदऊंग् न कल्पितम् ॥ यत्र वा तत्तदधिकं तत्रापि च समाचरेत् । तत्तत्स्थाने तु बुद्ध्या तु देवतान्यासमूहतः ॥” (ईश्वरसंहिता अध्याय 3 श्लोक 165-166 पृष्ठ 32)।”
बृहन्नारदीयपुराण का हवाला देते हुए शास्त्री आगे कहते हैं, “अकृत्वा वास्तुपूजां यः प्रविशेन्नवमन्दिरम् । रोगान् नानाविधान् केशानश्नुते सर्वसङ्कटम् ॥ अकपाटमनाच्छन्नमदत्तबलिभोजनम् । गृहं न प्रविशेदेवं विपदामाकरं हि तत्॥” (बृहन्नारदीय पुराण, पूर्वखण्ड, अध्याय 56 श्लोक 618-619, पत्र 116)।”
इस श्लोक का अर्थ बताते हुए वें कहते हैं, “तदनुसार मन्दिर में द्वार (कपाट = किवार) जब तक नहीं बनता तथा मन्दिर पर जब तक आच्छादन नहीं होता अर्थात् मन्दिर जब तक नहीं ढंका जाता और वहाँ वास्तुशान्ति जब तक नहीं होती तथा उसमें देवताओं को यथायोग्य माषभक्त बलि एवं पायसबलि नहीं दी जाती तथा वास्तुशान्ति का अङ्गभूत ब्राह्मणभोजन जब तक नहीं होता तब तक मन्दिर में देवप्रतिष्ठा नहीं हो सकती।”
गणेश्वर शास्त्री आगे कहते हैं, “लोक व्यवहार में एक मंजिल (भवन) बनने पर भी वास्तु-शान्ति करके लोग गृह-प्रवेश करते हैं। बाद में गृह का ऊपरी भाग बनता है। अत: पूर्ण भवन बनने पर ही वास्तु-प्रवेश होगा,ऐसा नहीं कहा जा सकता। देव-मन्दिर देवगृह है,अतः उसमें उक्त नियम लागू होगा। अयोध्या के राम मन्दिर में प्रतिष्ठा के पूर्व वास्तु-शान्ति, प्रस्तुत बलिदान एवं ब्राह्मण भोजन होने वाला है।”
22 जनवरी 2024 की तिथि को प्राण-प्रतिष्ठा योग्य बताते हुए गणेश्वर शास्त्री आगे कहते हैं, “मन्दिर के दरवाजे लग गए हैं। गर्भगृह पूर्ण रूप से शिलाओं से ढँका गया है। अत: उसमें राम-प्रतिष्ठा करने में कोई दोष नहीं है। मन्दिर का काम पूर्ण होने पर कर्मकाण्ड प्रदीप में उद्धृत प्रतिष्ठासार दीपिकोक्त कलशारोपणविधि के अनुसार कलशारोपण होगा।”
अब इसी में दूसरा सवाल ये खड़ा किया जा रहा है कि ’22 जनवरी 2024 को छोड़ अन्य मुहूर्त क्यों नहीं लिया गया’। इस सवाल का उत्तर भी गणेश्वर शास्त्री द्राविडजी ने शास्त्रों को उद्धृत करते हुए दिया है। उनका कहना है कि 22 जनवरी 2024 पौष शुक्ल द्वादशी सोमवार मृगशीर्ष नक्षत्र के दिन सर्वोत्तम मुहूर्त है। इस कारण से उसे लिया गया है। उनका कहना है कि 22 जनवरी 2024 के पूर्व विजयादशमी के दिन गुण–वत्तर लग्न नहीं मिलता। गुरु वक्री होने से दुर्बल है।
गणेश्वर शास्त्री ने कहा,“बलि प्रतिपदा को मंगलवार है। यह वार गृह-प्रदेश में निषिद्ध है। अनुराधा नक्षत्र में घटचक्र की शुद्धि नहीं है। अग्निबाण भी है। अग्निबाण में मन्दिर में मूर्ति-प्रतिष्ठा होने पर आग लगकर हानि होती है। 25 जनवरी 2024 पौष शुक्ल पूर्णिमा को मृत्युबाण है। मृत्युबाण में प्रतिष्ठा होने पर लोगों की मृत्यु हो सकती है। माघ-फाल्गुन में कहीं बाण शुद्धि नहीं मिलती तो कहीं पक्ष-शुद्धि नहीं मिलती तथा कहीं तिथि आदि की शुद्धि नहीं मिलती। भाष शुक्ल आदि में गुरु कर्काश (उच्चांश) का नहीं है।”
अगली तिथि के बारे में बताते हुए वे आगे कहते हैं, “14 मार्च 2024 से खरमास है। अर्थात् मीनार्क है। मीनार्क में उत्तर भारत में प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्य नहीं होते। 9 अप्रैल 2024 को वर्षारम्भ दिन है। उसमें मंगलवार,वैधृति एवं क्षीणचन्द्र दोष हैं। रामनवमी 17 अप्रैल 2024 को मेष लग्न पापाक्रान्त है तथा उसे लेने पर द्वादश में बुध-शुक्र जाते हैं। वृष-लग्न लेने पर द्वादश में गुरु एवं चतुर्थेश सूर्य में जाते हैं। बाद में आश्लेषा नक्षत्र है।”
आगे की तिथियों का जिक्र करते हुए वैदिक शास्त्र ज्ञाता गणेश्वर शास्त्री कहते हैं, “24 अप्रैल वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को मृत्युबाण है। 28 अप्रैल को शुक्र का वार्धक्यारम्भ है। 5 मई को गुरु का वार्धक्यारम्भ है। 7 जुलाई 2024 रथयात्रा के दिन रविवार है। 17 जुलाई से चातुर्मास्य है। 12 अक्टूबर 2024 विजयादशमी को शनिवार है। गुरु वक्री है। 2 नवम्बर बलिप्रतिपदा को शनिवार है। गुरु वक्री है। 3 फरवरी तक गुरु वक्री होने से मुहूर्त में गुरुबल नहीं। माघ शुक्ल दशमी शुक्रवार को शुद्ध एवं बलवत्तर लग्न नहीं मिलता।”
