सलाह:भारतीय सेना के बलिदानियों के लिए नहीं हो Martyr शब्द का उपयोग

Don’t Use Of Term Martyr:आर्मी ने कहा- Martyr या शहीद  का  गलत, सेना के  जवानों के लिए इन 6 शब्दों का हो उपयोग

लेटर में कहा गया है कि इंडियन आर्मी के जिन सैनिकों ने देश की संप्रभुता और सम्मान की रक्षा के लिए बलिदान दिया, उनके गौरव को बरकरार रखने और उनकी याद को जिंदा रखने के लिए दूसरे शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेटर में छह टर्म बताए गए हैं जो देश के लिए बलिदान देने वाले सैनिकों के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

नई दिल्ली29फरवरी : देश के लिए जान न्योछावर करने वाले वीर सैनिकों के लिए अक्सर Martyr यानी शहीद शब्द का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इंडियन आर्मी (Indian Army) ने कहा है कि इस शब्द का इस्तेमाल गलत है। आर्मी हेडक्वॉर्टर (Army Headquarters) की तरफ से आर्मी की सभी कमांड को भेजे गए एक लेटर में यह कहा गया है। 2 फरवरी को भेजे गए इस लेटर का सब्जेक्ट है – ‘Martyr शब्द का गलत इस्तेमाल’। लेटर में कहा गया है कि यह देखा गया है कि साल दर साल आर्म्ड फोर्सेस के कुछ ऑफिसर्स और मीडिया भी हमारे उन सैनिकों के लिए Martyr (शहीद) शब्द का इस्तेमाल करते हैं जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया है।
army advised its formations against the use of the word martyrs

इसमें कहा गया है कि Martyr शब्द उस व्यक्ति के लिए कहा जाता है जिसकी मौत एक सजा के तौर पर हुई हो, जिसने रिलीजन के लिए त्याग से इनकार कर दिया हो या फिर वह व्यक्ति जो अपने रिलीजियस या राजनीतिक आस्था के लिए मारा गया हो। इसलिए इंडियन आर्मी के सैनिकों के लिए लगातार इस शब्द का इस्तेमाल ठीक नहीं है।

आर्मी  की तरफ से आर्मी की सभी  से कहा गया है कि स्पीच में या कहीं भी वीर सैनिकों का जिक्र करने के लिए इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करें। इसमें ‘किल्ड इन एक्शन'(मारे गए), ‘लेड डाउन देयर लाइफ्स'(अपना जीवन न्योछावर किया) , ‘सुप्रीम सेक्रिफाइस फॉर नेशन’ (देश के लिए सर्वोच्च बलिदान), ‘फॉलन ‘ (वीरगति प्राप्त), ‘इंडियन आर्मी ब्रेव्स'( भारतीय सेना के वीर), ‘फॉलन सोल्जर्स’ शामिल हैं।

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

हर मुल्क को अपनी सेना पर गर्व होता है। चैन से जीने के लिए सरहद पर सेना की चौकसी और मौजूदगी जरूरी है। हर भारतीय में अपनी सेना के लिए ऐसा ही एक सम्मान है। लड़ाई के मैदान में या फिर देश के अंदर किसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में, सेना हर वक्त अपनी जिम्मेदारियों के साथ देश के लिए डटी रहती है। आगे की स्लाइड्स में हम आपके लिए लेकर आए हैं भारतीय सेना और इसके सैनिकों से जुड़े ऐसी कुछ पंक्तियां जिनका हर हर्फ न केवल सच है, बल्कि यह आपका सेना के प्रति सम्मान कई गुना और भी बढ़ा देगा…

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

अगर अपने खून का कर्ज उतारने और इसे साबित करने से पहले ही मुझे मौत आती है, तो मैं कसम खाकर कहता हूं कि मैं मौत को ही मार डालूंगा: कैप्टन मनोज पांडे

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

दुश्मन हमसे बस 50 गज की दूरी पर हैं। हमारे सैनिकों की संख्या दुश्मनों से काफी कम है। हम चारों ओर से बेहद तेज गोलीबारी से घिर गए हैं। लेकिन मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा। जब तक हमारी टुकड़ी का आखिरी सैनिक जिंदा है और जब तक हमारे पास एक भी गोली बची है, तब तक हम दुश्मनों से लड़ेंगे: मेजर सोमनाथ शर्मा (शहीद होने से पहले वायरलेस पर रिपोर्ट करते हुए)

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

अगर कोई यह कहता है कि उसे मरने से कोई डर नहीं लगता, तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर वह एक गोरखा हैफील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (यह भारत के सबसे महान सैनिकों में से एक माने जाते हैं। गोरखा रेजिमेंट की ऐतिहासिक वीरता और दिलेरी के बारे में बताते हुए उन्होंने यह पंक्तियां कही थीं)..

