कैसे होता है एग्जिट पोल? सटीकता का क्या है रिकार्ड?

एग्ज़िट पोल कैसे किया जाता है? जानिए पिछले चुनावों में कितने सटीक रहे अनुमान
एक जून को सांतवें चरण का मतदान ख़त्म होने के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट डालने की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और उसके बाद सभी को चार जून का इंतज़ार होगा, जब वोटों की गिनती की जाएगी.

लेकिन वोटों की गिनती से पहले एक जून को मतदान ख़त्म होते ही सभी पोल एजेंसियां और न्यूज़ चैनल एग्ज़िट पोल जारी कर देंगे.

2024 लोकसभा चुनाव के एग्ज़िट पोल्स क्या कहते हैं, यह तो एक जून को पता चलेगा लेकिन उससे पहले एग्ज़िट पोल्स से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को समझने की कोशिश करते हैं.

और फिर यह देखेंगे कि 2019 लोकसभा चुनाव से लेकर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के एग्ज़िट पोल्स और असली नतीजे क्या थे?

एग्ज़िट पोल्स से जुड़े मुद्दों को समझने को हमने जाने-माने चुनावी विश्लेषक और सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग स्टडीज़ (सीएसडीएस)-लोकनीति के सह निदेशक प्रोफ़ेसर संजय कुमार से बात की.

एग्ज़िट पोल क्या होता है और कैसे किया जाता है?

एग्ज़िट का मतलब होता है बाहर निकलना. इसलिए एग्ज़िट शब्द ही बताता है कि यह पोल क्या है.

जब मतदाता चुनाव में वोट देकर बूथ से बाहर निकलता है तो उससे पूछा जाता है कि क्या आप बताना चाहेंगे कि आपने किस पार्टी या किस उम्मीदवार को वोट दिया है.

एग्ज़िट पोल कराने वाली एजेंसियां अपने लोगों को पोलिंग बूथ के बाहर खड़ा कर देती हैं. जैसे-जैसे मतदाता वोट देकर बाहर आते हैं, उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया.

कुछ और सवाल भी पूछे जा सकते हैं, जैसे प्रधानमंत्री पद के लिए आपका पसंदीदा उम्मीदवार कौन है वग़ैरह.

आम तौर पर एक पोलिंग बूथ पर हर 10वें मतदाता या अगर पोलिंग स्टेशन बड़ा है तो हर 20वें मतदाता से सवाल पूछा जाता है. मतदाताओं से मिली जानकारी का विश्लेषण करके यह अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है कि चुनावी नतीजे क्या होंगे.

सी-वोटर, एक्सिस माई इंडिया, सीएनएक्स भारत की कुछ प्रमुख एजेंसिया हैं. चुनाव के समय कई नई-नई कंपनियां भी आती हैं जो चुनाव के ख़त्म होते ही ग़ायब हो जाती हैं.

एग्ज़िट पोल से जुड़े नियम-क़ानून क्या हैं?
रिप्रेज़ेन्टेशन ऑफ़ द पीपल्स एक्ट, 1951 के सेक्शन 126ए में एग्ज़िट पोल को नियंत्रित किया जाता है.

भारत में, चुनाव आयोग ने एग्ज़िट पोल को लेकर कुछ नियम बनाए हैं. इन नियमों का उद्देश्य यह होता है कि किसी भी तरह से चुनाव को प्रभावित नहीं होने दिया जाए.

चुनाव आयोग समय-समय पर एग्ज़िट पोल को लेकर दिशानिर्देश जारी करता है. इसमें यह बताया जाता है कि एग्ज़िट पोल करने का क्या तरीक़ा होना चाहिए. एक आम नियम यह है कि एग्ज़िट पोल के नतीजों को मतदान के दिन प्रसारित नहीं किया जा सकता है.

चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से लेकर आख़िरी चरण के मतदान ख़त्म होने के आधे घंटे बाद तक एग्ज़िट पोल को प्रसारित नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा एग्ज़िट पोल के परिणामों को मतदान के बाद प्रसारित करने के लिए, सर्वेक्षण-एजेंसी को चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होती है।

आम लोगों को समझाने की कोशिश करते हुए प्रोफ़ेसर संजय कुमार से इसे मौसम विभाग के अनुमान से जोड़ कर देखते हैं.

वो कहते हैं, “एग्ज़िट पोल के अनुमान भी मौसम विभाग के अनुमान जैसे होते हैं. कई बार बहुत सटीक होते हैं, कई बार उसके आस-पास होते हैं और कई बार सही नहीं भी होते हैं. एग्ज़िट पोल दो चीज़ों का अनुमान लगाता है. वोट प्रतिशत का अनुमान लगाता है और फिर उसके आधार पर पार्टियों को मिलने वाली सीट का अनुमान लगाया जाता है.”

