बजट 5 गुना,दालें 7350%बढी,MSP में 226% तक वृद्धि: 11वर्षों में भारतीय कृषि में ‘बीज से बाज़ार तक’ व्यापक परिवर्तन
Farmer’s Welfare,भारतीय किसान सशक्त बने
“किसानों की आय बढ़ाना, खेती की लागत कम करना, बीज से लेकर बाज़ार तक किसानों को आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना हमारी सरकार की प्राथमिकता है।”
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
देहरादून / नई दिलली 07 जून 2025 । कृषि भारत की अर्थव्यवस्था और संस्कृति के केंद्र में है, जो लाखों लोगों को आजीविका देती है और देश की पहचान को आकार। 11 वर्षों में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारतीय कृषि क्षेत्र में गहन परिवर्तन आया है, जो बीज से बाज़ार तक (सीड टू मार्केट) दर्शन आधारित है।
यह परिवर्तन समावेशिता को बढ़ावा दे, छोटे किसानों, महिला नेतृत्व वाले समूहों और संबद्ध क्षेत्रों का समर्थन कर भारत को वैश्विक कृषि नेता बनाता है। किसान नीति केंद्र बना है, जिसमें आय सुरक्षा, स्थिरता और सुदृढ़ता सुनिश्चितकर्ता सक्रिय, प्रौद्योगिकी-संचालित दृष्टिकोण है।
आधुनिक सिंचाई और ऋण पहुँच से लेकर डिजिटल बाज़ारों और कृषि-तकनीक नवाचारों तक, भारत स्मार्ट खेती अपना रहा है और बाजरा की खेती और प्राकृतिक खेती जैसी पारंपरिक प्रथायें पुनर्जीवित कर रहा है। डेयरी और मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्र भी फल-फूल रहे हैं, जिससे ग्रामीण समृद्धि और जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रोत्साहित हो रही है। सबसे बढ़कर, मानसिकता बदली है, किसान भारत के विकास के प्रमुख हितधारक और चालक बने हैं। जैसे-जैसे भारत अमृत काल में प्रवेश कर रहा है, सशक्त किसान देश को खाद्य सुरक्षा से वैश्विक खाद्य नेतृत्व तक ले जाने को तैयार हैं।
बढ़ा हुआ बजट आवंटन
कृषि भारत के अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, रोजगार और समग्र आर्थिक विकास में योगदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह आबादी के महत्वपूर्ण हिस्से को आजीविका देती है और भारत के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को महत्वपूर्ण बनी है। इसका महत्व पहचानते हुए, भारत सरकार ने इस क्षेत्र को मजबूत करने को विभिन्न पहल की है । बजट आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
कृषि और किसान कल्याण विभाग के बजट में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2013-14 में 27,663 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 1,37,664.35 करोड़ रुपये हुई है, जो पाँच गुना वृद्धि है।
बजट आवंटन में वृद्धि ने कृषि क्षेत्र बदलने, बुनियादी ढांचे में निवेश वृद्धि, खेती के आधुनिकीकरण, सहायता योजनाओं के विस्तार और देश भर के किसानों की आय सुरक्षा बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि
भारत का खाद्यान्न उत्पादन 2014-15 में 265.05 मिलियन टन से बढ़कर 2024-25 में 347.44 मिलियन टन हुआ है, जो कृषि उत्पादन में मजबूत वृद्धि दर्शाता है। प्रमुख फसलें चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, जौ, चना, अरहर, दालें, मूंगफली, सोयाबीन, रेपसीड और सरसों, तिलहन, गन्ना, कपास, तथा जूट और मेस्टा हैं।
एमएसपी में वृद्धि और किसानों के लिए समर्थन
2014-15 से 2024-25 की अवधि में, 14 खरीफ फसलों की खरीद 7871 एलएमटी थी, जबकि 2004-05 से 2013-14 की अवधि में खरीद 4679 एलएमटी थी।
गेहूं एमएसपी वृद्धि और रिकॉर्ड खरीद
गेहूं की एमएसपी 2013-14 में 1,400 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2024-25 में 2,425 रुपये प्रति क्विंटल हुई, जिससे गेहूं उत्पादकों को बेहतर रिटर्न मिला। 2014-2024 में गेहूं के लिए एमएसपी भुगतान में कुल 6.04 लाख करोड़ रुपये वितरित हुए हैं, जो 2004-2014 में भुगतान 2.2 लाख करोड़ रुपये की तुलना में काफी अधिक है।

धान एमएसपी वृद्धि और रिकॉर्ड खरीद
