जयंती: दो अंग्रेज पुलिस अफसर मार घिरे तो साथियों संग आत्मघात किया था बिनॉय कृष्ण बसु ने
कोलकाता में राइटर्स बिल्डिंग के सामने बिनॉय कृष्ण बसु, दिनेश तथा बादल गुप्ता की प्रतिमाएं
,…………………………. चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹 ………………………………………………………………………………………………………………………..
*जन्म:-* 11.09.1908 *बलिदान:-* 13.12.1930
🇮🇳 *बिनॉय कृष्ण बसु 🇮🇳*
📝 राष्ट्रभक्त साथियों जिस तरह उत्तर-पश्चिमी भारत में सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त आदि क्रान्तिकारी साथियों की टीम ने ब्रिटिश सरकार की नींद उड़ा रखी थी तथा अपने बलिदान से जन जन को भारत की स्वतंत्रता के लिए जागृत किया, ठीक उसी प्रकार पूर्वी भारत की क्रांतिभूमि बंगाल में उसी दौर में बिनॉय कृष्ण बसु, दिनेश चन्द्र गुप्ता तथा बादल गुप्ता ने ब्रिटिश सरकार की नींद उठा रखी थी। मातृभूमि सेवा संस्था आज इन्हीं तीन साथियों में से एक बिनॉय कृष्ण बसु की 112वीं जयंती पर इनके महान त्याग को आप तक पहुँचाने का प्रयास करेगी। बिनॉय कृष्ण बसु क्रांतिकारी संगठन युगंतार समूह के एक महत्वपूर्ण सदस्य थें। उनका जन्म 11 सितंबर, 1908 को मुंशीगंज जिले के रोहितभोग ( रोथभोग, रायतभोग) गाँव में एक मध्यम वर्ग के कायस्थ परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम रेबतीमोहन बसु (इंजीनियर) तथा माता क्षीरोदबासिनी देबी एक धार्मिक महिला थी। बिनॉय कृष्ण बसु ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ढाका में प्राप्त की और मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद मिटफोर्ड मेडिकल स्कूल (अब सर सलीमुल्लाह मेडिकल कॉलेज) में दाखिला लिया। अपनी युवावस्था में वह ढाका के जाने-माने क्रांतिकारी हेमचंद्र घोष के प्रभाव में आए और *’मुक्ति संघ’* नामक क्रान्तिकारी संगठन में शामिल हो गए, जो एक गुप्त संस्था थी, जो युगांतर पार्टी के साथ निकटता से जुड़ी हुई थी।
📝अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण बिनॉय कृष्ण बसु अपनी चिकित्सा शिक्षा (medical degree) पूरी नहीं कर सके। सन् 1928 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में जब सुभाष चंद्र बोस ने मेजर सत्य गुप्ता के नेतृत्व में *’बंगाल वालंटियर्स’* के नाम से एक समूह का गठन किया तो बिनॉय कृष्ण बसु इस संस्था में सक्रिय हो गए। जल्द ही वह समूह में प्रभावशाली हो गए और उन्होंने ढाका में बंगाल वालंटियर्स की एक स्थानीय इकाई की स्थापना की। थोड़े समय के भीतर बंगाल के स्वयंसेवकों ने खुद को एक सक्रिय क्रांतिकारी संगठन में बदल लिया और सन् 1930 के दशक की शुरुआत में *’ऑपरेशन आजादी’* शुरू करने का फैसला किया। ढाका में बंगाल के स्वयंसेवकों ने मुख्य रूप से बंगाल में विभिन्न जेलों में पुलिस दमन के खिलाफ अपना विरोध जताने के लिए इस तरह का रुख अपनाया। अगस्त 1930 में, बिनॉय कृष्ण बसु को पता चला कि *पुलिस के महानिरीक्षक, लोमैन* , एक बीमार वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के उपचार के लिए मेडिकल स्कूल अस्पताल का दौरा करेंगे। 29 अगस्त 1930 को बिनॉय कृष्ण बसु ने पारंपरिक बंगाली पोशाक में हमला किया, सुरक्षा भंग कर दी और करीब से गोलीबारी की। लोमैन की तत्काल मृत्यु हो गई और पुलिस अधीक्षक हडसन घायल हो गया। बिनॉय कृष्ण बसु गिरफ्तारी से बच गए। पुलिस ने खोज शुरू की और बिनॉय कृष्ण बसु के सिर पर 5000 रुपये का इनाम घोषित किया। इस समय सुभाष बोस उन्हें विदेश भेजने के लिए बेचैन थे, लेकिन बिनॉय कृष्ण बसु ने मना कर दिया। हालाँकि, कुछ ही महीनों में बिनॉय कृष्ण बसु जी और उनका समूह फिर से हरकत में आ गया। जेलों के महानिरीक्षक, *कर्नल एन एस सिम्पसन* जेलों में कैदियों पर क्रूर उत्पीड़न करने के लिए क्रांतिकारियों की आंखों की किरकिरी बन गए थे। क्रांतिकारियों ने उसे न केवल समाप्त करने का फैसला किया, बल्कि सचिवालय भवन पर हमले की शुरुआत करके ब्रिटिश आधिकारिक हलकों में एक आतंक कायम करने का भी। 08 दिसंबर 1930 को, बिनॉय कृष्ण बसु ने दिनेश चंद्र गुप्ता और बादल गुप्ता के साथ, यूरोपीय पोशाक पहने, राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश किया और सिम्पसन की गोली मारकर हत्या कर दी। कुछ अन्य अधिकारियों, जैसे कि टेरिनेम, प्रेंटिस और नेल्सन, जो अपने आतंकवादी रणनीति के लिए जाने जाते थे, को भी गोलीबारी के दौरान चोटों का सामना करना पड़ा।
📝बिनॉय कृष्ण और उनके क्रांतिकारी साथियों के सफल होने के बावजूद, बच नहीं सके। पुलिस महानिरीक्षक और पुलिस आयुक्त के आदेश से पुलिस ने उन पर गोलियाँ चला दीं। युवा क्रांतिकारियों ने कुछ समय के लिए लड़ाई जारी रखी। खुद को पुलिस को नहीं सौंपने के लिए दृढ़ संकल्प, बादल गुप्त ने पोटेशियम साइनाइड निगल लिया, जबकि बिनॉय कृष्ण बसु और दिनेश गुप्त ने अपने रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली। बादल गुप्त तत्काल बलिदान हो गए। घायल बिनॉय कृष्ण बसु को अस्पताल ले जाया गया जहाँ 13 दिसंबर 1930 को उन्होंने दम तोड़ दिया। अस्पताल में भर्ती दिनेश गुप्ता पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। इस प्रकार, बिनॉय कृष्ण बसु और उनके साथी क्रांतिकारी बलिदान हो गए और उनकी समर्पण की भावना और आत्म-बलिदान बंगाल में भावी पीढ़ियों के लिए अनुकरण की एक उदाहरण बन गया। गई। 🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
✍️ बहन गार्गी वत्स एवं राकेश कुमार
*🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477 🇮🇳*