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

          ये दिल मांगे मोर: कैप्टन विक्रम बत्रा (कारगिल युद्ध में दुश्मनों से घिरे हुए कैप्टन विक्रम बत्रा हर दुश्मन सैनिक को मारते हुए कहते जा रहे, ‘ये दिल मांगे मोर।’ बताते हैं कि वह पेप्सी बहुत पीते थे और उन दिनों पेप्सी की यह टैगलाइन थी)…

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

जिंदगी में कुछ मकसद इतने ज्यादा कीमती होते हैं कि उन्हें पूरा करने की कोशिश में असफल रहना भी महानता और गर्व की बात है: कैप्टन मनोज कुमार पांडे…

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

मुझे यकीन है कि मैं किसी दुघर्टना में नहीं मरूंगा। मुझे यह भी भरोसा है कि मैं किसी बीमारी से भी नहीं मरने वाला। मैं जानता हूं कि मैं देश के लिए गर्व से लड़ते हुए मरूंगा: मेजर सुधीर कुमार वालिया…

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

नहीं सर, मैं अपना टैंक छोड़कर नहीं भागूंगा। टैंक काम नहीं कर रहा तो क्या हुआ, मेरी बंदूक अभी तक काम कर रही है। मैं दुश्मनों को मारकर ही मरूंगा, या फिर लौटूंगा: लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (जब उनके टैंक में कुछ खराबी हो गई और उन्हें टैंक छोड़कर लौटने का निर्देश दिया गया, तब उनका यही जवाब था)…

भारतीय सेना: यूं ही नहीं गर्व है हमें अपने सैनिकों पर

सियाचीन बेस कैंप, जो दुनिया भर में सबसे ऊंचाई पर बना सेना का बेस कैंप है, पर वहां शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में यह लिखा है। सच है, बर्फ में दबी इन सैनिकों की लाशें जो चुपचाप लेटी हैं, युद्ध का संकेत होने पर शायद एकदम से ही उठकर खड़ी हो जाएंगी और टुकड़ियों में मुस्तैदी से तैनात होकर दुश्मन के साथ भिड़ जाएंगी

भारतीय नौसेना का वह बहादुर कप्तान जिसने अपनी जान की परवाह न कर बचाई अपने सिपाहियों की जान !

कप्तान महेंद्र नाथ मुल्ला

किसी ने बिलकुल सच ही कहा, “हमारे देश का तिरंगा हवा से नहीं बल्कि हर एक उस सैनिक की आखिरी साँस से लहराता है जो इसकी आन-बाण-शान की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देते हैं।”

देश के लिए शहीद होने वाले सैनिकों की बहादुरी का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की हमारे देश का। युद्ध चाहे जो भी हो, जिस भी देश से हो, भारतीय सैनिकों ने पीछे हटना नहीं सीखा। बल्कि वे तो अपने आप को अपने देश के लिए हँसते हुए अर्पित कर देते हैं।

 

बिडंबना यह है कि ऐसे नगीनों के बारे में आम जनता कम ही जान पाती है। साल 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए भारतीय नौसेना के कप्तान महेंद्र नाथ मुल्ला के बलिदान से भी ज्यादा लोग परिचित नहीं हैं। कप्तान महेंद्र नाथ मुल्ला, जो भारतीय नौसेना के हर एक सैनिक के लिए प्रेरणा है।

साल 1971, तारीख 3 दिसम्बर, शाम के 5:45 बज रहे थे जब पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारत के छह हवाई अड्डों पर आक्रमण कर दिया। उसी रात आईएफ कैनबेरा विमान ने पाकिस्तानी विमान-अड्डों को ध्वस्त कर दिया। 1971 का युद्ध शुरू हो चूका था और शीघ्र ही भारतीय नौसेना भी युद्ध में शामिल हो गयी।

तारीख – 5 दिसम्बर 1971 :

भारतीय नौसेना को सुचना मिली कि अरब सागर की उत्तरी दिशा से डाफ्ने-क्लास की पाकिस्तानी पनडुब्बी आक्रमण के लिए आगे बढ़ रही है। भारतीय नौसेना ने भी तेजी दिखाते हुए अपने पनडुब्बी रोधी लड़ाकू जहाज दल को इसका पता लगाने व खत्म करने का आदेश दिया।