धान की एमएसपी 2013-14 में 1,310 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2025-26 में 2,369 रुपये प्रति क्विंटल हुई, जिससे लाखों धान किसान लाभान्वित हुए। 2014-15 से 2024-25 में धान खरीद 7608 एलएमटी थी, जबकि 2004-05 से 2013-14 में धान खरीद 4590 एलएमटी थी। 2014-15 से 2024-25 में धान उत्पादकों को भुगतान एमएसपी 14.16 लाख करोंड़ रु. जबकि 2004-05 से 2013-14 में किसानों को भुगतान की गई राशि 4.44 लाख करोड़ रुपये थी।

ग्रेड-ए धान की एमएसपी 2013-14 में 1,345 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2025-26 में 2,389 रुपये प्रति क्विंटल हो गया
दालें
11 वर्षों में, सरकार दालों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाई है। पहले कम खेती, सीमित खरीद, उच्च आयात निर्भरता और उच्च उपभोक्ता कीमतों से ग्रसित क्षेत्र अब बढ़ी हुई खेती, उच्च एमएसपी संचालित पर्याप्त खरीद, कम आयात निर्भरता और उपभोक्ताओं को बेहतर मूल्य स्थिरता देता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर दालों की खरीद में 7,350% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो 2009-2014 में 1.52 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से बढ़कर 2020-2025 में 82.98 एलएमटी हो गई।
एमएसपी पर तिलहन की खरीद
11 वर्षों में एमएसपी पर तिलहन खरीद में 1,500% वृद्धि हुई, जो तिलहन किसानों को सरकार का मजबूत समर्थन दर्शाता है।

विपणन सीजन 2025-26 को सभी खरीफ फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य
क्र. सं. फसल एमएसपी 2013-14 (रु / क्विंटल) एमएसपी 2025-26 (रु / क्विंटल) 2013-14 से %बृद्धि
1- धान (सामान्य) 1310 2369 81%
2- धान (ग्रेड ए) 1345 2389 78%
3- ज्वार (संकर) 1500 3699 147%
4- ज्वार (मालदंडी) 1520 3749 147%
5- बाजरा 1250 2775 122%
6- रागी 1500 4886 226%
7- मक्का 1310 2400 83%
8- तुअर/अरहर 4300 8000 86%
9- मूंग 4500 8768 95%
10- उड़द 4300 7800 81%
11- मूँगफली 4000 7263 82%
12- सूरजमुखी के बीज 3700 7721 109%
13- सोयाबीन (पीला) 2560 5328 108%
14- तिल 4500 9846 119%
15- काला तिल 3500 9537 172%
16- कपास (माध्यम रेशा) 3700 7710 108%
17- कपास (लंबा रेशा) 4000 8110 103%
किसानों के लिए वित्तीय सुरक्षा

पीएम-किसान सम्मान निधि
• अब तक 11 करोड़+ किसानों को 3.7 लाख करोड़+ रुपये राशि हस्तांतरित हो चुकी है।
• किसान-केंद्रित डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, बिचौलिये हटा किसानों को पारदर्शी और सीधे लाभ पहुँचाना सुनिश्चित करता है।
फरवरी 2019 में शुरू केंद्रीय योजना, पीएम-किसान योजना भूमि-धारक किसानों की वित्तीय ज़रूरतें पूरा करती है। यह प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) से आधार से जुड़े बैंक खातों में सीधे तीन बराबर किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपये देता है, छोटे और सीमांत किसानों को गुणवत्तापूर्ण इनपुट में निवेश कर, उपज बढ़ाने को समय पर सहायता सुनिश्चित करता है।
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी)
• अब तक 7.71 करोड़ किसानों को 10 लाख करोड़ रु ऋण दिया जा चुका।
• केसीसी में ऋण सीमा 2025-26 को 3 लाख रु से बढ़ाकर 5 लाख रु हुई।
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना किसानों को अल्पकालिक और दीर्घकालिक खेती, कटाई बाद के खर्चों और उपभोग जरूरतों को परेशानी मुक्त और किफायती ऋण सुनिश्चित करती है। यह कृषि और संबद्ध क्षेत्रों को ऋण तक आसान करता है, जिससे किसानों की वित्तीय स्थिरता मिलती है।

जोखिम कम कर सुदृढ़ता बढ़ाना,प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
• अब तक योजना में 63.23 करोड़ किसान आवेदन कर चुके।
• 19.91 करोड़+ किसानों (अनंतिम) को बीमा दावे मिले।
• किसानों को दावों में 1.75 लाख करोड़ रु (अनंतिम) का भुगतान।
2016 में शुरू प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) भारतीय किसानों को सरल, किफायती और व्यापक फसल बीमा देती है। योजना सभी गैर-रोकथाम योग्य प्राकृतिक जोखिम कवर करती है
