मोहन भागवत का केंद्र को संदेश-मणिपुर में शांति हो,काम का अहंकार भी छोड़ें
Nagpur Rss Chief Mohan Bhagwat Said Manipur Should Be Given Priority Violence Should Be Stopped In Nagpur
मणिपुर सालभर से देख रहा शांति की राह, मोहन भागवत का केंद्र सरकार को बड़ा संदेश
Mohan Bhagwat Speech: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत ने लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र सरकार को बड़ा संदेश दिया है। नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग समापन पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि मणिपुर सालभर से शांति की राह देख रहा है। प्राथमिकता से उसका विचार करना होगा।
मुख्य बिंदु
मणिपुर में हिंसा का स्थायी समाधान निकलना चाहिए
नागपुर में बोले, आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत
बोले, चुनाव प्रचार में एक-दूसरे को लताड़ना ठीक नहीं
काम करें, मैंने किया इसका अहंकार ना पालें: भागवत
नागपुर 10 जून 2024: लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है। नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय समापन समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर सालभर से हिंसा की आग में जल रहा है। मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। इसे प्राथमिकता से करने पर विचार करना चाहिए। काम करें, पर मैंने किया इसका अहंकार ना पालें, वही सही सेवक है। संघ प्रमुख के संबोधन को केंद्र की मोदी सरकार को बड़े मैसेज के तौर पर देखा जा रहा है।
चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है। चुनाव प्रचार में एक दूसरे को लताड़ना, तकनीक का दुरुपयोग, असत्य प्रसार ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि विरोधी की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए। नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय के समापन में भागवत ने कहा कि चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा। चुनाव लोकतंत्र में हर पांच साल होने वाली घटना है। हम अपना कर्तव्य करते रहते हैं लोकमत परिष्कार का। प्रतिवर्ष करते हैं, प्रति चुनाव में करते हैं, इस बार भी किया है। भागवत ने कहा कि मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से उसका विचार करना होगा।
मैंने किया, यह अहंकार न पालें
नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय के समापन में भागवत ने कहा कि चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि अभी चुनाव संपन्न हुए, उसके परिणाम भी आए। सरकार भी बन गई, यह सब हो गया। लेकिन उसकी चर्चा अभी तक चलती है। जो हुआ वह क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या हुआ? यह अपने देश के प्रजातांत्रिक तंत्र में हर पांच साल में होने वाली घटना है। उसके अपने नियम हैं। डायनेमिक्स के अनुसार होता है, लेकिन यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है। समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा। क्यों, कैसे, इसमें हम लोग नहीं पड़ते। हम लोकमत परिष्कार का अपना कर्तव्य करते रहते हैं। हर चुनाव में करते हैं, इस बार भी किया है। बाकी क्या हुआ इस चर्चा में नहीं पड़ते।
संबोधन में दिया बड़ा संदेश
भागवत ने कहा कि मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से उसका विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि हजारों सालों के भेदभावपूर्ण बर्ताव ने विभाजन की खाई बनाई और गुस्सा भी पैदा किया। उन्होंने कहा कि भगवान ने सबको बनाया है। भगवान की बनाई कायनात के प्रति अपना भावना क्या होनी चाहिए? ये सोचने का विषय है। संघ प्रमुख ने कहा कि जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है, गर्व करता है किन्तु लिप्त नहीं होता है, अहंकार नहीं करता है, वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है।
मतांतरण की जरूरत नहीं
संघ प्रमुख ने कहा कि हजारों वर्षों से जो पाप हमने किया उसका प्रक्षालन करना पड़ेगा। ऐसे ही आपस में मिलना जुलना है। रोटी-बेटी सब प्रकार के व्यवहार होने दो। लेकिन जो बाहर की विचारधारा आई हैं, यह उनकी प्रकृति ऐसी थी कि हम ही सही बाकी सब गलत। अब उसको ठीक करना पड़ेगा क्योंकि वह आध्यात्मिक नहीं है। इन विचारधाराओं में जो अध्यात्म है, उसको पकड़ना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पैगंबर साहब का इस्लाम क्या है, सोचना पड़ेगा। ईसा मसीह की ईसाइयत क्या है सोचना पड़ेगा। भगवान ने सबको बनाया है। भगवान की बनाई जो सृष्टि है, उसके प्रति अपनी भावना क्या होनी चाहिए सोचना पड़ेगा।भागवत ने कहा कि सोच समझ के जो समय के प्रवाह में विकृतियां आई हैं, उसको हटाकर यह जानकर कि मत अलग हो सकते हैं, तरीके अलग हो सकते हैं। सब अलग हो सकता है। हमको इस देश को अपना मानकर, उसके साथ अपना भक्तिपूर्ण संबंध स्थापित कर, इस देश के पुत्र सब अपने भाई हैं यह जानकर व्यवहार करना पड़ेगा।
दूसरों का सम्मान भी जरूरी
भागवत ने कहा कि समाज में एकता चाहिए, लेकिन अन्याय होता रहा है, इसलिए आपस में दूरी है। मन में अविश्वास है, हजारों वर्षों का काम होने के कारण चिढ़ भी है। अपने देश में बाहर से आक्रामक आए, आते समय अपना तत्वज्ञान भी लेकर आए। यहां के कुछ लोग विभिन्न कारणों से उनके विचारों के अनुयाई बन गए, ठीक है। अब वह लोग चले गए, उनके विचार रह गए। उसको मानने वाले रह गए, हैं तो यहीं के। विचार वहां के हैं तो यहां की परंपरा को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बस एक बात है कि भारत के बाहर के विचारों में जो हम ही सही बाकी सब गलत है, उसको छोड़ो। मतांतरण करने की क्या जरूरत है। सब मत सही है, सब समान है तो फिर अपने मत पर ही रहना ठीक है। दूसरों के मत का भी उतना ही सम्मान करो।