 

आईएनएस खुकरी
8 दिसम्बर 1971 :

आईएनएस खुकरी (कप्तान मुल्ला की कमान में) व आईएनएस किरपान बॉम्बे से रवाना हुए। परन्तु अनुसन्धान के लिए तैनात प्रयोगात्मक सोनार उपकरण के कारण दुश्मन को भारतीय नौसेना की इस गतिविधि को भांपते देर न लगी।

9 दिसम्बर :

पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस हंगोर ने भारतीय आईएनएस खुकरी पर तारपीडो से हमला बोल दिया। तकनीकी कमियों के चलते आईएनएस खुकरी किसी भी मायने में पाकिस्तानी हंगोर का सामना नहीं कर सकता था। हमले के कुछ समय के भीतर ही जहाज डूबने लगा।

समय को हाथ से निकलते देख कप्तान मुल्ला ने जहाज को बचाने में ताकत न बर्बाद करते हुए अपने साथियों को बचाना उचित समझा। यह जानते हुए भी कि उनके ज्यादातर साथी जहाज की छत के नीचे दबे हैं उन्होंने खुद सबको निकालना शुरू कर दिया। अपनी चोट की परवाह किये बिना कप्तान ने हर उस सैनिक को बचाया जिसे वे बचा सकते थे।

उन कुछ कमजोर लम्हों में, यदि कप्तान मुल्ला चाहते तो स्वयं को बचा सकते थे पर इस असाधारण लीडर ने अपनी जान की बजाय अपने सिपाहियों की जान बचायी। यह था उस महान आदमी का व्यक्तित्व जिसने अपनी आखिरी साँस तक अपने साथियों को बचाने में लगा दी।

बहुत से सैनिक जिन्हें कप्तान ने बचाया था, उन्होंने बताया कि अपने आखिरी समय में भी कप्तान ने पुल पर खड़े होकर गार्ड रेल को पकड़े रखा जब तक की जहाज पूरी तरह डूब नहीं गया। और आईएनएस खुकरी ने 176 नाविक, 18 अधिकारी और एक बहादुर कप्तान के साथ अरब सागर के पानी में अपनी समाधी ले ली।

जीवित बचे 67 लोगों को अगली सुबह आईएनएस कटचल की मदद से निकाला गया। आईएनएस खुकरी अब तक इकलौता भारतीय लड़ाकू जहाज है जिसे भारत ने युद्ध के दौरान खोया है और कप्तान मुल्ला एकमात्र ऐसे कप्तान हैं जो अपने पोत के साथ खुद भी डूब गए।

कप्तान मुल्ला ने जो उन आखिरी क्षणों में किया वह न केवल उस हमले में बचे हुए सैनिकों का अपितु हर एक भारतीय सैनिक का हौसला बढ़ाता रहेगा। रिटायर मेजर जनरल ईआन कार्डोज़ो ने अपनी किताब, “द सिंकिंग ऑफ़ आईएनएस खुकरी: सरवाइवर्स स्टोरीज” में भी कप्तान मुल्ला की बहादुरी का जिक्र किया है।

उन्होंने किताब के प्रकाशन के दौरान कहा, “इस कभी न भुलाने वाली कार्यवाही में कप्तान मुल्ला ने हमें न केवल जीना बल्कि कैसे मरा जाता है यह भी सिखाया है। हम सभी को देश का बेहतर नागरिक बनने के लिए उनके सिद्धांत और मूल्यों को अपने जीवन में उतारना चाहिए।”

आईएनएस खुकरी मैमोरियल

खुकरी के सभी शहीदों की याद में दिउ में भारतीय नौसेना ने एक मेमोरियल बनवाया। जिसमें आईएनएस खुकरी का स्केल मॉडल रखा गया है। कप्तान मुल्ला आज़ाद भारत के पहले कप्तान थे जो अपने जहाज को बचाने के लिए स्वयं भी उसके साथ डूब गए! उन्हें मरोणोपरांत महावीर चक्र से नवाज़ा गया।

कप्तान मुल्ला की पत्नी सुधा मुल्ला ने भी अपने पति के नक़्शे-कदम पर चलते हुए, अपना जीवन खुकरी में शहीद हुए सैनिकों के परिवारों के जीवन को सुधारने में लगा दिया।

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