बुवाई के पहले से लेकर कटाई के बाद तक के प्राकृतिक जोखिम, प्राकृतिक आपदाओं, कीटों या बीमारियों से फसल खराब होने पर वित्तीय सहायता सुनिश्चित करती है।
“एक राष्ट्र, एक फसल, एक प्रीमियम” सिद्धांत से, पीएमएफबीवाई अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं से फसल नुकसान के खिलाफ़ व्यापक सुरक्षा देता है। यह सुरक्षा न केवल किसानों की आय स्थिर करती है बल्कि उन्हें नवीन प्रथायें अपनाने को भी प्रोत्साहित करती है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
• अब तक 2021-26 के लिए 93,000+ करोड़ रु आवंटित ।
• 112 सिंचाई परियोजनाएँ लागू, जिससे मानसून निर्भरता घटी ।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) वर्ष 2015-16 में शुरू हुई थी, ताकि खेत पर पानी की पहुँच बढ़े और सुनिश्चित सिंचाई में खेती योग्य क्षेत्र विस्तार हो, खेत पर जल उपयोग की दक्षता सुधरे, स्थायी जल संरक्षण प्रथायें शुरू हों।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड
मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता योजना 2014-15 से मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को उनकी मिट्टी की पोषक स्थिति की जानकारी दे मिट्टी के स्वास्थ्य और उसकी उर्वरता में सुधार को पोषक तत्वों की उचित खुराक सुझाती है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना में:

• देश भर में 1.75 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) बने।
• कार्यान्वयन को राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को ₹1,706.18 करोड़ जारी ।
• देश भर में 8,272 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित
कृषि के लिए आधुनिक अवसंरचना,कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ)
2020-21 में शुरू की गई कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) महत्वपूर्ण पहल है जिसका उद्देश्य खेत के दहलीज पर भंडारण, रसद और प्रसंस्करण अवसंरचना के विकास का समर्थन करके फसल कटाई बाद के प्रबंधन का अंतराल पाटना है। यह योजना गोदामों, कोल्ड स्टोरेज इकाइयों, ग्रेडिंग और प्रसंस्करण केंद्रों जैसी सुविधाओं की स्थापना को बढ़ावा देती है, जिससे किसानों की बाजारों तक सीधी पहुँच बढ़ती है और उनकी आय बढ़ाने में मदद मिलती है। 1 लाख करोड़ रु के कुल परिव्यय के साथ, यह निधि फसल कटाई के बाद और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण का समर्थन करती है, और 2020-21 से 2032-33 तक 13 वर्षों की अवधि को लागू है।
वित्त वर्ष 2024-25 में कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) उपलब्धियाँ: 
• 42,864 परियोजनाओं को 21,379 करोड़ रु स्वीकृत।
• इसमें से 14,284 करोड़ रु योजना लाभ से कवर ।
• एआईएफ में स्वीकृत प्रमुख परियोजनाओं में 12,550 कस्टम हायरिंग सेंटर, 8,015 प्रसंस्करण इकाइयाँ, 2,765 गोदाम, 843 छंटाई और ग्रेडिंग इकाइयाँ, 668 कोल्ड स्टोरेज परियोजनाएँ और 18,023 कटाई-पश्चात प्रबंधन और व्यवहार्य कृषि परिसंपत्ति परियोजनाएँ हैं।
प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र
प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र बीज, उर्वरक, उपकरण और खेती तथा सरकारी योजनाओं की समय पर जानकारी देने वाले वन-स्टॉप सेंटर का काम करते हैं, जिससे किसानों को खेती अधिक सुविधाजनक और जानकारीपूर्ण होती है।
• 23 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में 1,473 मंडियां ई-नाम से एकीकृत
दिसंबर 2024 तक:
• 1.79 करोड़ किसान और 2.59 लाख व्यापारी पंजीकृत
कुल व्यापार दर्ज:• 11.02 करोड़ मीट्रिक टन जिंसें
• 36.39 करोड़ इकाइयाँ (बांस, पान, नारियल, नींबू और स्वीट कॉर्न)
कुल व्यापार मूल्य 4.01 लाख करोंड़ रु
• 1.8 लाख केंद्र वन-स्टॉप शॉप के रूप में स्थापित हैं जो किसानों को इनपुट और जानकारी देते हैं।
ई-नाम एवं बाजार सुधार
राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम), एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल, कृषि जिंसों का एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने को मौजूदा कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) मंडियां जोड़ता है। इसकी शुरुआत 14 अप्रैल, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की । ई-नाम प्लेटफॉर्म किसानों को ऑनलाइन प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी मूल्य खोज प्रणाली और ऑनलाइन भुगतान सुविधा से अपनी उपज बेचने को बेहतर विपणन अवसर बढ़ाता है। ई-नाम पोर्टल एपीएमसी से जुड़ी सभी जानकारी और सेवाओं को सिंगल विंडो सेवाएं देता है। इसमें अन्य सेवाओं के अलावा कमोडिटी की आवक, गुणवत्ता और कीमतें, खरीद और बिक्री के प्रस्ताव और किसानों के खाते में सीधे ई-भुगतान शामिल हैं।
किसान खाते में अन्य सेवाओं के अलावा ऋण भी पहुंचेगा।
मेगा फूड पार्क
मेगा फूड पार्क योजना किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और खुदरा विक्रेताओं को जोड़कर कृषि उत्पादन को बाजारों से जोड़ती है, जिससे मूल्य संवर्धन बढ़े, बर्बादी कम हो और कृषक आय बढ़े । क्लस्टर दृष्टिकोण आधार पर, यह खाद्य प्रसंस्करण और ग्रामीण रोजगार बढ़ाने को संग्रह केंद्र, प्रसंस्करण इकाइयाँ, कोल्ड चेन और औद्योगिक भूखंड जैसे आधुनिक बुनियादी ढाँचे प्रदान करता है।
कृषि में नवाचार और उद्यमिता
नमो ड्रोन दीदी
नमो ड्रोन दीदी केंद्रीय योजना का उद्देश्य महिला नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को कृषि सेवाएँ देने को ड्रोन तकनीक से लैस कर सशक्त बनाना है। योजना का लक्ष्य 2024-25 से 2025-2026 में 15000 चयनित महिला एसएचजी को कृषि उद्देश्य (फिलहाल तरल उर्वरक और कीटनाशक उपयोग) को किसानों को किराये की सेवाएँ देने को ड्रोन देना है। इस पहल से प्रत्येक एसएचजी को प्रति वर्ष कम से कम 1 लाख रुपये की अतिरिक्त आय होगी, जो आर्थिक सशक्तिकरण और सतत आजीविका सृजन में योगदान देगा।
एग्रीश्योर: कृषि नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना
भारत के कृषि क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता के नए युग की शुरुआत कर 7,000 से अधिक कृषि और संबद्ध स्टार्टअप पंजीकृत हुए हैं। वित्त वर्ष 2019-20 और वित्त वर्ष 2024-25 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) में 1,943 कृषि-स्टार्टअप को वित्तीय और तकनीकी सहायता मिली है।
बजट 2022-23 की घोषणा अनुरूप, भारत सरकार और नाबार्ड ने एग्रीश्योर (स्टार्ट-अप और ग्रामीण उद्यमों को कृषि निधि) लॉन्च की, जो 750 करोड़ रु की श्रेणी-II वैकल्पिक निवेश निधि (एआईएफ) है, जो उच्च जोखिम, उच्च प्रभाव वाले कृषि स्टार्ट-अप के सशक्तिकरण को डिज़ाइन है।
कृषि मूल्य श्रृंखला में नवाचार, स्थिरता और उद्यमिता केंद्रित एग्रीश्योर एफपीओ समर्थन, किराये की कृषि मशीनरी और आईटी-आधारित कृषि तकनीक जैसे समाधानों पर काम करते उद्यमों को इक्विटी और ऋण वित्तपोषित करता है।
फंड का उद्देश्य है:
• कृषि और संबद्ध स्टार्ट-अप को निवेश-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाना।
• ग्रामीण उद्यमों में पूंजी अवशोषण क्षमता बढ़ाना।
• कृषि-स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र विकास में तेजी लाना।
एग्रीश्योर अगली पीढ़ी के कृषि-उद्यमियों को सशक्त बनाकर भारतीय कृषि को बदलने को साहसिक कदम है।
किसानों की आय में विविधता लाना
कृषि के अलावा, विविधीकृत किसानों को जोखिम प्रबंधन, अप्रत्याशित कारकों पर निर्भरता घटाने और उनका जीवन स्तर बेहतर बनाने में मदद करता है। सरकार पशुधन, डेयरी, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण जैसी संबद्ध गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है, साथ ही गैर-कृषि रोजगार बढ़ा रही है, ताकि कई आय स्रोत बन सकें। ये प्रयास न केवल ग्रामीण आजीविका बढ़ाते हैं बल्कि ग्रामीण भारत में संरचनात्मक परिवर्तन और आर्थिक विकास के व्यापक लक्ष्य में भी योगदान देते हैं।
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: कृषक आय वृद्धि का एक प्रमुख चालक
11 वर्षों में, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषक आय वृद्धि के एक शक्तिशाली प्रवर्तक रूप में उभरा है। खेत से बाजार तक मजबूत संपर्क बनाकर, कटाई बाद के नुकसान घटाकर और आधुनिक प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे से मूल्य संवर्धन का विस्तार करके, इस क्षेत्र ने कृषि उपज की लाभप्रदता बढाई है। सरकारी पहल, विशेषकर प्रधान मंत्री किसान संपदा योजना में, प्रसंस्करण क्षमता और निर्यात में तेजी से बढी है, साथ ही पर्याप्त ऑफ-फार्म रोजगार भी पैदा हुआ, जो ग्रामीण आजीविका का समर्थन करता है।
किसानों की आय में सहायक प्रमुख उपलब्धियाँ:
• खाद्य प्रसंस्करण क्षमता में 20 गुना से अधिक वृद्धि: 12 लाख मीट्रिक टन (2013-14) से 242 लाख मीट्रिक टन (2024-25) तक, जिससे किसानों को अधिक मूल्य संवर्धन संभव हुआ
• प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात दोगुना: 4.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2013-14) से 9.03 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2024-25) तक, जिससे कृषि उपज बाज़ार विस्तार हुआ
• यह क्षेत्र अब संगठित विनिर्माण क्षेत्र के कुल रोज़गार में 12.41% योगदान देता है, जिससे ग्रामीण परिवारों को वैकल्पिक आय स्रोत मिलते हैं
नीली क्रांति
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जिसकी वैश्विक मछली उत्पादन में 8% हिस्सेदारी है। दो दशकों में, भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि और परिवर्तन हुआ है। तकनीकी प्रगति से लेकर नीतिगत सुधारों तक, 2014 से 2024 के बीच के वर्ष ऐसे मील के पत्थर रहे हैं, जिन्होंने वैश्विक मत्स्य पालन और जलीय कृषि में भारत की स्थिति मजबूत की है। केंद्रीय बजट 2025-26 में मत्स्य पालन क्षेत्र को अब तक का सबसे अधिक कुल वार्षिक बजटीय समर्थन 2,703.67 करोड़ रुपए मिला। उत्पादन बढ़ाने और क्षेत्र को मजबूत करने को, सरकार ने मत्स्य पालन समर्पित विभाग बनाया।
उपलब्धियां (2014-2024):
• उत्पादन में वृद्धि: मछली उत्पादन 95.79 लाख टन (2013-14) और 63.99 लाख टन (2003-04) से बढ़कर 184.02 लाख टन (2023-24) हुआ, जो 10 वर्षों (2014-24) में 88.23 लाख टन की वृद्धि है, जबकि 2004-14 में 31.80 लाख टन की वृद्धि थी।
• अंतर्देशीय और जलीय कृषि मछली उत्पादन में वृद्धि: अंतर्देशीय और जलीय कृषि मछली उत्पादन में 2004-14 में 26.78 लाख टन की तुलना में 2014-24 में 77.71 लाख टन की जबरदस्त वृद्धि हुई।
• समुद्री मछली उत्पादन 5.02 लाख टन (2004-14) से दोगुना होकर 10.52 लाख टन (2014-24) हुआ।
डेयरी क्षेत्र
इस क्षेत्र में 5.7% की औसत वार्षिक वृद्धि दर वैश्विक औसत 2% से अधिक है।
भारत दूध उत्पादन में दुनिया में पहले स्थान पर है,जो वैश्विक उत्पादन में 25% का योगदान देता है। देश में दूध उत्पादन 10 वर्षों में 63.56% बढ़ा – 2014-15 में 146.3 मिलियन टन से 2023-24 में 239.2 मिलियन टन। इसके अतिरिक्त, भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 48% बढ़कर 2023-24 में 471 ग्राम/व्यक्ति/दिन हुई है, जबकि वैश्विक औसत 322 ग्राम/व्यक्ति/दिन है।
डेयरी दुनिया को एक व्यवसाय है, लेकिन भारत जैसे विशाल देश में, यह रोजगार सृजन करता है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत करने का विकल्प है, कुपोषण समस्याओं का समाधान और महिला सशक्तिकरण करता है।
19 मार्च, 2025 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2021-22 से 2025-26 के लिए 2,790 करोड़ रु के कुल परिव्यय से संशोधित राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी) 400 और 3, करोड़ रु के साथ संशोधित राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम) स्वीकार हुआ। इन योजनाओं का उद्देश्य दूध की खरीद, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन प्रोत्साहित करना, देशी मवेशियों का प्रजनन प्रोत्साहित करना, डेयरी आपूर्ति श्रृंखला मजबूत करना और ग्रामीण आय और विकास बढ़ाना है।