इसी तरह, आगे की तिथियों का जिक्र करते हुए कहते हैं, “माघ शुक्ल त्रयोदशी सोमवार 10 फरवरी 2025 को अग्निबाण है। पुनर्वसू नक्षत्र पापाक्रान्त है। आगे कहीं चन्द्रशुद्धि नहीं। कहीं पक्ष की शुद्धि नहीं। कहीं शुद्ध नक्षत्र नहीं। कहीं बाणशुद्धि नहीं। कहीं तिथि-वार की शुद्धि नहीं। फाल्गुन पूर्णिमा 14 मार्च को खरमासारम्भ। 30 मार्च 2025 को वर्षारम्भ के दिन रविवार है। रामनवमी के दिन रविवार है।”
मार्च 2025 के बाद की तिथि के बारे में बताते हुए गणेश्वर शास्त्री कहते हैं, “आगे कहीं यतीपात है,कहीं वैधृति है, कहीं इतर अशुद्धि है। गुरु शत्रुराशि में होने से मुहूर्त में गुरुबाण की कमी है। 2 जून 2026 को गुरु कर्क में जाएगा। उस समय अधिक जयेष्ठ कृष्ण-पक्ष रहेगा। 16 जून 2026 से शुद्ध ज्येष्ठ शुक्ल प्रारंभ होगा। पूर्ण लग्न शुद्धि नहीं मिलती।”
गणेश्वर शास्त्री का कहना है कि तब तक प्रतीक्षा कर शुभ मुहूर्त खोजने पर कौन चलता रहेगा? इसलिए इन सब बातों का विचार करके 22 जनवरी 2024 का राम प्रतिष्ठा मुहूर्त दिया गया है। उनका कहना है कि पूर्व में आनन-फानन में जो मुहूर्त लोगों ने दिया था, उसमें कुछ कमी थी इसी कारण मन्दिर तोड़े गए।
उन्होंने कहा, “अत: सभी बातों को ध्यान में रखकर 22 जनवरी 2024 को प्रतिष्ठा का मुहूर्त दिया गया है। इसमें लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पश्चम, सप्तम एवं नवम पर होने से मुहूर्त उत्तम है। मकर का सूर्य हो जाने से पौषमास का वर्ज्यत्व (दोष) समाप्त हो जाता है। भगवान् की कृपा से, गुरुजनों के आशीर्वाद से उपर्युक्त उत्तम मुहूर्त मिला है।”
Ram Mandir: 84 सेकंड के सूक्ष्म मुहूर्त में होगी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा, ज्योतिष का प्रधानमंत्री को लेकर बड़ा दावा
रामलला की प्राणप्रतिष्ठा के कर्मकांड की पूरी जिम्मेदारी काशी के वैदिक ब्राह्मणों पर है। काशी से ही हवन, पूजन और प्राण प्रतिष्ठा समारोह की सामग्री अयोध्या पहुंची है। 26 दिसंबर को काशी के ब्राह्मणों का पहला दल पहुंचा था। इसके साथ ही यज्ञ कुंड व पूजन मंडप का कार्य भी आरंभ हो गया। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में चारों वेदों के साथ ही कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के 51 वैदिक ब्राह्मण काशी से पहुंचे।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 84 सेकेंड के सूक्ष्म मुहूर्त में होगी। पंच बाण से मुक्त ये मुहूर्त भारत के लिए संजीवनी बनेगी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भारत के विश्वगुरु बनने की राह को प्रशस्त करेगी। ग्रहों की अनुकूलता प्राण प्रतिष्ठा के मुहूर्त को संपूर्ण भारत के लिए कल्याणकारी बना रहा है।
ये मुहूर्त देश के साथ ही इस प्राण प्रतिष्ठा के यजमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी लाभकारी है। राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को देश भर से 5 मुहूर्त प्रस्तावित किए गए थे। राममंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अंत में गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा और काशी के विद्वानों पर अंतिम निर्णय छोड़ दिया।
इसमें सबसे अधिक शुभ मुहूर्त 22 जनवरी का ही निर्धारित किया गया था। देशभर के विद्वानों की ओर से 17, 21, 24, 25 जनवरी का प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त दिया गया था। उनमें से काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ ने एक मुहूर्त चुना है। 22 जनवरी की यह तिथि पांच बाण अग्नि बाण, मृत्यु बाण, चोर बाण, नृप बाण और रोग बाण से पूरी तरह से मुक्त है। इसके कारण यह देश के लिए संजीवनी योग निर्माण कर रही है।
काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण और राममंदिर के शिलान्यास का मुहूर्त निकालने वाले पंडित गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ ने बताया कि मेष लग्न में वृश्चिक नवांश में अभिजीत मुहूर्त में श्रीरामजन्मभूमि में रामलला की मूर्ति स्थापना को अतिसूक्ष्म मुहूर्त है। ये दोपहर में 12 बजकर 29 मिनट आठ सेंकेंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकेंड तक 84 सेकेंड का है।
अभिजीत मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा से रामजी के राज्य में होगी वृद्धि
गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा के परीक्षाधिकारी मंत्री पंडित गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ ने बताया कि 22 जनवरी को अभिजीत मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा करने से रामजी की राज्यवृद्धि होगी अर्थात नीति के अनुसार शासन कार्य चलेगा। प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त पर देश भर से आई आपत्तियों को गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने खारिज कर दिया है। राममंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज ने मुहूर्त पर आई आपत्तियों के निराकरण को काशी गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा को पत्र लिखा था। सभा ने आपत्तियों को खारिज करते हुए 22 जनवरी के मुहूर्त को सर्वाधिक शुभ बताया है।
पंडित गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ ने बताया कि रामजी का जन्मनक्षत्र पुनर्वसु है। इससे गणना करने पर तृतीय पर्यय में रोहिणी नक्षत्र रामजी को वधतारा पड़ती है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण में कोई दोष नहीं है। रामजी के लिए मृगशीर्ष मैत्र तारा है जो कि प्रधानमंत्री के लिए शुभ है। सोमवार को प्राण प्रतिष्ठा होने से प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा में उत्तरोत्तर वृद्धि का योग बन रहा है। सोमवार, मृगशीर्ष नक्षत्र और पंचबाण से मुक्त होने पर प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त संजीवनी योग निर्मित कर रहा है।
काशी से ही अयोध्या आई हवन सामग्री, नवरत्न, पंचरत्न और समीधा
रामलला की प्राणप्रतिष्ठा के कर्मकांड की पूरी जिम्मेदारी काशी के वैदिक ब्राह्मणों पर है। काशी से ही हवन, पूजन और प्राण प्रतिष्ठा समारोह की सामग्री अयोध्या जाएगी। 26 दिसंबर को काशी के ब्राह्मणों का पहला जत्था रवाना हुआ। इसके साथ ही यज्ञ कुंड व पूजन मंडप का कार्य भी आरंभ हो गया। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में चारों वेदों के साथ ही कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के 51 वैदिक ब्राह्मण काशी से पहुंचे हैं।
पंडित अरुण दीक्षित ने बताया कि प्राणप्रतिष्ठा मुहूर्त भव्य बनाने और कोई भी पूजा छूट न जाए, इसलिए ग्रंथों के अध्ययन के साथ ही देश भर के विद्वानों से संपर्क किया जा रहा है। रामलला की प्राणप्रतिष्ठा को अयोध्या में आठ तरह के मंडप का निर्माण किया गया है। काशी से अयोध्या जाने वाले वैदिक चारों वेदों का पारायण कर रहे हैं। इसके साथ ही काशी से 108 कलश पंचगव्य, 10 तरह की समीधा, सहस्राछिद्राभिषेक को घड़ा, तीर्थों का जल, नवरत्न, पंचरत्न, पारा और सप्तधान्य अयोध्या पूजन को जाएगा।
कर्मकांडी पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित के आचार्यत्व में देश भर के 121 वैदिक ब्राह्मण प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त को संपन्न कराएंगे। उन्हें कांची के शंकराचार्य शंकर जयेंद्र सरस्वती ने इसके लिए चुना है।
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