संजय कुमार कहते हैं, “2004 का चुनाव हमें नहीं भूलना चाहिए. उसमें तमाम एग्ज़िट पोल्स में कहा गया था कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार दोबारा सत्ता में आएगी लेकिन सारे एग्ज़िट पोल्स ग़लत साबित हुए और भाजपा चुनाव हार गई.”

कई बार अलग-अलग एग्ज़िट पोल अलग-अलग अनुमान लगाते हैं, ऐसा क्यों?

इस सवाल के जवाब में भी प्रोफ़ेसर संजय कुमार एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, “कई बार एक ही बीमारी को लेकर अलग-अलग डॉक्टर अलग-अलग तरह से जाँच करते हैं. एग्ज़िट पोल्स के बारे में भी ऐसा हो सकता है. उसका कारण यह हो सकता है कि अलग-अलग एजेंसियों ने अलग-अलग सैंपलिंग या अलग तरह से फ़ील्ड वर्क किया हो. कुछ एजेंसियां फ़ोन से डेटा जमा करती हैं, जबकि कुछ एजेंसियां अपने लोगों को फ़ील्ड में भेजती हैं तो नतीजे अलग हो सकते हैं.

भारत में एग्ज़िट पोल पहली बार कब हुआ था?
भारत में दूसरे आम चुनाव के दौरान 1957 में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक ओपिनियन ने पहली बार चुनावी पोल किया था.इसके प्रमुख एरिक डी कॉस्टा ने चुनावी सर्वे किया था, लेकिन इसे पूरी तरह से एग्ज़िट पोल नहीं कहा जा सकता है.उसके बाद 1980 में डॉक्टर प्रणय रॉय ने पहली बार एग्ज़िट पोल किया. उन्होंने ही 1984 के चुनाव में दोबारा एग्ज़िट पोल किया था.

उसके बाद 1996 में दूरदर्शन ने एग्ज़िट पोल किया. यह पोल पत्रकार नलिनी सिंह ने किया था लेकिन इसके आंकड़े जुटाने के लिए सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवेलपिंग स्टडीज़ (सीएसडीएस) ने फ़ील्ड वर्क किया था.

उसके बाद से यह सिलसिला लगातार जारी है. लेकिन उस समय एक दो एग्ज़िट पोल होते थे, जबकि आजकल दर्जनों एग्ज़िट पोल्स होते हैं.

  क्या दुनिया के दूसरे देशों में भी एग्ज़िट पोल किया जाता है?

भारत से पहले कई देशों में एग्ज़िट पोल होते रहे हैं. अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया समेत दुनिया भर के कई देशों में एग्ज़िट पोल होते हैं.

सबसे पहला एग्ज़िट पोल संयुक्त राज्य अमेरिका में 1936 में हुआ था. जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन ने न्यूयॉर्क शहर में एक चुनावी सर्वेक्षण किया, जिसमें मतदान करके बाहर निकले मतदाताओं से पूछा गया कि उन्होंने किस राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को वोट दिया है.

इस तरह से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करके यह अनुमान लगाया गया कि फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट चुनाव जीतेंगे.रूज़वेल्ट ने वास्तव में चुनाव जीता. इसके बाद, एग्ज़िट पोल अन्य देशों में भी लोकप्रिय हो गए. 1937 में, ब्रिटेन में पहला एग्ज़िट पोल हुआ. 1938 में, फ्रांस में पहला एग्ज़िट पोल हुआ.

अब बात करते हैं भारत में हुए एग्ज़िट पोल्स की. सबसे पहले बात 2019 के लोकसभा चुनाव की

लोकसभा चुनाव, 2019
2019 के लोकसभा चुनाव के ज़्यादातर एग्ज़िट पोल में भाजपा और एनडीए को 300 से ज़्यादा सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था. जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन को 100 के आसपास सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी.असली नतीजे एग्ज़िट पोल में लगाए गए अनुमान के अनुरूप ही थे. भाजपा को 303 सीटें मिली थीं और एनडीए को क़रीब 350 सीटें थीं. वहीं कांग्रेस को केवल 52 सीटें मिली थीं.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव, 2021
साल 2021 में केरल, असम, तमिलनाडु, पुदुच्चेरी और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए थे. लेकिन सबकी निगाहें पश्चिम बंगाल पर टिकी थीं.ज़्यादातर एजेंसियों ने 292 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा को 100 से ज़्यादा सीटें दी थीं और जन की बात नाम की एक एजेंसी ने तो भाजपा को 174 सीटें तक मिलने का अनुमान लगाया था.कुछ एजेंसियों ने टीएमसी को बढ़त दिखाई थी लेकिन कुछ ने तो यहां तक कहा था कि भाजपा पहली बार पश्चिम बंगाल में सरकार बना सकती है.