• दूध उत्पादन 63.56% की वृद्धि के साथ 146.3 मीट्रिक टन से बढ़कर 239.3 मीट्रिक टन हुआ।
• देशी मवेशियों के दूध में 69.27% वृद्धि, 29.48 मीट्रिक टन से बढ़कर 49.90 मीट्रिक टन हुआ।
• भैंस के दूध में 39.73% की वृद्धि 74.70 मीट्रिक टन से बढ़कर 104.38 मीट्रिक टन हुआ।
• दुधारू पशु संख्या में 30.46% की वृद्धि 85.66 मिलियन से बढ़कर 111.76 मिलियन हुई।
• डेयरी क्षेत्र में 8 करोड़ से अधिक किसान कार्यरत हैं।
मीठी क्रांति
राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (एनबीएचएम) 2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान में लॉन्च हुआ था, जिसका कुल परिव्यय 2020-21 से 2022-23 को 500 करोड़ रु था। योजना 2023-24 से 2025-26 तक तीन और वर्षों को बढ़ाई गई, जिसका शेष बजट 370 करोड़ रु है। इसका उद्देश्य “मीठी क्रांति” से आय सृजन और ग्रामीण रोजगार बढ़ाने को वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन का समग्र विकास प्रोत्साहित करना है।
मोदी सरकार में शहद निर्यात तीन गुना हुआ।
एनबीएचएम की प्रमुख उपलब्धियाँ:
भारत ने 2022-23 में 1.42 लाख मीट्रिक टन शहद उत्पादन किया और 79,929 मीट्रिक टन निर्यात किया।
सशक्तिकरण को 167 महिला एसएचजी गतिविधि समर्थन ।
मधुमक्खी पालन केंद्रों की बढ़ती मांग सै, 31 दिसंबर 2025 तक 2,000 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन न्यूनतम निर्यात मूल्य लगा।
6 विश्व स्तरीय और 47 मिनी शहद परीक्षण प्रयोगशालाएँ और 6 रोग प्रयोगशालाएँ स्थापित हुई ।
8 कस्टम हायरिंग सेंटर, 26 शहद प्रसंस्करण इकाइयाँ और अन्य बुनियादी ढाँचा निर्माण हुआ ।
ऑनलाइन पंजीकरण और ट्रेसबिलिटी को मधुक्रांति पोर्टल लॉन्च – 14,800 से अधिक मधुमक्खी पालक और 22.39 लाख कॉलोनियाँ पंजीकृत।
ट्राइफेड, नेफेड और एनडीडीबी में मधुमक्खी पालकों के 100 एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) में से 7 का गठन।
इथेनॉल खरीद
इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम से किसानों की आय में वृद्धि
भारत सरकार वैकल्पिक, पर्यावरण अनुकूल ईंधन के उपयोग के प्रोत्साहन और आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता घटाने को इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम लागू कर रही है। कार्यक्रम में तेल विपणन कंपनियाँ (ओएमसी) मुख्य रूप से गन्ना उत्पादित इथेनॉल पेट्रोल में मिलाती हैं। सरकार का लक्ष्य ईएसवाई 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण है, जो 2030 का लक्ष्य आगे बढ़ाता है। 28 फरवरी 2025 तक, इथेनॉल मिश्रण 17.98% तक पहुँचा है, जो जून 2022 के 10% से लगातार आगे बढ़ा है। यह पहल न केवल स्वच्छ ऊर्जा समर्थन करती है, बल्कि इथेनॉल की निरंतर मांग से गन्ना किसानों को स्थिर आय स्रोत भी दैती है। इथेनॉल मूल्य में वृद्धि और जीएसटी और परिवहन शुल्क के अलग से भुगतान कृषक आय और मजबूत करता है।
प्रमुख उपलब्धियाँ
• इथेनॉल की खरीद 2013-14 में 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 2023-24 में 441 करोड़ लीटर ।
• चीनी सीजन 2023-24 में गन्ना किसानों को 1,11,703 करोड़ रुपये का भुगतान ।
• किसानों को बेहतर रिटर्न सुनिश्चित करने को सी-हैवी मोलासेस (सीएचएम) इथेनॉल की कीमत में 3% की बढ़ोतरी।
• अलग-अलग जीएसटी और परिवहन शुल्क से किसानों की कमाई में सीधा लाभ ।
कार्यक्रम किसानों की आय दोगुनी करने, कच्चे तेल आयात पर निर्भरता कम करने, विदेशी मुद्रा बचाने और पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में बड़ा कदम है।
बंजर भूमि पर सौर पैनल
प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) का उद्देश्य कृषि में डीजल का उपयोग कम करना और कृषक आय बढ़ाना है। यह स्टैंडअलोन सोलर पंप लगाने और मौजूदा पंपों को सोलराइज़ करने को 30-50% केंद्रीय सब्सिडी दैता है। किसान बंजर भूमि पर 2 मेगावाट तक के सोलर प्लांट भी लगा डिस्कॉम को बिजली बेच सकते हैं। यह योजना स्वच्छ ऊर्जा और आय सृजन बढ़ाती है और इसे राज्य सरकार के विभाग लागू कर रहे है।
पीएम-कुसुम योजना में उपलब्धियां
Ø किसानों के सौर पंपों में 92 गुना से अधिक की वृद्धि।
Ø योजना में 49 लाख कृषि पंप सौर ऊर्जा संचालित होंगें।
स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा, डीजल पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय बढेगी।
प्राकृतिक और जलवायु-स्मार्ट कृषि की ओर,परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)
परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) को 2015-16 में भारत में जैविक खेती प्रोत्साहन को पहली व्यापक, केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लॉन्च हुई थी। योजना क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण से जैविक खेती प्रोत्साहित करती है, प्राकृतिक खेती के तरीके प्रोत्साहित करती है और जैविक उत्पादों के प्रत्यक्ष विपणन को एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म देती है। इसके अतिरिक्त, योजना में वनवासी क्षेत्रों, द्वीपों और पहाड़ी क्षेत्रों सहित पारंपरिक जैविक क्षेत्रों को प्रमाणन को बड़े क्षेत्र प्रमाणन (एलएसी) कार्यक्रम शामिल है। पीकेवीवाई टिकाऊ कृषि प्रोत्साहन, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और जैविक प्रथाओं से कृषक आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पीकेवीवाई और एलएसी की प्रमुख उपलब्धियाँ
वर्ष 2015-16 में इसकी शुरुआत से अब तक पीकेवीवाई में 2,078.67 करोड़ रु जारी हुए हैं।
38,043 जैविक क्लस्टर (प्रत्येक 20 हेक्टेयर कवर करता है) बनें हैं, जिसमें कुल 8.41 लाख हेक्टेयर क्षेत्र जैविक खेती (एलएसी क्षेत्र सहित) में लाया गया है।
प्राकृतिक खेती में, 8 राज्यों में 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को समर्थन मिला है।
नमामि गंगे कार्यक्रम में, 272.85 करोड़ रु जारी हुए हैं; 9,551 क्लस्टर बनाए गए हैं, जो 1.91 लाख हेक्टेयर कवर करते हैं।
कृषकों के उपभोक्ताओं को जैविक उपज की सीधी बिक्री सुविधा समर्पित ऑनलाइन पोर्टल, डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.जैविकखेती. कॉम, लॉन्च किया गया। अब तक 6.23 लाख किसान इस प्लेटफॉर्म पर पंजीकृतहो चुके ।
योजना में जैविक उत्पादों के विपणन को विभिन्न राज्य-विशिष्ट ब्रांड विकसित हुए हैं।
• बड़े क्षेत्र प्रमाणन (एलएसी) पहल में:
• कार निकोबार और नानकॉरी द्वीप समूह (एएंडएन द्वीप) में 14,445 हेक्टेयर भूमि जैविक भूमि प्रमाणित की गई है।
• लक्षद्वीप में खेती योग्य पूरी 2,700 हेक्टेयर भूमि जैविक रूप में प्रमाणित की गई ।
• 60,000 हेक्टेयर भूमि प्रमाणन को सिक्किम राज्य सरकार को 96.39 लाख रु जारी हुए हैं।
• लद्दाख से 5,000 हेक्टेयर भूमि प्रमाणित करने का प्रस्ताव आया है, जिसमें से 11.475 लाख रु पहले ही जारी हो चुके हैं।
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ़)
उत्पादन 15.99 मिलियन टन (2021-22) से बढ़कर 17.57 मिलियन टन (2023-24) हो गया है, जो 2023-24 में कुल खाद्यान्न उत्पादन का 5.29% है। एमएसपी में खरीद 6.3 लाख टन (2021-22) से बढ़कर 12.55 लाख टन (2023-24) हो गई।
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन 26 नवंबर, 2024 को शुरू हुआ था। मिशन का उद्देश्य एक करोड़ किसानों को रसायन मुक्त खेती प्रोत्साहित करना और 2184 करोड़ रु के वित्तीय परिव्यय के साथ 10,000 जैव-इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित करना है।
मोटा अनाज : श्री अन्न
भारत दुनिया में सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक है, जो वैश्विक बाजरा उत्पादन में 18.1% और वैश्विक मोती बाजरा (बाजरा) उत्पादन में 38.4% योगदान देता है। इस प्राचीन अनाज के पोषण और पर्यावरणीय मूल्य को मान्यता दे, संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया । भारत में इसे “श्री अन्न” रूप में मनाया जाता है, जो इसे सुपरफूड दर्शाता है, बाजरा मनुष्यों की उगाई सबसे पुरानी फसलों में से एक है और अब इसे भविष्य की फसलों के रूप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा, “बाजरा उपभोक्ता, किसान और जलवायु को अच्छा है।”
बीज से लेकर बाजार तक सुधार
बीज और रोपण सामग्री पर उप-मिशन (एसएमएसपी)
उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन को 100 करोड़ रुपये दिये गए, ताकि अनुसंधान प्रोत्साहित हो, उच्च उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी, जलवायु-लचीली किस्मों का विकास हो सके और उनकी व्यापक उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
बीज और रोपण सामग्री पर उप-मिशन (एसएमएसपी), 2014-15 में शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य देशभर में बीज उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण और प्रमाणीकरण को बढ़ावा देकर किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
मुख्य उपलब्धियाँ:
- • 6.85 लाख बीज गाँव बनाए गए; 1649.26 लाख क्विंटल गुणवत्तापूर्ण बीज का उत्पादन किया गया; 2.85 करोड़ किसान लाभान्वित हुए।
• 13.70 लाख क्विंटल बीज प्रसंस्करण और 22.59 लाख क्विंटल भंडारण क्षमता बनाई गई।
• ग्राम पंचायत स्तर पर 517 बीज प्रसंस्करण-सह-भंडारण इकाइयाँ स्थापित हुईं (2017-20)।
• राष्ट्रीय बीज भंडार में 29.68 लाख क्विंटल बीज का रखरखाव किया गया।
• बीज गुणवत्ता नियंत्रण मजबूत करने को 67 बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं, 14 डीएनए फिंगरप्रिंटिंग प्रयोगशालाओं, 7 बीज स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं और 42 ग्रो-आउट परीक्षण सुविधाओं को सहायता दी गई।
• बीज की उपलब्धता 351.77 लाख क्विंटल (2014-15) से बढ़कर 508.60 लाख क्विंटल (2023-24) हुई। वर्ष 2024-25 को प्रमाणित और गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता बढ़कर 531.51 लाख क्विंटल हो गई।
• बीज ट्रेसेबिलिटी को साथी पोर्टल लॉन्च हुआ, जो 20 राज्यों में पहले से ही चल रहे हैं।
• कपास बीज मूल्य नियंत्रण आदेश (2015) उचित मूल्य सुनिश्चित करता है; 2024 की कीमतें 635 रु (बीजी-I) और 864 रु (बीजी-II) प्रति पैकेट तय हुई हैं।
• 2014-15 से 2,593 कृषि और 638 बागवानी फसल किस्में अधिसूचित की गईं।
केंद्रीय बजट 2025-26 में प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना घोषित हुई
केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना राज्यों के साथ साझेदारी में 100 कम उत्पादकता वाले जिलों में शुरू होगी। कार्यक्रम का उद्देश्य कृषि उत्पादकता बढ़ाकर, सिंचाई के बुनियादी ढांचा सुधार अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह के ऋण तक पहुँच सुविधाजनक बनाकर 1.7 करोड़ किसान लाभान्वित करना है।
यह व्यापक, बहु-क्षेत्रीय पहल कौशल, तकनीकी हस्तक्षेप, निवेश और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित करके कृषि में कम-रोज़गार समस्या से भी निपटेगी।
अन्य सरकारी पहल:
1. एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी)
773 जिलों से 1,240 उत्पाद पहचान कर संतुलित क्षेत्रीय विकास प्रोत्साहित करता है। सार्वजनिक खरीद प्रोत्साहन को ओडीओपी जीईएम बाज़ार में 500 से अधिक श्रेणियाँ सूचीबद्ध हुई हैं।
2. मखाना बोर्ड
मखाना उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन मज़बूत करने को बिहार में स्थापित होगा। किसानों को एफपीओ में संगठित किया जाएगा तथा उन्हें प्रशिक्षण एवं सरकारी योजनाओं तक पहुंच दी जाएगी।
निष्कर्ष
किसान भारत के कृषि क्षेत्र की रीढ़ हैं, जो देश को जीविका देते हैं। प्रगतिशील सुधारों, तकनीकी प्रगति और मजबूत सरकारी पहलों ने महत्वपूर्ण विकास और बेहतर दक्षता प्रोत्साहित की है। मोदी सरकार ने किसानों को आत्मनिर्भर, सशक्त और समृद्ध बनाने को वित्तीय समावेशन, जलवायु-स्मार्ट कृषि और आधुनिक मौलिक ढाँचे पर ध्यान केंद्रित कर व्यापक और भविष्य को तैयार दृष्टिकोण दिया है। खाद्य सुरक्षा से लेकर किसान समृद्धि तक भारत की यात्रा दूरदर्शिता आधारित, कार्यों से पोषित और अपने अन्नदाताओं के सपनों से प्रेरित है।