लेकिन जब नतीजे आए तो ममता बनर्जी की टीएमसी एक बार सत्ता में वापस लौटी और भाजपा ने 2016 में मिली तीन सीटों की तुलना में तो बहुत बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन वो क़रीब 75 सीटों तक ही पहुंच पाई और सरकार बनाने से बहुत दूर ही रह गई.

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2022
नवंबर-दिसंबर, 2022 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए थे. गुजरात के एग्ज़िट पोल्स की बात करें तो इनमें भाजपा को फिर से सत्ता में लौटते हुए दिखाया गया था और 182 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा को 117 से लेकर 148 सीटें मिलने तक का अनुमान लगाया गया था.

सभी एग्ज़िट पोल्स में विपक्षी कांग्रेस को 30 से लेकर 50 सीटें तक मिलने की उम्मीद जताई गई थी. लेकिन जब नतीजे आए तो भाजपा ने राज्य में अपना सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 156 सीटें हासिल कीं जबकि कांग्रेस ने अपना सबसे ख़राब प्रदर्शन किया और सिर्फ़ 17 सीटें ही जीत सकी.

हिमाचल प्रदेश में ज़्यादातर एजेंसियों ने एग्ज़िट पोल्स में भाजपा को बढ़त दी थी. इंडिया टुडे-एक्सिस माई ने कांग्रेस को बढ़त दी थी. लेकिन जब नतीजे आए तो 68 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 40 सीटें जीतकर सरकार बना ली जबकि भाजपा को केवल 25 सीटें ही मिल सकीं।

कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा चुनाव, 2023
कर्नाटक में अप्रैल-मई, 2023 में विधानसभा चुनाव हुए थे. यहां एकाध को छोड़कर ज़्यादातर एजेंसियों ने कहा था कि कांग्रेस का प्रदर्शन भाजपा से बेहतर होगा. परिणाम भी  लगभग उसी अनुमान के मुताबिक़ आए. फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि कांग्रेस का प्रदर्शन ज़्यादातर अनुमान से बेहतर था. 224 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 43 प्रतिशत वोटों के साथ 136 सीटें जीत ली थीं.

यह पिछले तीन दशकों में राज्य में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी जीत थी. भाजपा केवल 65 सीटें हासिल कर पाई थी और जनता दल-एस के खाते में केवल 19 सीटें आई थीं.

नवंबर-दिसंबर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिज़ोरम में चुनाव हुए थे.

छत्तीसगढ़– सभी एजेंसियों ने एग्ज़िट पोल्स में कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर बताया था या फिर कांग्रेस को बढ़त दिखाई थी. 90 सीटों वाली विधानसभा में किसी भी एजेंसी ने कांग्रेस को 40 से कम सीटें मिलने का अनुमान नहीं लगाया था. भाजपा को 25 से लेकर 48 सीटें तक मिलने का अंदाज़ा लगाया गया था.लेकिन जब नतीजे आए तो भाजपा ने 54 सीटें जीतकर सरकार बनाई जबकि कांग्रेस को केवल 35 सीटें आईं.

मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं. एग्ज़िट पोल्स में बीजेपी को 88 से लेकर 163 सीटें तक मिलने का अनुमान लगाया गया था. जबकि कांग्रेस को कम से कम 62 और अधिकतम 137 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था.लेकिन जब नतीजे आए तो ने 163 सीटें हासिल की जबकि कांग्रेस केवल 66 सीटों पर सिमट गई.

राजस्थान
एबीपी न्यूज़-सी वोटर एग्ज़िट पोल में भाजपा का पलड़ा भारी दिखा रहा था. राजस्थान में भाजपा को कम से कम 77 और अधिकतम 128 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था. जबकि सत्ताधारी कांग्रेस को कम से कम 56 और ज़्यादा से ज़्यादा 113 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था.

लेकिन जब नतीजे आए तो भाजपा को 115 सीटें मिली और कांग्रेस को 69 सीटें हासिल हुई. अन्य छोटे-मोटे दल और निर्दलीय को 15 सीटों पर जीत हासिल हुई.

तेलंगाना
एग्ज़िट पोल्स में लगभग एजेंसियों ने तेलंगाना में कांग्रेस को बढ़त दिखाई थी. कांग्रेस को कम से कम 49 और अधिकतम 80 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था. सत्ताधारी बीआरएस सभी एग्ज़िट पोल्स में सत्ता से बाहर होती हुई दिख रही थी. जब नतीजे आए तो कांग्रेस को 64 सीटें मिली जबकि बीआरएस को 39 सीटें मिली.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *